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Wednesday, August 30, 2023

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...:                                                  भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा                                             ...

भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शशिप्रभा तिवारी

                                                 भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा

                                                  @ शशिप्रभा तिवारी


इनदिनों ओडिशी नृत्य शैली में कई नई रचनाओं को कलाकार प्रस्तुत कर रहे हैं। आमतौर पर कृष्ण और उनसे जुड़े प्रसंगों को ओडिशी नृत्य में विशेषकर पेश किया जाता है। लेकिन, आजकल राम और उनसे जुड़े प्रसंगों व आख्याान को ओडिशी में प्रस्तुत करना आकर्षक है। रामचरित्र के विभिन्न प्रसंगों को ओडिशी के वरिष्ठ कलाकार रामली इब्राहिम पेश कर रहे हैं, जबकि, इस दृष्टि से जटायु मोक्ष गुरु केलुचरण महापात्र की अविस्मरणीय अभिनय की प्रस्तुति है। उनकी वह प्रस्तुति आज भी लोग याद करते हैं। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए, ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक ने उपेक्षिता नायिकाओं की परिकल्पना नृत्य में पेश किया। 


इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अल्पना की ओर से भूमि प्रणाम उत्सव का आयोजन किया गया। इस वार्षिक में ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक की शिष्याओं ने ओडिशी नृत्य पेश किया। नृत्य रचना उपेक्षिता की परिकल्पना अल्पना नायक ने की थी। यह बाल्मिकी रामायण, श्रीरामचरितमानस और अन्य रचनाओं पर आधारित थी। इस प्रस्तुति में अल्पना नायक ने उर्मिला और सूर्पणखा को नायिका के तौर पर दर्शाया गया। 

गुरु अल्पना नायक की शिष्या ने नायिका उर्मिला के भावों को बखूबी उकेरा। संवाद ‘मैं उर्मिला दशरथ की तृतीय पुत्रवधू‘ व ‘आज्ञा देते तो मैं संग जाती‘ और दोहा-‘जानकी लघु भगिनी सकल सुंदर शिरोमणि‘ के माध्यम से पीहू श्रीवास्तव ने उर्मिला के अभिनय और भाव को बारीकियों के साथ उकेरा। वहीं, दूसरी शिष्या ने सूर्पणखा के रौद्र भावों को अपने दमदार संचारी व आंगिक अभिनय के जरिए चित्रित किया। पंचवटी प्रसंग के साथ-साथ सूर्पणखा-रावण संवाद और सूर्पणखा-लक्ष्मण संवाद के जरिए कुछ नए भावों को भी अल्पना और उनकी शिष्याओं ने निरूपित किया। सूर्पणखा के बदले की अंतहीन भावना को व्याख्यायित किया। रावण और राम के युद्ध के दृश्य को छऊ नृत्य शैली में पिरोया गया। 


भूमि प्रणाम उत्सव के दौरान अल्पना के कलाकारों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामी, सरस्वती वंदना और गीत आइले मां सरस्वती निर्मल बाजे के जरिए यह नृत्य पिरोया गया था। दूसरी पेशकश चारूकेशी पल्लवी थी। इसमें पूर्णिमा की रात्री में नायिकाओं के उमंग और खुशी के भावों को शिष्याओं ने दर्शाया। शिष्याओं के भाव और भंगिमाओं में कोमलता और सौम्यता दिखी। वहीं, लय और ताल की आवृतियों में छंदात्मक गतियां मनोरम थीं। खासतौर नायिकाओं के भंगिमाओं को बैठकी मुद्रा और भंगिमाओं में दर्शाना चित्ताकर्षक थी। अगली प्रस्तुति अष्टपदी थी। जयदेव रचित गीत गोविंद की अष्टपदी ‘चंदन चर्चित नीलकलेवर‘ पर आधारित नृत्य में कृष्ण और गोपिकाआकें के भावों को चित्रण सहज और संुदर था। 

इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-गुरु अल्पना नायक, संतोष स्वाईं, सुदर्शन साहू, वैशाली सैनी, देविका सेठ, पीहू श्रीवास्तव, दिशा, यस्तिका, श्रेयषा, लविशा, नेरिशा, ईशिता, हंसिक, समीक्षा और नीमिशा। संगत करने वाले कलाकारों में प्रशात बेहरा, प्रफुल्ल मंगराज, प्रदीप्त महाराणा, धीरज पांडे, रविशंकर प्रधान, विभु प्रसाद त्रिपाठी, रमेश दास, श्रीनिवास सत्पथी आदि शामिल थे। इनके अलावा, गायिका विदुषी संगीता गोस्वामी और नाजिया आलम ने गीतों को सुरों में पिरोया था। यह एक अच्छी प्रस्तुति मानी जा सकती है। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में गुरु रतीकांत महापात्र और गुरु जयप्रभा मेनन की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। 


Tuesday, August 29, 2023

प्रीतिशा---ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी

                                                       प्रीतिशा---- ओडिशी नृत्य की चमक 

                                       @शशिप्रभा तिवारी


बीते 19 अगस्त को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सरोहा उत्सव का आयोजन किया गया। इसका आयोजन संचारी फाउंडेशन की ओर से किया गया। इस उत्सव के बारे में संचारी फाउंडेशन की संस्थापक कविता द्विवेदी ने बताया कि सरोहा उत्सव का आयोजन मैंने अपने गुरु हरिकृष्ण बेहरा की स्मृति में किया। इसका उद्देश्य युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना है। ताकि उनमें उमंग, उत्साह और आत्मविश्वास पैदा हो। 

                                          

सरोहा उत्सव में युवा ओडिशी नृत्यांगना प्रीतिशा महापात्र ने मोहक नृत्य पेश किया। नृत्यांगना प्रीतिशा, गुरु रतीकांत महापात्र और सुजाता महापात्र की शिष्या हैं। वह महान गुरु केलुचरण महापात्र की प्रपौत्री हैं। प्रीतिशा ने अपने परिवार परंपरा को बखूबी अपनाया है। उनका ओडिशी नृत्य के तकनीकी पक्ष के साथ अभिनय पक्ष काफी परिपक्व और सुदृढ़ है। जो उनकी लगन, मेहनत और प्रतिभा से संभव हुआ है। समारोह में उनकी प्रतिभा को गुरु हरिकृष्ण बेहरा सम्मान से सम्मानित किया गया। 



बहरहाल, सरोहा उत्सव 2023 में ओडिशी नृत्यांगना प्रीतिशा ने चंद्रकौंस पल्लवी पेश किया। यह राग चंद्रकौंस और पंचम सवारी ताल में निबद्ध थी। इसमें ताल के विभिन्न लय और अवर्तनों पर संतुलित गति और भंगिमाओं को पेश किया। तकनीकी पक्ष की यह लयात्मक प्रस्तुति आकर्षक थी। उनकी दूसरी पेशकश अभिनय थी। यह पेशकश भजन ‘श्रीरामचंद्र कृपालु भजुमन‘ और श्रीरामचरितमानस के दोहे-‘राम जब आए नर नारी सब मनाए‘ पर आधारित थी। 

यह राग मालिका और जती ताल में निबद्ध था। उन्होंने एकल संचारी में पूरे विस्तार से सीता स्वयंवर के विभिन्न पात्रों के भावों को बहुत चपलता और निपुणता से दर्शाया। क्षण-क्षण हर पात्र के भावों को मुख व आंखों के भावों के साथ-साथ आंगिक अभिनय का बहुत मनोहारी रूप प्रीतिशा ने पेश किया। उन्होंने अपने नृत्य से समारोह की प्रतिष्ठा को काफी बढ़ा दिया। 



सरोहा उत्सव में गुरु कविता द्विवेदी की शिष्याओं ने शिव स्तुति पेश किया। इस प्रस्तुति की नृत्य परिकल्पना गुरु कविता द्विवेदी और संगीत रचना पंडित सुरेश सेठी की थी। जबकि, गुरु संतोष नायर के शिष्य सुधीर कुमार और हिमेश पर्चा ने छऊ नृत्य शैली में नृत्य रचना योद्धा प्रस्तुत किया। वहीं तबला वादक मिहिर नट्टा ने तीन ताल में अपना वादन पेश किया। उन्होंने तीन ताल में उठान, तिहाइयां, कायदे, चक्रदार तिहाइयां आदि पेश किया। उनके साथ हारमोनियम पर पंडित सुरेश सेठी ने संगत किया।  



shashiprabha: प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी:                                                        प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक                                         @शशिप्रभा तिवा...

Wednesday, August 16, 2023

shashiprabha: खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी:                                                                                                                               खुद में कबीर, ...

खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   

                                                          खुद में कबीर, कबीर में हम         

                                                          @शशिप्रभा तिवारी


ओडिशी नृत्य की जानी-मानी नृत्यांगना हैं-रंजना गौहर। उन्होंने ओडिशी नृत्य के साथ-साथ कथक, छऊ और मणिपुरी नृत्य को भी जानने की कोशिश की है। नृत्यांगना रंजना गौहर ने कई गुरूओं से नृत्य सीखा। इनमें प्रमुख रहे हैं-गुरू मयाधर राऊत, आलोका पाणिकर और गुरू श्रीनाथ राउत। उन्होंने नलदमयंती, वसंुधरा, उदयास्थ, गीत-गोविंद, होली की कहानी, श्रवण कुमार, एकलव्य, अलीबाबा चालीस चोर जैसी नृत्य रचनाएं की हैं। जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा है। उन्हंे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्मश्री, इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवार्ड आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है। फिलहाल, रंजना गौहर ‘उत्सव डंास एकेडमी‘ के जरिए ओडिशी नृत्य की शिक्षा देती हैं और देश-विदेश में परफाॅर्मेंस देने में व्यस्त रही हैं। उनके शिष्य केविन बचन को पिछले दिनों संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा सम्मान प्रदान किया गया। 

पिछले दिनों नौ से दस अगस्त तक उत्सव की ओर से सारे जहां से अच्छा समारोह आयोजित किया गया। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में पहली शाम नृत्य रचना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ पेश की गई। समारोह के दूसरी संध्या में ओडिशी नर्तक और गुरु रंजना गौहर के शिष्य केविन बचन ने सीता के जीवन प्रसंग को पेश किया। जबकि मोहिनीअट्टम नृत्यांगना व गुरु जयप्रभा मेनन ने गंगावतरण के दृश्य का रूपायित किया। ओडिशी नृत्य युगल अशोक व बंदिता घोषाल ने अपने नृत्य में मानव जीवन में अहंकार की भूमिका को दर्शाया।


रंजना गौहर की नृत्य परिकल्पना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ की स्क्रिप्ट भीष्म साहनी की कृति कबीरा खड़ा बाजार पर आधारित थी। लेकिन, इस विषय को ओडिशी और समकालीन नृत्य शैली व अभिनय के साथ प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसे उन्होंने सूत्रधार के तौर पर बखूबी निभाया। नृत्य रचना का आरंभ संवाद ‘काशी के पास एक तालाब था लहरतारा तलाब‘ से होता है। यह संवाद ही, दर्शकों को बांध लेता है। साथ ही, संगीत और संवाद अदायगी रिकाॅर्डेड होते हुए भी प्रभावकारी थे। वहीं, कबीर की भूमिका में ओडिशी नर्तक केविन बचन ने अच्छे भाव को प्रकट किया। रचना ‘संत छाड़ि संत कोटिक मिले संता‘, ‘कबीरा जब हम पैदा हुए‘, ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘, ‘तूने रात गवाई खाए के‘, ‘आदि देव नमस्तुभ्यं‘, ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ‘, ‘नैया पड़ी मझधार‘, ‘करमगति टारी नाहीं टरे‘, ‘भजो रे मैया राम गोविंद हरि‘, ‘झीनी झीनी चदरिया‘ आदि को नृत्य रचना में पिरोया गया था। कबीर के जीवन चरित्र का यह चित्रण मार्मिक था। लोई की भूमिका में नृत्यांगना वृंदा ने मोहक नृत्य पेश किया। सामूहिक नृत्य में भी सभी नृत्यांगनाओं का आपसी संयोजन और तालमेल सुंदर और संतुलित था। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी। 

सारे जहां से अच्छा समारोह का आयोजन ओडिशी नृत्यांगना व गुरु रंजना गौहर पिछले अठारह सालों से राजधानी में आयोजित कर रही हैं। इस संदर्भ में वह कहती हैं कि विश्व में भारत एक ऐसा देश है, जहां की सांस्कृतिक विरासत अनूठी है। हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार ही हमारी पहचान है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखना देश के हर नागरिक और हर देशवासी का दायित्व है। हजारों साल की संस्कृति को संभाले रखना आज हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। हमारी संस्कृति में स्वतंत्रता को खास महत्व दिया गया है। हमारे यहंा पशु-पक्षी, पेड़-पौधों हर किसी के अस्तित्व को सम्मान और आदर दिया गया है। ऐसे में हमारे लिए हर नागरिक, हर इंसान, हर रिश्ता, हर चीज आदरणीय है। उसके अस्मिता को कायम रखने में मदद करना और उसे उन्मुक्त धरती और गगन में विचरण करने और जीवन जीने का अधिकार है। 

समारोह के दौरान ध्रुपद गायक उस्ताद वसीफुद्दीन डागर और बांसुरी वादक अजय प्रसन्ना को सम्मानित किया गया। इस समारोह में अतिथि के तौर पर कई वरिष्ठ नृत्यांगना और कलाकार उपस्थित थे। इनमें गुरु मंजुश्री चटर्जी, गुरु गीता चंद्रन, गुरु शोवना नारायण, गुरु प्रतिभा प्रहलाद, गुरु गीतांजलि लाल, गुरु कौशल्या रेड्डी, गुरु संतोष नायर की उपस्थिति ने समारोह की रौनक बढ़ा दिया।