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Monday, March 3, 2014

ढलता सूरज देख
आज मन गुनगुना रहा है
तुम्हारी पहली नजर
पहले स्पर्श को
पहले आलिंगन को याद कर
अनंत भावों में
निमग्न होता है
शायद, यह अमूर्त प्रेम का नर्तन है

वह स्पर्श का नर्तन
वह निगाहों का नर्तन
वह भावों का नर्तन
तुम्हारी यादों में
शायद, यही जीवन का नर्तन है

दिल का धड़कना
सांसों का चलना
आँखों का देखना
तुम्हारे होने का
शायद, यह आनंद का नर्तन है

आओ! दूर उस पहाड़ी को चलें
जहाँ थिरकते हैं ,पाओं नटराज के
पार्वती के
नटनागर के
राधा के और
संग गोपियों के
शायद, यह उमंग का नर्तन है

Tuesday, February 11, 2014

इस वसंत में
झील के किनारे
पलाश की डाल पर
लाल फूल की ओट में
पंछियों का जोड़ा बैठा था

पता नहीं
चिड़ी उदास-सी कुछ कहती
कभी फुदक के
इधर से उधर जाती है

चिड़ा अपनी चुप्पी में है
उसे चिड़ी कुरेदती है
क्यों? नाराज़ हो !
चाँद लम्हों का साथ आओ

शाम ढलने को आई है
दोनों मिल
 गुनगुना लें जिंदगी के गीत गा लें

 ना जानें!
कहाँ ?
फिर जिंदगी शाम हो जाए
 कब, किसका साथ छूट जाए?

Thursday, January 23, 2014

उसी पनघट पर
गागर ले कर
खड़ी हूँ, कान्हा!
एक बार आओ ना!

कांकरिया मार
गागर को तोड़ो,
भीगती हूँ, कान्हा!
एक बार भिगो जाओ ना!

राधा कुंड से
कृष्णा कुंड तक
बहलती हूँ, कान्हा!
एक बार बहला जाओ ना!

उध्दवजी को ना भेजो
इस बार नैना
तरसते हैं, कान्हा!
एक बार दरस दे जाओ ना!

मैं अकेली
राह में बैठी
बाट निहारती हूँ, कान्हा!
एक बार मिल जाओ ना!
 

Thursday, January 2, 2014

चला जाता है
मन उड़ता हुआ
बार-बार तुम्हारे पास
कुछ नहीं चाहता
तुम्हें मुस्कुराता देख
लौट आता है
अपने डेरे में
तुम्हारे फेरों से
महसूस होता है
कितना बहाव है
जीवन में
बरस-बरस बीत जाते हैं
हम गेहूं, सरसों, पलास को
झूमते देख
मन के शिवालय में
गंगा जल से
अभिषिक्त करतें
उन पलों को
जब तुम्हारे सहारे
हम हुए थे ....

Wednesday, January 1, 2014

आओ एक
मिलन का दीप जलाएं
हम-तुम दोनों
मिल कर एक सपना देखें
नहीं!
स्वप्न में जीना
कितना सम्मोहन देता है
तुम्हारे कंधे पर
लहराते मेरे केश
क्या!
तुम्हारी भी
यथार्थ में
ऐसी ख्वाहिश होती है
सीने पर हाथ रख
सच बोलना!
मेरी तमन्ना की नदी
हर बार
तुम्हारे मन के
सागर में मिल जाती है
तब, सपने-सच कहाँ!
उन पलों में
सिर्फ,हम और तुम होते हैं
चांदनी रात और चाँद की तरह