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Thursday, February 13, 2020

सत्रीय नृत्य समारोह



                                                          सत्रीय नृत्य समारोह

                                                          शशिप्रभा तिवारी

शास्त्रीय नृत्य सत्रीय असम का लोकप्रिय नृत्य है। अब तक सत्रीय नृत्य पूर्वोत्तर और असम में ही सीमित रहा है। संगीत नाटक अकादमी और सत्रीय नृत्य के गुरूओं व कलाकारों के प्रयास से इसे देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। राजधानी दिल्ली, मुम्बई, पुणे, कोलकाता में सत्रीय नृत्य को सीखने के प्रति युवाओं में रूचि बढ़ी है। इसकी झलक मेघदूत सभागार में आयोजित सत्रीय प्रवाह में दिखी।

संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित सत्रीय प्रवाह समारोह में सत्रीय नृत्य की अलग-अलग छटा को कलाकारों ने पेश किया। प्रस्तुति का आरंभ परमानंद काकोती बरबायन और साथी कलाकारों के गायन-बायन से हुआ। परमानंद और साथियों ने लयात्मक खोल वादन और सुरीले गायन से मनोहर शुरूआत की। समारोह का समापन धृति गोविंद दत्ता और मनोज कुमार दास की जुगलबंदी से हुआ। उन्होंने तबला व खोल वादन के जरिए तीन ताल व भरमान ताल बजाया। 



सत्रीय नृत्यांगना दिविका बड़ठाकुर और उनकी शिष्याओं ने सत्रीय नृत्य पेश किया। इसका आगाज साली नृत्य से हुआ। सत्रीय नृत्य की तकनीकी पक्ष, शुद्ध नृत व राजाघड़िया नृत्य पक्ष को इस पेशकश में दर्शाया गया। इसमें हस्तकों और मुद्राओं का लास्यात्मक प्रयोग किया गया। यह श्रीमंत माधवदेव की रचना ‘कृष्णम तुभ्यम नमामि‘ पर आधारित थी। इसमें भगवान विष्णु के दशावतार का विवेचन मोहक था।

सत्रीय प्रवाह की अगली प्रस्तुति बड़गीत थी। माधव देव की रचना ‘सखी देखी मदन गोपाल‘ पर आधारित नृत्य में अभिनय की प्रधानता थी। इसमें नृत्यांगनाओं ने कृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक प्रसंगों का वर्णन किया। इस प्रस्तुति में साक्षी, श्रुतिका और बिशमिता ने शिरकत की। कृष्ण वंदना नृत्यांगना दिविका बड़ठाकुर की एकल प्रस्तुति थी। नृत्यांगना दिविका ने कृष्ण के नंदगोपाल, नारायण, गोविंद, देवकीनंदन, पंकजनाभ, वासुदेव रूपों का  विवेचन पेश किया। साथ ही, बाल कृष्ण के मिट्टी खाने, किशोर कृष्ण के गोवर्धन पर्वत, कुब्जा उद्धार, कंस व चाणूर वध प्रसंग को चित्रित किया। इस प्रस्तुति में वात्सल्य व भक्ति रस का संुदर समन्वय था।

सत्रीय नृत्य के रामदानी यानि कोमल तांडव पक्ष को नादुभंगी नृत्य में पेश किया गया। शुद्ध नृत की इस प्रस्तुति में विभिन्न बोलों पर देह की अलग-अलग मुद्राओं को नृत्यांगनाओं ने विशेषतौर पर पेश किया। यह नृत्य सूता ताल में निबद्ध था। श्रुतिका और श्रावणी की युगल प्रस्तुति आकर्षक थी। अगली युगल प्रस्तुति नर्तक मंजीत कलिता और देवजीत दत्ता की थी। यह बाहार नृत्य थी। श्रीमंत माधव देव की रचना को आधार लेकर, कलाकारों ने बाहार नृत्य पेश किया। यह गीत ‘अरे बंृदावने भीतलो हरि, ए गुणेरिोरनिधि‘ पर आधारित थी। नर्तक मंजीत व देवजीत ने नृत्य प्रस्तुति में उत्प्लावन, भ्रमरी और पद संचालन संतुलित अंदाज में पेश किया। साथ ही, उन्होंने भंगिमाओं के प्रयोग के जरिए कृष्ण के माधुर्य रूप का मोहक चित्रण किया। इस प्रस्तुति को देखकर अष्टछाप कवि वल्लभाचार्य की रचना ‘अधरं मधुरं‘ का भान सहज ही हो आया। वाकई, यह युगल नृत्य भावपूर्ण थी।

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