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Thursday, June 27, 2019

shashiprabha: मैं ही राधा हूँ.

shashiprabha: मैं ही राधा हूँ.: कान्हा ! मैं नदी की एक धारा हूँ मैं ही राधा हूँ. मुझमें बहती हैं दुःख-सुख के आवेग खुशी के आंसू मुझे ही गंगा का प्रतीक मान हर दुल्हन...

मैं ही राधा हूँ.

कान्हा !
मैं नदी की एक धारा हूँ
मैं ही राधा हूँ.

मुझमें बहती हैं
दुःख-सुख के आवेग
खुशी के आंसू
मुझे ही गंगा का प्रतीक मान
हर दुल्हन अमर सुहाग मांगती है
मैं अविरल धारा हूँ .

कान्हा !
मैं नदी की एक धारा हूँ
मैं ही राधा हूँ.

तुम्हारे भीतर भी बहती हूँ
लय-ताल के सुर में
मिलन के गीत
तुम्हारे बांसुरी का संगीत बन
हर मन जो सुकून मांगता है
मैं अविरल सुर हूँ .

कान्हा !
मैं नदी की एक धारा हूँ
मैं ही राधा हूँ.


मेरा अतल तल भी बहता है
मिलन-विरह के गीत में
मन गुनगुनाता है
मेरी ही धारा निर्झर बन
मेरे मन को समझाता है
मैं अविरल प्रेम हूँ .

कान्हा !
मैं नदी की एक धारा हूँ
मैं ही राधा हूँ.

Tuesday, June 18, 2019

भरी दोपहर में

भरी दोपहर में
वह आता था बगीचे में
उसके साथ दोस्तों की टोली होती
कभी आम, कभी लीची
कभी फालसे और कभी जामुन
उनके निशाने पर होता
आज कोई हलचल नहीं है

बगीचे सूने हैं
हर जगह मातम-सा पसरा है
गलियां सूनी है
मोहल्ला वीराना है
उसके दोस्त दरवाजे पर आते हैं
बंद दरवजों को देख लौट जाते हैं
कुछ उदास-से
कुछ सहमे-से
पता नहीं अगले पल क्या खबर आए?

पड़ोस का टुन्नी
आज न पतंग उड़ाया
न क्रिकेट ही खेला
न बर्फ-पानी
सब सहमे से हैं
केवल, बंद होठों से
विनती करते हैं
भगवन! हमारे दोस्त राजा को
बक्श देना, चमकी की नज़र से बचा लेना