कला के विस्तार का एक और आयाम
शशिप्रभा तिवारी
समारोह ‘या देवी
सर्वभूतेषु‘ लोक कला
मंच में आयोजित
था। इस कार्यक्रम
का आयोजन सुरमंदिर
की ओर से
किया गया। इस
समारोह में महिला
कलाकारों शास्त्रीय संगीत और
नृत्य पेश किया।
इसमें शिरकत करने
वाली कलाकारों में
शामिल थीं-डाॅ
अदिति शर्मा, इला
शर्मा, डेल्फिन, सुधा रघुरामन,
अनुप्रिया देवताले व नतालिया
रेमिरेज। इसके अलावा,
वुसत इकबाल और
कथक नृत्यांगना यामिका
महेश व कल्पना
वर्मा ने ‘रूदाद
ए शिरिन‘ प्रस्तुत
किया। इस पेशकश
में दास्तानगोई की
दास्तान को कथक
नृत्य रचना में
पिरोया गया था।
धु्रपद गायिका बहनें डाॅ
अदिति शर्मा और
इला शर्मा ने
राग परज में
रचना ‘कान्ह कुंवर
मुरलीधर‘ और रचना
‘रघुवीर धीर आयोध्या
नगर‘ को पेश
किया। आलापचारी और
बढ़त में राग
का सौंदर्य मोहक
था। उनके साथ
पखावज पर मनमोहन
नायक ने संगत
किया।
नायिका शिरिन की कहानी
के माध्यम से
एक महिला की
दास्तान को एक
ओर वुसत इकबाल
ने सुनाया, वहीं
दूसरी ओर अमीर
खुसरो व अन्य
पारंपरिक बंदिशों को आधार
बनाकर नृत्य पेश
किया गया। बनड़ा
गीत ‘आज नवल
बन्ना‘ से प्रस्तुति
आरंभ हुई। विदाई
गीत ‘काहे को
व्याहे बिदेश‘, ‘मैं जो
गई थी बीच
बजरिया‘, ‘खुसरो रैन सुहाग
की‘ के जरिए
नृत्यांगनाओं ने भावों
को दर्शाया। कथक
नृत्यांगना यामिका महेश ने
‘जो पिया आवन
कह गए‘ पर
नायिका के विरह
भावों को बखूबी
दर्शाया। कथक के
तोड़े, टुकड़े और
तिहाइयों का प्रयोग
भी यामिका ने
सधे अंदाज में
किया। वहीं सूफी
रचना ‘निजाम तोरे
सूरत पे मैं
वारी‘ में नायिका
के समर्पण भावों
को संचारी व
आंगिक अभिनय के
जरिए दर्शाया। इस
पेशकश में कथक
नृत्यांगना कल्पना वर्मा ने
झूला गीत ‘झूला
किने डारो रे‘
पर नायिका के
चपल भावों को
निरूपित किया। उन्होंने झूले,
घंूघट व सादी
गतों का प्रयोग
अपने नृत्य में
किया। उन्होंने एक
अन्य रचना ‘मैं
तो तोरे दामन
लागी‘ के माध्यम
से भी नायिका
शिरिन के भावों
को परिपक्वता से
दर्शाया। इस प्रस्तुति
में नजर व
सादी गत का
प्रयोग मोहक था।
कुल मिलाकर, दिल्ली
घराने के उस्ताद
इकबाल अहमद की
इस परिकल्पना को
उनकी शिष्याओं ने
गायन के माध्यम
से साकार किया।
जबकि, कलाकार वुसत
इकबाल ने अपनी
किस्सागोई अंदाज में संवाद
के जरिए नायिका
की कथा को
बयान किया। कथक
और दास्तानगोई का
यह प्रयोग सराहनीय
है।
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