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Thursday, August 9, 2018

काले बादल

काले बादल थे
कजरारे-से
डर लगता था
कहीं बरसने न लगें !
क्यों आशंकित था, मन
क्या होता?
जो मेघ बरस जाते
थोड़ी भीग जाती
तो, शायद!
मन की उदासी चली जाती
नहीं! तब
मिटटी का बहना
मेड़ का टूटना
पत्तों का झरना
घोसलों का गिरना
बहुत कुछ
एक साथ घटित होता
तब, तुम्हारे आंगन की याद आती
तुम्हारी हरी चूड़ी
तुम्हारी हंसी
तुम्हारी बिंदिया
तुम्हारी आँखों का इंतज़ार
जार-जार कर जाता
काले बादल
मत बरसना अभी
बहुत कुछ समेटना है
तुम तो यूँ ही
सब जानते हो !