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Thursday, June 29, 2023

shashiprabha: गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौत...

shashiprabha: गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौत...:   गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां ----शशिप्रभा तिवारी जीवन में संगीत के सुर हैं और यह सुर ही जीवन है। यही भारतीय जीवन...

गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां -- शशिप्रभा तिवारी

 गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां

----शशिप्रभा तिवारी


जीवन में संगीत के सुर हैं और यह सुर ही जीवन है। यही भारतीय जीवन दर्शन है। जहां सुबह दिनचर्या की शुरूआत संगीत से होती है। हर काम को करते हुए, लोग गाते हैं। आमतौर पर यहां गाने-बजाने के लिए लोग किसी मंच या उत्सव या पर्व का इंतजार नहीं करते। ग्रामीण अंचल में गृहणी सुबह की शुरू अगर चक्की चलाने से करे या घर बुहारने से या अपने बच्चे को सुलाने के लिए भी वह गाती थी और गाती है। ये संगीत ही है, ये कला ही है और कलाकार मन ही है, जो हर हाल में जिंदगी को जीने का जज्बा देता है। लेकिन, पिछले वर्ष यानि 2020के मार्च महीने से ही जिंदगी ऐसा लगता है कि रूक गई है। इस दौर में, देश के कलाकार भी गहन पीड़ा से गुजर रहे हैं। और तो और गुरु-शिष्य परंपरा के सामने की चुनौतीपूर्ण स्थिति है। इस संदर्भ में,  पंडित बिरजू महाराज के विचार पेश है-



हम कलाकारों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। जो कलाकार अपने संगीत और नृत्य के जरिए लोगों को कुछ देर के लिए ही सही सांसारिक परेशानियों से हटाकर दो-तीन घंटे के लिए अलग कर देते थे। उनको मानसिक शांति मिलता था। लोग एक जगह बैठकर हम कलाकारों को देख-सुन रहे हैं। उन्हें आनंद की प्राप्ति हो रही है। अब हम ऐसे क्षण का इंतजार कर रहे हैं। वो समय अच्छा आएगा है। सबको ताजगी देगा।

हम लोग तो बेताब हो रहे हैं कि हमें स्टेज पर और दर्शकों के सामने नृत्य प्रस्तुत करने का अवसर कब मिलेगा। कोलकाता, मलेशिया, मुम्बई की वर्कशाॅप मेरी कैंसिल हो गए हैं। मेरे शागिर्द कोलकाता में बहुत ज्यादा है। मेरे शिष्य-शिष्याओं का फोन आता है, सब मुझसे मिलने को बेचैन है। पर हालात ऐसे हैं कि सब मजबूर है। 

एक गुरु के रूप में मैं युवा कलाकारों को तसल्ली को बनाए रखने और अपना ध्यान रखने की सलाह देता हूं। मैं खुद सुबह उठकर, ध्यान में चुपचाप बैठता हूं। अपने-आपको सोचता हूं मैंने क्या-क्या किया है? क्या करना है? कितना बाकी है। उसको पूरा करना और धैर्य का दामन पकड़े रहना है। शास्त्रीय संगीत और नृत्य को रियाज करना है। यहां तो हालत ऐसे ही हैं-जौन गत तोरी, वही गत मोरी।

एक उम्मीद का दीया मन में जलाए रखता हूं कि समय जरूर बदलेगा। खालीपन तो हमें भी महसूस होता है। मैं कविता-ठुमरी लिखता हूं। मेरी जिंदगी में रोज नया सृजन होता है। नहीं तो जिंदगी नीरस बन जाती है। आप हर पल कुछ नया तलाश पाते हैं, तो उसका आनंद ही अनूठा है। आप व्यस्त हों, आपके पास उदासी का समय कहां हैं? एक रोज की बात बताता हूं। हाल ही में, अचानक रात को तीन बजे नींद खुली। उस वक्त ध्यान में एक नई तिहाई बन गई। सो, अपने एक शागिर्द को फोन कर कहा कि एक नई तिहाई बनी है। इसे जल्दी से रिकार्ड कर लो। शायद, सुबह भूल जाऊं। 

क्रिकेट के खेल में दो खिलाड़ी खेलते हैं, कई खिलाड़ी बैठे रहते हैं। कई बार तो दूसरे खिलाड़ियों को खेलने का मौका भी नहीं मिलता है। लेकिन, उनको तो ईनाम में ही बहुत मिल जाता है। क्रिकेट खिलाड़ी सब करोड़पति बन जाते हैं। हमारे फिल्म वाले भी सम्पन्न हैं। लेकिन, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और लोक कलाओं से जुड़े कलाकारों की स्थिति डगमगाई हुई है। उन्हें रोजी-रोटी की भी किल्लत हो गई है। वह निराश हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे जीवन संघर्ष को जीतें। इस समय तो गुरूदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के शांति-निकेतन की बहुत याद आती है। उनकी एक कविता की पंक्ति भी मन दोहराता है-‘पर, हमें बराबर लगता यह, भागा जाता है समय कहीं, रग-रग में भरी हुई है जल्दी, हो जाए कहीं कुछ देर नहीं’। 

दरअसल, हम लोगों के जीवन में बाहर के आनंद नहीं भीतर के आनंद की बात कही जाती है। अगर, हमारे अंतस में, हमारे रियाज में आनंद का स्त्रोत मिल जाए, भीतर का झरना फूट पड़े तो हर स्थिति को हम सहन कर लेते हैं। यह तभी संभव है, जब हम खुद का तटस्थ निरीक्षण करते हैं। यह भारतीय कला हमारे अंतस का दीपक जलाती है। इस अंतस प्रकाश से हम सत्य को भली-भांति जान पाते हैं। फिर, हम जीवन की चैतन्यता, विराटता, विस्तार, अस्तित्व को जान पाते हैं। इस कठिन दौर में मैं युवा कलाकारों से यही कह रहा हूं, बार-बार कि समय कभी एक-सा नहीं होता है। हमें संघर्ष से जिंदगी के इस जंग को जीतना है, धैर्य रखना है। क्योंकि, सब दिन होत ना एक समाना। 


Friday, June 23, 2023

shashiprabha: गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी:                                                               गुरु से बढ़कर कोई नहीं!                                                        ...

गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी

                                                             गुरु से बढ़कर कोई नहीं!

                                                              -शशिप्रभा तिवारी

भारतीय संस्कृति में गुरुओं का बड़ा महत्व रहा है। गुरु मानव रूप में नारायण ही हैं। गुरु अपने शिष्यों के जीवन से अंधकार मिटाकर उनके मार्ग को प्रकाशित करतें हैं। इस क्रम में शिष्य नर से नारायण के मार्ग पर अग्रसर होता है। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र दोनों को श्रीराम के गुरु के रूप में जाना जाता है। संदीपनी ऋषि के पास दीक्षा प्राप्त कर ही श्रीकृष्ण भगवान बने। आज भी शास्त्रीय नृत्य-संगीत के क्षेत्र में गुरु का मार्ग-दर्शन और शिक्षण का महत्व है। क्योंकि यह गुरुमुखी विद्या है। इसे गुरु के सानिध्य में  ही रहकर बेहतर तरीके से सीखा जा सकता है। इसकी झलक सुमधुर हंसध्वनि ट्रस्ट के आयोजन स्वर लहर में नजर आया। 





दरअसल, यह अवसर गुरु और शिष्य दोनों के लिए खास अवसर था। शास्त्रीय गायिका और गुरु विदुषी सुमित्रा गुहा को संगीत नाटक अकादमी सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया था। इसे ही उत्सव का रूप उनकी शिष्य-शिष्याओं ने दिया था। स्वर लहर समारोह का आयोजन सूरजकुंड में किया गया था। इसमें उनके शिष्य-शिष्याओं ने अपने गुरु को सुरों के जरिए आदरांजलि दिया। उनकी सामूहिक प्रस्तुति की शुरुआत गुरु वंदना से हुई। इसके बोल थे-‘गुरू चरणन में नमन करो‘। 

समारोह की मुख्य आकर्षण युवा शिष्या वसुधारा राॅय मुंशी थी। उन्होंने राग वृंदावनी सारंग में द्रुत एक ताल में बंदिश ‘आए मन रसिया मंदिरा बाजो‘ गाया। इसके बाद, उन्होंने राग यमन का आधार लेकर मीरा भजन प्रस्तुत किया। उनके साथ हारमोनियम पर अंकित कौल और तबले पर सोम चटर्जी ने संगत किया। गुरु सुमित्रा गुहा के एक अन्य शिष्य हेतार्थ चटर्जी ने अपनी कला को लोगों के सामने पेश किया। उन्होंने आरंभ में भजन ‘सुनी मैं हरि आवन की‘ गाया। इसके बाद, राग चारूकेशी में विलंबित लय की बंदिश ‘बाजे झनक मोरी पायलिया‘ पेश किया। फिर, द्रुत लय और एक ताल में निबद्ध रचना को पेश किया। इस राग में उन्होंने रचना ‘मंदरवा बाजो, संुदर गोपाल आयो‘ को सुरों में पिरोया।




समारोह में वरिष्ठ शिष्या अरूंधती ने राग बैरागी भैरवी में बंदिशों को पेश किया। उनकी प्रस्तुत रचनाओं के बोल थे-‘सांची सुरन सो गावो‘, ‘सुर से सुर साध ले‘ और साधो मान त्यागो‘। समारोह में पंडित अजय झा की शिष्या मल्लिका ने मोहनवीणा वादन पेश किया। मल्लिका ने राग शुद्ध सारंग को मोहनवीणा पर बजाया। इस कार्यक्रम का संचालन रूबी चटर्जी ने किया। समारोह में तबलावदक पंडित अनूप घोष और गौतम विश्वास की उपस्थित आकर्षक थी। उन्होंने अपने संगत के अंदाज से श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया। 


वास्तव में, विदुषी सुमित्रा गुहा की विद्वता और अपने शिष्यों के प्रति प्रेम भाव देखकर यही अहसास होता है कि भारतीय संस्कृति में स्थाई सामाजिक व सांस्कृतिक स्थिति का एक लंबा युग रहा है। यहां लोग स्वाभाविक रूप से सांसारिक सुख से परे जाकर अंदरूनी आनंद की ओर देखते रहे हैं। यही आध्यात्मिक चेतना और आत्मिक शक्ति हमारी विशिष्ट उर्जा का केंद्र है। हमारे चार पुरूषार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण पक्ष रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋषियों, गुरुओं, संतांे की प्रधानता रही है। ऋषि परंपरा का ही परिणाम है कि यहां गुरुओं का महत्व और सम्मान है।