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Friday, August 28, 2020

shashiprabha: पंडित जसराज को कलारंग का नमन

shashiprabha: पंडित जसराज को कलारंग का नमन:                                                           पंडित जसराज को कलारंग का नमन ...

shashiprabha: shashiprabha: संकल्प की नई संकल्पना

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पंडित जसराज को कलारंग का नमन

                                                        पंडित जसराज को कलारंग का नमन

शशिप्रभा तिवारी

पंडित जसराज को पदृमविभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री, संगीत कला रत्न, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड, महाराष्ट्र गौरव, मारवाड़ संगीत रत्न अवार्ड से नवाजा जा चुका है। उन्हें संगीत नाटक अकादमी की ओर से अकादमी रत्न सम्मान प्रदान किया गया। इसके अलावा, उड़ीसा में भरतमुनि सम्मान से वहां के राज्यपाल मुरलीधरन चंद्रकांत भंडारे ने उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर जब उनसे पूछा गया कि इस छोटे से सम्मान को पाकर वह कैसा महसूस कर रहे हैं, तब वह बड़ी विनम्रता से कहते हैं कि हर सम्मान अपने-आप में बड़ा होता है। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं। सम्मान पाकर कलाकार के मन में उत्साह पैदा होता है। सम्मान पाकर कलाकार के मन में गर्व की भावना नहीं आनी चाहिए। कोई भी सम्मान व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होता, बल्कि वह उसके कार्यों का सम्मान होता है। यह मेरा नहीं मेरे ईश्वर का सम्मान है।

पिछले दिनों न्यूजर्सी में पंडित जसराज ने अंतिम सांसें लीं। उनसे जुड़ी यादों को उनके कुछ शिष्यों ने मुझसे साझा किया। उनके कुछ अंश प्रस्तुत हैं-शशिप्रभा तिवारी



गुरू जी का ऐसा बड़ा दिल था-संजीव अभ्यंकर, शास्त्रीय गायक
मैं करीब दस साल उनके सानिध्य में रहा। करीब तेरह साल का था, जब मैं उनके पास गया था। और 25 की उम्र तक उनके छत्रछाया में रहते हुए, संस्कार ग्रहण किया। घर में संगीत का माहौल शुरू से था। लेकिन, गुरू जी कहते कि देखो, जिसको भगवान की देन होती है, कम रियाज करते देखे जाते हैं। मैं रियाम में कम नहीं पड़ता था। यह तय था कि मुझे नियमित षड़ज साधना करना ही है।
मुझे याद आता है कि अस्सी के दशक में एक समारोह में गुरूजी के साथ गया था। उनदिनों गुरूजी प्लेन से जाते थे। हमलोग ट्रेन से जाते थे। गुरूजी ने राग कलावती गाया था। मैंने वोकल सपोर्ट दिया। आयोजक मेरे गायन से बहुत खुश हुए। उन्होंने गुरूजी से कहा कि हम संजीव को कुछ उपहार दे सकते हैं? इस पर गुरू जी ने तुरंत कहा कि इसे भी मेरे साथ प्लेन में भेज दो। गुरू जी का ऐसा बड़ा दिल था।



अरे, क्लासिकल गाना है-पंडित रत्न मोहन शर्मा, शास्त्रीय गायक
मैं हर बार मामाजी के साथ अमेरिका यात्रा पर जाता था। इस बार मुझे उनके बाद दस-पंद्रह दिनों मैं जाने वाला था। लेकिन, लाॅकडाउन की वजह से नहीं जा पाया। उन्होंने भी कहा कि अभी मत आओ। कभी-कभी सोचता हूं तो लगता है कि मुकंुद लाठ जी का जाना उनको बहुत अखर रहा था। मुकंुद जी को वह बहुत प्यार करते थे। उनको मित्र, शिष्य, छोटा भाई सब कुछ मानते थे। वह अक्सर कहते थे-तोहे मोहे नाते अनेक, मानिए जो भावे। मात-तात, गुरू-सखा, आप जो मानना मानिए मुकंुद। उनके साथ में बैठकर, संगीत चर्चा करना, रियाज करना, बंदिशें बनाना, यात्रा करना। दोनों की एक-दूसरे के प्रति समझदारी गजब की थी।
मेरा सौभाग्य है कि मेरे बेटे स्वर को भी मामा जी पांच साल से संगीत शिक्षा दे रहे थे। एक दौर था, मेरा गला साथ नहीं दे रहा था। मैं निराश था। एक दिन ऊपर कमरे में जोर-जोर से आवाज निकालने की कोशिश कर रहा था। अचानक वह कमरे में आकर, बोलते हैं-यह क्या कर रहे हो। अरे, क्लासिकल गाना है तो आवाज को मधुर बनाए रखो। ‘सा‘ तक स्वर जा रहा है, तो वहीं तक रखो। धीरे-धीरे गला अपने आप खुल जाएगा। उनका यह कहना ही मुझे हिम्मत दे दिया। और मैं धैर्य पूर्वक उस स्थिति से बाहर आ गया।


वह अंतरयामी थे - लोकेश आनंद, शहनाई वादक
पिछले साल शंकरलाल संगीत समारोह के समय गुरूजी से मुलाकात हुई थी। संयोग से उस समय उनके साथ गुरू मां भी थीं। गुरू मां हम सभी शिष्यों का बहुत ख्याल रखती हैं। हर किसी के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक के बारे में पूछती रहती थीं। इस बार गुरू पूर्णिमा के समय के दौरान गुरू जी का दर्शन हुआ। फेसबुक के जरिए यह संभव हो पाया। इस दौरान दुर्गा जी के पेज पर लाइव प्रोग्राम में भी बजाया। उस रोज उन्होंने मेरी शहनाई सुनकर कहा कि आज के जमाने का सबसे अच्छा शहनाई बजाने वाला है। अच्छा समझकर बजाता है। इससे बड़ा आशीर्वाद मेरे लिए और क्या होगा?
जब भी दिल्ली में गुरूजी का प्रोग्राम होता था, मैं जरूर जाता था। मैं हाॅल में पीछे की सीट पर बैठकर, सुनता। जब भी गुरूजी मंच पर आते ‘जय हो‘ बोलते तो मंच प्रकाशित हो उठता था। आंख बंदकर, उनका गायन सुनते हुए, अपने चारों तरफ प्रकाश का अनुभव करता था। वह अंतरयामी थे, सबको अपने सकारात्मक प्रकाश से प्रकाशित कर देते थे।

Monday, August 24, 2020

shashiprabha: संकल्प की नई संकल्पना

shashiprabha: संकल्प की नई संकल्पना:                                                                                                                 संकल्प की नई संकल्पना       ...

संकल्प की नई संकल्पना

                                                         

                                                      संकल्प की नई संकल्पना

                                                      शशिप्रभा तिवारी


बीते शाम तेईस अगस्त 2020 को संकल्प में कथक नृत्यांगना करिश्मा देसाई ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। 

                                                         


नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। कथक नृत्यांगना करिश्मा देसाई की गुरू प्राची दीक्षित हैं। प्राची दीक्षित लाॅसएंजिल्स में कथक नृत्य सिखाती हैं। वह मानती हैं कि गुरू हमारे मार्ग दर्शक होते हैं। हमारे कर्मों से हमारी किस्मत बनती है। मेरे पास करिश्मा तबला सीखने आईं। छह वर्ष की उम्र से वह सीख रही हैं। करिश्मा को कथक नृत्य अच्छा लगा और वह उससे जुड़ते चली गईं। लगभग बारह वर्ष से वह कथक नृत्य की साधना कर रही हैं।

गौरतलब है कि करिश्मा ने पिछले वर्ष यानि 2019 में मंच प्र्रवेश किया है। वह जीव विज्ञान की छात्रा हैं। अमेरिका में पली-बढ़ी करिश्मा देसाई भारतीय संस्कृति से बखूबी परिचित हैं। संकल्प के इस आयोजन में करिश्मा ने गुरू वंदना से आरंभ किया। यह पंडित बिरजू महाराज की रचना थी। श्लोक-‘गुरू ब्रम्हा गुरू विष्णु‘ पर आधारित इस वंदना में उन्होंने गुरू के विभिन्न रूपों को दर्शाया। इसमें गुरू के निराकार, निरंजन, चिदानंद रूपों का विवेचन था। करिश्मा के नृत्य में हस्तकों और मुद्राओं में अच्छा ठहराव दिखा।

उन्होंने नृत्य का समापन भाव पक्ष की प्रस्तुति से किया। रचना ‘काहे न आयो मोरे श्याम‘ पर नृत्य अभिनय पेश किया। कवित्त ‘नवसत साज श्रृंगार ठाढ़ी बाट निहारूं‘ में एक पूर्व रंग में नृत्यांगना करिश्मा ने प्रसंग की पृष्ठभूमि बनाई। इसके अगले अंश में राधा और कृष्ण के भावों को निरूपित किया। उन्होंने मयूर, बांसुरी, मटकी, बिजली की चमक की गतों को संक्षिप्त रूप में नृत्य में प्रयोग किया। उन्होंने परंपरागत अंदाज में पनहारिन, नायिका के श्रृंगार और होली खेलने के अंदाज को बखूबी पेश किया। उनके नृत्य को प्रवाहमान बनाने में गायक ने भी अच्छा योगदान किया। उम्र के अनुरूप करिश्मा का अभिनय सहज था।

उन्होंने लखनऊ घराने की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नृत्यांगना करिश्मा ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘ता-ता-ता-धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा थी। वहीं ‘ता-थेई-आ-तत्-थेई‘ के बोल को बड़ी सफाई के साथ पेश किया। उन्होंने गिनती की तिहाइयों एक से पांच और एक से नौ अंकों की तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। आरोह और अवरोह का यह अंदाज दुरूस्त था। एक अन्य रचना में ‘ना-ना-ना-थिर-किट‘ का अंदाज मोहक था। उन्होंने लयकारी का सुंदर समायोजन ‘ना-धिंन्ना‘ के बोलों पर किया। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। करिश्मा के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है। वह भारतीय संस्कृति की सांस्कृतिक दूत हैं। 



Sunday, August 16, 2020

shashiprabha: कथक की धमार ताल

shashiprabha: कथक की धमार ताल:                                                             कथक की धमार ताल शशिप्...

कथक की धमार ताल

                                                           कथक की धमार ताल

शशिप्रभा तिवारी

वरिष्ठ गुरू और कथक नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया का नृत्य तीनों घराने-लखनऊ, बनारस और जयपुर का संगम रहा है। उन्होंने बड़े मन से अपनी शिष्याओं को तालीम दी। उन्हीं में से एक नृत्यांगना और गुरू संजुक्ता सिन्हा हैं। उन्होंने अपनी गुरू के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए, नृत्य सीखा रही हैं। दरअसल, गुरू को प्रकाश बनकर, अपने शिष्य-शिष्या को मार्ग दिखाना पड़ता है। इसे संजुक्ता सिन्हा बखूबी समझती हैं। इसलिए, उन्होंने नृत्य से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्ति पाने का प्रयास किया है। और, नृत्य से आनंद की चाह को पाया है और उसे विस्तारित किया है। इसकी झलक उनकी नृत्य रचनाओं में दिखी, जिसे उनकी शिष्याएं-कृतिका घानेकर और मीहिका मुखर्जी ने पेश किया।
कृतिका और मीहिका ने युगल कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने चैदह मात्रा की धमार ताल को नृत्य में पिरोया। शुद्ध नृत्त की यह प्रस्तुति अच्छी थी। दोनों शिष्याओं की तैयारी और मेहनत नृत्य में दिखाई दे रही थी। वास्तव में, लाॅक डाउन में अपने समय और ऊर्जा का सही उपयोग उन्होंने किया। यह उनके नृत्य से दिख रहा था। उनके नृत्य में सिर्फ उनके नृत्य की चमक भर नहीं थी, बल्कि उनके गुरू की सोच झलक रही थी। उनका नृत्य सहज, स्वाभाविक और संतुलित था, जो नियमित रियाज से ही संभव है। इसके लिए गुरू के साथ शिष्याओं की भी सराहना की जानी चाहिए।

बहरहाल, शिष्याएं कृतिका और मीहिका ने धमार ताल में उपज में पैर का दमदार काम पेश किया। नृत्य रचना में पिरोई थाट में उन्होंने नायिका के खड़े होने की कई अंदाज को दिखाया। वहीं, उठान में पैर के काम के साथ उत्प्लावन का प्रयोग आकर्षक था। उन्होंने तोड़े, टुकड़े और तिहाई का प्रयोग भी सुघड़ता से किया। पैर का काम, अंगों और हस्तकों को बखूबी बरता। चक्रदार तिहाई और अन्य रचनाओं में ग्यारह और सोलह चक्करों का प्रयाग सधा हुआ था। उनकी उम्र के हिसाब से अच्छी तैयारी का प्रदर्शन दोनों शिष्याओं ने किया।

अगली पेशकश तराना थी। राग मल्हार पर आधारित बंदिश-‘पिया बिन-त दिम‘ को नृत्य में पिरोया गया। कृतिका और मीहिका ने कथक के तकनीकी पक्ष को भी इसमें खूबसूरत अंदाज में उजागर किया। जहां गायक समीउल्लाह खां की मधुर गायकी ने समां बांधा, वहीं संजुक्ता सिन्हा की कोरियोग्राफी भी उत्तम थी। दोनों ही शिष्याएं अपने गुरू के नृत्य में विश्वास, अपने आप में विश्वास और विश्व में विश्वास को बखूबी निभाया। इन युवाओं की असीम ऊर्जा में असीम संभावनाएं हैं।




बीते शाम 16 अगस्त 2020 को संकल्प में शिष्याएं कृतिका और मीहिका ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है।

Monday, August 10, 2020

चलो मन वृंदावन की ओर

                                     

                                                चलो मन वृंदावन की ओर

- #शशिप्रभा तिवारी बनारस घराने के विभूति पंडित राजन मिश्र और पंडित साजन मिश्र हैं। उन्होंने भजन ‘चलो मन वंृदावन की ओर‘ को बहुत ही सुरीले अंदाज में गाया है। वैसे तो इसे कई कलाकारों ने गाया है। लेकिन, मिश्र बंधुओं ने जिस तन्मयता से गाया है, वह बरबस ही सुनने वाले को अपने सुरों में सराबोर कर देता है। वैसे संगीत और नृत्य एक दूसरे के सहचर हैं। उस शाम युवा कथक नर्तक रूद्र शंकर मिश्र ने इस भजन पर भाव पेश किया। नृत्य की यह समाप्ति भावभींनी थी।

भक्ति रस से ओत-प्रोत भजन ‘चलो मन वृंदावन की ओर है। इसे नृत्य में पिरोते हुए, नर्तक रूद्र शंकर ने चक्कर के साथ आरंभ किया। उन्होंने श्रीराम और कृष्ण के रूपों का निरूपण किया। उन्होंने भक्त के समर्पित भाव का चित्रण किया। नृत्य में सधे चक्करों का प्रयोग मनोरम था। दरअसल, किसी वरिष्ठ कलाकार के गाए बंदिश या रचना को नृत्य में पिरोने का चलन हमेशा से रहा है। पर, बनारस घराने के कलाकार का यह पहल सराहनीय है। क्योंकि, कथक नृत्य के क्षेत्र में बनारस घराना आज हाशिये पर है। पर रूद्र शंकर और इनके हमउम्र अन्य युवा कलाकारों की धमक से एक नई उम्मीद जगी है। खासतौर पर कला रसिकों के बीच। बनारस घराने के कथक नर्तक बंधु पंडित माता प्रसाद मिश्र और पंडित रविशंकर मिश्र के शिष्य हैं-कथक नर्तक रूद्र शंकर मिश्र। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव कवित्त से किया। कवित्त-‘जय महेश्वर जय शिव शंकर‘ में रूद्र ने शिव के बारह रूपों को दर्शाया। शुरू में तबले वादन के उठान के अंदाज में उन्होंने मंच प्रवेश किया। शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों-विश्वनाथ, नागेश्वर, विश्वेश्वर, सोमनाथ, ओंकारेश्वर, महेश्वर, रामेश्वरम के नाम पर आधारित उन रूपों को भंगिमाओं और हस्तकों से निरूपित किया। अगले अंश में, उन्होंने शिव वंदना ‘डमरू बाजै घंुघरू बाजै‘ पर शिव के रूप को प्रदर्शित किया। उपज में पैर का काम पेश किया। उनका बैठकर सम लेने का अंदाज मोहक था। यह बनारस घराने की खासियत है, जिस रूद्र ने बखूबी अपनाया है। विलंबित तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृत्त पेश किया। रचना ‘ता-किट-ता-धा‘ के बोल पर चक्कर के साथ खड़े पैर का काम रूद्र शंकर ने पेश किया। एक अन्य रचना में ‘गिन-गिन-धा‘ के साथ ‘धा-धिंन्ना‘ का काम नृत्य में प्रस्तुत किया। इसमें रूद्र ने पैर के चलन का अनूठा अंदाज पेश किया। नृत्य में एक पैर के चक्कर का प्रयोग सराहनीय था। उन्होंने अश्व की गत को पैर के काम में बखूबी दर्शाया। लड़ी में लय के दर्जे को पंजे और एड़ी के काम के जरिए बहुत महीन अंदाज में पेश किया। वहीं द्रुत लय में परण पेश किया। इसमें पलटे, उत्प्लावन, चक्कर का प्रयोग सधे तरीके से किया। कथक नर्तक रूद्र शंकर मिश्र प्रतिभावान नर्तक हैं। वह मेहनती और लगनशील हैं। वह आत्मविश्वास और उत्साह से भरे हुए हैं। उनके नृत्य में चमक, दम, स्फूर्ति है। समय के साथ-साथ उन्हें अच्छे मंचों पर प्रस्तुति के अवसर मिलेंगें तो वह बहुत आगे जाएंगें। ऐसी उम्मीद की जा सकती है। बीते शाम नौ अगस्त 2020 को संकल्प में कथक नर्तक रूद्र शंकर मिश्र ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है।

Tuesday, August 4, 2020

shashiprabha: भारतीय शास्त्रीय संगीत शाश्वत है-नीलाद्री कुमार, स...

shashiprabha: भारतीय शास्त्रीय संगीत शाश्वत है-नीलाद्री कुमार, स...:                                    भारतीय शास्त्रीय संगीत शाश्वत है-नीलाद्री कुमार, सितार वादक सितार वादक पंडित नीलाद्री कुमार ने कला जगत मं...

भारतीय शास्त्रीय संगीत शाश्वत है-नीलाद्री कुमार, सितार वादक



                                   भारतीय शास्त्रीय संगीत शाश्वत है-नीलाद्री कुमार, सितार वादक

सितार वादक पंडित नीलाद्री कुमार ने कला जगत मंे अपनी अच्छी पहचान बनाया है। उन्होंने अपने पिता गुरू कार्तिक कुमार से वादन सीखा है। मैहर घराने की परंपरा में पंडित रविशंकर के वादन की छाप नीलाद्री कुमार के वादन में बखूबी नजर आती है। वह शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ फिल्म संगीत में भी उनके संगीत की धमक है। वह एआर रहमान, शंकर-अहसान-लाॅय, प्रीतम के साथ बजा चुके हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें पिछले वर्ष फिल्म लैला मजनूं के संगीत के लिए फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस बार रूबरू में हम नीलाद्री कुमार से बातचीत के अंश पेश कर रहे हैं-शशिप्रभा तिवारी 

आपके लिए संगीत क्या है?
नीलाद्री कुमार-मुझे लगता है कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के हर कलाकार के उम्र या अवस्था के अनुसार संगीत की परिभाषा बदलती है। एक वरिष्ठ कलाकार के लिए संगीत का आशय अध्यात्म या आत्म-साक्षात्कार से हो सकता है। वहीं एक युवा कलाकार के लिए संगीत साधना की प्रतीति हो सकता है। मैं तो संगीत को ही अपना जीवन मानता हूं। क्योंकि जब से इस दुनिया में आंख खोला संगीत में रचा-बसा खुद को पाया हूं। मेरी हर सांस ही संगीत से जुड़ी हुई है। 
संगीत के बिना जिंदगी नहीं जिया जा सकता है। संगीत से परे मैंने जिंदगी को सोचा ही नहीं है। मैं संगीत को गुरू की वजह से संगीत सीखा। मेरी जीवन यात्रा संगीत के जरिए हुई है। मेरे लिए कोई भी चीज संगीत के बिना मायने नहीं रखती है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत को किस नजर से देखते हैं?
नीलाद्री कुमार-भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐतिहासिक पक्ष बिल्कुल स्पष्ट है। हमारा शास्त्रीय संगीत वैदिक काल से प्रचलित है। हमारे संगीत का आधार सामवेद है। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत दो धाराओं में प्रवाहित होता रहा है-कर्नाटक संगीत और हिंदुस्तानी संगीत। हमारे लगभग सभी देवी-देवताओं के हाथों में कोई न कोई वाद्य विद्यमान है। भारतीय दर्शन में 44लाख देवी-देवताओं को अलग-अलग रूपों में माना जाता है। हर देवता कोई न कोई साज अथवा वाद्य यंत्र हाथ में लिए हुए हैं। शिव, कृष्ण, गणेश, सरस्वती, नारद, ब्रम्हा सभी संगीत से जुड़े हुए हैं।

आपके अनुसार भारतीय शास्त्रीय संगीत की विशेषताएं क्या है?
नीलाद्री कुमार-हमें पौराणिक गं्रथ और ऐतिहासिक साक्ष्य प्रमाणित करते हैं कि विश्व अभी जागृत भी नहीं हुआ था, तब से हमारे यहां शास्त्रीय संगीत प्रचलित था। ऐसे में हमारा संगीत तो विश्व धरोहर है और सबसे प्राचीनतम संगीत है। हमारे यहां मौखिक गुरू शिष्य परंपरा में संगीत शिक्षा की व्यवस्था रही है। आज भी हम इसे गुरू मुखी विद्या मानते हैं। हमारे यहां गुरू गाकर या बजाकर अपने शिष्य को सिखाते थे। क्योंकि यह करने की यानी व्यवहारिक ज्ञान से ही पूरी होती है। वह लिखकर गायन या वादन या नर्तन नहीं सिखाते थे। गुरू अपने हिसाब से कौन-सा सुर कितना लगेगा बताते हैं। सुरों पर समय, शरीर, वातावरण, मौसम सबका असर होता है। हमारे यहां गरमी, बारिश, बसंत या कहें कि हर मौसम की गायकी अलग है। इसके प्रति लोगों को भी जागरूक करना जरूरी है। लोगों को इस बारे में आमतौर पर पता नहीं है। इससे भारतीय शास्त्रीय संगीत का बहुत नुकसान हो रहा है। सदियों से शास्त्रीय संगीत चला आ रहा है। और चलता रहेगा, चाहे इसकी जड़ों को कितना भी हिलाने की कोशिश की जाए। भले ही, समय के साथ इसका स्वरूप बदलता रहा है। हम परिवर्तन को स्वीकार करते हुए, आगे बढ़ने में विश्वास करते हैं। यही स्वीकार्यता है कि आज विश्व परिदृश्य में भारतीय शास्त्रीय संगीत गूंजायमान है। 

फ्यूजन म्यूजिक के बारे में आप क्या सोचते हैं? 
नीलाद्री कुमार-हमारे पास लिखित ग्रंथ हैं। पर उनके आधार पर हर कोई गा नहीं सकता, जैसा की पश्चिम संगीत में है। इतना ही नहीं, हमारे संगीत की समृद्ध परंपरा में मौसम, प्रहर, वातावरण, अवसर के अनुरूप गायन परंपरा रही है। रही बात, फ्यूजन म्यूजिक की तो फिल्मी संगीत के साथ ही हमारे यहां फ्यूजन म्यूजिक का दौर शुरू हो गया था। अनिल विश्वास, नौशाद, सहगल जैसे कलाकारों ने फिल्म संगीत में आए। उन्होंने रागों पर आधारित बंदिशों के साथ बांसुरी, तबला, ट्रम्पेट, मृदंग, को भी संगत के साज में शामिल किया। इस का बीज तो कहीं और है।
थोड़ा गहराई और खुले मन से सोचेंगें तो हम पाते हैं कि इसकी कहानी का बीज तीन पीढ़ी पहले यानि 80साल पहले 1930 में ही शुरू हो गया था। ‘फ्यूजन‘ को देखने का हमारा नजरिया थोड़ा विस्तृत होना चाहिए। आज ‘रेस‘ के दौर में यह प्रचार करना भ्रामक है। हम बीते कल, वर्तमान और भविष्य को ‘युग‘ नहीं मानते हैं। पंद्रह साल पहले का समय भूत काल है। और बीस साल पहले इक्कीसवीं सदी का आरंभ था। सच कहूं तो हर बीस-पच्चीस साल बाद पीढ़ियां बदल जाता है। आज का सच है कि वर्ष 2000 में पैदा हुए बच्चे आज अठारह-बीस साल की उम्र के हैं और म्यूजिक इंडस्ट्री में काम कर रहे है। आज के दौर का संगीत रच रहे हैं। हर दौर परिवर्तन का दौर रहा है। 


Monday, August 3, 2020

shashiprabha: shashiprabha: हम कठिन समय से गुजर रहे हैं-भावना रे...

shashiprabha: shashiprabha: हम कठिन समय से गुजर रहे हैं-भावना रे...: shashiprabha: हम कठिन समय से गुजर रहे हैं-भावना रेड्डी : हम कठिन समय से गुजर रहे हैं-भावना रेड्डी  शास्त्रीय नृत्य जगत में गुरू शिष्य परंपरा...

संकल्प-एक नई संभावना

संकल्प-एक नई संभावना
शशिप्रभा तिवारी

कथक नृत्यांगना विधा लाल लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। विधा लाल कथक नृत्य गुरू गीतांजलि लाल से सीखा है। इनदिनों वह अपने फेसबुक पेज-विधा लाल कथक एक्पोनेंट पर आॅन लाइन डांस फेस्टीवल सीरिज 2020 का आयोजन किया है। यह नृत्य उत्सव ‘संकल्प‘ 2अगस्त को शुरू हुआ।





संकल्प नृत्य उत्सव की शुरूआत गुरू अलकनंदा की शिष्या ऋतुपर्णा मुखर्जी के नृत्य से हुई। गुरू अलकनंदा नोएडा स्थित अलकनंदा इंस्ट्टीयूट फाॅर परफाॅर्मिंग आर्ट्स में नृत्य सिखाती हैं। यहीं ऋतुपर्णा उनसे कथक नृत्य सीखती हैं। वैसे तो ऋतुपर्णा ने भूगोल विषय को लेकर अपनी शैक्षणिक अध्ययन को पूरा किया है। पर वह कथक नृत्य के प्रति भी उतनी समर्पित हैं। उन्होंने संकल्प नृत्य उत्सव में अपनी नृत्य प्रस्तुति से अपनी प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया।

ऋतुपर्णा ने कथक प्रस्तुति का आरंभ बहुत संक्षिप्त रूप में किया पर वह सारगर्भित था। दरअसल, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर इन दिनों गतिविधियां कुछ ज्यादा चल रही हैं। ऐसे में दर्शक आधे घंटे से ज्यादा रूकते नहीं है। वैसे इतना समय नवोदित कलाकारों के लिए पर्याप्त है।

उन्होंने शिव स्तुति से नृत्य आरंभ किया। ‘ओम नमः शिवाय‘ के मंत्र पर शिव के रूप का निरूपण किया। हस्तकों और भंगिमाओं के जरिए ऋतुपर्णा ने शिव के रूप का सुंदर वर्णन किया। अगले अंश में नाट्य शास्त्र के श्लोक ‘आंगिकम् भुवनस्य वाचिकं सर्वांगमयम्‘ के जरिए नृत्य को विस्तार दिया। नृत्य के क्रम में उन्होंने तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत पेश किया। इसमें कुछ तिहाइयां, टुकड़े, परण वगैरह शामिल थे। उन्होंने एक तिहाई में आरोह और अवरोह का अंदाज दिखाया। वहीं एक अन्य रचना ‘तत्-तत्-दिगदा-तत्-थेई‘ में पंजे और एड़ी का बारीक काम पेश किया। गिनती की तिहाई में खड़े पैर का काम काफी संतुलित था। एक रचना में 24चक्करों का प्रयोग आकर्षक था।

गुरू अलकनंदा की शिष्या ऋतुपर्णा ने अगले अंश में भाव नृत्य पेश किया। इसके लिए उन्होंने होली का चयन किया था। रचना के बोल थे-‘मैं तो खेलूंगी उन्हीं से होली गुइयां‘। श्रृंगार रस प्रधान प्रस्तुति में राधा और कृष्ण की होली का अच्छा चित्रण था। नृत्य में सादी गत और घंूघट की गत का प्रयोग संुदर था। उन्होंने तराने को भी नृत्य में पिरोया। इसमें टुकड़े, तिहाइयों और गत का समावेश था। लयकारी के काम को पाद संचालन से पेश किया, जो लयात्मक और संतुलित था। कुल मिलाकर, युवा नृत्यांगना ऋतुपर्णा जैसे उत्साही और समर्पित कलाकारों से कला जगत को काफी आशा है। वह लगनशील हैं। मेहनती हैं। लेकिन, अपनी प्रस्तुति में कोई झूला या कजरी का भी चयन करती तो उनका नृत्य मौसम के और अनुकूल हो जाता।