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Thursday, April 15, 2021

shashiprabha: आनंद उत्सव का आयोजन --शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: आनंद उत्सव का आयोजन --शशिप्रभा तिवारी:   ओडिशी नृत्य गुरू मायाधर राउत राजधानी दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने अपने नृत्य विद्यालय जयंतिका के जरिए कई पीढ़ियों को ओडिशी नृत्य सिखाया है...

आनंद उत्सव का आयोजन --शशिप्रभा तिवारी

 

ओडिशी नृत्य गुरू मायाधर राउत राजधानी दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने अपने नृत्य विद्यालय जयंतिका के जरिए कई पीढ़ियों को ओडिशी नृत्य सिखाया है। उन्होंने अपनी पुत्री और शिष्या मधुमीता राउत को ओडिशी नृत्य का प्रशिक्षण दिया। मधुमीता राउत अपनी गुरू की परंपरा का अनुसरण करती हैं। वह अपने गुरू की नृत्य परंपरा को अपनी शिष्य-शिष्याओं को सौंप रही हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपने गुरू के नब्बेवें जन्मदिन के अवसर पर आनंद उत्सव का आयोजन किया।


जयंतिका की ओर से तीन दिवसीय आनंद उत्सव त्रिवेणी सभागार में संपन्न हुआ। समारोह की पहली संध्या 23मार्च को थी। इसमें ध्रुपद, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कर्नाटक संगीत के कलाकारों ने अपने जलवे से उत्सव को नवाजा। समारोह में कर्नाटक संगीत के गायक जी इलंगोवन ने गायन पेश किया। उन्होंने राग भूपालम और मिश्र चापू ताल में निबद्ध रचना को सुर में पिरोया। महाराजा स्वाति तिरूनाल की रचना ‘गोपालक पाहिमाम‘ को इलंगोवन ने मधुर आवाज में पेश किया। उन्होंने राग कल्याणी में रचना ‘त्वमेव माता, पिता त्वमेव‘ को सुरों में पिरोया। यह आदि ताल में थी। उनके साथ बांसुरी पर हमेशा की तरह जी रघुरामन और पखावज पर एमवी चंद्रशेखर ने संगत किया। सारंगी वादक जनाब कमाल साबरी ने राग जोग पेश किया। उनके साथ तबले पर रमीज रजा और श्रीजगन्नाथ ने संगत किया। समारोह में डागर घराने के ध्रुपद गायक उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने शिरकत किया। उन्होंने ध्रुपद ‘सुर नर मुनि ज्ञानी‘ पेश किया। पखावज पर मोहन श्याम शर्मा ने उनका साथ दिया।

                                                              

त्रिवेणी सभागार में आयोजित आनंद उत्सव की दूसरी संध्या में ओडिशी नृत्य पेश किया गया। समारोह में गुरू मधुमीता राउत की शिष्य-शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। इस आयोजन में गुरू मायाधर राउत की नृत्य रचनाओं को नृत्य में पिरोया गया। 24मार्च को नृत्य के कार्यक्रम का आगाज डाॅ सोनाली प्रधान की पेशकश से हुआ। डाॅ सोनाली ने साभिनय पेश किया। उन्होंने उड़िया गीत ‘नाचंति कृष्णा‘ पर भावों को दर्शाया। दूसरी पेशकश अष्टपदी पर अभिनय नृत्य की प्रस्तुति थी। जयदेव की अष्टपदी ‘याहि माधव याहि केशव‘ पर राधा के भावों को नृत्यांगना प्रियंका वेंकटेश्वरन ने पेश किया। कृष्ण की प्रतिक्षा में अधीर राधा को खंडिता नायिका के तौर पर निरूपित किया गया। 


भुवनेश्वर से पधारे गुरू पीतांबर बिस्वाल ने ओडिशी नृत्य पेश किया। उनकी पहली पेशकश ‘सते कि भंगि काला‘ पर अभिनय नृत्य की पेशकश थी। इसकी संगीत रचना सत्यव्रत कथा की थी। यह राग देश और जती ताल में निबद्ध थी। इस रचना में सखी से राधा कहती है कि वह कृष्ण की आंखों और आकर्षण के अधीन हो गई। इन्हीं भावों को गुरू पीतांबर ने चित्रित किया। वहीं, अगली प्रस्तुति सूर्य स्तुति ‘आदि देव नमस्तुभ्यं‘ में सूर्य के रूप और उनकी महिमा का गायन पेश किया।


इस समारोह की अंतिम संध्या 25मार्च को आयाजित थी। इस आयोजन में जयंतिका की कलाकार नित्या पंत और साथी कलाकारों ने दशावतार पेश किया। इसकी परिकल्पना गुरू मायाधर राउत की थी। दूसरी पेशकश नृत्य रचना ‘जागो महेश्वर‘ थी। इसे अंकिता नायक ने पेश किया। इसकी संगीत रचना बालकृष्ण दास ने रची थी। कवि कालीचरण पटनायक की रचना ‘जागो महेश्वर योगी दिगंबर‘ पर आधारित नृत्य अंकिता की अंतिम प्रस्तुति थी। इसके संगीत की परिकल्पना बालकृष्ण दास ने की थी। शास्त्रीय नृत्य के तांडव पक्ष का प्रयोग इस नृत्य में था। शिव से जुड़े त्रिपुरासुर वध, सती दाह, वीरभद्र भस्म, समुद्रमंथन, गंगावतरण जैसे 18आख्यानों इस नृत्य में दर्शाया गया। इस प्रस्तुति की खासियत थी कि इसमें शिव के चिदंबरम, लिंगराज, पशुपति, महाकाल, बैधनाथ आदि मंदिरों से प्रेरित मुद्र्राओं व भंगिमाओं को नृत्यांगना ने निरूपित किया। समारोह में ओडिशी नर्तक लकी मोहंती ने नृत्य पेश किया। लकी मोहंती ने पल्लवी और दुर्गा स्तुति पेश किया। 


Wednesday, April 14, 2021

कला और संस्कृति अमूल्य धरोहर हैं-शशिप्रभा तिवारी

               

संस्कार और संस्कृति किसी भी देश की पहचान होती है। हर देश की अपनी अनूठी संस्कृति होती है। फिर, जब भारत की बात होती है, तब यह तो अपनी सांस्कृतिक विविधता का अनोखा रूप प्रदर्शित करता है। यही हमारी विशिष्टता ही, हमारी समृ़द्ध सांस्कृतिक पहचान है। यह सांस्कृतिक मूल्य सदियांे पुरानी है। इसे संजोना तो जरूरी है ही, इससे भावी पीढ़ी को रूबरू करवाना और उसे जीवन मूल्यों से जोड़े रखना समाज और देश की जिम्मेदारी है। ऐसा आर्ट मैनेजर मालविका मजूमदार मानती हैं।

आप सान्स्कृतिक आयोजन से कैसे जुड़ी?
मालविका मजूमदार-- लगभग तीस सालों तक सांस्कृतिक क्षेत्र की विशिष्ट संस्था स्पीक मैके से जुड़ी रही हूं। स्पीक मैके में बतौर सीनियर प्रोग्राम मैनेजर-आर्टिस्ट और मीडिया कार्य करती रहीं। वैसे उन्होंने अपने करियर की शुरूआत दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी इरविन काॅलेज से की। यहां वह अंग्रेजी की लेक्चरर रहीं। फिलहाल, वह बतौर आर्ट मैनेजर कार्य कर रही हूं ।

गौरतलब है कि 29 अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस है। इस अवसर पर वह नृत्य वर्कशाप का आयोजन स्कूलों में कर रही हैं। इस संदर्भ में मालविका मजूमदार बताती हैं कि स्पीक मैके में काम करते हुए, मैं देश के हर क्षेत्र के कला और कलाकार को जान पाई। हालांकि, मेरे जीवन का काफी समय दिल्ली में बीता है। मेरे माता-पिता मुझे शहर में होने वाले नाटक, फिल्म, संगीत-नृत्य के कार्यक्रमों शुरू से लेकर जाते थे। मेरे पिता सरकारी सेवा में थे, सो उनका तबादला हमेशा होता रहता था। इसलिए भी मुझे देश के विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक विशेषता से परिचित होने का अवसर मिला और चीजों के प्रति मेरी दृष्टि एवं समझ विकसित हुुईं।


वैल्यू एजुकेशन विद आर्ट एंड कल्चर क्यों जरूरी है?
मालविका --जीवन के इस मुकाम पर मैं समाज और लोगों से अपने अब तक के अनुभव को साझा करना चाहती हूं। मुझे लगता है कि शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कला व संस्कृति के जरिए वैल्यू एजुकेशन छात्र-छात्राओं को दी जा सकती है। मैं चाहती हूं कि कला और कलाकारों के जीवन अनुभव का लाभ विद्यार्थियों और लोगों को मिले। कला और संस्कृति से जुड़ कर ही किसी का व्यक्तित्व विशिष्ट बनता है। मेरी कोशिश है कि मैं कला की समृद्ध विरासत से लोगों को परिचित करवा पाऊं।

आपकी आगामी आयोजन कौन-से हैं?
मालविका- पिछले साल 2020 से ही कोविड-19 के कारण सभी अपनेे-अपने घरों की चारदिवारों में कैद हो गए हैं। इससे युवा और स्कूली बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। ऐसे हालत में, मुझे लगता कि सांस्कृतिक गतिविधि जिसमें-विविध कलाओं की प्रस्तुति, कार्यशाला, लेक्चर व डेमोन्स्ट्रेशन शामिल होंगे। शास्त्रीय संगीत, नृत्य, लोक कलाओं, हस्त कलाएं, चित्रकला की प्रस्तुतियों और कार्यशालाओं के माध्यम से युवाओं को कला विशेष, कलाकारों और उनकी रचनात्मकता को करीब से देखने-सुनने का विशिष्ट अवसर मिलेगा। जिससे उन युवाओं को अपने दिनचर्या के अलावा, कुछ नया सीखने, कुछ नया करने और कुछ नई पे्ररणा से रूबरू होने का अवसर मिलेगा। यह मेरा एक समेकित प्रयास है ताकि युवा छात्र-छात्राओं और आम लोगों के जिंदगी में कला-संस्कृति के माध्यम से कुछ उत्साह और कुछ उमंग भर सकूं।

हमारे जीवन में कलाओं का क्या महत्व है?
मालविका-दरअसल, हमें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उसकी बौद्धिकता पर गर्व है। हमारी कलाएं और संस्कृति हमें जिंदगी से जोड़ती हैं। इन्हें अपनाकर हमारे भीतर आत्मविश्वास आता है। हमारे अंदर अपने प्रति और लोगों के प्रति एक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की भावना जागृत होती है। इसलिए, कला और संस्कृतियों विभिनन आयामों से जोड़कर, विद्यार्थियों के जीवन को अच्छी दिशा दी जा सकती है। उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। यह उचित समय है कि हम शिक्षा में कला-संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार करें।

Saturday, April 10, 2021

shashiprabha: कदाचित कालिंदी तट ---शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: कदाचित कालिंदी तट ---शशिप्रभा तिवारी: जयंतिका की ओर से नृत्य समारोह ‘भज गोविंदम्‘ का आयोजन दिल्ली में हुआ। यह समारोह नौ अप्रैल को इंडिया हैबिटैट सेंटर के स्टेन सभागार में आयोजित ...

कदाचित कालिंदी तट ---शशिप्रभा तिवारी


जयंतिका की ओर से नृत्य समारोह ‘भज गोविंदम्‘ का आयोजन दिल्ली में हुआ। यह समारोह नौ अप्रैल को इंडिया हैबिटैट सेंटर के स्टेन सभागार में आयोजित था। इस समारोह में गुरू मधुमीता राउत की शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। गुरू शिष्य परंपरा के तहत गुरू मधुमीता राउत ने अपने पिता व गुरू मायाधर राउत से ओडिशी नृत्य सीखा। गुरू मायाधर राउत को पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया है। 

नृत्य रचना ‘भज गोविंदम‘ की शुरूआत मंगलचरण स्वरूप ‘कदाचित कालिंदी तट विपिन‘ से हुुई। यह नृत्य रचना गुरू मायाधर राउत की थी। आदि शंकराचार्य रचित जगन्नाथ अष्टकम से ली गई थी। इस रचना में श्री वंृदावन में यमुना के तट कृष्ण राधा व गोपियों से मिलते हैं। वही कृष्ण श्रीजगन्नाथ भी हैं। इन्हीं भावों को शिष्याओं ने पेश किया। इस प्रस्तुति में भूमि प्रणाम व त्रिखंडी प्रणाम विशेषतौर पर शामिल थे। इसमें शिरकत करने वाले कलाकार थे-प्रीति परिहार, वसुंधरा चोपड़ा, नित्या पंत, डाॅ प्रियंका वेंकटेश्वरन, प्रणति मालू, शाल्वी सिंह और अंजलि राॅय।



इन दिनों उत्तर भारत में बसंत की बहार है। और ऐसे में महाकवि जयदेव की अष्टपदी ‘ललित लवंग लता परिशीलन‘ को प्रस्तुत करना, अपने-आप में बहुत समीचीन है। गुरू मधुमीता राउत ने इसका चयन किया यह उनकी सराहनीय दृष्टि है। इस अष्टपदी की संगीत रचना भुबनेश्वर मिश्र की थी और नृत्य परिकल्पना गुरू मायाधर राउत की थी। बसंत ऋतु की बहार अपनी चरम पर है। सभी वृक्ष और लताएं कुसुमित-पल्लवित हैं। ऐसे समय में राधा कृष्ण के लिए व्याकुल हैं और सखी से कृष्ण के बारे में पूछती है। लास्यपूर्ण इस प्रसंग को अभिनय के जरिए चित्रित किया गया। इसमें नित्य पंत, प्रणति मालू, तारिणी सिंह, अकेशा जैन और अंजलि राॅय शामिल थे।

अभिनय अगली पेशकश थी। मध्य युगीन उड़िया गीत ‘नाचंति कृष्ण‘ पर आधारित थी। यह उड़िया राजा ब्रम्हाबर बीरबर राय की रचना है। इसकी नृत्य परिकल्पना गुरू मायाधर राउत ने की है। संगीत रचना बंकिम सेठी ने की थी। यह राग आरभि में निबद्ध थी। इस पेशकश मंे अभिनय पक्ष का सुंदर विवेचन प्रस्तुत किया। 




राग बैरागी पर आधारित बैरागी पल्लवी पेश किया। ओडिशी की तकनीकी पक्ष को विस्तार दिया गया। ओडिशी की विभिन्न भंगिमाओं और करणों को लयात्मक गतियों के जरिए निरूपित किया। उनकी अंतिम पेशकश दशावतार थी। इसमें विष्णु के दस अवतारों को वर्णित किया गया। दोनो ही नृत्य रचनाएं गुरू मायाधर राउत की थीं। इसमें प्रीति परिहार, डाॅ प्रियंका, वसुंधरा चोपड़ा, नित्या, प्रणति, तारिणी सिंह और अकेशा जैन ने नृत्य पेश किया। शिष्याओं का आपसी संयोजन और तालमेल संतुलित था। इससे उनके रियाज का सहज ही भान हो रहा था। कोविड के इस कठिन दौर में गुरू मधुमीता शिष्याओं के मनोबल को कला के जरिए बनाए हुए हैं। उन्हें कला से जोड़े हुए हैं, यह बड़ी बात है। 


Wednesday, April 7, 2021

shashiprabha: आ जा बलम परदेसी! -- शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: आ जा बलम परदेसी! -- शशिप्रभा तिवारी: कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह पटना में जन्मी और पली-बढी हैं। उन्हें कला की समझ अपने घर में ही मिली। शुरू में उन्होंने पटना में कथक नृत्य सीखना...

आ जा बलम परदेसी! -- शशिप्रभा तिवारी


कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह पटना में जन्मी और पली-बढी हैं। उन्हें कला की समझ अपने घर में ही मिली। शुरू में उन्होंने पटना में कथक नृत्य सीखना शुरू किया। बाद में, उन्होंने गुरू बिरजू महाराज और गुरू जयकिशन महाराज से कथक नृत्य सीखा है। कला मंडली रंगमंडली की निर्देशक प्रतिभा सिंह को साहित्य कला परिषद सम्मान और विष्णु प्रभाकर कला सम्मान से सम्मानित हैं। उन्हें संस्कृति मंत्रालय की ओर से जूनियर फेलोशिप और अमूर्त धरोहर फेलोशिप भी मिल चुके हैं। वह निरंतर अपने सफर को जारी रखीं हुईं है। वह एक ओर कथक नृत्य आम बच्चों के साथ किन्नरों को नृत्य सीखाती हैं। साथ ही, वह रंगमंच के लिए उत्साहित होकर काम कर रही हैं।

पिछले दिनों संस्कृति मंत्रालय और कथक केंद्र की ओर से सात दिवसीय नृत्य समारोह का आयोजन किया गया। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अवसर पर स्वाधीनता के रंग फागुन के संग समारोह था। इसमें 24मार्च को स्वामी विवेकानंद सभागार में कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह ने शिरकत किया। उन्होंने नृत्य रचना ‘इश्क रंग‘ पेश किया। इसके अलावा, एक अन्य समारोह विविधा में भी उन्होंने नृत्य किया।

आजादी का प्रश्न पूरे विश्व में आजादी के साथ अवतरित होता है। उसके देह में बसी आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए। मुक्ति के लिए, परम स्वाधीनता को प्राप्त करने के लिए छटपटाती रहती है। इश्क का होना स्वाधीनता पर विश्वास, आस्था करना ही तो है। इसी संवाद ‘जा तैणू इशक हो जावे‘ से नृत्य रचना ‘इशक रंग‘ की शुरूआत होती है। संवाद के साथ ही, कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह अभिनय पेश करती हैं। कलाम ‘अव्वल-ए शब बज्म की रौनक‘ के बोल पर नृत्यांगना ने हस्तकों और मुख के भावों के जरिए बैठकी अंदाज में अभिनय में पेश किया। यहीं संवाद प्रियतम की याद में प्रियतमा अपने प्रिय को याद करती है। वह घूंघट की गत, केश सज्जा का अंदाज, आंखों व कलाई की गतों को अपने नृत्य में बखूबी प्रयोग किया। इसके साथ ही, रचना ‘नैना मोरे तरस गए‘ पर नृत्यांगना प्रतिभा ने भाव पेश किया। विरहिणी नायिका के भाव के चित्रण में अच्छी परिपक्वता नजर आई, जो कथक नृत्य में कम देखने को मिलती है।
अगले अंश में, कव्वाली ‘दौड़ छपट कदमों पर गिरूंगी‘ पर प्रतिभा ने मोहक अभिनय पेश किया। शेख फरीद की रचना ‘वेख फरीदा मिट्टी खुली‘ पर भावों को दर्शाया। इसके बाद, उन्होंने अमीर खुसरो की लोकप्रिय रचना ‘आज रंगी है री मां‘ को नृत्य पिरोया। इसे कव्वाली के अंदाज में गायकों ने गाया और नृत्यांगना प्रतिभा ने भावों को दर्शाया।


एक अन्य विविधा का आयोजन कलामंडली की ओर से किया गया। यह समारोह 26-27मार्च को आयोजित था। इस आयोजन में भी कलाकारों ने नृत्य पेश किया। आज रंगी है रचना पर नृत्यांगना श्रुति सिन्हा और नर्तक नरेंद्र जावड़ा ने प्रतिभा सिंह का साथ दिया। एक रचना ‘ता थेई ता धा‘ पर नवीन जावड़ा ने पैर का काम पेश किया। वहीं, एक अन्य रचना में शिव के रूप को दर्शाया। प्रतिभा और श्रुति ने पैर के काम के साथ 21चक्करों का प्रयोग किया। अगले अंश में ठुमरी ‘काहे को मोरी बईयां गहो री‘ पर भाव पेश किया। इसके अलावा, होली ‘खेलें मसाने में होली‘ और ‘बाबा हरिहर नाथ सोनपुर में रंग खेले‘ पर कलाकारों ने नृत्य पेश किया। इन रचनाओं को गायक बृजेश मिश्र और हरिशंकर ने गाया। इसमें शिरकत करने वाले अन्य कलाकार थे-जया प्रियदर्शनी, शांभवी शुक्ल, रमैया और अभय महाराज।
इस पेशकश में संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-जमील अहमद, उमा शंकर, आशिक कुमार, योगेश गंगानी, सुजीत गुप्ता और योगेश शंकर।

Tuesday, April 6, 2021

shashiprabha: एरी जसोदा तोसे -- शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: एरी जसोदा तोसे -- शशिप्रभा तिवारी: एरी जसोदा तोसे ...

एरी जसोदा तोसे -- शशिप्रभा तिवारी

एरी जसोदा तोसे

शशिप्रभा तिवारी

कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख और नर्तक मौलिक शाह की जोड़ी का नृत्य देखना किसी रोमांच से कम नहीं रहा है। यह नृत्य युगल अपनी मोहक नृत्य के लिए मशहूर रही है। दोनों ही दूरदर्शन के टाॅप ग्रेड आर्टिस्ट हैं। वो लोग देश के सभी महत्वपूर्ण उत्सवों में नृत्य पेश कर चुके हैं। उन्हें सुर संसद और नवदीप सम्मान मिल चुके हैं। इसके अलावा, इशिरा और मौलिक माॅरीशस, कनाडा, ब्रिटेन, हाॅलैंड, मैक्सिको के विभिन्न आयोजनों में शिरकत कर चुके हैं। पिछले दिनों कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख ने नुपुर एकेडमी, एलए के आयोजन के दौरान नृत्य पेश किया।

नुपुर एकेडमी की ओर से यूट्यूब व फेसबुक पेज पर यह समारोह आयोजित किया गया था। चैदह फरवरी को आयोजित समारोह में इशिरा पारीख ने एकल नृत्य पेश किया। गुरू कुमुद लाखिया के सानिध्य में उन्हांेने नृत्य सीखा है। वह अपने गुरू के अंदाज को बखूबी निभा रही हैं। हालांकि, परंपरा के साथ नवीनता को अपनाना उनका स्वभाव रहा है, जो उनके नृत्य में नजर आता है। उनके नृत्य में रचनात्मकता का सौंदर्य आकर्षक है। यह उनके नृत्य को देखकर एक बार फिर से महसूस हुआ।
यह सच है कि सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शकों से रूबरू होना आसान नहीं है। पर वरिष्ठ नृत्यांगना इशिरा की उपस्थिति गरिमापूर्ण थी। उन्होंने बनारस घराने के पंडित राजन व पंडित साजन मिश्र की गाई देवी स्तुति को अपनी पेशकश का आधार बनाया। यह स्तुति राग दुर्गा और तीन ताल में निबद्ध थी। पंडित रामदास रचित स्तुति के बोल थे-‘जय-जय दुर्गे माता भवानी‘। उन्होंने देवी के रूप को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। एक तिहाई में पैर के साथ हस्तकों और मुख के भाव के जरिए देवी के श्रृंगार व रौद्र रूप को निरूपित करना प्रभावकारी था। वहीं, देवी के महिषासुरमर्दिनी, दयानी, शिवानी, भवानी रूपों को चित्रित करना लासानी था। इस स्तुति का समापन सोलह चक्कर से किया।


कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख ने अपनी प्रस्तुति के क्रम में ठुमरी पर भाव पेश किया। ठुमरी ‘एरी जसोदा तोसे लरूंगी लराई‘ को अपनी गुरू कुमुदनी लाखिया से सीखा था। इसको पंडित अतुल देसाई ने संगीतबद्ध किया था। यह राग सोहनी में थी। इस प्रस्तुति में इशिरा ने माता यशोदा, गोपिका और कृष्ण के भावों को बहुत ही निपुणता के साथ पेश किया। एक-एक भाव को बारीक और महीन अंदाज में वर्णित किया। उन्होंने नृत्य में घूंघट, मटके, नजर की गतों का प्रयोग कई तरीके से किया। जिसमें परिपक्वता के साथ-साथ नजाकत भी दिखी।

चैदह मात्रा के धमार ताल में कथक नृत्यांगना इशिरा ने शुद्ध नृत्त को पिरोया। उन्होंने तिहाई में पंजे और एड़ी का काम पेश किया। थाट में नायिका के खड़े होने के अंदाज को दर्शाया। इसमें कलाई की घुमाव व पलटे का प्रयोग मोहक था। एक रचना ‘गत धा ता धा गिन ता धा‘ में उत्प्लावन का अंदाज काफी सधा हुआ था। उन्होंने गिनती की तिहाइयांे को अपने नृत्य में शामिल किया। आरोह और अवरोह का अंदाज ‘धा‘ के बोल पर पेश किया। परण ‘धा गिन कत धा‘ में पांच-पांच चक्करों का प्रयोग मार्मिक लगा। वहीं, चक्करदार तिहाई में इक्कीस चक्करों का प्रयोग और लयकारी में पैर का काम प्रभावकारी था।
कई वर्ष बाद, इशिरा को नृत्य करते देखना अच्छा लगा। उन्होंने पूरे प्रोफेशनल और पूरे गंभीर तरीके से प्रोग्राम को पेश किया। उनके नृत्य को देखकर ऐसा लगा कि सभागार में बैठकर देख रहे हैं। लाइव म्यूजिक में उनके साथ संगत किया-प्रहर वोरा, जाॅबी जाॅय, श्रेयश दवे और हृदय दे