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Monday, March 3, 2014

ढलता सूरज देख
आज मन गुनगुना रहा है
तुम्हारी पहली नजर
पहले स्पर्श को
पहले आलिंगन को याद कर
अनंत भावों में
निमग्न होता है
शायद, यह अमूर्त प्रेम का नर्तन है

वह स्पर्श का नर्तन
वह निगाहों का नर्तन
वह भावों का नर्तन
तुम्हारी यादों में
शायद, यही जीवन का नर्तन है

दिल का धड़कना
सांसों का चलना
आँखों का देखना
तुम्हारे होने का
शायद, यह आनंद का नर्तन है

आओ! दूर उस पहाड़ी को चलें
जहाँ थिरकते हैं ,पाओं नटराज के
पार्वती के
नटनागर के
राधा के और
संग गोपियों के
शायद, यह उमंग का नर्तन है