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Monday, November 9, 2020

युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी

                                                        युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी

                                                        शशिप्रभा तिवारी


कथक नृत्यांगना विधा लाल लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। विधा लाल कथक नृत्य गुरू गीतांजलि लाल से सीखा है। इनदिनों वह अपने फेसबुक पेज-विधा लाल कथक एक्पोनेंट पर आॅन लाइन डांस फेस्टीवल सीरिज 2020 का आयोजन किया है। यह नृत्य उत्सव ‘संकल्प‘ 2अगस्त को शुरू हुआ।

अब तक इस आयोजन में 14 कलाकार शिरकत कर चुके हैं। पिछले रविवार की शाम-आठ नवंबर 2020 को संकल्प में कथक नृत्यांगना स्वाति माधवन ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम स्वाति माधवन ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। 

नृत्यांगना स्वाति माधवन ओज और ऊर्जा से भरी हुई नजर आई। स्वाति माधवन ने एस दिव्यसेना से भरतनाट्यम नृत्य सीखा है। वह कथक नृत्य, नर्तक मुल्ला अफसर खां से सीख रही हैं। वह सिंगापुर की फाइन आट्र्स सोसायटी और स्वर्ण कला मंदिर से जुड़ी हुई हैं। उनके गुरू नर्तक मुल्ला का कहना है कि कथक नृत्य सतत् साधना का सिलसिला है। इसे सीखने के लिए कलाकार में समर्पण और लगन की जरूरत है। तभी इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने में अपना दायित्व निभा सकते हैं। क्योंकि आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।



जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं, नर्तक मुल्ला अफसर। सो उनके नृत्य में उनके गुरू का अंदाज सहज झलकता है। और वही उनके सिखाने में भी दिखा। नृत्यांगना स्वाति माधवन के नृत्य के हर अंदाज में उनके गुरू की छाप साफ दिखाई दे रही थी। उन्होंने अपने नृत्य का आरंभ गणेश वंदना से किया। गणपति श्लोक पर आधारित पेेशकश में हस्तकों, मुद्राओं और भंगिमाओं के जरिए उन्होंने गणेश के रूप को निरूपित किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में अच्छी तैयारी दिखी। 

उपज में पैर का काम पेश किया। सरपण गति और चक्कर का प्रयोग किया। स्वाति ने रचना ‘ता थेई तत् थेई‘ और ‘किट ता धा किट धा‘ में पैर की गतियों और आंगिक चेष्टाओं को पेश किया। वहीं, परण आमद ‘धा किट किट धा‘ में उत्प्लावन और चक्कर का प्रयोग मोहक दिखा। गणेश परण ‘गं गं गणपति‘ में गणेश के रूप का चित्रण मार्मिक था। उन्होंने गिनती की तिहाई में पैर का काम पेश किया। परण ‘कृष्ण करत तत् थेई‘ में कृष्ण की लीला को दर्शाया। परमेलू की पेशकश में पक्षी की उड़ान के साथ मयूर की गत का प्रयोग चक्करदार रचना ‘धा धा धा धित ताम‘ में सुंदर था। एक अन्य परमेलू ‘थर्रि थर्रि कूकू झनन झनन‘ को भी पूरी ऊर्जा के साथ स्वाति ने नाचा। उन्होंने पंडित राजेंद्र गंगानी की रचना ‘सावन गरजत गरजत‘ में भावों को पेश किया। इसकी कोरियोग्राफी उनके नृत्य गुरू ने की थी। इसमें भाव के साथ मयूर की गत, पलटे, चक्कर, फेरी, अर्धफेरी का प्रयोग सुघड़ता से किया। 


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