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Thursday, April 25, 2024

shashiprabha: स्पिक मैके का नौवां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन@शशिप्र...

shashiprabha: स्पिक मैके का नौवां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन@शशिप्र...:                                                     स्पिक मैके का नौवां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन ...

स्पिक मैके का नौवां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन@शशिप्रभा तिवारी

                                                    स्पिक मैके का नौवां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन

@शशिप्रभा तिवारी

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया एवं विदुषी पद्मा सुब्रह्मण्यम के कार्यक्रम से होगा आई आई टी मद्रास में आयोजित स्पीक मेके के अधिवेशन का उद्घाटन
जब देश के अधिकांश छात्र अपनी ग्रीष्मकालीन छुट्टियों मना रहे होंगे, उस समय लगभग 1500 विद्यार्थी स्पीक मेके के अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन के माध्यम से एक प्रेरणास्पद अनुभव को आत्मसात करने के उद्देश्य से एक सप्ताह के लिए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से रू-ब-रू होंगे। 47 वर्षों से कार्यरत स्पिक मैके का 9वां अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन इस वर्ष चेन्नई स्थित आई आई टी मद्रास में 20 मई से 26 मई, 2024 तक आयोजित होना सुनिश्चित हुआ है।
इस आयोजन में भाग लेने वाले प्रतिभागी, भारतीय शास्त्रीय संगीत व लोक कला के दिग्गज गुरुओं के साथ सप्ताह भर चलने वाली बैठक और कार्यशालों के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक विरासत की बारीकियों से परिचित होंगे। इस सम्मेलन के अंतर्गत भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायन, वादन और नृत्य के प्रतिष्ठित कलाकारों द्वारा प्रदर्शन, विभिन्न लोक-कला के शीर्ष गुरुओं द्वारा कार्यशालाएँ, व्याख्यान, क्लासिक फिल्मों की स्क्रीनिंग, शिल्प कार्यशालाएँ, योग, विरासत-यात्रा और अन्य कार्यक्रमों की शृंखला शामिल है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष के सम्मेलन में भी इस आयोजन के तहत एक पारंपरिक आश्रम जैसे वातावरण में इन कार्यक्रमों का संचालन किया जाएगा जो युवा पीढ़ी पर गहरा प्रभाव छोड़ेने में समर्थ होगा।


आईआईटी मद्रास के निदेशक, प्रोफेसर कामाकोटि ने इस सांस्कृतिक समारोह में आईआईटी मद्रास की सहभागिता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि स्पिक मैके के वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन की मेजबानी करने का अवसर पाकर हम गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में छात्र हमारे यहाँ आएंगे।
स्पिक मैके के संस्थापक डॉ. किरण सेठ ने कहा कि आज हम इंटरनेट, सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के माध्यम से लगातार बाह्य-जगत से जुड़े रहते हैं। सप्ताह भर ‘आश्रम’ के वातावरण में कला-गुरुओं के सानिध्य से युवा विद्यार्थियों को यहाँ अपनी अंतरात्मा से जुड़ने का अवसर मिलेगा। स्पिक मैके के इस अधिवेशन का आयोजन हर वर्ष देश के एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में किया जाता है। सप्ताह भर चलने वाले इस संस्कृतिक उत्सव में भारत और दुनिया भर से 1500 से अधिक छात्र और स्पीक मैके के स्वयंसेवक एकत्रित होते हैं।

इस संदर्भ में संस्था की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुमन डूंगा ने बताया कि पिछले 47 वर्षों से सक्रिय रूप से कार्यरत संस्था स्पिक मैके का उद्देश्य युवाओं में भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य, योग और लोक संस्कृति जैसे विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कला प्रदर्शनों के आयोजन के माध्यम से युवा वर्ग में भारतीय कलात्मक धरोहर के प्रति गहरी समझ और आदर को विकसित करना है। स्कूल और कॉलेज के परिसरों में छात्रों को भारतीय विरासत में सक्रिय रूप से रूचि लेने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से स्पिक मेके से जुड़े विभिन्न स्वयंसेवक हर साल भारत और विदेशों के करीब 800 शहरों में 5000 से अधिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। यह संगठन लोगों में सेवा और निष्काम कर्म की भावना की ओर प्रेरित करता है।



इस वर्ष के अधिवेशन में पं. हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद अमजद अली खान, और विदुषी पद्मा सुब्रह्मण्यम जैसे शीर्षस्थ कलाकार शामिल हो रहे हैं। कार्यक्रम के तहत टिकुली और गोंड पेंटिंग के विशिष्ट कलाकारों तथा विद्वान एन संथानगोपालन और डॉ. अलंकार सिंह जैसे प्रसिद्ध लोक कलाकारों द्वारा पांच दिवसीय कार्यशाला भी आयोगित की जाएगी। अधिवेशन के सभी प्रतिभागी भारत की सांस्कृतिक विरासत, इसके मूल्यों की गहनता को आत्मसात करने के उद्देश्य से इन गुरुओं के सानिध्य का दुर्लभ अवसर प्राप्त करेंगे। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के माध्यम से विभिन्न स्कूल और कॉलेज के छात्रों इस सम्मेलन के लिए आमंत्रित हैं।

Thursday, April 11, 2024

shashiprabha: अल्पना का आयोजन @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: अल्पना का आयोजन @शशिप्रभा तिवारी:                                                                    अल्पना का आयोजन                                                         ...

अल्पना का आयोजन @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   अल्पना का आयोजन

                                                                   @शशिप्रभा तिवारी 

पिछले दिनों अल्पना की ओर से नृत्य समारोह नृत्यांजलि आयोजित किया गया। इस समारोह में ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक, गुरु राजेंद्र गंगानी और गुरु गीता चंद्रन की शिष्याओं ने मोहक नृत्य पेश किया। समारोह का मुख्य आकर्षण वसुधैव कुटुंबकम नृत्य रचना की प्रस्तुति थी। इसकी परिकल्पना गुरु अल्पना नायक ने की थी। इसमें तीनों गुरुओं की शिष्याओं ने हिस्सा लिया। यह बी सदा शिवन और कुलदीप एम पाई की संगीत रचना पर आधारित थी। तीन शैलियों में नृत्यांगनाओं अच्छा समन्वय और संतुलन पेश किया। ओडिशी, भरतनाट्यम और कथक की शैलियों का यह संुदर संरचना बनता प्रतीत हुआ। यह गुरु अल्पना ने पहली बार पेश किया था। इसे आने वाले समय में और भी परिष्कृत रूप में वह पेश करेंगीं। ऐसी उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि अल्पना अक्सर नई रचनाएं करतीं हैं और इसे अपनी शिष्याओं के साथ प्रस्तुत करती हैं। 


नृत्यांजलि समारोह में 29 मार्च को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में गुरु अल्पना नायक की शिष्याआंे ने राम वंदना से नृत्य आरंभ किया। यह गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘भजमन रामचंद्र चरण सुखदाई‘ पर आधारित थी। ओडिशी संगीत में प्रस्तुत यह भक्तिरस से सराबोर थी। उनकी शिष्याओं ने आरभि पल्लवी पेश किया। यह राग आरभि और एक ताली में निबद्ध थी। यह प्रस्तुति प्रभावोत्पादक थी। जयदेव की गीत गोविंद की रचना ‘शीत कमल कुच‘ पर आधारित अगली प्रस्तुति थी। इस प्रस्तुति में शिष्याओं ने राधा और कृष्ण के भावों का संुदर चित्रण किया। यह गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य रचना थी। यह एक स्वस्थ पहल है कि गुरु अल्पना नायक अपने गुरु हरिचरण बेहरा के अलावा, माननीय गुरुओं की रचनाओं को अपनी शिष्याओं को सीखाती हैं। नई संभावनाओं को तलाशना अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। इससे गुरु के व्यापक दृष्टिकोण और खुलेपन का पता चलता है। 


कथक नृत्यांगना स्वाति सिन्हा और उनकी शिष्याओं ने कथक नृत्य पेश किया। गुरु राजेंद्र गंगानी की शिष्या स्वाति सिन्हा ने कथक नृत्य का आरंभ वंदना ‘राम रघुवीर धीर अयोध्या नगर‘ किया। यह राग बागेश्वरी और चैताल में निबद्ध था। उन्होंने राग कलावती और तीन ताल में निबद्ध तराने को नृत्य में पिरोया। कथक नृत्यांगना जयपुर घराने के परण, तिहाइयों और कवित्त को विशेष तौर पर अपने नृत्य में पेश किया। उनके नृत्य में गणेश परण और गज के चलन का प्रयोग संुदर था। 

वहीं भरतनाट्यम नृत्य गुरु गीता चंद्रन की शिष्याओं ने लयात्मक भरतनाट्यम नृत्य पेश कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की। उन्होंने वरणम पेश किया। यह राग विहाग और आदि ताल में निबद्ध थी। यह प्रो टी आर सुब्रम्हण्यम की रचना ‘वनाक्ष नैनमिति स्वामि वेणूगोपलम पर आधारित थी। शिष्याओं ने वरणम में अभिनय और जतीस का लयात्मक प्रयोग किया। उन्होंने एक-एक भाव में कृष्ण और गोपिका के भाव को महीन अंदाज में रूपायित किया। नृत्यांगनाओं के आपसी तालमेल से यह सहज भान हो रहा था कि उनका रियाज नियमित और अनुशासित है। इसमें शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं-मधुरा भुसुंडी, सौम्या लक्ष्मी नारायण, आनंदिता नारायण एवं यादवी शाकधर मेनन। यह नृत्य रचना गुरु गीता चंद्रन की थी। 


Friday, March 15, 2024

shashiprabha: खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल@शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल@शशिप्रभा तिवारी:                                                    खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल                                                       ...

खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल@शशिप्रभा तिवारी

                                                  खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल 

                                                     @शशिप्रभा तिवारी


वत्स, जेजाकभुक्ति अथवा खजुराहो अपने-आप में ऐतिहासिक महत्व का है। यहीं खजुराहो में सŸार के दशक में मध्यप्रदेश शासन ने मंदिर प्रांगण में खजुराहो नृत्य समारोह की शुरूआत की थी। विश्व धरोहर प्राचीन खजुराहो मंदिर समूह के कंदरिया महादेव और ज्वाला देवी के मंदिर की पृष्ठभूमि में यह नृत्य समारोह पिछले दो वर्ष यानी वर्ष-2022 से आयोजित हो रहा है। यह तीसरा वर्ष है। समारोह में कथक, ओडिशी, मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम, कुचिपुडी, सत्रीय, मणिपुरी एवं समकालीन नृत्यांे को पेश किया जाता है। संगीत नाटक अकादमी से मान्यता प्राप्त होने पर सबसे पहले इसी मंच पर सत्रीय नृत्य को पेश किया गया।

पचासवां खजुराहो नृत्य समारोह 20फरवरी से 26फरवरी तक विश्व धरोहर खजुराहो मंदिर प्रांगण में आयोजित था। इस दौरान कथक कंुभ आयोजित था। इसमें 1500 कलाकारों ने कथक नृत्य पेश किया। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के साझा प्रयासों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर के सहयोग से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में विश्वविख्यात 50वां खजुराहो नृत्य समारोह आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर निदेशक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।

50वें खजुराहो नृत्य महोत्सव का शुभारंभ बीस फरवरी को ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर और उनके साथी कलाकारों की प्रस्तुति से हुई। उनकी पहली पेशकश शिव स्तुति थी। यह महाराजा स्वाति तिरूनाल की रचना-विश्वेश्वर दर्शन को चलो मन तुम काशी पर आधारित थी। यह राग आसावरी और ताल खेमता में निबद्ध थी। राग पहाड़ी और ताल जती में निबद्ध अष्टपदी-सखी हे केशी मथनमुदारम पर आधारित अभिनय अगली पेशकश थी। रासरंग की प्रस्तुति रचना-‘नारी राधे संग नटवर कुंजे‘ पर आधारित थी। यह राग मिश्र खमाज और ताल एकताली व खेमटा में निबद्ध थी। 

अगली प्रस्तुति सुधाना शंकर एवं साथी की भरतनाट्यम थी। उन्होंने सर्वप्रथम देवी स्तुति पेश किया। जिसमें स्त्री का सौंदर्य और सिद्धांत दर्शाए गए। उन्होंने नृत्य रचना द्रौपदी प्रस्तुत किया। फिर रचना-मुरली नाद सुनायो पर अभिनय पेश किया।

खजुराहो नृत्य समारोह की दूसरी संध्या यानी 21 फरवरी को कथक नर्तक शेंकी सिंह ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने अपने नृत्य का आरंभ गणेश वंदना से किया। तीन ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। उन्होंने गजल ‘उस शोख के चितवन को बहुत याद किया‘ पर भाव पेश किया। यह पंडित बिरजू महाराज की रचना थी। उन्होंने रचना ‘जटा शोभित चंद्र दमकत‘ में शिव के श्रृंगार को दर्शाया, वहीं गज की गत, सलामी की गत आदि को अपने नृत्य में प्रस्तुत किया। समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना सायली काणे ने राम पुष्पांजलि-हरिहर से अपने नृत्य की शुरूआत की। मुत्थुस्वामी दिक्षितर की रचना अर्धनारीश्वर में शिव-पार्वती के रूप को चित्रित किया। वहीं राम नवरस पेश किया। यह रचना ‘क्षितिनंदिनी विहरिणी श्रृगारम‘ पर आधारित थी। राग रेवती में निबद्ध तिल्लाना पर भरतनाट्यम के लयात्मक गतियों को संचारित किया। समारोह में ओडिसी नृत्यांगना अरूपा गायत्री ने ओडिशी नृत्य का आरंभ देवी स्तुति ‘ए गिरिनंदिनी‘ से किया। वल्लभाचार्य कृत मधुराष्टकम पर आधारित उनकी दूसरी प्रस्तुति थी। मनाली देव ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने गणेश स्तुति ‘नमामि गणपति श्रवण सुंदर‘ से नृत्य आरंभ किया। कालिका तांडव उनकी पेशकश में खास थी। राम के गुणो का गान उन्होंने रचना ‘राम का गुणगान करिए‘ में नृत्य के जरिए किया। 




खजुराहो नृत्य समारोह में प्रेरणा देशपांडे, पंडित राजेंद्र गंगानी, नव्या नटराजन, विधि नागर, राजश्री वारियर, यास्मीन सिंह, कृपा फड़के, अनुराधा सिंह ने अपनी नृत्य शैलियों में नृत्य पेश किया। समारोह की अंतिम संध्या में डाॅ सोनल मानसिंह ने भी शिरकत किया। 

मुख्य मंच पर 22 फरवरी को तीसरी संध्या की शुरुआत साक्षी शर्मा के कथक से हुई। उन्होंने शुरुआत आराध्य देव भगवान शिवस्तुति से की। इस शिवस्तुति रचना-रंगीला शंभू गौरा ले पधारो। उन्होंने तीन ताल विलंबित में नृत्त पक्ष की प्रस्तुति दी। नायिका के सौंदर्य का वर्णन एक रचना में दर्शाया। इसके बोल थे-लचक लचक चलत चाल इठलाती चतुर नार। अंतिम  में द्रुत तीन ताल की प्रस्तुति दी, जिसमें परण, तिहाई एवं गत निकास की प्रस्तुति देकर विराम दिया।

समारोह में ओडिसी नृत्य कस्तूरी पटनायक और साथी कलाकारों ने पेश किया। उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत मंगलाचरण से की। रामाष्टकम स्तोत्र पर आधारित मंगलाचरण थी। दूसरी प्रस्तुति चारुकेशी पल्लवी थी। पल्लवी राग चारुकेशी और ताल त्रिपुट में थी। तीसरी प्रस्तुति शिव पंचाक्षर स्तोत्र-नागेंद्र हरय त्रिलोचनाय था। जो आदि शंकराचार्य लिखित भगवान शिव को समर्पित है। इस स्तोत्रम का संगीत पंडित भुवनेश्वर मिश्रा ने तैयार किया था। उनकी चैथी प्रस्तुति महारी थी। महारी नृत्य गीत-‘वंशी त्यज हेला राधानाथ‘ पर आधारित थी। अंतिम प्रस्तुति अभिनय आधारित थी, मानी बिमाने गोविंद थी। इस प्रस्तुति में पुरी में होने वाले चंदन जात्रा को दिखाया।

केरल के मोहिनीअट्टम नृत्य का प्रदर्शन किया विद्या प्रदीप ने किया। उनकी प्रस्तुति चोलकेट्टू राग गंभीर नाटई और त्रिपुट ताल में थी। स्वाति तिरूनाल की रचना पर आधारित पदवरणम अगली पेशकश थी। यह पद्मनाभ को निवेदित थी। 



तीसरे संध्या की सभा की अंतिम प्रस्तुति कथक कलाकार पुरु दाधीच एवं हर्षिता शर्मा दाधीच एवं समूह की रही। इस प्रस्तुति का नाम ऋतु गीतम था, जिसे लिखा और कोरियोग्राफ किया गुरु पुरु दाधीच ने। इस प्रस्तुति में उन्होंने छह ऋतुओं का नृत्याभिनय से वर्णन किया। राग भूप कल्याण, सारंग से लेकर बसंत बहार, मल्हार और ध्रुपद, खयाल व ठुमरी को समाहित किया गया। इस प्रस्तुति में स्मिता विरारी ने गायन, अश्विनी ने वायलिन, बांसुरी पर अनुपम वानखेड़े और तबले पर कौशिक बसु ने साथ दिया। जबकि नृत्य में हर्षिता दाधीच, दमयंती भाटिया, आयुषी मिश्र, सरवैया जैसलिन, पूर्वा पांडे, मुस्कान, अक्षता पौराणिक, डॉ सुनील सुनकारा, अक्षोभ्य भारद्वाज और कैलाश ने साथ दिया। वेशभूषा क्षमा मालवीय की थी और सूत्रधार स्वयं डॉ. पुरु दाधिच थे।

समारोह की 23फरवरी को चैथी संध्या की शुरुआत मोमिता घोष वत्स के ओडिसी नृत्य से हुई। राग विभास और एक ताल में निबद्ध विष्णु ध्यान पहली पेशकश थी। इसकी संगीत रचना गायिका नाजिया आलम ने की थी। अगली पेशकश में उन्होंने समध्वनि की प्रस्तुति दी। यह राग गोरख कल्याण और एक ताल में निबद्ध था। उन्होंने विविध लयकारियों को प्रदर्शित किया। उन्होंने नृत्य का समापन जयदेव कृत गीत गोविंद की अष्टपदी-धीर समीरे यमुना तीरे से किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम को अपने नृत्य भावों से प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा और नृत्य संरचना गुरु केलुचरण महापात्र की थी। 



दूसरी प्रस्तुति में नलिनी व कमलिनी की कथक प्रस्तुति थी। कथक के बनारस घराने की प्रतिनिधि कलाकार नलिनी व कमलिनी ने शिव स्तुति से नृत्य आरंभ की। राग मालकौंस और 12 मात्रा निबद्ध रचना चंद्रमणि ललाट भोला भस्म अंगार निबद्ध थी। दोनों बहनों ने नृत्य की प्रस्तुति से शिव को साकार की। तीन ताल में कलावती के लहरे पर उन्होंने शुद्ध नृत की प्रस्तुति थी। इसमें उन्होंने पैरों की तैयारी के साथ सवाल-जवाब और विविधतापूर्ण लयकारी का प्रदर्शन किया। उन्होंने होली की ठुमरी पर भाव नृत्य भी किया। पंडित जितेंद्र महाराज द्वारा लिखी गई ठुमरी मत मारो श्याम पिचकारी पर उन्होंने नृत्य प्रस्तुति दी। 

मध्यप्रदेश की कथक नृत्यांगना डॉ.सुचित्रा हरमलकर ने अपने समूह के साथ खजुराहो के समृद्ध मंच पर नृत्य किया। रायगढ़ घराने से ताल्लुक रखने वाली सुचित्रा हरमलकर ने अपने नृत्य का आगाज शिव आराधना से किया। तीनताल में दरबारी की बंदिश-हर हर भूतनाथ पशुपति पर नृत्य किया। दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने जटायु मोक्ष की कथा को नृत्य भावों में पेश किया। उन्होंने जयदेव कृत दशावतार पर नृत्य प्रस्तुति दी। समापन उन्होंने द्रुत तीनताल में तराने से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ योगिता गड़ीकर, निवेदिता पंड्या, साक्षी सोलंकी, उन्नति जैन, फागुनी जोशी, महक पांडे और श्वेता कुशवाह ने साथ दिया। साज संगत में तबले पर मृणाल नागर, गायन में वैशाली बकोरे, मयंक स्वर्णकार और सितार पर स्मिता वाजपाई ने साथ दिया।

मणिपुरी नृत्यांगना रोशली राजकुमारी और समूह ने खजुराहो नृत्य समारोह में शिरकत किया। इस समूह ने भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास की प्रस्तुत किया। जयदेव की कृतियों पर मणिपुरी नर्तकों ने नृत्य किया। अंतिम पेशकश केरल के प्रसिद्ध कोडिअट्टम नृत्य को कलाकार मार्गी मधु और उनके साथियों ने पेश किया। इस नृत्य के माध्यम से जटायु मोक्ष की लीला का प्रदर्शन किया। इसमें गुरु मार्गी मधु चक्यार ने रावण, इंदु ने सीता,  हरि चकयार ने जटायु का अभिनय किया। इस प्रस्तुति में सीता हरण से लेकर जटायु मोक्ष तक की लीला का वर्णन था। 


समारोह में नृत्य प्रस्तुतियों के तहत पांचवीं संध्या 24फरवरी को पंचानन भुयां की अराधना ओडिसी डांस फाउंडेशन ने छऊ-ओडिसी, अमीरा पाटनकर एवं साथी ने कथक, राजश्री होल्ला एवं रेखा सतीश ने कुचिपुड़ी और अनु सिन्हा एवं साथी ने कथक पेश किया।

पहली प्रस्तुति में गुरु पंचानन भुयां और उनके समूह का छऊ व ओडिसी नृत्य हुआ। पंचानन ने अपने नृत्य की शुरुआत मंगलाचरण से की। शांताकारं भुजगशयनम् श्लोक पर भगवान विष्णु का स्मरण किया गया। मरदल की ताल पर नर्तकों ने भाव प्रवण प्रस्तुति दी। अगली प्रस्तुति में उन्होंने नृत्य और ताल के अनूठे संगम को पेश किया। रावण नृत्य नाटिका के एक अंश को दर्शाया गया , जिसमें रावण शिव को प्रसन्न करने यज्ञ कर रहा है। इसमें ओडिसी के साथ मयूरभंज छऊ नृत्य शैली को समाहित किया गया था। इस प्रस्तुति में पंचानन के साथ सुमित मंडल, दीपक कांदारी, जय सिंह, रोहित लाल ने नृत्य पेश किया। गुरु रतिकांत महापात्र ने इस नृत्य रचना की परिकल्पना की थी। उन्होंने नृत्य का समापन लोकनाथ पटनायक द्वारा रचित उड़िया के भक्ति गीत सजा कंजा नयना कुंजे आ री से किया। यह राग आहिरी और ताल खेमटा में निबद्ध थी। नृत्य रचना गुरु पंचानन और प्रिय सामंत राय की थी। 

दूसरी प्रस्तुति अमीरा पाटनकर और उनके साथियों का कथक नृत्य था। उन्होंने राम वंदना से अपना नृत्य आरंभ किया। इसमें सीता स्वयंवर, सेतु लंघन, रावण दहन की लीला को अमीरा व साथियों ने नृत्य भावों को पेश किया। उनकी अगली प्रस्तुति चतुरंग की थी। राग देश में तराना सरगम, साहित्य, नृत्य के बोलों का समन्वय दिखा। अमीरा ने राग पीलू में निबद्ध ठुमरी-ऐसी मोरी रंगी है श्याम पर भाव पेश किया। इसके बाद त्रिविधा में शुद्ध नृत्त पक्ष को पेश किया। परमेलु और नटवरी बोलों की बंदिशें शामिल थी। इन नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरु शमा भाटे की थी। इस प्रस्तुति में अवनि, ईशा, श्रद्धा, श्रेया, परिचिति प्रमोद व नयन शामिल थे। 


अगले क्रम में राजश्री होल्ला और रेखा सतीश की जोड़ी ने कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने गणेश वंदना से नृत्य शुरू किया। उन्होंने राग मालिका और मिश्र चापू ताल में निबद्ध भक्त प्रहलाद पट्टाभिषेकम की कहानी को पेश किया। इसमें प्रहलाद की भक्ति हिरण्यकश्यपु के वध के प्रसंग को दर्शाया गया। राजश्री और रेखा ने दुर्गा तरंगम में महिषासुर मर्दिनी की कथा को पेश किया। राग शंमुखप्रिया और आदि ताल की इस रचना के अंत में नृत्यांगनाओं ने कांस्य थाली पर पाद व अंग संचालन किया। राजश्री और रेखा ने राग अहीर भैरव और आदि ताल की रचना पिबारे राम रसम-राम स्तुति कर नृत्य का समापन किया। यह रचना सदाशिव  की थी।

सभा का समापन दिल्ली से पधारीं डॉ. अनु सिन्हा और उनके साथियों के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने गणेश वंदना से नृत्य का आरंभ किया। राग देश पर आधारित वंदना-प्रथम सुमिरन श्री गणेश. के जरिए उन्होंने भगवान गणेश की बुद्धिमता शक्ति और समृद्धि को भावों में पिरोकर पेश किया। उन्होंने जय राम रमा पर भगवान राम की महिमा को दर्शाया। उनकी अगली पेशकश शिव आराधना थी। शंकर अति प्रचंड मालकौंस के सुरों में पिरोई गई थी। उन्होंने नृत्य का समापन ठुमरी-ऐसो हठीलो छैल पर भाव नृत्य से किया। राधा कृष्ण के प्रेम को इस ठुमरी में अनु भावों के जरिए पेश किया। 



















Wednesday, March 13, 2024

shashiprabha: पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन...

shashiprabha: पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन...:                                           पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन                                        @शशिप्र...

पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन @शशिप्रभा तिवारी

                                          पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन

                                       @शशिप्रभा तिवारी 


पिछले दिनों पुणे में 36वां कथक महोत्सव संपन्न हुआ। दो दिवसीय समारोह दो चरणों मंे संपन्न हुआ। महोत्सव की प्रातःकालीन सभा ज्योत्स्ना भोले सभागृह में आयोजित थी। शाम की प्रस्तुतियां अन्ना भाऊ साठे सभागार में संपन्न हुआ। इस समारोह का आयोजन कथक केंद्र की ओर से किया गया। कथक केंद्र की निदेशक प्रणामी भगवती ने सभी कलाकारों, गुरुओं और रसिक जनों का स्वागत किया। 

 26 फरवरी को महोत्सव का आरंभ कथक केंद्र की अध्यक्ष उमा डोगरा के उद्घाटन भाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि गुरु रोहिणी भाटे ने अपनी एक मंच प्रस्तुति के बाद मैं ग्रीन रूम में उनसे मिली तब उन्होंने मुझसे पूछा कि नृत्य अच्छा हुआ? प्रातःकालीन सभा का पहला सत्र कथक नृत्यांगना व गुरु रोहिणी भाटे के शताब्दी वर्ष को समर्पित था। पहले सत्र में वार्ता में उनकी शिष्याएं नीलिमा आध्ये और अमला शेखर ने गुरु रोहिणी भाटे की स्मृतियों को साझा किया। अपनी गुरु के बारे में बोलते हुए, नीलिमा आध्ये ने कहा कि गुरु जी बहुत परिश्रमी और समय की कद्रदान थी। उनकी शास्त्रीय संगीत के साथ मराठी, हिंदी, ब्रज, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इस संदर्भ में अमला शेखर ने कहा कि उनकी कला निधि की तरह है और उनकी सकारात्मक सृजनात्मकता झरने की तरह है। अगले परिचर्चा सत्र में साहित्य अनुभूति विषय पर कलाविदों ने चर्चा की। इसमें पार्वती दत्ता और शमा भाटे ने अपने विचार व्यक्त किया। इन सत्रों का संचालन सुनील सुनकारा ने किया। 

ज्योत्स्ना भोले सभागृह में आयोजित प्रातः कालीन की दूसरे दिन का आयोजन गुरु सितारा देवी को समर्पित था। इस आयोजन के दौरान वार्ता में जयंतीमाला मिश्रा और डाॅ नंदकिशोर कपोते ने अपनी गुरु सितारा देवी की स्मृतियों का वर्णन किया। डाॅ नंदकिशोर कपोते ने कहा कि 2002 में विदुषी सितारा देवी पुणे में एक कार्यक्रम में लगातार दो घंटे तक नाचतीं रहीं। वह सौंदर्यप्रेमी थीं। हर वक्त खुद को सजा-संवारकर रखना पसंद करती थीं। वहीं दृश्यावलोकन-कथक में नाट्य के रंग पर परिचर्चा के दौरान राजश्री शिरके और मनीषा साठे ने अपने विचारों को अभिव्यक्त किया। इस सत्र का संचालन डाॅ पीयूष राज ने किया। 

कथक महोत्सव की सायंकालीन सभा में कलाकारों ने मोहक कथक नृत्य प्रस्तुत किया। समारोह का आरंभ ऋजुता सोमन के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने गुरु रोहिणी भाटे रचित कृष्ण वंदना से नृत्य आरंभ किया। यह रचना ‘वंृदावन मत्त वंृद कूजें‘ पर आधारित थी। उन्होंने चित्र रूपक ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। वर्तमान गुप्त नायिका का चित्रण अभिनय में पेश किया। इसके लिए रचना ‘सुरूप निरूप तोसे ननदी‘ का चयन किया गया था। 

 


दूसरी पेशकश वरिष्ठ गुरु पंडित कृष्ण मोहन महाराज और राम मोहन महाराज की युगल पेशकश थी। साई भजन ‘अरज सुनो मोरे साईं नाथ जी‘ से पंडित कृष्ण मोहन महाराज ने शुरु किया। उन्होंने तीन ताल में लयकारी को विशेष तौर पर पेश किया। उन्होंने सिर्फ भौं संचालन के माध्यम से तत्कार को पेश कर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। पंडित शंभू महाराज, पंडित अच्छन महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पुराने अंदाज को दोनों बंधुओं ने पेश किया। गजल ‘आंख आंख से मिली रात-दिन मैं तुझे प्यार किया‘ के जरिए कृष्ण मोहन ने नायिका सीता के भावों को अभिव्यक्त किया। ठुमरी ‘डगर चलत देखो श्याम‘ पर राम मोहन ने भावों को दर्शाया। अगली पेशकश कथक नर्तक अभय शंकर की थी। उन्होंने रूद्राष्टकम से आरंभ किया। उन्होंने शुद्ध नृत्त तीन ताल में पेश किया। उन्होंने पंडित दुर्गा लाल की रचना प्रस्तुत किया। उनकी पेशकश में लंका विजय परण खास थी। कथक गुरु शमा भाटे की शिष्याओं ने कथक नृत्य रचना परिणति पेश किया। इसकी शुरूआत राम वंदना से की गई। राग अडाना और तीन ताल में चतुरंग प्रस्तुत किया। इसमें तराना, सरगम और सूरदास के दोहे को पिरोया गया। राग देस में हरिवंश राय बच्चन की कविता और सिम्फनी पर आधारित उनकी अंतिम नृत्य प्रस्तुति थी। इस नृत्य में कलाकारों का भाव प्रदर्शन और आपसी संतुलन मोहक था। 


27 फरवरी को कथक महोत्सव की दूसरी सायंकालीन सभा में जयपुर घराने की कथक नृत्यांगन विधा लाल ने नृत्य पेश किया। कथक नृत्यांगना विधा ने अपने नृत्य का आरंभ हरिहर वंदना से किया। बैजू बावरा की रचना ‘वंशीधर पिनाकधर गिरिवरधर‘ राग बैरागी और नौ मात्रा के ताल में निबद्ध थी। उन्होंने तीन ताल में शुद्ध नृत्त में जयपुर घराने की बारीकियों को दमदार अंदाज में पेश किया। मीराबाई की रचना ‘सुणो रे तुम दयाल म्हारी अरजी‘ पर भावों को परिपक्वता के साथ दर्शाया। कथक नृत्यांगना प्रेरणा और ईश्वरी देशपांडे ने युगल नृत्य पेश किया। उन्होंने शिव वंदना, शुद्ध नृत्त और ठुमरी ‘जमुना किनारे मोरा गांव रे‘ को नृत्य में पिरोया। रायगढ़ घराने की डाॅ सुचित्रा हरमलकर ने एकल नृत्य पेश किया। उन्होंने देवी स्तुति ‘जयति जयति दुर्गे भवानी‘ से नृत्य आरंभ किया। उन्होंने राजा चक्रधर महाराज की चार लयों की आमद, तिहाइयां- पुरंदर,  मत्स्य रंगोली, नवरस व दल-बदल परण को पेश किया। सूरदास के पद ‘मैया मोरी दाउ बहुत खिजायो‘ में यशोदा के वात्सल्य भाव को बखूबी उकेरा। जबकि, डाॅ कुमकुम धर के शिष्य-शिष्याओं ने उनकी नृत्य रचना को पेश किया। उन्होंने पंचतत्व, राग कलावती में तराना और नज्म ‘आ कि इन भागते लम्हों को पकड़ कर रख लें‘ को नृत्य में पिराकर एक सुखद समापन किया। 


shashiprabha: महानाद महोत्सव में सुरों का नाद @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: महानाद महोत्सव में सुरों का नाद @शशिप्रभा तिवारी:                                                        महानाद महोत्सव में सुरों का नाद                                       @शशिप्रभा तिवार...

महानाद महोत्सव में सुरों का नाद @शशिप्रभा तिवारी

 

                                                     महानाद महोत्सव में सुरों का नाद

                                      @शशिप्रभा तिवारी


संगीत में हम कहते हैं कि नाद ब्रह्म है। इसका मतलब है कि ध्वनि ही ईश्वर है। ऐसा इसलिए कि इस अस्तित्व का आधार कंपन है, नाद है। यही कंपन ही ध्वनि या नाद है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है। इस नाद को हम अपनी संासों में, अपनी दिल की धड़कन में, अपने चलने में, अपने बोलने में महसूस करते हैं। संगीत और ध्यान के लिए कहा जाता है कि अगर आप अपने भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं, तो यह पूरा जगत सिर्फ ध्वनि या नाद बन जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत इसी तरह के अनुभव और समझ पर आधारित है। यही नाद की पराकाष्ठा है महानाद महोत्सव। इस महानाद महोत्सव का आयोजन रागांजलि एकेडमी आॅफ परफाॅर्मिंग आट्र्स ने संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से किया। 



महानाद महोत्सव 9से 10 मार्च 2024 तक त्रिवेणी सभागार में संपन्न हुआ। इस समारोह के दूसरी संध्या में राजस उपाध्याय, पंडित मिथिलेश कुमार झा, डाॅ अविनाश कुमार, दुर्जय भौमिक, जाकिर धौलपुरी, राहुल एवं रोहित मिश्र, अंशुल प्रताप सिंह, सुमित मिश्र की गरिमामई उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। राजस उपाध्याय को संगीत अपने पिता अतुल कुमार उपाध्याय से विरासत में मिली है। वह पुणे, पिंपरी, छिंदवाड़ा, नासिक, भोपाल आदि शहरों में अपना वायलिन वादन प्रस्तुत कर चुके हैं। इसके अलावा, वह विदेशों में भी कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं।

महानाद महोत्सव में राजस उपाध्याय ने राग दुर्गा का वादन पेश किया। आलाप, जोड़ के बाद झप ताल और तीन ताल में बंदिशों को पेश किया। उनके साथ तबले पर संगत करने के लिए जाने-माने तबला वादक पंडित मिथिलेश झा थे। 

युवा शास्त्रीय गायक डाॅ अविनाश कुमारा नेे रामपुर सहसवान घराने की उत्कृष्ट परंपरा के कलाकार हैं। शास्त्रीय गायक डाॅ अविनाश कुमार को कई गुरुओं से संगीत सीखने का अवसर मिला है। वह दिल्ली, भोपाल, पुणे, आगरा, इंदौर, बंग्लौर, देवास, सोनभद्र शहरों में आयोजित समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। 

गायक अविनाश ने राग जोगकौंस पेश किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के अंत में भजन ‘भवानी दयानी महावाकवाणी‘ और ‘शारदे मां जगतजननी‘ पेश किया। उनके साथ तबले पर पंडित दुर्जय भौमिक और हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी ने संगत किया। 



महानाद महोत्सव में बनारस घराने के राग रस को पेश किया राहुल मिश्र और रोहित मिश्र की जोड़ी ने। राहुल मिश्र और रोहित को संगीत परिवार परंपरा से मिली है। पंडित बैजनाथ प्रसाद मिश्र, पंडित शारदा सहाय जैसे संगीतकारों के घराने के परिवार परंपरा के प्रतिनिधि हैं। दोनों ही पद्मविभूषण विदुषी गिरिजा देवी जी के गंडाबद्ध शिष्य हैं। उन्होंने महोत्सव में राग यमन और यमन कल्याण पेश किया। उन्होंने राग यमन में बंदिश ‘ऐसो ललना के संग माही‘ व ‘जाने न देत मग रोके‘ गाया। राम यमन कल्याण पर आधारित टप्प खयाल की बंदिश के बोल थे-‘झम झम झमके पायलिया‘ और ठुमरी ‘रंग सारी गुलाबी चुनरिया‘ पेश किया। उनके साथ तब गायिका मधुश्री नारायण जी केरल की मशहूर पाश्र्व गायिका हैं। 

पहली संध्या में उत्सव का आगाज मधुश्री के शास्त्रीय गायन से हुआ। मधुश्री को संगीत अपने पिता पंडित रमेश नारायण जी से विरासत में मिली। उन्होंने संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी के सानिध्य में संगीत सीखा है। इनदिनों वह पंडित अजय पोहनकर जी से ठुमरी गायन की बारीकियों को आत्मसात करने का प्रयास कर रही हैं। वैसे तो आपको कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। पर कुछ खास हैं, जिनमें फिल्मों में गाने के लिए केरल स्टेट फिल्म अवार्ड और केरल फिल्म क्रिटिक्स अवार्ड मिल चुके हैं। 

इस समारोह में मधुश्री ने राग पूरिया धनाश्री पेश किया। उन्होंने दु्रत ख्याल की बंदिश-‘दिन रैन कहुं न सोहावे‘ को बहुत मधुरता से गाया। वहीं राग सहाना कान्हड़ा में पंडित जसराज की रचना ‘ख्वाजा करम गति न जाने‘ को पेश किया। अपने गायन का समापन उन्होंने ठुमरी ‘याद पिया की आए‘ से किया। उनके साथ सहयोग करने वाले कलाकारों में शामिल थे-तबले पर आदित्य नारायण बनर्जी और हारमोनियम पर ललित सिसोदिया। 

महानाद महोत्सव के अगले कलाकार शहनाई वादक लोकेश आनंद थे। लोकेश आनंद को संगीत की शुरुआती शिक्षा अपने कालीचरण से मिली। उन्होंने पंडित अनंत लाल जी और पंडित दया शंकर जी के सानिध्य में शहनाई वादन सीखा। इसके बाद, संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी से मार्ग दर्शन प्राप्त करते रहे। कला के क्षेत्र में योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। इनमें कुछ के नाम हैं-शहनाई रत्न, अभिनव कला सम्मान, संगीत रत्न, संगीत कला गौरव सम्मान आदि। शहनाई वादक लोकेश आनंद ने राग मधुकौंस बजाया। आलाप, जोड़ और झाले के बाद विलंबित और द्रुत लय की गतों को पेश किया। उन्होंने राग बहार में होली की धुन पेश कर समां बंाध दिया। उनके साथ तबले पर श्री हिरेन चटर्जी ने संगत  किया। 

महोत्सव की पहली संध्या के अंतिम कलाकार थे-सितार वादक पार्थो बोस। उन्हें मैहर घराने के गुरु पंडित मनोज शंकर का सानिध्य मिला। पंडित मनोज भारतरत्न पंडित रविशंकर के शिष्य थे। उनके गायन की मधुरता अद्भुत थी। अपने गुरु की परंपरा का पूरी तन्मयता और परिपक्वता का परिचय पार्थो बोस के वादन में नजर आया। उन्होंने राग गावती बजाया। समय कम होने के बावजूद उन्होंने परंपरा अनुसार आलाप, जोड़ और झाले को पेश किया। इसके बाद, मध्य लय और द्रुत लय की गतों को पेश किया। और अंत मंे राग भैरवी में एक रचना को बजाया। उनका वादन मधुर और रसीला था। प्रस्तुति गागर में सागर की अनुभूति थी। तबले पर इंद्रनील मलिक ने संतुलित और दमदार संगत की।