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Monday, December 16, 2013

यमुना के किनारे
मधुबन के पेड़ों की झुरमुट
रमन की रेती में मन रमाये

मन तुमको ही ढूंढ़ता है
तुम न जाने!
किस देश में रहते हो?

पता भी तो नहीं था
तुम्हारा हाल कभी
चाँद से पूछती थी
कभी नीले आसमान से

अपने मन की बातें
मन-मन में रखती थी,
धन्य उस पल हुई

 जब जार के वाण से घायल
तुमने मुझे अर्जुन से
 मुझे सन्देश पहुँचाने को कहा
लेकिन, इतनी हिम्मत कहाँ थी उनमें

मेरे प्रेम
मेरे विरह को
मेरे अनत समर्पण को उद्धव ने समझा था

और तुम्हारी अनंत प्रयाण की खबर वही ले कर आये
अपेक्षा दुःख देता है
मैंने सिर्फ इसे ही मान दिया
सोलह श्रृंगार कर लीन-विलीन हुई तुममे

Saturday, December 7, 2013

तुम्हारी अंगुली थाम
पहली बार चली थी
शायद
लड़खड़ाई भी थी
तुमने सहारा दिया

चलते-चलते
 यहाँ तक चली आई
तुम उसी पगडण्डी पर
पुराने बरगद के नीचे
अब तक रुक
मुझे निहारते हो

मैं जानती हूँ
तुम्हारे लिए
मेरे खातिर इतना करना
कुछ आसान नहीं होता होगा
तुम्हारी अपनी दुनिया है

जानते हो!
तुम्हारी नजर का सहारा
बेशकीमती है
क्योंकि तुम्हारी निगाहों से
आज तक देखती रही हूँ
जिंदगी को

मुझे लगता है
हर सुबह
तुम्हारी मुस्कुराहट
एक उत्सव बन आती है
मुझे नींद से जगाने
मैं सँवरने लगती हूँ
गुनगुनी सर्दी की धूप-सी



Monday, December 2, 2013

मोहन
मैं बहुत दूर से
तुम्हारे बांसुरी की धुन सुनती हूँ
उस में अपना नाम सुनती हूँ

जानती हूँ!
तुम बहुत दूर हो
तुम्हारे विरह को जीती हूँ
उसमें तुम्हारा नाम जपती हूँ

सुनती हूँ !
धड़कने बहुत दूर से
अपने करीब तुम्हें तब ही पाती हूँ
उस उन्मेष में संपूर्ण होती हूँ

देखती हूँ !
फरकते होठ दूर से
बांसुरी की स्वर लहरी बन जाती हूँ
उस पल मैं कहाँ रह जाती हूँ ......