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Tuesday, October 27, 2020

shashiprabha: कृष्ण का विरह

shashiprabha: कृष्ण का विरह:                                                                     कृष्ण का विरह                                                           ...

कृष्ण का विरह

 


                                                                  कृष्ण का विरह

                                                                  शशिप्रभा तिवारी

नृत्य समारोह संकल्प में कथक नर्तक कदंब पारीख ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।


 

उन्होंने कथक की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नर्तक कदंब ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘धा तक गिन थुंग तक किट धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा था। वहीं इसमें पंजे, एड़ी के काम के जरिए लयकारी दर्शाना आकर्षक था। एक अन्य रचना में उत्प्लावन, चक्कर और पैर का प्रभावकारी काम पेश किया। नर्तक कदंब ने परण में हस्तकों व अंग संचालन के साथ पैर का काम व चक्कर का प्रयोग किया। इसमें पखावज के बोलों व चक्कर का प्रयोग मनोरम था। 

नृत्य का समापन कदंब ने चक्करों के विविध प्रस्तुति से किया। एक पेशकश में उन्होंने सीधे और उल्टे चक्कर का प्रयोग करते हुए, 32चक्करों को पेश किया। मिक्सर के चलने के अंदाज को सोलह चक्कर के माध्यम से पेश किया। वहीं, घूमते हुए 26चक्कर को प्रस्तुत किया। कदंब के नृत्य में बहुत सफाई और बोलों को बरतने में बहुत स्पष्टता थी। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। कदंब के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है। 

उन्होंने अपने व्यक्तित्व के अनुकूल कृष्ण का विरहोत्कंठित नायक के तौर पर चित्रित किया। भाव और अभिनय के लिए कृष्ण को बतौर चुनना एक अच्छी सूझ-बूझ का परिचय था। आमतौर पर, पुरूष कलाकार अभिनय करने से बचते नजर आते हैं या तो वो भजन पर अभिनय पेश कर अपनी प्रस्तुति को पूर्ण कर देते हैं। बहरहाल, कदंब ने रचना ‘केलि कदंब की विरह की ताप‘ पर राधा से मिलने को आतुर कृष्ण के भावों को बखूबी दर्शाया। इस पेशकश में राधिके की पुकार के साथ सोलह चक्कर का प्रयोग किया। यह रचना उनकी गुरू इशिरा पारीख की थी। जबकि, नृत्य रचना उनके गुरू मौलिक शाह ने की थी।

नर्तक कदंब ने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव वंदना ‘गंगाधारी‘ से किया। रचना ‘शीशधर गंग, बालचंद्र गले भुजंग‘ पर उन्होंने शिव के विभिन्न रूपों को निरूपित किया। नृत्य में 21 व सोलह चक्करों का प्रयोग आकर्षक था। रचना ‘तक थुंग धिकत ता थैया‘ के बोल पर रौद्र रूप का चित्रण किया। साथ ही, नर्तक कदंब ने ‘डमरू कर धर महेश‘ हस्तकों व पैर का काम विशेषतौर पर पेश किया। जबकि, धित तक थुंग लुंग ताम के बोल पर अर्धनारीश्वर रूप को दर्शाना मोहक था। कुल मिला कर कदंब का नृत्य ओजपूर्ण और पुरूष केंद्रित नृत्य था। उनके नृत्य में बिजली सी चमक और स्फूर्ति थी। 





Wednesday, October 21, 2020

shashiprabha: विरासत काव्यधारा

shashiprabha: विरासत काव्यधारा: विरासत काव्यधारा    शशिप्रभा तिवारी कलाश्री फाॅर डांस एंड योग की ओर से दो दिवसीय विरासत-काव्यधारा समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन कथक नृत...

विरासत काव्यधारा




विरासत काव्यधारा

   शशिप्रभा तिवारी

कलाश्री फाॅर डांस एंड योग की ओर से दो दिवसीय विरासत-काव्यधारा समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर की फेसबुक पेज था। बीते अठारह और उन्नीस अक्तूबर को आयोजित समारोह का उद्घाटन नृत्य साम्राज्ञी व राज्य सभा सांसद डाॅ सोनल मानसिंह ने किया। इस समारोह को ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर और भरतनाट्यम की वरिष्ठ गुरू व नृत्यांगना सरोजा वैद्यनाथन ने शुभकामना संदेश दिया। प्रसिद्ध उद्घोषिका साधना श्रीवास्तव ने अपने सधे अंदाज में संचालन किया। 

कलाश्री और संस्कृति मंत्रालय के इस संयुक्त आयोजन में डाॅ कविता ठाकुर, कविता द्विवेदी, रागिनी चंद्रशेखर, पियाल भट्टाचार्य, कैरोलिना, जयप्रभा मेनन, पार्वती दत्ता और नवीना जफा ने शिरकत किया। समारोह का आरंभ कथक नृत्य से हुआ। इसे कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर ने पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘वाही है कदंब जहां वेणू मृदंग बाजत है‘ को अपने नृत्य का आधार बनाया। नृत्य में राधा के विरह श्रृंगार का सम्मोहक चित्रण था। 
कविता ठाकुर ने एक रचना में पैर के काम के साथ हस्तकों से कृष्ण के रूप को दर्शाया। जबकि, रचना ‘तक थुंगा तत धित ता‘ पर राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ व भाव को चित्रित किया। नृत्य के क्रम में रचना ‘तक तक राधिका के नैन तक‘ में परमेलू का अंदाज मोहक था। वहीं राधा के विरह व बांसुरी के अंदाज को ‘बिन गोपाल बैरन भई‘ व ‘जब हरि मुरली अधर धरी‘ में चित्रित करना, बेहद मार्मिक था। साथ ही, नृत्य की पराकाष्ठा में राधा-कृष्ण को एकाकार करते हुए, निरूपित किया। इसके लिए ‘राधा माधव रंग भई‘ पंक्तियों का चयन बहुत लासानी था। नृत्य में, सादी गत, बांसुरी, घूंघट, नजर की गत का प्रयोग सुंदर था।




 इस समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना रागिनी चंद्रशेखर नृत्य अभिनय पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘सुनो अनुज एहि बन जानकी प्रिया‘ का चयन किया। यह राग रागेश्वरी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसकी कोरियोग्राफी गुरू जमुना कृष्णन की थी। इसे गायिका सुधा रघुरामन ने बहुत मधुर सुर में गाया। उसी के अनुरूप नृत्यांगना रागिनी ने अभिनय प्रस्तुत किया। ओडिशी नृत्यांगना कविता द्विवेदी ने मीरा बाई की रचना पर भाव प्रस्तुत किया।  रचना ‘झुक आई री बदरिया सावन की‘ राग मियां की मल्हार और त्रिपुट ताल में निबद्ध थी। उनकी पेशकश काफी परिपक्व और मोहित थी। 





छऊ नृत्यांगना कैरोलीना ने नृत्य रचना अर्धनारीश्वर थी। उन्होंने रचना ‘झण कण कंकण नुपुरायं‘ को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में शिव और पार्वती के पुरूष और प्रकृति के रूप का विवेचन किया। उनके नृत्य में ताण्डव और लास्य का समावेश था। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने बुद्ध के जीवन चरित्र को नृत्य पिरोया। रचना ‘बुद्ध माधभावम मदाभागम‘ राग मुखारी और अयाडी ताल में निबद्ध थी। कथक व ओडिशी नृत्यांगना पार्वती दत्ता ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पद्माकर की रचना पर भाव अभिनय पेश किया। रचना ‘गोकुल में गोपिन गोविंदन फाग‘ को धु्रपद शैली में पिरोया गया था। गीत और कथक के कथा वाचन के जरिए पार्वती दत्ता ने बहुत सुंदर ढंग से नृत्य में समाहित किया। जो उनका अपना एक अलग अंदाज है। 
विरासत काव्यधारा समारोह में संवाद को भी शामिल किया गया था। कथक नृत्यांगना व स्काॅलर नवीना जफा ने चित्रकला, कविता और नृत्य विषय पर चर्चा की। उन्होंने राजस्थान की पिछवई चित्रकारी के बारे में बताया। उन्होंने विद्यापति की रचना ‘ए सखी देखली एक अपरूप सपन‘ पर अभिनय पेश किया। जबकि, पियाल भट्टाचार्य ने नाट्य और अभिनय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि रस, भाव और अभिनय भारतीय नाटक के स्तंभ हैं। नाट्यशास्त्र में इसकी विशद विवेचना है। 













Tuesday, October 20, 2020

shashiprabha: नई पौध के अंकुर

shashiprabha: नई पौध के अंकुर:                                                                                                                                       नई पौध...

नई पौध के अंकुर

                                                                   

                                                                 नई पौध के अंकुर


                                                                शशिप्रभा तिवारी


बीते शाम अठारह अक्तूबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम शुभम तिवारी ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। 

नर्तक शुभम तिवारी ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक अनुज मिश्रा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।

दरअसल, इस संदर्भ में कथक नृत्यांगना विधा लाल, अलकनंदा कथक और उनकी पूरी टीम बधाई के योग्य है। इन सभी लोगों के प्रयास का परिणाम है-संकल्प का आयोजन। इस आयोजन में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने अपने नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से किया। श्लोक ‘कर्पूर गौरं करूणावतारं‘ में शिव के रूप को नर्तक शुभम ने दर्शाया। हस्तकों और भंगिमाओं का प्रयोग सहज था। शिव तांडव स्त्रोत के अंश के साथ छंद-‘चंद्रकला मस्तक पर सोहे‘ के जरिए शिव के रौद्र रूप का प्रदर्शन मोहक था। शुभम का वायलिन के लहरे पर चक्कर के साथ सम पर आना मनोरंजक था। 





कथक नर्तक शुभम तिवारी ने ताल पंचम सवारी में शुद्ध नृत्त पेश किया। पंद्रह मात्रा के ताल को पखावज के ताल में निबद्ध किया। लहरे में सितार और वायलिन का प्रयोग सुंदर था। शुभम ने अपने नृत्य में 115चक्करों को प्रभावकारी प्रयोग किया। यह उनकी विशेष उपलब्धि है। उन्होंने रचना ‘तिना-दी-दी-ना‘ के बोल पर पैर का काम पेश किया। वहीं परमेलू ‘धित-ताम-तकिट-धिकिट‘ के बोल में पिरोई गई थी। इसमें नर्तक ने45चक्करों का प्रयोग किया। तिहाइयां में ‘गिन-गिन-गिन-धा‘ व ‘गिन-धा‘ के अंदाज को पैर के काम के जरिए काफी स्पष्टता के साथ पेश किया। पूरे पंजे और एड़ी का प्रयोग करते हुए, एक पैर के चक्कर का प्रयोग मार्मिक था। शुभम ने दो परणों को अपने नृत्य में समाहित किया। इसी क्रम में, उन्होंने गणेश परण ‘गणनां गणपति गणेश‘ में गणेश के रूप को दर्शाया। एक अन्य रचना में ‘धिलांग-धिलांग-किट-थेई‘ की पेशकश आकर्षक थी। उन्होंने नृत्य का समापन लड़ी से किया। कुल मिलाकर नर्तक शुभम तिवारी की तकनीकी पक्ष काफी दुरूस्त, संतुलित और तैयारी अच्छी है। उम्मीद है कि आने वाले समय में वह इसी तरह मेहनत करते हुए, अपने लगन के दम पर नई बुलंदियों को पाने की कोशिश में जुटे रहेंगें। 

Thursday, October 15, 2020

shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...

shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...:             गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता...

गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना

          गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना


किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता है कि मां-बाप किसी के जन्म के भागी होते हैं। कर्म के भागी तो आपको खुद बनना पड़ता है। कुछ ऐसा ही रहा है-कथक नृत्यांगना पंखुड़ी श्रीवास्तव के जीवन का सफर। पंखुड़ी बिहार की राजधानी शहर पटना में पली-बढ़ीं। वहीं, उन्होंने नृत्य सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे जब समझ बढ़ी तब उन्होंने अपनी कला के कलि का विकसित करने के लिए उन्होंने राजधानी दिल्ली का रूख किया। आईए, उनकी इस यात्रा के बारे में कुछ जाने-सुने-शशिप्रभा तिवारी                                  

आपने नृत्य क्यों और किससे सीखा है?

पंखुड़ी-मैंने नृत्य क्यों सीखा, इसका जवाब मैं नहीं दे सकती। लेकिन, यह सहज ही कह सकती हूं कि मुझे डांस करना अच्छा लगता है। वह मुझे शक्ति देता है। मेरे व्यक्तित्व को और मेरे सोच को विस्तार दिया है। इसलिए मैंने नृत्य सीखा हो। वैसे नृत्य सीखने की शुरूआत छुटपन में ही हो गई थी। तब यह समझ नहीं थी कि क्यों सीख रही हूं।

मेरे पहले गुरू सुदामा गोस्वामी थे। मैंने शिव मिश्रा से भी नृत्य सीखा। पर, पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए, मुझे महसूस हुआ कि मुझे नृत्य और बेहतर स्तर पर सीखना है। सो मैंने निर्णय लिया कि अब दिल्ली के कथक केंद्र में दाखिला लेना है। संयोग से केंद्र में मेरा चुनाव भी हो गया। यहां मैंने गुरू कृष्ण मोहन महाराज के सानिध्य में कथक के संसार को पूणता से जान पाई।


 





आपको किस तरह का संघर्ष करियर बनाते समय करना पड़ा?

पंखुड़ी-मुझे याद आता है कि मेरे लिए कथक को बतौर करियर चुनना आसान नहीं था। मुझे घर और बाहर दोनों मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, मेरे परिवार और रिश्तेदारों को पसंद नहीं था कि मैं इस फिल्ड को अपनाउं। मुझे बहुत तरह की बातें सुननी पड़ीं। लेकिन, मेरी बड़ी बहन मंजरी श्रीवास्तव ने बहुत साथ दिया। सच कहूं तो मैंने खुद को बनाया है। लोगों की बातें सुनने के बजाय अपने समय और उर्जा को काम और नृत्य को समर्पित किया। कोई भी उपलब्धि छोटी या बड़ी नहीं होती। मैं मानती हूं, आपका नाम आपके काम से बनता है। इसके जरिए ही सामाजिक बदलाव संभव है। जो धीरे-धीरे हो रहा है। हम बदलेंगें तो देश बदलेगा ही।

आपने अपने गुरू से क्या सीखा?

पंखुड़ी-दरअसल, कथक नृत्य या यूं कहूं कि कोई भी शास्त्रीय नृत्य अथाह सागर है। इसमें जितने गोते लगाएंगें, उतने ही मोती-सीप-रत्न मिलेंगें। मुझे गुरू जी की लयकारी, तैयारी, पढंत ने बहुत प्रभावित किया। उनके नृत्य में कई अंगों के कथक का समावेश है। उनसे कई बंदिशें सीखीं, जिसे उन्होंने अलग-अलग अंदाज में सिखाया।

मुझे लगता है कि किसी भी कलाकार को सीखने के साथ-साथ उन चीजों को खुद के अंदाज में ढालना भी जरूरी है। यह सच है कि हमने जो सीखा है, उसे सुरक्षित रखना शिष्य-शिष्या की जिम्मेदारी है। पर साथ ही, यह भी जरूरी है कि आपको नए चिंतन के साथ, अपने व्यक्तित्व के अनुरूप नृत्य करना चाहिए। मैं सोचती हूं कि एक कम्पलीट परफाॅर्मेंस में चक्कर, फुटवर्क, परण और बाकी सभी चीजों का समावेश होना चाहिए। सिर्फ, चक्कर या सिर्फ अभिनय से बात नहीं बनती।

आपकी यादगार परफाॅर्मेंस कौन-सी है?

पंखुड़ी-मैं हर क्षण गुरूजी की सरलता और सहजता को याद रखती हूं। ये चीजें उन्हें औरों से अलग करती हैं। मुझे याद आता है कि गयाना में मेरा परफाॅर्मेंस था। मैं एक कार्यक्रम के सिलसिले में वहां गई थी। अचानक, वहां पर मुझे आग्रह किया गया कि आप स्टेडियम में आयोजित समारोह में कुछ नृत्य पेश कर दीजिए। यह क्षण बहुत चुनौतीपूर्ण था। मैंने तुरंत अपने पैर में घुंघरू बांधा और साथी कलाकारों के साथ मंच पर नृत्य पेश करना शुरू किया। मेरे नृत्य को देखकर, दर्शक और आयोजक दोनों बहुत खुश हु