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Thursday, January 23, 2014

उसी पनघट पर
गागर ले कर
खड़ी हूँ, कान्हा!
एक बार आओ ना!

कांकरिया मार
गागर को तोड़ो,
भीगती हूँ, कान्हा!
एक बार भिगो जाओ ना!

राधा कुंड से
कृष्णा कुंड तक
बहलती हूँ, कान्हा!
एक बार बहला जाओ ना!

उध्दवजी को ना भेजो
इस बार नैना
तरसते हैं, कान्हा!
एक बार दरस दे जाओ ना!

मैं अकेली
राह में बैठी
बाट निहारती हूँ, कान्हा!
एक बार मिल जाओ ना!
 

Thursday, January 2, 2014

चला जाता है
मन उड़ता हुआ
बार-बार तुम्हारे पास
कुछ नहीं चाहता
तुम्हें मुस्कुराता देख
लौट आता है
अपने डेरे में
तुम्हारे फेरों से
महसूस होता है
कितना बहाव है
जीवन में
बरस-बरस बीत जाते हैं
हम गेहूं, सरसों, पलास को
झूमते देख
मन के शिवालय में
गंगा जल से
अभिषिक्त करतें
उन पलों को
जब तुम्हारे सहारे
हम हुए थे ....

Wednesday, January 1, 2014

आओ एक
मिलन का दीप जलाएं
हम-तुम दोनों
मिल कर एक सपना देखें
नहीं!
स्वप्न में जीना
कितना सम्मोहन देता है
तुम्हारे कंधे पर
लहराते मेरे केश
क्या!
तुम्हारी भी
यथार्थ में
ऐसी ख्वाहिश होती है
सीने पर हाथ रख
सच बोलना!
मेरी तमन्ना की नदी
हर बार
तुम्हारे मन के
सागर में मिल जाती है
तब, सपने-सच कहाँ!
उन पलों में
सिर्फ,हम और तुम होते हैं
चांदनी रात और चाँद की तरह