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Sunday, November 1, 2020

                                                   कला खुशबू की तरह है

                                                        शशिप्रभा तिवारी


भारतीय संस्कृति में या यूं कहें कि आम जीवन में विद्या आपकी सबसे बड़ी दौलत है। वाकई, विद्या या कोई गुण या कोई हुनर आपको समृद्ध बनाता है, आपको जोड़ता है, आपको आनंद देता है। और जब कला की साधना आनंद प्राप्ति के लिए की जाए तो बात ही क्या? इस कोरोना संकट काल में जब लोग मिल-जुल नहीं पा रहे हैं। ऐसे में कला की खुशबू आपके पास कभी संगीत तो कभी नृत्य तो कभी चित्र के रूप में आती है। इस खुशबू को कलाकार फूल की तरह धारण करते हैं। और लोगों तक पहुंचाते हैं। व्यक्तित्व की यह खुशबू सभी को संस्कृति और संस्कारों को भी समाहित किए रहती है। संकल्प ऐसी ही खुशबू आप तक कलाकारों के जरिए पहंुचा रहा है।


 

नृत्य समारोह संकल्प का आयोजन इनदिनों कला जगत मंे काफी चर्चित हो रही है। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। एक नवंबर की शाम एक नई प्रतिभा वंदना सेठ से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिला।

कथक नृत्यांगना वंदना सेठ कथक नृत्यांगना व गुरू प्राची दीक्षित की शिष्या हैं। वैसे वंदना ने कृष्ण कुमार धारवाड़ और पंडित राम मोहन महाराज से भी नृत्य सीखा है। वंदना के नृत्य में लखनऊ घराने की सौम्यता, सरसता और नजाकत बखूबी झलकती है। उन्होंने कथक की बारीकियों को अपने नृत्य में सुघड़ता से समाहित किया है। संकल्प के आयोजन में वंदना ने गणेश वंदना से आरंभ किया। उन्होंने गणेश वंदना ‘सुमिरौं सिद्धि विघ्नहरण मंगल करण‘ में गणपति के रूप को दर्शाया।

तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत्त को वंदना ने पेेेश किया। उन्होंने रचना ‘धा धिंन धिंन धा तिन तिन‘ में हस्तकों और पैर का काम प्रस्तुत किया। एक अन्य रचना में सलामी की गत का अंदाज मोहक था। उठान ‘थेई थेई तत् तत् ता‘ में फेरी व चक्कर के साथ बैठकर सम लिया। वंदना ने परण आमद पेश किया। ‘धा किट धा‘ के बोल से युक्त इस पेशकश में चक्कर का प्रयोग मोहक था। उन्होंने गुरू प्राची दीक्षित की रचना कवित्त पेश की। दुर्गा देवी के रौद्र रूप का चित्रण इस कवित्त में था। इसके बोल थे-घन घन घंटा बाजै, कर कर त्रिशूल साजै। इस कवित्त को वंदना सुंदर तरीके से निभाया। 

कथक नृत्यांगना वंदना ने कुछ टुकड़े, तिहाइयों और चक्रदार तिहाइयों को भी अपनी प्रस्तुति में नाचा। उन्होंने नृत्य मंे चक्करों का प्रयोग बहुत ही सधे अंदाज में किया। साथ ही, नृत्य करते हुए, वह बहुत सहज और ठहराव के साथ नजर आईं। अपनी प्रस्तुति का समापन पंडित बिंदादीन महाराज की रचना ‘ऐसे राम हैं दुखहरण‘। अपनी गुरू की नृत्य परिकल्पना को वंदना ने भाव-अभिनय में साकार किया। नृत्य में द्रौपदी वस्त्र हरण व वामन प्रसंग का निरूपण समीचीन था।  


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