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Tuesday, December 8, 2020

बनारस घराने की कथक का रस

                                                          बनारस घराने की कथक का रस

                                                         शशिप्रभा तिवारी

बीते शाम 6दिसंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना दर्शना मूले ने कथक नृत्य पेश किया। दर्शना मूले बनारस घराने की गुरू स्वाती कुर्ले की शिष्या हैं। वह बारह सालों से अपनी गुरू की सानिध्य में हैं। उनके नृत्य में बनारस घराने का ठाठपना तो है ही, साथ ही, एक ठहराव, अच्छी तैयारी और परिपक्वता दिखी। वह नृत्य करते समय भी आत्मविश्वास से भरी नजर आईं। 


संकल्प के इस आॅनलाइन आयोजन में उनके साथ गायन पर श्रीरंग, तबले पर संदीप कुर्ले और पढंत पर गुरू स्वाति कुर्ले थीं। इस पेशकश के दौरान, संगतकारों की संगत मधुर और प्रसंग के अनुरूप थी। कहीं कोई जल्दीबाजी और शोर नहीं था, जो कथक में ऐसी संगति कम देखने-सुनने को मिलती है। इसके लिए संगतकार तारीफ के काबिल हैं। स्वाति कुर्ले ने विशेषतौर पर द्रौपदी वस्त्र हरण के प्रसंग की परिकल्पना गत भाव के रूप में किया, वह सराहनीय है। उन्होंने कथा वाचन की बैठकी शैली में इसे पेश किया, जो पुरानी परंपरा की झलक थी। इसके साथ ही नाट्य संगीत का प्रभाव प्रत्यक्ष जान पड़ा। 

इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। इसी के मद्देनजर कथक नृत्यांगना दर्शना मूले का नृत्य देखने का अवसर मिला।

दर्शना मूले ने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत कृष्ण वंदना से की। उन्होंने इस रचना ‘गोविंदम गोकुलानंदम गोपालम‘ पर कृष्ण के रूप का विवेचन किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। उन्होंने विलंबित लय में उठान ‘ता किट तक ता धा‘ में पैर के काम के साथ 21चक्कर का प्रयोग मोहक था। वहीं ‘धा किट थुंग थुंग धा गिन‘ के बोल पर थाट बंाधना सधा हुआ था। पंडित मुकंुद देवराज की रचना पर चलन पेश किया। इसमें एड़ी व पंजे का काम विशेष था। 

द्रुत लय में बंदिश ‘धा किट‘ के बोल पर दोपल्ली का अंदाज पेश किया। साथ ही, पंडित रविशंकर मिश्र रचित परण को अपने नृत्य में शामिल किया। दर्शना ने परण ‘धा गिन किट धा‘ को तिश्र, चतुश्र व मिश्र जाति का अंदाज प्रदर्शित किया। गत निकास में सादी गत को पेश किया। इसमें पलटे, फेरी, अर्धफेरी व हस्तकों का प्रयोग बहुत ही नजाकत से किया। गुरू गोपीकृष्ण की रचना ‘किट तक थुंग थुंग‘ को दर्शना ने नाचा। परण की इस प्रस्तुति में बैठकर सम लेना सरस प्रतीत हुआ। 


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