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Monday, December 14, 2020

बहे निरंतर अनंत आनंद धारा

                                                               बहे निरंतर अनंत आनंद धारा

                                                                           शशिप्रभा तिवारी


हर इंसान अपने करियर की शुरूआत शून्य से करता है। धीरे-धीरे सफर आगे बढ़ता है और करवां बनता जाता है। कथक नर्तक संदीप मलिक ने कभी अपने करियर की शुरूआत अपनी गुरू श्रीलेखा मुखर्जी के सानिध्य में किया था। अब उन्होंने अपनी संस्था सोनारपुर नादम की स्थापना की है। इसी से जुड़े हुए हैं, उनके शिष्य-शिष्या सौरभ पाल व मंदिरा पाल।

बीते रविवार तेरह दिसंबर को सौरभ व मंदिरा पाल ने कथक नृत्य पेश किया। दोनों कलाकार आत्मविश्वास से भरे हुए दिखे। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी, रियाज, समर्पण, सहजता और स्पष्टता दिखी। पश्चिम बंगाल के इन कलाकारों को देखकर, एक बार मन ने एक बात दोहराया कि वाकई, बंगाल आज भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। और, ऐसे कलाकार इस बात को प्रमाणित कर देते हैं। 

इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। यह उन्नीसवां एपीसोड था। उम्मीद है कि आने वाले समय में कलाकारों के सहयोग से यह सिलसिला जारी रहेगा।

युगल कथक नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से हुआ। यह रचना ‘डमरू हर कर बाजै‘ के बोल पर आधारित थी। इस स्तुति में सौरभ और मंदिरा ने शिव के अनादि, त्रिशूलधर, वृषभवाहन, गंगाधर, पीनाकधर, भूतनाथ रूपों को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। ‘शिव छम्म‘ व ‘डमरू बाजै‘ पर विशेष बल देते हुए, उन्होंने हस्तकों और पैर के काम से मनोहारी नृत्य पेश किया। इसके अलावा, इक्कीस चक्करों का प्रयोग भी मोहक था।

मंदिरा और सौरभ ने अपने युगल नृत्य में शुद्ध नृत्त को पिरोया। इस अंश में विलंबित लय में धमार ताल के जरिए कथक के तकनीकी पक्ष को रेखांकित किया। चैदह मात्रा में उन्होंने चक्करों के साथ आमद की। उन्होंने थाट, तिहाई, टुकड़े को नृत्य में शामिल किया। एक रचना ‘दिग थेई थेई तत ता‘ पर नायक-नायिका के अंदाज को दर्शाया। एक अन्य रचना में थुंग का अंदाज मोहक था। वहीं, उन्होंने ‘गिन कत धा ता किट‘, ‘धित ताम थुंग थुंग‘ व ‘ना धिंना‘ के बोलों को नृत्य में समाहित किया। नृत्य में इक्कीस चक्कर के प्रयोग के साथ हस्तकों का रखाव और बोलों को बरतने का तरीका संवरा हुआ था। 



उन्होंने सोलह मात्रा में द्रुत लय में कथक नृत्त पक्ष को पेश किया। तीन ताल में उन्होंने एक तिहाई ‘धिनक धा‘ पेश की। इसमें प्रकृति व संगीत के वाद्यों को विशेष तौर पर चित्रित किया। उठान की पेशकश में उत्प्लावन का प्रयोग सधा हुआ था। उन्होंने कविगुरू रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना ‘बहे निरंतर अनंत आनंद धारा‘ को नृत्य में पिरोया। भाव और अभिनय का यह संुदर समायोजन था। इस पेशकश में इक्कीस चक्करों के साथ लयकारी का प्रयोग किया गया। यह नृत्य भी सौंदर्यपूर्ण था। कथक नर्तक संदीप मलिक का नृत्य समायोजन प्रशंसनीय था। 

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