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Thursday, October 15, 2020

गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना

          गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना


किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता है कि मां-बाप किसी के जन्म के भागी होते हैं। कर्म के भागी तो आपको खुद बनना पड़ता है। कुछ ऐसा ही रहा है-कथक नृत्यांगना पंखुड़ी श्रीवास्तव के जीवन का सफर। पंखुड़ी बिहार की राजधानी शहर पटना में पली-बढ़ीं। वहीं, उन्होंने नृत्य सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे जब समझ बढ़ी तब उन्होंने अपनी कला के कलि का विकसित करने के लिए उन्होंने राजधानी दिल्ली का रूख किया। आईए, उनकी इस यात्रा के बारे में कुछ जाने-सुने-शशिप्रभा तिवारी                                  

आपने नृत्य क्यों और किससे सीखा है?

पंखुड़ी-मैंने नृत्य क्यों सीखा, इसका जवाब मैं नहीं दे सकती। लेकिन, यह सहज ही कह सकती हूं कि मुझे डांस करना अच्छा लगता है। वह मुझे शक्ति देता है। मेरे व्यक्तित्व को और मेरे सोच को विस्तार दिया है। इसलिए मैंने नृत्य सीखा हो। वैसे नृत्य सीखने की शुरूआत छुटपन में ही हो गई थी। तब यह समझ नहीं थी कि क्यों सीख रही हूं।

मेरे पहले गुरू सुदामा गोस्वामी थे। मैंने शिव मिश्रा से भी नृत्य सीखा। पर, पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए, मुझे महसूस हुआ कि मुझे नृत्य और बेहतर स्तर पर सीखना है। सो मैंने निर्णय लिया कि अब दिल्ली के कथक केंद्र में दाखिला लेना है। संयोग से केंद्र में मेरा चुनाव भी हो गया। यहां मैंने गुरू कृष्ण मोहन महाराज के सानिध्य में कथक के संसार को पूणता से जान पाई।


 





आपको किस तरह का संघर्ष करियर बनाते समय करना पड़ा?

पंखुड़ी-मुझे याद आता है कि मेरे लिए कथक को बतौर करियर चुनना आसान नहीं था। मुझे घर और बाहर दोनों मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, मेरे परिवार और रिश्तेदारों को पसंद नहीं था कि मैं इस फिल्ड को अपनाउं। मुझे बहुत तरह की बातें सुननी पड़ीं। लेकिन, मेरी बड़ी बहन मंजरी श्रीवास्तव ने बहुत साथ दिया। सच कहूं तो मैंने खुद को बनाया है। लोगों की बातें सुनने के बजाय अपने समय और उर्जा को काम और नृत्य को समर्पित किया। कोई भी उपलब्धि छोटी या बड़ी नहीं होती। मैं मानती हूं, आपका नाम आपके काम से बनता है। इसके जरिए ही सामाजिक बदलाव संभव है। जो धीरे-धीरे हो रहा है। हम बदलेंगें तो देश बदलेगा ही।

आपने अपने गुरू से क्या सीखा?

पंखुड़ी-दरअसल, कथक नृत्य या यूं कहूं कि कोई भी शास्त्रीय नृत्य अथाह सागर है। इसमें जितने गोते लगाएंगें, उतने ही मोती-सीप-रत्न मिलेंगें। मुझे गुरू जी की लयकारी, तैयारी, पढंत ने बहुत प्रभावित किया। उनके नृत्य में कई अंगों के कथक का समावेश है। उनसे कई बंदिशें सीखीं, जिसे उन्होंने अलग-अलग अंदाज में सिखाया।

मुझे लगता है कि किसी भी कलाकार को सीखने के साथ-साथ उन चीजों को खुद के अंदाज में ढालना भी जरूरी है। यह सच है कि हमने जो सीखा है, उसे सुरक्षित रखना शिष्य-शिष्या की जिम्मेदारी है। पर साथ ही, यह भी जरूरी है कि आपको नए चिंतन के साथ, अपने व्यक्तित्व के अनुरूप नृत्य करना चाहिए। मैं सोचती हूं कि एक कम्पलीट परफाॅर्मेंस में चक्कर, फुटवर्क, परण और बाकी सभी चीजों का समावेश होना चाहिए। सिर्फ, चक्कर या सिर्फ अभिनय से बात नहीं बनती।

आपकी यादगार परफाॅर्मेंस कौन-सी है?

पंखुड़ी-मैं हर क्षण गुरूजी की सरलता और सहजता को याद रखती हूं। ये चीजें उन्हें औरों से अलग करती हैं। मुझे याद आता है कि गयाना में मेरा परफाॅर्मेंस था। मैं एक कार्यक्रम के सिलसिले में वहां गई थी। अचानक, वहां पर मुझे आग्रह किया गया कि आप स्टेडियम में आयोजित समारोह में कुछ नृत्य पेश कर दीजिए। यह क्षण बहुत चुनौतीपूर्ण था। मैंने तुरंत अपने पैर में घुंघरू बांधा और साथी कलाकारों के साथ मंच पर नृत्य पेश करना शुरू किया। मेरे नृत्य को देखकर, दर्शक और आयोजक दोनों बहुत खुश हु

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