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Friday, November 29, 2013

 तुम उस जगह पर बैठे
अहसासों के
 बुलबुलों को महसूस कर लेते
जहाँ कभी
 हम साथ बैठ
कभी चहलकदमी करते हुए
 न जाने!
 कितने बार
एक-दूसरे के करीब आये थे
तुमने जब पहली बार
मेरी हथेलियों को चूमा था
 या कि मेरी आँखों के
 गहरे झील में
तुम यूँ ही समां गए थे
या मेरे चेहरे पर
पानी की कुछ बूंद रुक गए थे
 तुम्हारी नज़रों की तरह
बहुत कुछ रुक जाता है
 वहाँ जहाँ तुम होते हो
 तुम्हारी बातें होती हैं .....

Friday, November 22, 2013

ek main


एक मैं




एक हरे पेड़
बहती नदी
थिर झील
उमड़ते समंदर
इनकी विराटता
प्रवाह
धैर्य
असीमता
मन महसूस कर
सोचता है
हम क्यों नहीं जीते
दूसरों के  लिए
दूसरों को अर्पित हो
जीवन का आनंद
प्रतिपल
बहते
रुकते
सम्भलते
तुम भी
इस पल में
अपनी नरम हथेली में
मेरे अँगुलियों को
अपने होने का
अहसास दे जाओ
ताकि अब
फर्क न रह जाए
अपने
और गैर में



Thursday, November 21, 2013

सूने मन के कोने में
 चारों तरफ सन्नाटे की
फैली है चादर
मैं निशब्द
तुम्हारे आलिंगन में
जीवन के अर्थ तलाशती हूँ


तुम्हारे मन के द्वार से
तुम्हारे भीतर झांकती हूँ
उभरती है छवि
मैं निराकार
तुम्हारे हाथों में
अपना हाथ थामे साँसें गिनती हूँ


तेजस मन के चौखट पर
मैं तुम्हें जगाती हूँ कि
गूंजती है सरगम
तुम्हारे आँखों में
अपने गाए गीत के गूंज सुनती हूँ