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Thursday, June 25, 2020

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shashiprabha: कलाकारों को नई राहें तलाशनी होगी -अदिति मंगलदास, क...:                                कलाकारों को नई राहें तलाशनी होगी                                                  अदिति मंगलदास, कथक नृत्यांग...

कलाकारों को नई राहें तलाशनी होगी -अदिति मंगलदास, कथक नृत्यांगना



                              कलाकारों को नई राहें तलाशनी होगी
                                                 अदिति मंगलदास, कथक नृत्यांगना

कथक नृत्यांगना अदिति मंगलदास देश की जानीमानी कलाकार हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया है। उन्होंने पंडित बिरजू महाराज जी और विदुषी कुमुदिनी लाखिया जी के सानिध्य में नृत्य सीखा। उन्होंने अलग-अलग विषयों पर नृत्य रचनाएं की हैं, जैसे-शून्य या वाॅटर। इनदिनों लाॅकडाउन में भी उन्होंने अपनी सृजनशीलता को नया आयाम देने की कोशिश में जुटी हुई हैं। उन्होंने कोरियोग्राफी ‘विदिन-फ्राम-विदिन‘ को आकार दिया। इसे उन्होंने यूट्यूब पर लान्च किया। इसमें दृष्टिकोण फाउंडेशन के कलाकारों के साथ नृत्य किया। इस प्रयास में राॅ मैंगो और आर्ट मैटर्स ने सहयोग किया। इस प्रस्तुति के जरिए वह कलाकारों को आर्थिक सहयोग देना चाहती हैं। इस बार रूबरू में उन्हीं से बातचीत के अंश पेश हैं-शशिप्रभा तिवारी 

आप लाॅकडाउन के दौरान समय कैसे व्यतीत कर रही हैं?
अदिति मंगलदास-पिछले चार महीने से मैं मुम्बई में अपने घर में हूं। मैंने पहले खुद को संभालने का प्रयास किया। इस क्रम मंे सुबह उठना और अपनी नियमित दिनचर्या का पालन करना। आॅफिस का काम करना और साथ में नृत्य का रियाज करना जारी रखा। मैंने जीवन के इस यथार्थ को स्वीकार किया कि यह एक कठिन समय है और खुद को इस बदलाव को सहने के लायक बनाया। इस लाॅकडाउन के दौरान मैंने अपने डंास की छोटी-छोटी रिकार्डिंग करनी शुरू कर दी थी। फिर, इसे देश-विदेश के अपने मित्रों के साथ वाट्स-अप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भेजना शुरू किया। मेरे इस प्रयास का सभी मित्रांे ने सराहना की, खासतौर पर जर्मनी, पेरू, इटली, फ्रांस, कनाडा, आस्टेªलिया के मित्रों ने। क्योंकि, उनदिनों ये देश काफी दर्द से गुजर रहे थे। इसी के मद्देनजर मैंने अपने दृष्टिकोण फाउंडेशन के कलाकारों के साथ मिलकर कोरियोग्राफी ‘विदिन फ्राम विदिन‘ की है। यह शाॅर्ट डांस फिल्म है। इसमें लाॅकडाउन और कलाकारों के दुखद स्थिति को बयान किया गया है। इसे मैंने राॅ मैंगो और आर्ट मैटर के सहयोग से बनाया। इसे आॅन-लाइन लांच किया जाएगा। इससे जो पैसे हमारे पास सहयोग राशि के तौर पर आएंगें। उसे कलाकारों की सहायता पर खर्च किया जाएगा। 

यह दौर कलाकारों के लिए कठिन समय है?
अदिति मंगलदास-सच, भारतीय कलाएं और कलाकार लंबे संघर्ष में जूझते रहे हैं। भारतीय शास्त्रीय कलाएं इस कठिन दौर से जरूर उबर जाएंगी। लंबे समय तक कला रसिक और कलाकार एकत्रित नहीं हो पाएंगें। यह जीवन का अनुभव है। हमारा कथक नृत्य मंदिरों, दरबार, कोठे और आधुनिक मंच से गुजरता हुआ, आज ड्राइंग रूम और इंटरनेट तक पहुंच गया है। हम कलाकारों को बीस साल पहले या छह महीने पहले की परिस्थिति के बारे में सोचने के बजाय, आज के सच को स्वीकार करना होगा। मैंने इसके अनुसार खुद को ढालना शुरू किया। मैंने आॅन लाइन क्लास के साथ-साथ अपने ग्रुप के साथ प्रैक्टिस भी शुरू कर दिया। मैं और मेरे साथ काम करने वाले साथी कलाकार नियमित एक-दूसरे से बात करते हैं। ताकि हम अकेलापन महसूस न करें और खुद को कमजोर न माने। इससे हमें आगे सोचने और बढ़ने का हौसला मिला है। 

कलाकार देश-विदेश का भ्रमण करते हैं, अपने कला के जरिए। ऐसे में आपकी कोई यादगार यात्रा?
अदिति मंगलदास,कुछ सालों पहले मैं महाराष्ट्र में परफाॅर्म करने गई थी। उस समय अजंता-एलोरा की गुफाओं को देखने गई थी। गुफा के अंत में बुद्ध की मूर्ति थी। वहां एक एंगल से सूर्य की रोशनी बुद्ध के चेहरे पर पड़ रही थी। बुद्ध का वह आभाषित रूप देखकर मैं अद्भुत शांति महसूस कर रही थी। हमारे साथ में गायक समी उल्लाह थे। मैंने कहा समी कुछ गाओ। समी ने कुछ श्लोक गाए। हजारों साल पहले बने इस भिŸाी चित्र में बौद्ध धर्म, गायक मुस्लिम, श्लोक ंिहंदु! वह अंतरमन की यात्रा और हजारों साल के धार्मिक शांति पूर्ण अहसासों से मन भर गया था। वह अनुभूति अनुपम थी। उसे शब्दों में बता पाना बहुत मुश्किल-सा प्रतीत हो रहा है। 








आपकी स्मृतियों में गुरूओं को आप कैसे स्मरण करती हैं?
अदिति मंगलदास-मुझे गुरूओं का सानिध्य मिला। युवावस्था में उतनी समझ तो नहीं थी, पर अब महसूस होता है कि उनके प्रकाश में ही मेर व्यक्तित्व को निखरने, संवरने और प्रकाशित होने का अवसर मिला। उन्होंने अपनी दृष्टि से मेरे अंदर के गुणों को प्रज्वलित किया तभी मैं अपने आपको, अपने गुणों को, अपने भावों, अपने डांस को समझ पाई। उन्होंने मुझे अपने विचारों के आलोक में सोचने और उस सोच को विस्तार देने के लिए खुला आसमान दिया। महाराज जी को मैंने देखा कि वह एक ताल के एक ही बोल को बहुत तरीके सो बोलते हैं, नाचते हैं और उसकी व्याख्या करते हैं। वह एक ही बात को बहुत से उदाहरण देकर समझाते हैं। अगर, आपकी मानसिक परिपक्वता उस स्तर की नहीं होगी, तब कई बार आप उनकी बातों को समझ भी नहीं पाएं। वह हमेशा एक तलाश और एक खोज में डूबे रहते हैं। मुझे कथक केंद्र के वह दिन याद आते हैं, जब वह एक आमद के अंगों के बारे में पंद्रह दिनों तक चर्चा करते थे और उसका विश्लेषण करते थे। उनको देखकर एक संतुष्टि प्रतीत होती थी। मेरे विचार में उस संतुष्टि को कम्प्लेसेंट कहेंगें न कि सैटिस्फैक्शन। अक्सर मैं उनकी बातों को सुनने के लिए और उनकी मुद्राओं और अंगों की बारीकियों को देखने के लिए क्लास में पीछे बैठकर देखती थी। मैं उनको अवलोकित करके ज्यादा सीखा है। 
आप अपनी शिष्य-शिष्याओं से क्या उम्मीद रखती हैं?
अदिति मंगलदास-एक शिष्य में समर्पण, विनम्रता, लगन, जीवन को अद्भुत रस से लबरेज देखने की इच्छा होनी चाहिए। जीवन में हर कोई परेशान है, लेकिन मन में ईष्र्या, द्वेष और कटुता नहीं होनी चाहिए। मैंने बहुत शिष्य तो नहीं बनाए। पर मेरे चार प्रमुख शिष्याएं-गौरी दिवाकर, रचना यादव, रश्मि उप्पल और आनंदिता आचार्जी हैं। इन लोगों ने कई साल तके वरिष्ठ गुरूओं के पास सीखा। उसके बाद मेरे पास आईं। फिर, दस-पंद्रह साल तक सीखने के साथ-साथ परफाॅर्म किया। अब ये सभी स्वतंत्र रूप से काम कर रहीं हैं। इनको आगे बढ़ते देख मुझे खुशी हाती है। वो सभी परफाॅर्म करने के साथ, कथक नृत्य सीखाती हैं। और गुरू-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। यह गर्व की बात है।

                   

Wednesday, June 24, 2020

shashiprabha:                                                 ...

shashiprabha:

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:                                                   कलाकारों को नई राहें तलाशनी होगी                                                  अदिति मं...

Friday, June 19, 2020

shashiprabha: मेरा संगीत पिता का आशीर्वाद है- डाॅ संगीता गोसांई

shashiprabha: मेरा संगीत पिता का आशीर्वाद है- डाॅ संगीता गोसांई: मेरा संगीत पिता का आशीर्वाद है- डाॅ संगीता गोसांई ओडिशा में आयोजित होने वाले-कोणार्क नृत्य समारोह, र...

Thursday, June 4, 2020




कला ने जीवन दिया-शरण्या चंद्रन

वरिष्ठ भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रना वर्षों से राजधानी दिल्ली में नृत्य सिखा रही हैं। उन्होंने नाट्य वृ़क्ष के बैनर तले शिष्याओं को मंच भी प्रदान किया है। उनकी पुत्री व शिष्या शरण्या चंद्रन उनसे नृत्य सीख भी रही हैं और अपनी गुरू के साथ नृत्य भी प्रस्तुत करती हैं। भरतनाट्यम शरण्या चंद्रन बचपन से ही कला के माहौल में पली-बढ़ी हैं। उन्हें गुरू को तलाशना नहीं पड़ा। उन्हें यह सुयोग मिला। आज के रूबरू में शरण्या चंद्रन से बातचीत के अंश पेश हैं-शशिप्रभा तिवारी
आपका जन्म एक नृत्यांगना के घर में हुआ। ऐसे में आपको घर का माहौल कैसा मिला?
शरण्या चंद्रन-मैं जब चार साल की थी। मम्मी घर पर ही नाटय वृक्ष की क्लास लेती थीं। मैं भी उनके साथ क्लास में पूरे समय रहती। जब वह लड़कियों को सिखाती, तब मैं भी उनको देखकर, उनकी काॅपी करती। धीरे-धीरे कुछ-कुछ समझ आने लगा। मैं क्लास से पहले घंुघरू बंाधकर, तैयार रहने लगी। मुझे लगता है कि मेरे लिए मम्मी ने कभी अलग से क्लास रखी हो, ऐसा नहीं लगता। सभी स्टूडेंट्स के साथ ही उन्होंने मुझे डांस सिखाया। अब तो लगता है कि नृत्य तो जीवन का हिस्सा बन चुका है।
गुरू का सहयोग कैसे मिलता है?
शरण्या चंद्रन-मुझे अपने गुरू का सहयोग हमेशा मिला। उनका डांस सिखाने का अंदाज अनूठा है। वह यह नहीं चाहतीं कि उन्होंने जो सिखाया, उसकी हम सिर्फ काॅपी करें। बल्कि, उनका मानना है कि हम उनकी सिखाए सबक को अलग-अलग तरीके से सोचें और विचारे। फिर, अपने व्यक्तित्व के अनुरूप अपने नृत्य में ढालें। मैं थोड़ी लंबी हूं। इसलिए, जब अभिनय के बारे में चर्चा होती है, तब मुझे अपने बाॅडी स्ट्रक्चर के अनुरूप थोड़ा अलग से सोचना पड़ता है। यह सोच गुरूजी ने मेरे भीतर डाली है। क्योंकि वह मानती हैं कि एक विषय को सभी शिष्याएं एक जैसा नृत्य में नहीं करें। उनकी छाप तो हर शिष्या में दिखे, पर वह उनकी काॅपी न लगें। मैं उनके इस विचार से सहमत हूं। अतः मेरी कोशिश है कि मैं नृत्य के प्रसंगों को अपने नजरिए से भी सोचूं।



अपनी यादगार परफाॅर्मेंस के बारे में थोड़ा बताईए
शरण्या चंद्रन-कुछ साल पहले हमने संकट मोचन संगीत समारोह में मम्मी के साथ युगल नृत्य किया था। मंदिर प्रांगण में स्थित मंच बहुत छोटा है। जब नृत्य के लिए मंच पर पहुंची, तब मन में ख्याल था कि आज मैं यहां डांस किसके लिए कर रही हूं। खुद के लिए या गुरू के लिए या दर्शकों के लिए। फिर, पता नहीं देवी स्तुति ‘ए गिरि नंदिनी‘ करते हुए, महसूस किया कि यह नृत्य मैं केवल और केवल मंदिर में विराजित संकट मोचन हनुमान जी की सेवा में एक अंजलि भर दे रही हूं। ऐसे ही मथुरा के राधा रमण मंदिर में हम अपनी नृत्य सेवा देने हर साल जाते हैं। मैं वहां मीरा बाई के पद ‘बसो मेरे नैनन में नंदलाल‘ कर रही थी। उसी समय भगवान के पट खुल रहे थे। उस समय अंग-प्रत्यंग में गजब की अनुभूति हुई। दरअसल, मंदिरों से जन्मी इस नृत्य शैली को देवताओं के समक्ष पेश करना, वाकई अद्भुत अनुभूतियों से भर देता है।
आपकी दिनचर्या क्या होती है?
शरण्या चंद्रन-सच कहूं तो मेरी सोशल लाइफ जीरो है। मेरी जिंदगी नौकरी, परिवार और नृत्य इन तीनों के इर्द-गिर्द घूमती है। दक्षिण एशिया में विकास और गरीबी निवारण नीतियों पर बतौर शोधकर्ता मैं काम करती हूं। गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समस्या, टीम वर्क, संवेदनशीलता और एक समग्र सोच के साथ काम करना। इन सबके लिए अनुशासन में होना जरूरी है। नृत्य में भी संवेदनशीलता और अनुशासन जरूरी है। अपनी शोध विषय, आर्थिक विकास और नृत्य को समग्रता में देखना और उस पर काम करना मेरा लक्ष्य है। इनदिनों अपने को और समृद्ध करने के लिए संगीत भी सीख रही हूं। ताकि, अपनी गुरू की अपेक्षाओं को पूरी कर सकूं। जिससे मुझे संतोष मिले।