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Thursday, May 21, 2020





'जीवन की सुगंध है-ओडिशी'-- मधुमीता राउत, ओडिशी नृत्यांगना

उड़ीसा और बंगाल बीते दिनों अम्फान तूफान से बुरी तरह प्रभावित हुए। तेज हवा और बारिश ने जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। लेकिन, इन सबसे इतर जो प्रभावित होते हुए भी अप्रभावित रहती है, वह है कलाकार की कला। हर वर्ष उड़ीसा में तूफानों से तबाही मचती है। पर लोग भगवान जगन्नाथ और संस्कृति की सेवा में फिर से उसी लगन से जुट जाते हैं। इस जिजीविषा को मैंने खुद उड़ीसा के लोगों में महसूस किया है। आज हम इसी प्रदेश की नृत्य शैली की कलाकार व गुरू मधुमीता राउत से रूबरू हो रहे हैं-शशिप्रभा तिवारी
ओडिशी नृत्य क्या है?
मधुमीता राउत- यह सच है कि अब ओडिशी नृत्य मंदिर में नहीं होता है। इसका उदय तो मंदिरों से ही हुआ है। मंदिर तो हमारे मन के अंदर है। हम जिस मंच पर नृत्य करते हैं, वही मंदिर बन जाता है। मंदिर हमारे साथ होता है। मैं सालों से नृत्य कर रही हूं, जो आमतौर पर भगवान जगन्नाथ और अन्य आख्यान से जुड़ी होती हैं। इन्हीं विषयों पर नृत्य पेश करती हूं। मुझे याद आता है कि दस साल की थी। मेरे पिताजी व गुरू मायाधर राउतजी मुझे दशावतार सीखाना चाहते थे। उस समय मैंने सीखने से मना कर दिया था। जब थोड़ी समझदारी बढ़ी, तब मैंने सीखा। दशावतार और विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा और उसकी महत्ता को समझने में करीब दस वर्ष लग गए।
यादगार परफाॅर्मेंस के बारे में बताएं।
मधुमीता राउत- याद आता है-हाॅलैंड में देवी स्तुति किया था। वह दुर्गा सप्तशती और ललितासहस्रनाम के कुछ अंशों पर आधारित था। मुझे पता नहीं, मैं नृत्य कर रही हूं, मेरे आंसू बह रहे हैं। मुझे कुछ पता नहीं! मैं भावना में बहती हुई, नृत्य कर रही हूं।
पहली बार बेल्जीयम गई थी। वहां मैंने नोटिस किया कि हर प्रोग्राम के बाद मुझे एक दिव्यचक्षु वृद्ध महिला मिलती। एक शाम मैंने उनसे पूछा कि आप हमारा नृत्य को कैसा महसूस करती हैं? उनका जवाब था-आपके घुंघरू की आवाज, हमें एक अलग दुनिया में ले जाती है। उस अनुभूति को मैं शब्दों में नहीं बता सकती।
आपकी अब तक की कला यात्रा कैसी रही?
मधुमीता राउत- जब किशोरावस्था में थी। आमतौर पर अन्य बच्चों की तरह से मैं कभी जर्नलिस्ट, पेंटर तो कभी नृत्यांगना बनना चाहती थी। थोड़ी समझदार हुई तो बाबा ने समझाया कि इसे धर्म-कर्म मानकर नृत्य करना चाहती हो तो करो। क्योंकि कला की साधना में कठिनाइयां हैं। नाम, पैसा, शोहरत मिले यह जरूरी नहीं है। यह देव उपासना का एक मार्ग है।
जीवन में क्या खोया-क्या पाया है?
मधुमीता राउत- मैं किसी रईस या किसी बड़े बिजनेसमैन की बेटी नहीं हूं। मैं गुरू की बेटी हूं। मेरी जिम्मेदारी ज्यादा है और संघर्ष भी ज्यादा है। सत्रह-अठारह साल की रही होउंगी, तब किसी ने कहा था कि तुम्हें प्रोग्राम नहीं मिल सकता क्योंकि तुम्हारे पास पैसा नहीं है। उस समय मैं बहुत रोई थी। जब गुरूजी ने उदास देखा, तब उन्होंने समझाया। कला के प्रति समर्पित होना जरूरी है। केवल प्रोग्राम से बात नहीं बनती। कला तो निरंतर यात्रा है। इसे तो हम कलाकार अपनी साधना से समृद्ध बनाते हैं।
गुरू से क्या सीखना अब तक शेष है?
मधुमीता राउत-गुरू जी के पास बैठती हू। वह समझाते हैं कि अपने भीतर ताकत पैदा करो। वह कहते हैं कि दुनिया के पास क्या है? इसकी फिक्र किए बिना, शांति और सुकून से जिंदगी को जीयो। सकारात्मक सोच वाले लोगों के साथ बातचीत करो और रहो। सकारात्मक सोच वाले मित्र और सहयोगी ही आपको संभलकर जिंदगी जीने में मदद करते हैं।
इस वर्ष 16जुलाई को गुरू जी नब्बे वर्ष के हो जाएंगें। किसी भी कोरियोग्राफी को करने से पहले उनसे सलाह-मशविरा करती हूं। पिछले दिनों महिषासुरमर्दिनी की कोरियोग्राफी की। इसे देखकर, पिताजी ने कहा कि मेरी नृत्य कला को अब तुमने संभाल लिया है। यह मेरे लिए उनका इतना कहना बहुत मायने रखता है।
गुरू जी की विनम्रता, समर्पण और दिव्यता अद्भुत है। वायलिन वादक जोगीराज पात्रा कहते थे कि गुरूजी की सादगी और सरलता निर्मल गंगा के जल की तरह प्यार भरा है। गुरूजी का मानना है कि कोई आपसे प्यार से बोले और छोटी-सी खुशी दे दे। उसे ही बहुमूल्य उपहार मानना चाहिए।

1 comment:

  1. Wonderful interview. Very mature and accomplished person she is. Really happy to have read this

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