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Saturday, April 14, 2018

प्रश्न अब भी शेष है ?

बहुत कुछ दिखता
बहुत कुछ नहीं भी
पर भीतर बहुत कुछ
आलोड़ित होता रहता है
खुद से सवाल
खुद को जवाब देना
सरल नहीं होता है
जब भी
कर्ण छला जाता है
केशव! तुम भी
उसमें शामिल होते हो!
क्या कहूं? फिर, तुमसे
मेरे सामने सिर्फ,
सवाल होतें हैं ?
क्यों किसी को इतना भाग्यहीन बनाते हो?
कि वह पाकर भी खाली हाथ
और दे कर भी!
कोई नहीं होता है
न यश, न कीर्ति!
सब कुछ समर्पित करने के बाद भी!
तुम उसे कुछ नहीं दे पाते?
ये कैसी विडम्बना है!
उद्वेलित करता है मन को
कभी तो मान रख लेते
उसका भी!
जानती हूँ
वह समकक्ष नहीं किसी के
फिर भी, उसकी आत्मा भी तो
तड़पती होगी
सब कुछ समर्पित करने के बाद
वह नितांत अकेला और खाली हाथ है
हे केशव!
ऐसा क्यों होता है ?
यह प्रश्न अब भी शेष है ?

Tuesday, April 10, 2018

नेह की डोर

केशव!
जानती थी
इस जीवन में
सब कुछ नश्वर था
फिर, मन कहाँ माना!
तुमको अर्पित कर आई
तुम से मन का कहती आई
दुःख था या सुख
तुमसे सब कुछ बांटा.
तुम सुनते थे
मन हल्का हो जाता था
लेकिन, केशव!
दुनिया रोज सिखाती है
नए जोड़-तोड़
मैं सीख पाई
वह किस्सा-कहानी
इस लिए
राधा अकेली रह जाती है
पनघट पर खड़ी!
सिर्फ, तुम्हारी राह देखती है
कभी तो गुजरोगे इधर से
तब, फिर से अपनी
तुमसे कहेंगे!
केवल, विनती है तुमसे
कि नेह की डोर थामे रहना
उसमें ही बसी हैं
मेरी सांसो की आवाजाही
केशव!

Sunday, April 8, 2018

तुम जानते हो!

श्याम !
तुमने देखा है
पढ़ा भी है
छुआ भी है
मेरी हथेलियों की रेखा को
जीवन दो दिन की नहीं
दो पल का
साथ-साथ नहीं होता
तुम बोलो या चुप रहो
तुम्हारा मन तो
अकेले में
मुझे ही पाता होगा
मुझे ही जीता होगा
मुझे ही मनाता होगा
श्याम!
तुम जानते हो!
मेरी अकथनीय
मेरी वेदना
मेरी संवेदना
जिन पलों को हमने जिया
दो पल का
साथ-साथ नहीं होता
तुम मेरे रहो या नहीं
तुम्हारा मन तो
अकेले में
मेरे ही पास होता है
मेरे ही साथ होता है
मेरे ही लिए होता है
श्याम!
तुम जानते हो!