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Wednesday, September 30, 2020

shashiprabha: एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी:                                                                                 एक नया आगाज                                                ...

एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी

   


                                                                            एक नया आगाज

                                                                     शशिप्रभा तिवारी

बीते शाम 27सितंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना शिखा शर्मा ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।


कथक नृत्यांगना रानी खानम लखनऊ घराने की परंपरा को निभाने वाली बेहतरीन नृत्यांगना हैं। उन्हें गुरू रेबा विद्यार्थी और पंडित बिरजू महाराज के सानिध्य में कथक नृत्य सीखने का अवसर मिला। नृत्यांगना व गुरू रानी खानम परंपरागत तकनीकी पक्ष के साथ-साथ नई-नई रचनाओं को नृत्य में प्रस्तुत करती रही हैं। उनकी कुछ नृत्य रचनाओं को काफी सराहना मिलती रही है। उन्होंने कई बंदिशों, सूफी कव्वाली और गजलों को बखूबी नृत्य में पिरोया है, जिसने एक अलग छाप छोड़ी है। वह राजधानी दिल्ली में लंबे समय से नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ तालीम दे रहीं हैं। उसी की एक झलक ‘संकल्प‘ के आयोजन में दिखी। इस आॅन लाइन कार्यक्रम में उनकी शिष्या शिखा शर्मा ने नृत्य पेश किया।


देश के अन्य शहरों की तरह राजधानी में कथक के प्रति लोगों का रूझान काफी ज्यादा है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। इनमें शायद, एक वजह गुरूओं की उपलब्धता भी हो सकती है। बहरहाल, कथक नृत्य प्रस्तुति का आरंभ शिष्या शिखा शर्मा ने तीन ताल में शुद्ध नृत्त से किया। विलंबित लय में आमद के साथ मंच पर प्रवेश सुंदर था। उन्होंने थाट, परण, टुकड़े, तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। एक रचना में बैठकर, सम लेने का अंदाज मनोरम दिखा। जो अक्सर, उनकी गुरू का भी एक अंदाज रहा है। शिखा ने तिहाई पेश की। इसमें दोनो पैरों के साथ पंजे और एड़ी का काम दर्शाया। उन्होंने द्रुत लय में नृत्य को आगे बढ़ाया। अन्य रचनाओं में ‘ता किट धा‘, तीन धा से युक्त रचना और ‘ना धिंन्ना‘ को पैर के काम में काफी स्पष्टता और संतुलन के साथ पेश किया। उन्होंने सादी गत और रूख्सार की गत को अपने नृत्य में शामिल किया। उनके द्वारा पेश चक्रदार रचना की पेशकश भी अच्छी थी। नृत्य के क्रम में पल्टा, फेरी, अर्धफेरी, कलाइयों के घुमाव का प्रयोग सुंदर था। उसमें उनकी तैयारी और मेहनत दिख रही थी।


Monday, September 21, 2020

shashiprabha: युवा कलाकारों की धमक

shashiprabha: युवा कलाकारों की धमक:                                                                                                                                  युवा कलाकार...

युवा कलाकारों की धमक

                                                                 

                                                               युवा कलाकारों की धमक

                                                                शशिप्रभा तिवारी


कथक नृत्य में गुरू-शिष्य परंपरा की अनवरत प्रवाह है। यह प्रवाह कला जगत में बखूबी दिखती है। कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने बतौर नर्तक अपनी अच्छी पहचान कायम की है। वह नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ कथक सिखा भी रहीं हैं। गौरी दिवाकर ने संस्कृति फाउंडेशन-सर्वत्र नृत्यम के माध्यम से अपनी शिष्याओं को अवसर भी देती रहीं हैं। 

बीते शाम 20सितंबर को उनकी शिष्या निदिशा वाष्र्णेय और सौम्या नारंग ने युगल कथक नृत्य पेश किया। इसकी नृत्य परिकल्पना गौरी दिवाकर ने की थी। संगीत रचना गौरी के गुरू जयकिशन महाराज की थी। जबकि, श्लोक को सुर में पिरोया था, गायक समीउल्लाह खां ने। वाकई, मंच पर जब कोई कलाकार नृत्य करता है, तब बहुत से लोगों का साथ होता है। जो पर्दे के पीछे रहकर अपना सहयोग देते हैं। 



‘संकल्प‘ का यह साप्ताहिक आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट के फेसबुक पेज पर होता है। इस आयोजन में आईपा, आॅर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग कर रहे  हैं। गौरी दिवाकर शिष्याएं निदिशा और सौम्या ने अपनी सहज, सौम्य और नजाकत भरी प्रस्तुति से मन मोह लिया। उन्होंने अपने नृत्य में शुद्ध नृत्त की तकनीकी पक्ष को खासतौर पर पेश किया। उनके नृत्य में अच्छा ठहराव और तेज था। दोनों का आपसी तालमेल बेहतरीन था। 

निदिशा और सौम्या ने ओम श्लोक से नृत्य आरंभ किया। श्लोक ‘ओमकार विंदु संयुक्तं‘, ‘कारूण्य सिंधु भवदुखहारी‘ व ‘सर्व मंगल मांगल्ये‘ के मेलजोल से वंदना पेश किया गया। हस्तकों, मुद्राओं, भंगिमाओं के जरिए शिव, शक्ति और ओमकार को दर्शाया। लास्यपूर्ण निरूपण के साथ यह शुरूआत मनोरम थी। सोलह मात्रा के तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृत्त को पिरोते हुए, उपज पेश किया। पैर के दमदार काम को ‘तक-धिकिट-धा-कित-धा‘ के बोल को पिरोया। अगली रचना ‘ता थेई तत ता‘ और ‘तक थुंगा‘ का अंदाज दर्शाया। अंकों की तिहाइयों की प्रस्तुति में संतुलित और दुरूस्त पद संचालन पेश किया। इसमें एक से आठ, एक से चार और एक से सात अंकों की तिहाइयां थीं। रचना ‘थैइया थैइया थैइया थेई ता धा‘ और ‘तक दिगित धा‘ में पंजे और एड़ी का काम आकर्षक था। उन्होंने एक अन्य रचना को नृत्य में शामिल किया। इसमें दस चक्करों का प्रयोग प्रभावकारी था। वहीं ‘धित ताम थंुगा थुंगा ता धा और गिन धा का अंदाज देखते बन पड़ा। 

वास्तव में, उभरते युवा कलाकारों से यही उम्मीद रहती है कि वह तकनीकी पक्ष की बारीकियों को समझें और गुरू के मार्गदर्शन में इसे ग्रहण करें। नृत्यांगना गौरी दिवाकर खुद एक अच्छी कलाकार हैं। और कला जगत में प्रतिष्ठित होने के बावजूद अपने गुरूओं से दिशा निर्देश ग्रहण करने के लिए उत्सुक रहती हैं। ऐसे में निदिशा और सौम्या से यह उम्मीद रहेगी कि वो सीखने और रियाज के क्रम को लगातार जारी रखें। उन्होंने अच्छी तैयारी अपने नृत्य में प्रदर्शित किया। इससे उनके उत्साह, क्षमता और ऊर्जा का पता चलता है। 



Saturday, September 19, 2020

shashiprabha:                                         ...

shashiprabha:                                         ...:                                         अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन ...

अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन

                                       

अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन

शशिप्रभा तिवारी

मेरी कपिला दीदी-पंडित बिरजू महाराज, कथक सम्राट

उनदिनों मैं छोटा-सा बालक था। लखनऊ में कपिला दीदी पिताजी से कथक सीखतीं थीं। पिताजी उनको जब नृत्य सिखाते, तब मैं बैठकर देखता और गुनता रहता था। वह मुझे बड़े प्यार से ‘बिरजू भैया‘ बुलाती थीं। अक्सर, मजाक करतीं, अब तो बड़े कलाकार हो गए हो! अब तो तुम्हारा बहुत नाम हो गया है। तुमने अपने पिताजी का नाम ऊंचा किया है। तुम पर नाज है। उनके ऐसा कहने पर मैं मुस्कुराकर रह जाता था। मुझे दिल्ली लाने वाली दीदी हीं थीं। साढे़ नौ बरस का था, जब वह यहां लेकर आईं।

उन्होंने संगीत भारती में वह मणिपुरी नृत्य सीखा था। वहां उनके गुरू अमोबी सिंह थे। संगीत भारती में कपिला दीदी की मणिपुरी नृत्य के डेªसे में तस्वीर भी सजी हुई थी। उनका मुझ पर कभी न भूलने वाल अहसान रहा है। उन्होंने अपने गुरू के बेटे की जिम्मेदारी को भरपूर निभाया। सच कहूं तो वह बहुत ज्ञानी थीं। सबसे बड़ी बात कि बहुत इज्जत के साथ इस दुनिया से विदा हुईं।

उनका सार्थक जीवन-ओम थानवी, कुलपति, हरिदेव जोशी पत्रकारिता एंव जनसंचार विश्वविद्यालय

संस्कृति के बौद्धिक परिवेश में कमलादेवी चट्टोपाध्याय, रूक्मिणी देवी अरूंडेल और कपिला वात्स्यायन की एक विदुषी त्रयी बनती है। बीते दिनों अंतिम कड़ी भी टूट गई। पता नही, एक साथ ऐसा समर्पित समूह अब कब अवतरित होगा।
यों डाॅ कपिला वात्स्यायन ने कमोबेश पूरा और सार्थक जीवन जिया। कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान पर बहुत कुछ कहा गया है। संस्थाएं खड़ी करने पर भी। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र उन्हीं की देन है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर को सांस्कृतिक तेवर प्रदान करने में उनकी भूमिका जग जाहिर है। इतने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन मैंने आइआइसी में देखे-सुने कि उससे दिल्ली के अलग दिल्ली होने का अहसास होता था।



जयदेव कृत ‘गीत गोविंद पर अपने शोध और भरत के नाट्यशास्त्र के विवेचन से बौद्धिक हलकों में उन्होंने नाम कमाया। पारंपरिक नाट्य परंपरा पर भी उन्होंने विस्तार से लिखा है। बाद में उन्होंने शास्त्रीय और लोक दोनों नृत्य शैलियों पर काम किया। मूर्तिकला-खासकर देवालयों में उत्कीर्ण नृत्य मुद्राओं-का उनका गहन अध्ययन सुविख्यात है। साहित्य और चित्रकला के नृत्य विधा से रिश्ते पर भी उन्होंने शोधपूर्ण ढंग से लिखा।

अपनी कल्पना को विस्तार दिया-डाॅ सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला कंेद्र

जब चार साल पहले पहली बार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो मन में उत्साह तो था। साथ ही संकोच भी था। उस संस्था में काम करना है, जिसकी स्थापना कपिला वात्स्यायन जी ने की है। उस संस्था में काम करना जिसके कण-कण का सृजन कपिला जी की कल्पना से हुआ हो। इन संस्थान की कल्पना और इसके विस्तार को समझने में ही काफी दिन लग गए। चुनौती थी कि जो उच्च मानदंड उन्होंने स्थापित किए है, उनके अनुरूप आगे काम को ले जाना।



इसलिए आइजीएनसीए में काम शुरू करने के बाद उनसे पहली मुलाकात करने में कुछ दिन का समय लिया। सोचा कि पहले कुछ जान समझ लूं फिर जाऊंगा। वैसे कपिला जी से भोपाल में एकाधिक बार मिलना हुआ था, जब वे ‘रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप‘ की ट्रस्ट की बैठकों में आती थीं। उनके साथ उस ट्रस्ट में सदस्य होने का भी सौभाग्य मिला। लेकिन, तब उनसे बहुत बात करने की हिम्मत नहीं होती थी। हम लोग बस उनकी, मेरे गुरू प्रभात दा की और गुल दी की गप्पों और नोंक-झोंक का आनंद लिया करने थे। मन में ये भी शंका थी कि क्या कपिला जी उन मुलाकातों को याद रख पाई होंगी।

भारतीय संस्कृति को देखने की दृष्टि कपिला जी ने विकसित की थी, वह अद्भुत थी। वह भारतीय संस्कृति के अध्ययन को सिर्फ अतीतजीवी होने से बचाती हुई, वर्तमान का बोध करते हुए, भविष्योन्मुखी बनाने में सक्षम थी। इसलिए उनका लक्ष्य था, श्रेष्ठतम संदर्भों का निर्माण। वे लगातार कार्य करती रहीं, अपने उसी लक्ष्य को पूरा करने में जुटी रहीं। आयु के इस दौर में भी उन्हें लगाता काम करते देखना प्रेरणा देने वाला था।

वह सांस्कृतिक सेतु थीं-एन एन वोहरा, अध्यक्ष, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर

डाॅ कपिला वात्स्यायन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की संस्थापक अध्यक्ष रहीं। उनका इंडिया इंटरनेशनल सेंटर से करीब साठ साल का संबंध रहा। वह भारतीय कला और संस्कृति की अग्रदूतों में से थीं। उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बीच संबंध स्थापित करने में सेतु का काम किया। मुझे विशेष तौर पर उनके साथ वर्षों तक काम करने का अवसर मिला। उनके जाने से सांस्कृतिक जगत में एक शून्यता पैदा हो गई है, जिसे भर पाना शायद संभव नहीं है।



विश्वास नहीं होता-शाश्वती सेन, कथक नृत्यांगना

डाॅ कपिला वात्स्यायन हमारी पथ प्रदर्शक, शुभ चिंतक और माता-पिता के बाद उनका प्यार मिला। वह ज्ञान की अथाह समंदर थीं। उनके ज्ञान सागर से अगर हम दो लोटा ज्ञानरूपी जल निकाल भी लेते तो उनपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। वह नृत्य, संगीत, हस्तकला, साहित्य हर विधा में बराबर का दखल रखतीं थीं। याद आता है, उनसे अंतिम मुलाकात आइआइसी में शाॅरेन लाॅवेनजी के एक कार्यक्रम में करीब छह महीने पहले हुई थी। वह ऐसे अचानक विदा हो जाएंगी, विश्वास नहीं होता है।



हम महिला की प्रेरणापुंज-रीता स्वामीचैाधरी, सचिव संगीत नाटक अकादमी

संस्कृति की पर्याय डाॅ कपिला वात्स्यायन अपने सांस्कृतिक विभूति थीं। उन्होंने संस्कृति और साहित्य जगत में उस समय कदम रखा, जब इस क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती थी। मेरी वह प्रेरणास्वरूप रही हैं। उनसे कई बार मिलने का अवसर मिला। सोचती हूं, उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा अपने काम से प्राप्त की थी। वह संस्कृति के प्रति पूरी तरह समर्पित व्यक्तित्व थीं। वास्तव में, वह संास्कृतिक फलक की ध्रुव तारा थीं, जो आने वाले समय में वह हमेशा हर किसी को प्रेरित करेंगी। वह सदा-सदा अपनी लेखनी और कृतित्व के माध्यम से अमर रहेंगीं। उन्हें हम कभी भूल नहीं पाएंगें।



संस्कृति की केंद्र विंदु-सुमन कुमार, उपसचिव संगीत नाटक अकादमी व निदेशक कथक केंद्र

डाॅ कपिला वात्स्यायन अपने नाम के अनुरूप ही सौम्यता से परिपूर्ण थीं। चाहे वह लोककला हो या शास्त्रीय कला या कोई अन्या विधा हर किसी को एक समान आदर और प्यार देतीं थीं। वह सभी संास्कृतिक विधा की केंद्र विंदु थीं।



वर्तमान में कलाओं का जो सौम्य मुख दर्शन हम कर पा रहे हैं, वह उनकी मेहनत का नजीजा हैं। उन्होंने जो सपने देखे, उसे अपने जीवन काल में फलीभूत होते हुए देखने का सौभाग्य पाया। उन्होंने संस्कृति के स्वर्ण युग के स्वर्ण स्वप्न को साकार किया।
वह परम विदुषी, हर क्षेत्र का ज्ञान रखने वाली, शास्त्र का ज्ञान, अनुभव की बौद्धिकता और सौम्य थीं। मुझे याद आता है कि काॅलेज के दिनों में लोक कलाओं पर उनके आलेख को पढ़कर मुझे प्रेरणा मिली थी। उसे प्रेरित होकर मैंने पहला आलेख कला से संबंधित लिखा था|

Tuesday, September 1, 2020

shashiprabha: लय और ताल के साथ

shashiprabha: लय और ताल के साथ:   लय और ताल के साथ ...

लय और ताल के साथ

 


लय और ताल के साथ

शशिप्रभा तिवारी

इन दिनों फेसबुक पेज पर बहुत से कलाकार अपनी अपनी गतिविधियों को पेश कर रहे हैं। कथक नृत्यागना विधा लाल भी संकल्प नृत्य समारोह का आयोजन कर रहीं हैं। बीते शाम 30अगस्त को विधा लाल कथक एक्सपोनेन्ट के पेज पर कथक नृत्य पेश किया गया। इसे दिशा देसाई ने पेश किया। इस समारोह का आयोजन नुपूर एकेडमीए आइपाए हर्बीलाइट और आर्गेनिक कृषि के सहयोग से किया गया।

दिशा देसाई की गुरू रूपाली देसाई है। वैसे दिशा पंडित मुकंदराज देव से भी नृत्य का मार्ग दर्शन ले रही हैं। युवा नृत्यांगना दिशा देसाई प्रतिभावान हैं। उनके नृत्य में तरलता है। वह सिर्फ नृत्य नहीं करतीं हैं बल्किए वह लय और ताल के साथ नदी की धारा की तरह बहती है । उनके नृत्य में तैयारी के साथ.साथ एक उत्साह और समर्पण भाव भी है। उनकी प्रस्तुति को देख कर लग रहा था कि यह सभागार में हो रहा है। यह हर दर्शक के लिए सुखद रहा। मंच व्यवस्थाए प्रकाश और माइक सब व्यवस्थित थे। यह प्रयास सराहनीय था और कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी।।

दिशा ने अपनी प्रस्तुति का आरंभ गणेश स्तुति से किया। तुलसीदास की रचना. गाइए गणपति जगवंदन में गणपति का वंद था। जो समय के अनुकूल था। इसमें टुकड़े और तिहाइयो के साथ छंद शामिल किए गए थे। छंद गंगंगणपति मंगल, जय जय विघ्न हरण औरष्वक्रतुण्ड लंबोदर महाकाय गणपति , पर गणेश का रूप विवेचन मोहक था।कथक नृत्यागना दिशा ने गणेश के ज्ञानदाता,सुखदाता, सूपकर्ण, शशि वर्ण, भालचंद्र,मोदकप्रिय,वरदहस्त रूप को हस्तको और मुद्राओ से दर्शाया। इसके अंत में चक्करो का प्रयोग सरस था।
कथक नृत्यागना दिशा देसाई ने तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत्त पेश किया। उठान ष्ता किट धिगि धा ता धा को सुन्दर अंदाज में पेश किया । थाट में नायिका के खडे होने के अंदाज को प्रस्तुत किया।

इसमें बेहतरीन ठहराव और नज़ाकत दिखा। तिश्र जाति के परण. ष्धा गिन था ष्उत्प्लावन और चक्कर युक्त था। तोड़े में विशेषकर तीन धा की पेशकश लयबद्ध थी।दिशा के नृत्य में पैर की तैयारीए हस्तको को बरतने का तरीका चक्कर और सान्स की गति का समायोजन काबिल ए तारीफ था।तकनीकी पक्ष सुसंगठितए स्पष्ट और शुद्धता से पूर्ण था। उन्होंने सादी गत पेश किया। दिशा ने परण ष्धा ता ना धि में 21चक्कर लिए जो मनोरम था।




भाव अभिनय के लिए दिशा ने ठुमरी का चयन किया। पंडित तीर्थ राम आजाद की रचना थी। इसके बोल थे. मोहे छेड़ो ना नंद के बिहारी । इसमें उन्होंने मटके की गत माखनचोरी गोपी व कृष्ण की छेड़छाड़ को दर्शाया।कथक नृत्यांगना दिशा देसाई का अभिनय सहज और सरल था।

दिशा के साथ संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे.पढ़ंत पर पंडित मुकंुदराज देव और गुरू रूपाली देसाई, गायन पर श्रीरंग तेंबे, तबले पर रोहित देव, हारमोनियम पर अतुल फड़के, सितार पर जुबेर शेख और बासंुरी पर हिमांशु गिंडे।