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Sunday, June 25, 2017

तुम ही थे

   


                               तुम ही थे 


                        सुबह सूरज के गुलाबी रंग को 
                        देख, मन हुआ 
                        आज गुलाब की एक कलि 
                        सजा लेंगे बालों में 


                        लेकिन, आषाढ़ के ये काले बादल 
                        डरा देते हैं 
                        चमक-दमक कर 

                           
                        यूँ मन मानता कहाँ?
                        मनाना पड़ता है 
                        आज तो 
                       तुम्हारे आंगन रौनक है


                        जिसने जो माँगा 
                        उसे तुमने वो दिया 
                        पर, क्या करूं 
                        मुझे मांगना नहीं आता  
                        तुमने जो दिया 
                       उसे स्वीकारना आता है 
                       यह तुम्हें पता है 


                        सागर की लहरों ने 
                        गागर भर-भर उलीच दिया 
                        रथ में सवार तुम
                        किस-किस को लुभा गए 
                         तुम जानते हो ,
                         माधव!


                        क्यों?
                        उदास है मेरा मन,
                        क्यों नहीं लगाए हैं 
                        मैंने गुलाब की कलि 
                        अपने केश में!

Friday, June 23, 2017


                                           मौन की ताकत 


इन दिनों हमारे पास तरह-तरह के गैज़ेट और मोबाइल ऍप आ गए हैं. घर, दफ्तर या सफर सभी जगह आपके हाथ में मोबाइल फोन या लैपटॉप या आईपैड होता है. ऐसे में सहज संवाद या बातचीत का दौर ही ख़त्म हो गया है।  कहीं-कहीं तो हालत यह होती है की आप किसी चीज या सामान या व्यक्ति का नाम लेना चाहते हैं, पर या तो आपको याद नहीं आते या जुबान फिसल जाती है. दरअसल , शब्दहीनता मौन नहीं है।  महात्मा गाँधी अपनी किताब 'हम सब एक पिता के बालक' में लिखते हैं कि सच्चा मौन वो होता है, जो बोलने की क्षमता होने पर भी व्यर्थ का एक शब्द नहीं बोलता। 

गांधीजी मानते हैं कि विचार ही वाणी और सारी  क्रियाओं का मूल होता है, इसलिए वाणी और क्रिया भी विचार का ही अनुसरण करती  हैं. पूर्णतः नियंत्रित विचार खुद ही सर्वोच्च प्रकार की शक्ति है और ऐसे विचार स्वयं ही अपना सोचा हुआ काम करने लगते हैं।  मनुष्य जाने-अनजाने ही अतिश्योक्ति करता है, या जो बात कहने योग्य है उसे छिपाता  है, या उसे दूसरे ढंग से कहता  है। ऐसे परेशानी से बचने के लिए मितभाषी होना जरुरी है।  कम बोलने वाला आदमी बिना विचारे नहीं बोलेगा , वह अपने हर शब्द को तौलेगा। जब आप मौन का नियमित अभ्यास करते हैं तो यह आपकी शारीरिक और आध्यात्मिक  जरुरत बन जाती है।  शुरू-शुरू में काम के दबाव से राहत पाने में भी मौन से मदद मिलती है।  धीरे-धीरे प्रतीत होता है कि मौन के समय ईश्वर से अच्छी तरह लौ लग जाती है।  और, मैं शक्ति और क्षमता से खुद को पूर्ण महसूस करता हूँ। 

वास्तव में, 'मौन' से वाणी और मन दोनों को शांति मिलती है।  एक मौन जिसमें  आप जुबान को ख़ामोशी देते हैं जबकि, दूसरे में मन की गति को भी रोक देते हैं।  जिह्वा से काम बोलने के लिए साधना करनी पड़ती है और मन के लिए तप. जीवन को सरल और सहज बनाने के वास्ते यह जरुरी है। 

आज बस इतना ही........  


Wednesday, June 21, 2017

atma vishwas ka vishwas

                           आत्मा विश्वास का विश्वास 


भले ही हम जानते हैं कि  सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन कोई भी महत्वपूर्ण काम 
करते समय हमें इनका डर सताता जरूर है।  इससे अक्सर आत्म विश्वास भी डगमगाता है।  इस बारे में ओहियो स्टेट यूनिवर्ट्सिटी के हार्वर्ड ज किन, थॉमस इ बेकर और जॉन पी मेयर ने अपनी किताब कमिटमेन्ट इन आर्गेनाइजेशन में लिखा है कि चिंतन से उसी भाव या गुण का विकास होता है , जिसके बारे में आप निरंतर सोचते-विचारते हैं. अगर आप जीवन को कठिन और कटु व संघर्ष पूर्ण मानेंगे, तो खुद को कमजोर और आत्म-विश्वास से खाली पाएंगे। अगर आप सकारात्मक सोचते हैं , तो खुद को आत्म-विश्वास और क्षमताओं से लबरेज पातें हैं. आत्म-विश्वास ऊर्जा का अपरिमित स्त्रोत है।  वह जीवन धारा है, जो आपको सदैव सफलता से भरी कामनाओं से अभिभूत किए रहती है।  यह अद्भुत बूटी है , जो मानस को अनुपम एकाग्रता देकर श्रेष्ठ विचारों से समृद्ध बनती है।  इससे सफलता की नई खिड़की खुलती है।  जीतने की इच्छा सभी में होती है , मगर जीतने के लिए तैयारी करने की इच्छा कम लोगों में होती है।  सफलता और आत्म-विश्वास के लिए उद्देश्य, सिद्धांत, योजना, अभ्यास, लगातार प्रयास और धैर्य की जरुरत होती है।  आत्म-विश्वास के कारण आप में दृढ निश्चय की भावना प्रबल होती है , जो आपको निरंतर प्रेरणा देकर आपको आदर्श या लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रेरित करती रहती है। 

आत्म-विश्वास सफलता के लिए  रामवाण है।  इससे आप में उत्साह का संचार होता है।  स्वामी विवेकानंद का कहना था कि आत्म-विश्वास जैसा कोई दूसरा दोस्त नहीं।  आत्मविश्वास सफलता की पहली सीधी है।  जबकि, वेदांत तीर्थ का मानना था कि आत्म-विश्वास का अर्थ-अपने-आप पर विश्वास, परमात्मा और उसकी शक्ति पर विश्वास। 

                                                                                              आज इतना ही 
                                                                                            शशि प्रभा तिवारी 

Tuesday, June 20, 2017

apni talash

                     viuh ryk”k esa


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