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Tuesday, February 11, 2014

इस वसंत में
झील के किनारे
पलाश की डाल पर
लाल फूल की ओट में
पंछियों का जोड़ा बैठा था

पता नहीं
चिड़ी उदास-सी कुछ कहती
कभी फुदक के
इधर से उधर जाती है

चिड़ा अपनी चुप्पी में है
उसे चिड़ी कुरेदती है
क्यों? नाराज़ हो !
चाँद लम्हों का साथ आओ

शाम ढलने को आई है
दोनों मिल
 गुनगुना लें जिंदगी के गीत गा लें

 ना जानें!
कहाँ ?
फिर जिंदगी शाम हो जाए
 कब, किसका साथ छूट जाए?