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Monday, December 14, 2020

shashiprabha: बहे निरंतर अनंत आनंद धारा

shashiprabha: बहे निरंतर अनंत आनंद धारा:                                                                बहे निरंतर अनंत आनंद धारा                                                    ...

बहे निरंतर अनंत आनंद धारा

                                                               बहे निरंतर अनंत आनंद धारा

                                                                           शशिप्रभा तिवारी


हर इंसान अपने करियर की शुरूआत शून्य से करता है। धीरे-धीरे सफर आगे बढ़ता है और करवां बनता जाता है। कथक नर्तक संदीप मलिक ने कभी अपने करियर की शुरूआत अपनी गुरू श्रीलेखा मुखर्जी के सानिध्य में किया था। अब उन्होंने अपनी संस्था सोनारपुर नादम की स्थापना की है। इसी से जुड़े हुए हैं, उनके शिष्य-शिष्या सौरभ पाल व मंदिरा पाल।

बीते रविवार तेरह दिसंबर को सौरभ व मंदिरा पाल ने कथक नृत्य पेश किया। दोनों कलाकार आत्मविश्वास से भरे हुए दिखे। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी, रियाज, समर्पण, सहजता और स्पष्टता दिखी। पश्चिम बंगाल के इन कलाकारों को देखकर, एक बार मन ने एक बात दोहराया कि वाकई, बंगाल आज भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। और, ऐसे कलाकार इस बात को प्रमाणित कर देते हैं। 

इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। यह उन्नीसवां एपीसोड था। उम्मीद है कि आने वाले समय में कलाकारों के सहयोग से यह सिलसिला जारी रहेगा।

युगल कथक नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से हुआ। यह रचना ‘डमरू हर कर बाजै‘ के बोल पर आधारित थी। इस स्तुति में सौरभ और मंदिरा ने शिव के अनादि, त्रिशूलधर, वृषभवाहन, गंगाधर, पीनाकधर, भूतनाथ रूपों को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। ‘शिव छम्म‘ व ‘डमरू बाजै‘ पर विशेष बल देते हुए, उन्होंने हस्तकों और पैर के काम से मनोहारी नृत्य पेश किया। इसके अलावा, इक्कीस चक्करों का प्रयोग भी मोहक था।

मंदिरा और सौरभ ने अपने युगल नृत्य में शुद्ध नृत्त को पिरोया। इस अंश में विलंबित लय में धमार ताल के जरिए कथक के तकनीकी पक्ष को रेखांकित किया। चैदह मात्रा में उन्होंने चक्करों के साथ आमद की। उन्होंने थाट, तिहाई, टुकड़े को नृत्य में शामिल किया। एक रचना ‘दिग थेई थेई तत ता‘ पर नायक-नायिका के अंदाज को दर्शाया। एक अन्य रचना में थुंग का अंदाज मोहक था। वहीं, उन्होंने ‘गिन कत धा ता किट‘, ‘धित ताम थुंग थुंग‘ व ‘ना धिंना‘ के बोलों को नृत्य में समाहित किया। नृत्य में इक्कीस चक्कर के प्रयोग के साथ हस्तकों का रखाव और बोलों को बरतने का तरीका संवरा हुआ था। 



उन्होंने सोलह मात्रा में द्रुत लय में कथक नृत्त पक्ष को पेश किया। तीन ताल में उन्होंने एक तिहाई ‘धिनक धा‘ पेश की। इसमें प्रकृति व संगीत के वाद्यों को विशेष तौर पर चित्रित किया। उठान की पेशकश में उत्प्लावन का प्रयोग सधा हुआ था। उन्होंने कविगुरू रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना ‘बहे निरंतर अनंत आनंद धारा‘ को नृत्य में पिरोया। भाव और अभिनय का यह संुदर समायोजन था। इस पेशकश में इक्कीस चक्करों के साथ लयकारी का प्रयोग किया गया। यह नृत्य भी सौंदर्यपूर्ण था। कथक नर्तक संदीप मलिक का नृत्य समायोजन प्रशंसनीय था। 

Tuesday, December 8, 2020

shashiprabha: बनारस घराने की कथक का रस

shashiprabha: बनारस घराने की कथक का रस:                                                           बनारस घराने की कथक का रस                                                         ...

बनारस घराने की कथक का रस

                                                          बनारस घराने की कथक का रस

                                                         शशिप्रभा तिवारी

बीते शाम 6दिसंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना दर्शना मूले ने कथक नृत्य पेश किया। दर्शना मूले बनारस घराने की गुरू स्वाती कुर्ले की शिष्या हैं। वह बारह सालों से अपनी गुरू की सानिध्य में हैं। उनके नृत्य में बनारस घराने का ठाठपना तो है ही, साथ ही, एक ठहराव, अच्छी तैयारी और परिपक्वता दिखी। वह नृत्य करते समय भी आत्मविश्वास से भरी नजर आईं। 


संकल्प के इस आॅनलाइन आयोजन में उनके साथ गायन पर श्रीरंग, तबले पर संदीप कुर्ले और पढंत पर गुरू स्वाति कुर्ले थीं। इस पेशकश के दौरान, संगतकारों की संगत मधुर और प्रसंग के अनुरूप थी। कहीं कोई जल्दीबाजी और शोर नहीं था, जो कथक में ऐसी संगति कम देखने-सुनने को मिलती है। इसके लिए संगतकार तारीफ के काबिल हैं। स्वाति कुर्ले ने विशेषतौर पर द्रौपदी वस्त्र हरण के प्रसंग की परिकल्पना गत भाव के रूप में किया, वह सराहनीय है। उन्होंने कथा वाचन की बैठकी शैली में इसे पेश किया, जो पुरानी परंपरा की झलक थी। इसके साथ ही नाट्य संगीत का प्रभाव प्रत्यक्ष जान पड़ा। 

इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। इसी के मद्देनजर कथक नृत्यांगना दर्शना मूले का नृत्य देखने का अवसर मिला।

दर्शना मूले ने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत कृष्ण वंदना से की। उन्होंने इस रचना ‘गोविंदम गोकुलानंदम गोपालम‘ पर कृष्ण के रूप का विवेचन किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। उन्होंने विलंबित लय में उठान ‘ता किट तक ता धा‘ में पैर के काम के साथ 21चक्कर का प्रयोग मोहक था। वहीं ‘धा किट थुंग थुंग धा गिन‘ के बोल पर थाट बंाधना सधा हुआ था। पंडित मुकंुद देवराज की रचना पर चलन पेश किया। इसमें एड़ी व पंजे का काम विशेष था। 

द्रुत लय में बंदिश ‘धा किट‘ के बोल पर दोपल्ली का अंदाज पेश किया। साथ ही, पंडित रविशंकर मिश्र रचित परण को अपने नृत्य में शामिल किया। दर्शना ने परण ‘धा गिन किट धा‘ को तिश्र, चतुश्र व मिश्र जाति का अंदाज प्रदर्शित किया। गत निकास में सादी गत को पेश किया। इसमें पलटे, फेरी, अर्धफेरी व हस्तकों का प्रयोग बहुत ही नजाकत से किया। गुरू गोपीकृष्ण की रचना ‘किट तक थुंग थुंग‘ को दर्शना ने नाचा। परण की इस प्रस्तुति में बैठकर सम लेना सरस प्रतीत हुआ। 


Saturday, December 5, 2020

shashiprabha: पटियाला के कलाकार की चमक

shashiprabha: पटियाला के कलाकार की चमक:                                                   पटियाला के कलाकार की चमक शशिप्रभा तिवा...

पटियाला के कलाकार की चमक

                                                 पटियाला के कलाकार की चमक

शशिप्रभा तिवारी

प्रतिभा किसी प्रदेश या देश विशेष तक सीमित नहीं है। यह समय-समय पर देश के कोने-कोने में प्रदर्शित होती है। कथक नृत्यांगना अर्शदीप कौर भट्टी ऐसी ही कलाकार हैं। वह पंजाब विश्वविद्यालय, पटियाला की छात्रा हैं। अर्शदीप डाॅ डेजी वालिया की शिष्या हैं। अर्शदीप नृत्य की कलाकार तो हैं ही। साथ ही, उन्होंने गायन और अभिनय भी सीखा है। वह इंडिया गाॅट टैलेंट की विजेताओं में से रही हैं। अर्शदीप जैसे समर्पित कलाकारों की कला जगत को जरूरत है। जिससे कला जगत समृद्ध हो सकेगा।

कथक नृत्यांगना अर्शदीप ने शिव वंदना से नृत्य आरंभ किया। उन्होंने रचना ‘नमः शिवाय अर्धनारीश्वराय‘ पर आधारित थी। हस्तकों और भंगिमाओं से भगवान शिव के रूपों को दर्शाया। उन्होंने शिव के नीलकंठ, नागेश्वर, जटाधारी, चंद्रशेखर रूप को निरूपित किया। उन्होंने शुद्ध नृत्त पेश किया। इसमें ग्यारह मात्रा में निबद्ध रचनाओं को पेश किया। विलंबित लय में थाट, आमद, चलन, टुकड़े और परण को नृत्य में प्रस्तुत किया।

अर्शदीप ने आमद ‘धा किट किट धा ता धा‘ में 27चक्कर का प्रयोग किया। वहीं चलन ‘थर्रि किट धा धा धा‘ मेें पंजे और एड़ी के काम का विशेष तौर पर उभारा। टुकड़े ‘तत् थेई किट तक गिन धा‘ के बोल पर पलटे, चक्कर और अंग संचालन का कोमल संचालन पेश किया। उन्होंने परण को नृत्य में नाचा। रचना ‘किट गद गिन धा‘ का प्रस्तुतिकरण प्रभावकारी था।


सोलह मात्रा के तीन ताल में अगले अंश नृत्य को पिरोया। उन्होंने तोड़े में पंद्रह चक्कर का प्रयोग किया। अर्शदीप ने कथक नृत्य की प्रस्तुति के क्रम में पंडित सुरेश तलवरकर की रचना को शामिल किया। रचना ‘धा तुना तकत‘ के बोल पर होली के खेल के भाव को निरूपित किया। चक्रदार परण में धिलंाग का अंदाज मोहक था। उन्होंने अमीर खुसरो की रचना ‘नैना अपने पिया के लगइले‘ पर भाव पेश किया। उन्होंने संचारी भाव के निरूपण के साथ चलन और गत निकास का प्रयोग किया। इसमें सादी गत और नजर के अंदाज का प्रयोग था।

इस प्रस्तुति के दौरान, कथक नृत्यांगना अर्शदीप के साथ तबले पर गुरूचेतन सिंह और गायन पर योगेश गर्ग ने संगत किया। बीते शाम 29नवंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना अर्शदीप कौर ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।

Tuesday, November 24, 2020

shashiprabha: युवा कलाकारों का साथ -- शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: युवा कलाकारों का साथ -- शशिप्रभा तिवारी:                                                         युवा कलाकारों का साथ                                                          शशिप्र...

युवा कलाकारों का साथ -- शशिप्रभा तिवारी

                                                       युवा कलाकारों का साथ

                                                         शशिप्रभा तिवारी

बीते शाम 22नवंबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक राहुल शर्मा ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम राहुल शर्मा ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। वाकई युवा गुरू के युवा शिष्य राहुल के नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी।



नर्तक राहुल शर्मा ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक कुमार शर्मा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। हमारा काम कथक और अन्य शैलियों के साथ प्रयोग के लिए ज्यादा जाना जाता है। हमें लोग कथक राॅकर्स के नाम से भी जानते हैं। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।

युवा कथक नर्तक राहुल शर्मा पिछले सात-आठ सालों से अपने गुरू कुमार शर्मा के सानिध्य में है। वह सीखने के साथ-साथ परफाॅर्म भी करते रहे हैं। वह संभावना से भरे नजर आते हैं। उन्होंने संकल्प के आयोजन के दौरान आकर्षक नृत्य पेश किया। उनके साथ संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-गायन व हारमोनियम पर कुमार शर्मा, तबले पर ऋषभ शर्मा और पढंत पर शिवानी शर्मा।

कथक नर्तक राहुल शर्मा ने अपनी पेशकश का आरंभ ध्यान श्लोक से किया। नाट्यशास्त्र के श्लोक ‘आंगिकम् भुवनस्य‘ के संदर्भ को नृत्य में पिरोया। इसमें उन्होंने भंगिमाओं और मुद्राओं के जरिए जटाधारी, नीलकंठ, गंगाधर, नटराज, त्रिशूलधर को बखूबी दर्शाया। उन्होंने पंद्रह मात्रा के ताल पंचम सवारी को शुद्ध नृत्त में प्रस्तुत किया। विलंबित लय में उपज को पेश किया। थाट में नायक के खड़े होने का अंदाज मोहक था। इसमें सरपण गति, चक्कर और उत्प्लावन का प्रयोग सहज था। वह हर रचना में सम पर आकर, वहीं से अगली रचना की शुरूआत कर रहे थे। प्रस्तुति के क्रम में, राहुल का इतना ऊर्जावान होना अनूठा नजर आ रहा था। रचना ‘ता थेई थेई तत् के बोल को बखूबी नृत्य में समाहित किया। वहीं, परण आमद के पेशकश में ‘क्रान धा कत धा‘ के बोल पर प्रभावकारी काम पेश किया। नृत्य में एक ही रचना में एक व दो पैरों के जरिए चक्कर का प्रयोग करना लासानी था। 

मध्य लय में नर्तक राहुल शर्मा ने घुड़सवारी का अंदाज पेश किया। रचना ‘किट तक धिंन ना‘ में हस्तकों व पैरों के काम से घोड़े के संचालन का अंदाज पेश किया। एक से सात अंकों की तिहाई, परण ‘धा न धा‘, तीन धा से युक्त रचना को भी अपने नृत्य में शामिल किया। उन्होंने परमेलू को भी नाचा। कृष्ण और पनहारिन राधिका के भावों को ठुमरी में पेश किया। राहुल शर्मा ने ठुमरी ‘रोको न डगर मेरो श्याम‘ के अभिनय में पेश करने से पहले पृष्ठभूमि की आधार भूमि तैयार की। इसके लिए उन्होंने घूंघट, मटकी, बांसुरी, गुलेल की गतों को पेश किया। साथ ही, तिहाई में राधा, कृष्ण और छेड़छाड़ के भावों का दर्शाया। अंत में द्रुत लय में लगभग 48चक्करों की प्रस्तुति मोहक थी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राहुल अपनी पूरी क्षमता के साथ कथक की साधना में जुटे रहें, तो आने वाले समय में कला जगत को एक बेहतरीन कलाकार मिल पाएगा। 


Monday, November 9, 2020

shashiprabha: युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी

shashiprabha: युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी:                                                         युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी                                            ...

युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी

                                                        युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी

                                                        शशिप्रभा तिवारी


कथक नृत्यांगना विधा लाल लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। विधा लाल कथक नृत्य गुरू गीतांजलि लाल से सीखा है। इनदिनों वह अपने फेसबुक पेज-विधा लाल कथक एक्पोनेंट पर आॅन लाइन डांस फेस्टीवल सीरिज 2020 का आयोजन किया है। यह नृत्य उत्सव ‘संकल्प‘ 2अगस्त को शुरू हुआ।

अब तक इस आयोजन में 14 कलाकार शिरकत कर चुके हैं। पिछले रविवार की शाम-आठ नवंबर 2020 को संकल्प में कथक नृत्यांगना स्वाति माधवन ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम स्वाति माधवन ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। 

नृत्यांगना स्वाति माधवन ओज और ऊर्जा से भरी हुई नजर आई। स्वाति माधवन ने एस दिव्यसेना से भरतनाट्यम नृत्य सीखा है। वह कथक नृत्य, नर्तक मुल्ला अफसर खां से सीख रही हैं। वह सिंगापुर की फाइन आट्र्स सोसायटी और स्वर्ण कला मंदिर से जुड़ी हुई हैं। उनके गुरू नर्तक मुल्ला का कहना है कि कथक नृत्य सतत् साधना का सिलसिला है। इसे सीखने के लिए कलाकार में समर्पण और लगन की जरूरत है। तभी इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने में अपना दायित्व निभा सकते हैं। क्योंकि आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।



जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं, नर्तक मुल्ला अफसर। सो उनके नृत्य में उनके गुरू का अंदाज सहज झलकता है। और वही उनके सिखाने में भी दिखा। नृत्यांगना स्वाति माधवन के नृत्य के हर अंदाज में उनके गुरू की छाप साफ दिखाई दे रही थी। उन्होंने अपने नृत्य का आरंभ गणेश वंदना से किया। गणपति श्लोक पर आधारित पेेशकश में हस्तकों, मुद्राओं और भंगिमाओं के जरिए उन्होंने गणेश के रूप को निरूपित किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में अच्छी तैयारी दिखी। 

उपज में पैर का काम पेश किया। सरपण गति और चक्कर का प्रयोग किया। स्वाति ने रचना ‘ता थेई तत् थेई‘ और ‘किट ता धा किट धा‘ में पैर की गतियों और आंगिक चेष्टाओं को पेश किया। वहीं, परण आमद ‘धा किट किट धा‘ में उत्प्लावन और चक्कर का प्रयोग मोहक दिखा। गणेश परण ‘गं गं गणपति‘ में गणेश के रूप का चित्रण मार्मिक था। उन्होंने गिनती की तिहाई में पैर का काम पेश किया। परण ‘कृष्ण करत तत् थेई‘ में कृष्ण की लीला को दर्शाया। परमेलू की पेशकश में पक्षी की उड़ान के साथ मयूर की गत का प्रयोग चक्करदार रचना ‘धा धा धा धित ताम‘ में सुंदर था। एक अन्य परमेलू ‘थर्रि थर्रि कूकू झनन झनन‘ को भी पूरी ऊर्जा के साथ स्वाति ने नाचा। उन्होंने पंडित राजेंद्र गंगानी की रचना ‘सावन गरजत गरजत‘ में भावों को पेश किया। इसकी कोरियोग्राफी उनके नृत्य गुरू ने की थी। इसमें भाव के साथ मयूर की गत, पलटे, चक्कर, फेरी, अर्धफेरी का प्रयोग सुघड़ता से किया। 


Sunday, November 1, 2020

shashiprabha:                                                   ...

shashiprabha:                                                   ...:                                                     कला खुशबू की तरह है                                                         शशिप्रभा तिव...

                                                   कला खुशबू की तरह है

                                                        शशिप्रभा तिवारी


भारतीय संस्कृति में या यूं कहें कि आम जीवन में विद्या आपकी सबसे बड़ी दौलत है। वाकई, विद्या या कोई गुण या कोई हुनर आपको समृद्ध बनाता है, आपको जोड़ता है, आपको आनंद देता है। और जब कला की साधना आनंद प्राप्ति के लिए की जाए तो बात ही क्या? इस कोरोना संकट काल में जब लोग मिल-जुल नहीं पा रहे हैं। ऐसे में कला की खुशबू आपके पास कभी संगीत तो कभी नृत्य तो कभी चित्र के रूप में आती है। इस खुशबू को कलाकार फूल की तरह धारण करते हैं। और लोगों तक पहुंचाते हैं। व्यक्तित्व की यह खुशबू सभी को संस्कृति और संस्कारों को भी समाहित किए रहती है। संकल्प ऐसी ही खुशबू आप तक कलाकारों के जरिए पहंुचा रहा है।


 

नृत्य समारोह संकल्प का आयोजन इनदिनों कला जगत मंे काफी चर्चित हो रही है। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। एक नवंबर की शाम एक नई प्रतिभा वंदना सेठ से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिला।

कथक नृत्यांगना वंदना सेठ कथक नृत्यांगना व गुरू प्राची दीक्षित की शिष्या हैं। वैसे वंदना ने कृष्ण कुमार धारवाड़ और पंडित राम मोहन महाराज से भी नृत्य सीखा है। वंदना के नृत्य में लखनऊ घराने की सौम्यता, सरसता और नजाकत बखूबी झलकती है। उन्होंने कथक की बारीकियों को अपने नृत्य में सुघड़ता से समाहित किया है। संकल्प के आयोजन में वंदना ने गणेश वंदना से आरंभ किया। उन्होंने गणेश वंदना ‘सुमिरौं सिद्धि विघ्नहरण मंगल करण‘ में गणपति के रूप को दर्शाया।

तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत्त को वंदना ने पेेेश किया। उन्होंने रचना ‘धा धिंन धिंन धा तिन तिन‘ में हस्तकों और पैर का काम प्रस्तुत किया। एक अन्य रचना में सलामी की गत का अंदाज मोहक था। उठान ‘थेई थेई तत् तत् ता‘ में फेरी व चक्कर के साथ बैठकर सम लिया। वंदना ने परण आमद पेश किया। ‘धा किट धा‘ के बोल से युक्त इस पेशकश में चक्कर का प्रयोग मोहक था। उन्होंने गुरू प्राची दीक्षित की रचना कवित्त पेश की। दुर्गा देवी के रौद्र रूप का चित्रण इस कवित्त में था। इसके बोल थे-घन घन घंटा बाजै, कर कर त्रिशूल साजै। इस कवित्त को वंदना सुंदर तरीके से निभाया। 

कथक नृत्यांगना वंदना ने कुछ टुकड़े, तिहाइयों और चक्रदार तिहाइयों को भी अपनी प्रस्तुति में नाचा। उन्होंने नृत्य मंे चक्करों का प्रयोग बहुत ही सधे अंदाज में किया। साथ ही, नृत्य करते हुए, वह बहुत सहज और ठहराव के साथ नजर आईं। अपनी प्रस्तुति का समापन पंडित बिंदादीन महाराज की रचना ‘ऐसे राम हैं दुखहरण‘। अपनी गुरू की नृत्य परिकल्पना को वंदना ने भाव-अभिनय में साकार किया। नृत्य में द्रौपदी वस्त्र हरण व वामन प्रसंग का निरूपण समीचीन था।  


Tuesday, October 27, 2020

shashiprabha: कृष्ण का विरह

shashiprabha: कृष्ण का विरह:                                                                     कृष्ण का विरह                                                           ...

कृष्ण का विरह

 


                                                                  कृष्ण का विरह

                                                                  शशिप्रभा तिवारी

नृत्य समारोह संकल्प में कथक नर्तक कदंब पारीख ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।


 

उन्होंने कथक की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नर्तक कदंब ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘धा तक गिन थुंग तक किट धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा था। वहीं इसमें पंजे, एड़ी के काम के जरिए लयकारी दर्शाना आकर्षक था। एक अन्य रचना में उत्प्लावन, चक्कर और पैर का प्रभावकारी काम पेश किया। नर्तक कदंब ने परण में हस्तकों व अंग संचालन के साथ पैर का काम व चक्कर का प्रयोग किया। इसमें पखावज के बोलों व चक्कर का प्रयोग मनोरम था। 

नृत्य का समापन कदंब ने चक्करों के विविध प्रस्तुति से किया। एक पेशकश में उन्होंने सीधे और उल्टे चक्कर का प्रयोग करते हुए, 32चक्करों को पेश किया। मिक्सर के चलने के अंदाज को सोलह चक्कर के माध्यम से पेश किया। वहीं, घूमते हुए 26चक्कर को प्रस्तुत किया। कदंब के नृत्य में बहुत सफाई और बोलों को बरतने में बहुत स्पष्टता थी। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। कदंब के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है। 

उन्होंने अपने व्यक्तित्व के अनुकूल कृष्ण का विरहोत्कंठित नायक के तौर पर चित्रित किया। भाव और अभिनय के लिए कृष्ण को बतौर चुनना एक अच्छी सूझ-बूझ का परिचय था। आमतौर पर, पुरूष कलाकार अभिनय करने से बचते नजर आते हैं या तो वो भजन पर अभिनय पेश कर अपनी प्रस्तुति को पूर्ण कर देते हैं। बहरहाल, कदंब ने रचना ‘केलि कदंब की विरह की ताप‘ पर राधा से मिलने को आतुर कृष्ण के भावों को बखूबी दर्शाया। इस पेशकश में राधिके की पुकार के साथ सोलह चक्कर का प्रयोग किया। यह रचना उनकी गुरू इशिरा पारीख की थी। जबकि, नृत्य रचना उनके गुरू मौलिक शाह ने की थी।

नर्तक कदंब ने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव वंदना ‘गंगाधारी‘ से किया। रचना ‘शीशधर गंग, बालचंद्र गले भुजंग‘ पर उन्होंने शिव के विभिन्न रूपों को निरूपित किया। नृत्य में 21 व सोलह चक्करों का प्रयोग आकर्षक था। रचना ‘तक थुंग धिकत ता थैया‘ के बोल पर रौद्र रूप का चित्रण किया। साथ ही, नर्तक कदंब ने ‘डमरू कर धर महेश‘ हस्तकों व पैर का काम विशेषतौर पर पेश किया। जबकि, धित तक थुंग लुंग ताम के बोल पर अर्धनारीश्वर रूप को दर्शाना मोहक था। कुल मिला कर कदंब का नृत्य ओजपूर्ण और पुरूष केंद्रित नृत्य था। उनके नृत्य में बिजली सी चमक और स्फूर्ति थी। 





Wednesday, October 21, 2020

shashiprabha: विरासत काव्यधारा

shashiprabha: विरासत काव्यधारा: विरासत काव्यधारा    शशिप्रभा तिवारी कलाश्री फाॅर डांस एंड योग की ओर से दो दिवसीय विरासत-काव्यधारा समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन कथक नृत...

विरासत काव्यधारा




विरासत काव्यधारा

   शशिप्रभा तिवारी

कलाश्री फाॅर डांस एंड योग की ओर से दो दिवसीय विरासत-काव्यधारा समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर की फेसबुक पेज था। बीते अठारह और उन्नीस अक्तूबर को आयोजित समारोह का उद्घाटन नृत्य साम्राज्ञी व राज्य सभा सांसद डाॅ सोनल मानसिंह ने किया। इस समारोह को ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर और भरतनाट्यम की वरिष्ठ गुरू व नृत्यांगना सरोजा वैद्यनाथन ने शुभकामना संदेश दिया। प्रसिद्ध उद्घोषिका साधना श्रीवास्तव ने अपने सधे अंदाज में संचालन किया। 

कलाश्री और संस्कृति मंत्रालय के इस संयुक्त आयोजन में डाॅ कविता ठाकुर, कविता द्विवेदी, रागिनी चंद्रशेखर, पियाल भट्टाचार्य, कैरोलिना, जयप्रभा मेनन, पार्वती दत्ता और नवीना जफा ने शिरकत किया। समारोह का आरंभ कथक नृत्य से हुआ। इसे कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर ने पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘वाही है कदंब जहां वेणू मृदंग बाजत है‘ को अपने नृत्य का आधार बनाया। नृत्य में राधा के विरह श्रृंगार का सम्मोहक चित्रण था। 
कविता ठाकुर ने एक रचना में पैर के काम के साथ हस्तकों से कृष्ण के रूप को दर्शाया। जबकि, रचना ‘तक थुंगा तत धित ता‘ पर राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ व भाव को चित्रित किया। नृत्य के क्रम में रचना ‘तक तक राधिका के नैन तक‘ में परमेलू का अंदाज मोहक था। वहीं राधा के विरह व बांसुरी के अंदाज को ‘बिन गोपाल बैरन भई‘ व ‘जब हरि मुरली अधर धरी‘ में चित्रित करना, बेहद मार्मिक था। साथ ही, नृत्य की पराकाष्ठा में राधा-कृष्ण को एकाकार करते हुए, निरूपित किया। इसके लिए ‘राधा माधव रंग भई‘ पंक्तियों का चयन बहुत लासानी था। नृत्य में, सादी गत, बांसुरी, घूंघट, नजर की गत का प्रयोग सुंदर था।




 इस समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना रागिनी चंद्रशेखर नृत्य अभिनय पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘सुनो अनुज एहि बन जानकी प्रिया‘ का चयन किया। यह राग रागेश्वरी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसकी कोरियोग्राफी गुरू जमुना कृष्णन की थी। इसे गायिका सुधा रघुरामन ने बहुत मधुर सुर में गाया। उसी के अनुरूप नृत्यांगना रागिनी ने अभिनय प्रस्तुत किया। ओडिशी नृत्यांगना कविता द्विवेदी ने मीरा बाई की रचना पर भाव प्रस्तुत किया।  रचना ‘झुक आई री बदरिया सावन की‘ राग मियां की मल्हार और त्रिपुट ताल में निबद्ध थी। उनकी पेशकश काफी परिपक्व और मोहित थी। 





छऊ नृत्यांगना कैरोलीना ने नृत्य रचना अर्धनारीश्वर थी। उन्होंने रचना ‘झण कण कंकण नुपुरायं‘ को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में शिव और पार्वती के पुरूष और प्रकृति के रूप का विवेचन किया। उनके नृत्य में ताण्डव और लास्य का समावेश था। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने बुद्ध के जीवन चरित्र को नृत्य पिरोया। रचना ‘बुद्ध माधभावम मदाभागम‘ राग मुखारी और अयाडी ताल में निबद्ध थी। कथक व ओडिशी नृत्यांगना पार्वती दत्ता ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पद्माकर की रचना पर भाव अभिनय पेश किया। रचना ‘गोकुल में गोपिन गोविंदन फाग‘ को धु्रपद शैली में पिरोया गया था। गीत और कथक के कथा वाचन के जरिए पार्वती दत्ता ने बहुत सुंदर ढंग से नृत्य में समाहित किया। जो उनका अपना एक अलग अंदाज है। 
विरासत काव्यधारा समारोह में संवाद को भी शामिल किया गया था। कथक नृत्यांगना व स्काॅलर नवीना जफा ने चित्रकला, कविता और नृत्य विषय पर चर्चा की। उन्होंने राजस्थान की पिछवई चित्रकारी के बारे में बताया। उन्होंने विद्यापति की रचना ‘ए सखी देखली एक अपरूप सपन‘ पर अभिनय पेश किया। जबकि, पियाल भट्टाचार्य ने नाट्य और अभिनय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि रस, भाव और अभिनय भारतीय नाटक के स्तंभ हैं। नाट्यशास्त्र में इसकी विशद विवेचना है। 













Tuesday, October 20, 2020

shashiprabha: नई पौध के अंकुर

shashiprabha: नई पौध के अंकुर:                                                                                                                                       नई पौध...

नई पौध के अंकुर

                                                                   

                                                                 नई पौध के अंकुर


                                                                शशिप्रभा तिवारी


बीते शाम अठारह अक्तूबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम शुभम तिवारी ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। 

नर्तक शुभम तिवारी ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक अनुज मिश्रा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।

दरअसल, इस संदर्भ में कथक नृत्यांगना विधा लाल, अलकनंदा कथक और उनकी पूरी टीम बधाई के योग्य है। इन सभी लोगों के प्रयास का परिणाम है-संकल्प का आयोजन। इस आयोजन में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने अपने नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से किया। श्लोक ‘कर्पूर गौरं करूणावतारं‘ में शिव के रूप को नर्तक शुभम ने दर्शाया। हस्तकों और भंगिमाओं का प्रयोग सहज था। शिव तांडव स्त्रोत के अंश के साथ छंद-‘चंद्रकला मस्तक पर सोहे‘ के जरिए शिव के रौद्र रूप का प्रदर्शन मोहक था। शुभम का वायलिन के लहरे पर चक्कर के साथ सम पर आना मनोरंजक था। 





कथक नर्तक शुभम तिवारी ने ताल पंचम सवारी में शुद्ध नृत्त पेश किया। पंद्रह मात्रा के ताल को पखावज के ताल में निबद्ध किया। लहरे में सितार और वायलिन का प्रयोग सुंदर था। शुभम ने अपने नृत्य में 115चक्करों को प्रभावकारी प्रयोग किया। यह उनकी विशेष उपलब्धि है। उन्होंने रचना ‘तिना-दी-दी-ना‘ के बोल पर पैर का काम पेश किया। वहीं परमेलू ‘धित-ताम-तकिट-धिकिट‘ के बोल में पिरोई गई थी। इसमें नर्तक ने45चक्करों का प्रयोग किया। तिहाइयां में ‘गिन-गिन-गिन-धा‘ व ‘गिन-धा‘ के अंदाज को पैर के काम के जरिए काफी स्पष्टता के साथ पेश किया। पूरे पंजे और एड़ी का प्रयोग करते हुए, एक पैर के चक्कर का प्रयोग मार्मिक था। शुभम ने दो परणों को अपने नृत्य में समाहित किया। इसी क्रम में, उन्होंने गणेश परण ‘गणनां गणपति गणेश‘ में गणेश के रूप को दर्शाया। एक अन्य रचना में ‘धिलांग-धिलांग-किट-थेई‘ की पेशकश आकर्षक थी। उन्होंने नृत्य का समापन लड़ी से किया। कुल मिलाकर नर्तक शुभम तिवारी की तकनीकी पक्ष काफी दुरूस्त, संतुलित और तैयारी अच्छी है। उम्मीद है कि आने वाले समय में वह इसी तरह मेहनत करते हुए, अपने लगन के दम पर नई बुलंदियों को पाने की कोशिश में जुटे रहेंगें। 

Thursday, October 15, 2020

shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...

shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...:             गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता...

गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना

          गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना


किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता है कि मां-बाप किसी के जन्म के भागी होते हैं। कर्म के भागी तो आपको खुद बनना पड़ता है। कुछ ऐसा ही रहा है-कथक नृत्यांगना पंखुड़ी श्रीवास्तव के जीवन का सफर। पंखुड़ी बिहार की राजधानी शहर पटना में पली-बढ़ीं। वहीं, उन्होंने नृत्य सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे जब समझ बढ़ी तब उन्होंने अपनी कला के कलि का विकसित करने के लिए उन्होंने राजधानी दिल्ली का रूख किया। आईए, उनकी इस यात्रा के बारे में कुछ जाने-सुने-शशिप्रभा तिवारी                                  

आपने नृत्य क्यों और किससे सीखा है?

पंखुड़ी-मैंने नृत्य क्यों सीखा, इसका जवाब मैं नहीं दे सकती। लेकिन, यह सहज ही कह सकती हूं कि मुझे डांस करना अच्छा लगता है। वह मुझे शक्ति देता है। मेरे व्यक्तित्व को और मेरे सोच को विस्तार दिया है। इसलिए मैंने नृत्य सीखा हो। वैसे नृत्य सीखने की शुरूआत छुटपन में ही हो गई थी। तब यह समझ नहीं थी कि क्यों सीख रही हूं।

मेरे पहले गुरू सुदामा गोस्वामी थे। मैंने शिव मिश्रा से भी नृत्य सीखा। पर, पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए, मुझे महसूस हुआ कि मुझे नृत्य और बेहतर स्तर पर सीखना है। सो मैंने निर्णय लिया कि अब दिल्ली के कथक केंद्र में दाखिला लेना है। संयोग से केंद्र में मेरा चुनाव भी हो गया। यहां मैंने गुरू कृष्ण मोहन महाराज के सानिध्य में कथक के संसार को पूणता से जान पाई।


 





आपको किस तरह का संघर्ष करियर बनाते समय करना पड़ा?

पंखुड़ी-मुझे याद आता है कि मेरे लिए कथक को बतौर करियर चुनना आसान नहीं था। मुझे घर और बाहर दोनों मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, मेरे परिवार और रिश्तेदारों को पसंद नहीं था कि मैं इस फिल्ड को अपनाउं। मुझे बहुत तरह की बातें सुननी पड़ीं। लेकिन, मेरी बड़ी बहन मंजरी श्रीवास्तव ने बहुत साथ दिया। सच कहूं तो मैंने खुद को बनाया है। लोगों की बातें सुनने के बजाय अपने समय और उर्जा को काम और नृत्य को समर्पित किया। कोई भी उपलब्धि छोटी या बड़ी नहीं होती। मैं मानती हूं, आपका नाम आपके काम से बनता है। इसके जरिए ही सामाजिक बदलाव संभव है। जो धीरे-धीरे हो रहा है। हम बदलेंगें तो देश बदलेगा ही।

आपने अपने गुरू से क्या सीखा?

पंखुड़ी-दरअसल, कथक नृत्य या यूं कहूं कि कोई भी शास्त्रीय नृत्य अथाह सागर है। इसमें जितने गोते लगाएंगें, उतने ही मोती-सीप-रत्न मिलेंगें। मुझे गुरू जी की लयकारी, तैयारी, पढंत ने बहुत प्रभावित किया। उनके नृत्य में कई अंगों के कथक का समावेश है। उनसे कई बंदिशें सीखीं, जिसे उन्होंने अलग-अलग अंदाज में सिखाया।

मुझे लगता है कि किसी भी कलाकार को सीखने के साथ-साथ उन चीजों को खुद के अंदाज में ढालना भी जरूरी है। यह सच है कि हमने जो सीखा है, उसे सुरक्षित रखना शिष्य-शिष्या की जिम्मेदारी है। पर साथ ही, यह भी जरूरी है कि आपको नए चिंतन के साथ, अपने व्यक्तित्व के अनुरूप नृत्य करना चाहिए। मैं सोचती हूं कि एक कम्पलीट परफाॅर्मेंस में चक्कर, फुटवर्क, परण और बाकी सभी चीजों का समावेश होना चाहिए। सिर्फ, चक्कर या सिर्फ अभिनय से बात नहीं बनती।

आपकी यादगार परफाॅर्मेंस कौन-सी है?

पंखुड़ी-मैं हर क्षण गुरूजी की सरलता और सहजता को याद रखती हूं। ये चीजें उन्हें औरों से अलग करती हैं। मुझे याद आता है कि गयाना में मेरा परफाॅर्मेंस था। मैं एक कार्यक्रम के सिलसिले में वहां गई थी। अचानक, वहां पर मुझे आग्रह किया गया कि आप स्टेडियम में आयोजित समारोह में कुछ नृत्य पेश कर दीजिए। यह क्षण बहुत चुनौतीपूर्ण था। मैंने तुरंत अपने पैर में घुंघरू बांधा और साथी कलाकारों के साथ मंच पर नृत्य पेश करना शुरू किया। मेरे नृत्य को देखकर, दर्शक और आयोजक दोनों बहुत खुश हु

Wednesday, September 30, 2020

shashiprabha: एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी:                                                                                 एक नया आगाज                                                ...

एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी

   


                                                                            एक नया आगाज

                                                                     शशिप्रभा तिवारी

बीते शाम 27सितंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना शिखा शर्मा ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।


कथक नृत्यांगना रानी खानम लखनऊ घराने की परंपरा को निभाने वाली बेहतरीन नृत्यांगना हैं। उन्हें गुरू रेबा विद्यार्थी और पंडित बिरजू महाराज के सानिध्य में कथक नृत्य सीखने का अवसर मिला। नृत्यांगना व गुरू रानी खानम परंपरागत तकनीकी पक्ष के साथ-साथ नई-नई रचनाओं को नृत्य में प्रस्तुत करती रही हैं। उनकी कुछ नृत्य रचनाओं को काफी सराहना मिलती रही है। उन्होंने कई बंदिशों, सूफी कव्वाली और गजलों को बखूबी नृत्य में पिरोया है, जिसने एक अलग छाप छोड़ी है। वह राजधानी दिल्ली में लंबे समय से नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ तालीम दे रहीं हैं। उसी की एक झलक ‘संकल्प‘ के आयोजन में दिखी। इस आॅन लाइन कार्यक्रम में उनकी शिष्या शिखा शर्मा ने नृत्य पेश किया।


देश के अन्य शहरों की तरह राजधानी में कथक के प्रति लोगों का रूझान काफी ज्यादा है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। इनमें शायद, एक वजह गुरूओं की उपलब्धता भी हो सकती है। बहरहाल, कथक नृत्य प्रस्तुति का आरंभ शिष्या शिखा शर्मा ने तीन ताल में शुद्ध नृत्त से किया। विलंबित लय में आमद के साथ मंच पर प्रवेश सुंदर था। उन्होंने थाट, परण, टुकड़े, तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। एक रचना में बैठकर, सम लेने का अंदाज मनोरम दिखा। जो अक्सर, उनकी गुरू का भी एक अंदाज रहा है। शिखा ने तिहाई पेश की। इसमें दोनो पैरों के साथ पंजे और एड़ी का काम दर्शाया। उन्होंने द्रुत लय में नृत्य को आगे बढ़ाया। अन्य रचनाओं में ‘ता किट धा‘, तीन धा से युक्त रचना और ‘ना धिंन्ना‘ को पैर के काम में काफी स्पष्टता और संतुलन के साथ पेश किया। उन्होंने सादी गत और रूख्सार की गत को अपने नृत्य में शामिल किया। उनके द्वारा पेश चक्रदार रचना की पेशकश भी अच्छी थी। नृत्य के क्रम में पल्टा, फेरी, अर्धफेरी, कलाइयों के घुमाव का प्रयोग सुंदर था। उसमें उनकी तैयारी और मेहनत दिख रही थी।


Monday, September 21, 2020

shashiprabha: युवा कलाकारों की धमक

shashiprabha: युवा कलाकारों की धमक:                                                                                                                                  युवा कलाकार...

युवा कलाकारों की धमक

                                                                 

                                                               युवा कलाकारों की धमक

                                                                शशिप्रभा तिवारी


कथक नृत्य में गुरू-शिष्य परंपरा की अनवरत प्रवाह है। यह प्रवाह कला जगत में बखूबी दिखती है। कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने बतौर नर्तक अपनी अच्छी पहचान कायम की है। वह नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ कथक सिखा भी रहीं हैं। गौरी दिवाकर ने संस्कृति फाउंडेशन-सर्वत्र नृत्यम के माध्यम से अपनी शिष्याओं को अवसर भी देती रहीं हैं। 

बीते शाम 20सितंबर को उनकी शिष्या निदिशा वाष्र्णेय और सौम्या नारंग ने युगल कथक नृत्य पेश किया। इसकी नृत्य परिकल्पना गौरी दिवाकर ने की थी। संगीत रचना गौरी के गुरू जयकिशन महाराज की थी। जबकि, श्लोक को सुर में पिरोया था, गायक समीउल्लाह खां ने। वाकई, मंच पर जब कोई कलाकार नृत्य करता है, तब बहुत से लोगों का साथ होता है। जो पर्दे के पीछे रहकर अपना सहयोग देते हैं। 



‘संकल्प‘ का यह साप्ताहिक आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट के फेसबुक पेज पर होता है। इस आयोजन में आईपा, आॅर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग कर रहे  हैं। गौरी दिवाकर शिष्याएं निदिशा और सौम्या ने अपनी सहज, सौम्य और नजाकत भरी प्रस्तुति से मन मोह लिया। उन्होंने अपने नृत्य में शुद्ध नृत्त की तकनीकी पक्ष को खासतौर पर पेश किया। उनके नृत्य में अच्छा ठहराव और तेज था। दोनों का आपसी तालमेल बेहतरीन था। 

निदिशा और सौम्या ने ओम श्लोक से नृत्य आरंभ किया। श्लोक ‘ओमकार विंदु संयुक्तं‘, ‘कारूण्य सिंधु भवदुखहारी‘ व ‘सर्व मंगल मांगल्ये‘ के मेलजोल से वंदना पेश किया गया। हस्तकों, मुद्राओं, भंगिमाओं के जरिए शिव, शक्ति और ओमकार को दर्शाया। लास्यपूर्ण निरूपण के साथ यह शुरूआत मनोरम थी। सोलह मात्रा के तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृत्त को पिरोते हुए, उपज पेश किया। पैर के दमदार काम को ‘तक-धिकिट-धा-कित-धा‘ के बोल को पिरोया। अगली रचना ‘ता थेई तत ता‘ और ‘तक थुंगा‘ का अंदाज दर्शाया। अंकों की तिहाइयों की प्रस्तुति में संतुलित और दुरूस्त पद संचालन पेश किया। इसमें एक से आठ, एक से चार और एक से सात अंकों की तिहाइयां थीं। रचना ‘थैइया थैइया थैइया थेई ता धा‘ और ‘तक दिगित धा‘ में पंजे और एड़ी का काम आकर्षक था। उन्होंने एक अन्य रचना को नृत्य में शामिल किया। इसमें दस चक्करों का प्रयोग प्रभावकारी था। वहीं ‘धित ताम थंुगा थुंगा ता धा और गिन धा का अंदाज देखते बन पड़ा। 

वास्तव में, उभरते युवा कलाकारों से यही उम्मीद रहती है कि वह तकनीकी पक्ष की बारीकियों को समझें और गुरू के मार्गदर्शन में इसे ग्रहण करें। नृत्यांगना गौरी दिवाकर खुद एक अच्छी कलाकार हैं। और कला जगत में प्रतिष्ठित होने के बावजूद अपने गुरूओं से दिशा निर्देश ग्रहण करने के लिए उत्सुक रहती हैं। ऐसे में निदिशा और सौम्या से यह उम्मीद रहेगी कि वो सीखने और रियाज के क्रम को लगातार जारी रखें। उन्होंने अच्छी तैयारी अपने नृत्य में प्रदर्शित किया। इससे उनके उत्साह, क्षमता और ऊर्जा का पता चलता है। 



Saturday, September 19, 2020

shashiprabha:                                         ...

shashiprabha:                                         ...:                                         अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन ...

अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन

                                       

अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन

शशिप्रभा तिवारी

मेरी कपिला दीदी-पंडित बिरजू महाराज, कथक सम्राट

उनदिनों मैं छोटा-सा बालक था। लखनऊ में कपिला दीदी पिताजी से कथक सीखतीं थीं। पिताजी उनको जब नृत्य सिखाते, तब मैं बैठकर देखता और गुनता रहता था। वह मुझे बड़े प्यार से ‘बिरजू भैया‘ बुलाती थीं। अक्सर, मजाक करतीं, अब तो बड़े कलाकार हो गए हो! अब तो तुम्हारा बहुत नाम हो गया है। तुमने अपने पिताजी का नाम ऊंचा किया है। तुम पर नाज है। उनके ऐसा कहने पर मैं मुस्कुराकर रह जाता था। मुझे दिल्ली लाने वाली दीदी हीं थीं। साढे़ नौ बरस का था, जब वह यहां लेकर आईं।

उन्होंने संगीत भारती में वह मणिपुरी नृत्य सीखा था। वहां उनके गुरू अमोबी सिंह थे। संगीत भारती में कपिला दीदी की मणिपुरी नृत्य के डेªसे में तस्वीर भी सजी हुई थी। उनका मुझ पर कभी न भूलने वाल अहसान रहा है। उन्होंने अपने गुरू के बेटे की जिम्मेदारी को भरपूर निभाया। सच कहूं तो वह बहुत ज्ञानी थीं। सबसे बड़ी बात कि बहुत इज्जत के साथ इस दुनिया से विदा हुईं।

उनका सार्थक जीवन-ओम थानवी, कुलपति, हरिदेव जोशी पत्रकारिता एंव जनसंचार विश्वविद्यालय

संस्कृति के बौद्धिक परिवेश में कमलादेवी चट्टोपाध्याय, रूक्मिणी देवी अरूंडेल और कपिला वात्स्यायन की एक विदुषी त्रयी बनती है। बीते दिनों अंतिम कड़ी भी टूट गई। पता नही, एक साथ ऐसा समर्पित समूह अब कब अवतरित होगा।
यों डाॅ कपिला वात्स्यायन ने कमोबेश पूरा और सार्थक जीवन जिया। कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान पर बहुत कुछ कहा गया है। संस्थाएं खड़ी करने पर भी। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र उन्हीं की देन है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर को सांस्कृतिक तेवर प्रदान करने में उनकी भूमिका जग जाहिर है। इतने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन मैंने आइआइसी में देखे-सुने कि उससे दिल्ली के अलग दिल्ली होने का अहसास होता था।



जयदेव कृत ‘गीत गोविंद पर अपने शोध और भरत के नाट्यशास्त्र के विवेचन से बौद्धिक हलकों में उन्होंने नाम कमाया। पारंपरिक नाट्य परंपरा पर भी उन्होंने विस्तार से लिखा है। बाद में उन्होंने शास्त्रीय और लोक दोनों नृत्य शैलियों पर काम किया। मूर्तिकला-खासकर देवालयों में उत्कीर्ण नृत्य मुद्राओं-का उनका गहन अध्ययन सुविख्यात है। साहित्य और चित्रकला के नृत्य विधा से रिश्ते पर भी उन्होंने शोधपूर्ण ढंग से लिखा।

अपनी कल्पना को विस्तार दिया-डाॅ सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला कंेद्र

जब चार साल पहले पहली बार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो मन में उत्साह तो था। साथ ही संकोच भी था। उस संस्था में काम करना है, जिसकी स्थापना कपिला वात्स्यायन जी ने की है। उस संस्था में काम करना जिसके कण-कण का सृजन कपिला जी की कल्पना से हुआ हो। इन संस्थान की कल्पना और इसके विस्तार को समझने में ही काफी दिन लग गए। चुनौती थी कि जो उच्च मानदंड उन्होंने स्थापित किए है, उनके अनुरूप आगे काम को ले जाना।



इसलिए आइजीएनसीए में काम शुरू करने के बाद उनसे पहली मुलाकात करने में कुछ दिन का समय लिया। सोचा कि पहले कुछ जान समझ लूं फिर जाऊंगा। वैसे कपिला जी से भोपाल में एकाधिक बार मिलना हुआ था, जब वे ‘रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप‘ की ट्रस्ट की बैठकों में आती थीं। उनके साथ उस ट्रस्ट में सदस्य होने का भी सौभाग्य मिला। लेकिन, तब उनसे बहुत बात करने की हिम्मत नहीं होती थी। हम लोग बस उनकी, मेरे गुरू प्रभात दा की और गुल दी की गप्पों और नोंक-झोंक का आनंद लिया करने थे। मन में ये भी शंका थी कि क्या कपिला जी उन मुलाकातों को याद रख पाई होंगी।

भारतीय संस्कृति को देखने की दृष्टि कपिला जी ने विकसित की थी, वह अद्भुत थी। वह भारतीय संस्कृति के अध्ययन को सिर्फ अतीतजीवी होने से बचाती हुई, वर्तमान का बोध करते हुए, भविष्योन्मुखी बनाने में सक्षम थी। इसलिए उनका लक्ष्य था, श्रेष्ठतम संदर्भों का निर्माण। वे लगातार कार्य करती रहीं, अपने उसी लक्ष्य को पूरा करने में जुटी रहीं। आयु के इस दौर में भी उन्हें लगाता काम करते देखना प्रेरणा देने वाला था।

वह सांस्कृतिक सेतु थीं-एन एन वोहरा, अध्यक्ष, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर

डाॅ कपिला वात्स्यायन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की संस्थापक अध्यक्ष रहीं। उनका इंडिया इंटरनेशनल सेंटर से करीब साठ साल का संबंध रहा। वह भारतीय कला और संस्कृति की अग्रदूतों में से थीं। उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बीच संबंध स्थापित करने में सेतु का काम किया। मुझे विशेष तौर पर उनके साथ वर्षों तक काम करने का अवसर मिला। उनके जाने से सांस्कृतिक जगत में एक शून्यता पैदा हो गई है, जिसे भर पाना शायद संभव नहीं है।



विश्वास नहीं होता-शाश्वती सेन, कथक नृत्यांगना

डाॅ कपिला वात्स्यायन हमारी पथ प्रदर्शक, शुभ चिंतक और माता-पिता के बाद उनका प्यार मिला। वह ज्ञान की अथाह समंदर थीं। उनके ज्ञान सागर से अगर हम दो लोटा ज्ञानरूपी जल निकाल भी लेते तो उनपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। वह नृत्य, संगीत, हस्तकला, साहित्य हर विधा में बराबर का दखल रखतीं थीं। याद आता है, उनसे अंतिम मुलाकात आइआइसी में शाॅरेन लाॅवेनजी के एक कार्यक्रम में करीब छह महीने पहले हुई थी। वह ऐसे अचानक विदा हो जाएंगी, विश्वास नहीं होता है।



हम महिला की प्रेरणापुंज-रीता स्वामीचैाधरी, सचिव संगीत नाटक अकादमी

संस्कृति की पर्याय डाॅ कपिला वात्स्यायन अपने सांस्कृतिक विभूति थीं। उन्होंने संस्कृति और साहित्य जगत में उस समय कदम रखा, जब इस क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती थी। मेरी वह प्रेरणास्वरूप रही हैं। उनसे कई बार मिलने का अवसर मिला। सोचती हूं, उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा अपने काम से प्राप्त की थी। वह संस्कृति के प्रति पूरी तरह समर्पित व्यक्तित्व थीं। वास्तव में, वह संास्कृतिक फलक की ध्रुव तारा थीं, जो आने वाले समय में वह हमेशा हर किसी को प्रेरित करेंगी। वह सदा-सदा अपनी लेखनी और कृतित्व के माध्यम से अमर रहेंगीं। उन्हें हम कभी भूल नहीं पाएंगें।



संस्कृति की केंद्र विंदु-सुमन कुमार, उपसचिव संगीत नाटक अकादमी व निदेशक कथक केंद्र

डाॅ कपिला वात्स्यायन अपने नाम के अनुरूप ही सौम्यता से परिपूर्ण थीं। चाहे वह लोककला हो या शास्त्रीय कला या कोई अन्या विधा हर किसी को एक समान आदर और प्यार देतीं थीं। वह सभी संास्कृतिक विधा की केंद्र विंदु थीं।



वर्तमान में कलाओं का जो सौम्य मुख दर्शन हम कर पा रहे हैं, वह उनकी मेहनत का नजीजा हैं। उन्होंने जो सपने देखे, उसे अपने जीवन काल में फलीभूत होते हुए देखने का सौभाग्य पाया। उन्होंने संस्कृति के स्वर्ण युग के स्वर्ण स्वप्न को साकार किया।
वह परम विदुषी, हर क्षेत्र का ज्ञान रखने वाली, शास्त्र का ज्ञान, अनुभव की बौद्धिकता और सौम्य थीं। मुझे याद आता है कि काॅलेज के दिनों में लोक कलाओं पर उनके आलेख को पढ़कर मुझे प्रेरणा मिली थी। उसे प्रेरित होकर मैंने पहला आलेख कला से संबंधित लिखा था|