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Monday, January 22, 2018

बासंती हवा का झोंका
अभी-अभी
मेरे करीब से गुजरते हुए
बहुत-सा अनकहा कह गया!

वही झोंका
याद दिलाया कि बसंती चुनर
मुझ पर खिलती है
कि बाबुल को मीठा भाता था
कि मीठा खाओ, मीठा बोलो
कि अम्रमंजरी को निहारो
कि आंगन में टेसू को सुखाओ
कि बसंत मन का आनंद होता है


बासंती हवा का झोंका
अभी-अभी
मेरे करीब से गुजरते हुए
बहुत-सा अनकहा कह गया!
वही झोंका
याद दिला गया कि बसंती मन
मुझे भी मनभावन लगता है
कि पीपल के पात झरेंगे
कि मन के मीत मिलेंगे
कि उमंग के फूल खिलेंगे
कि कान्हा के संग झूमेंगे
कि बसंत मन का आनंद होता है


बासंती हवा का झोंका
अभी-अभी
मेरे करीब से गुजरते हुए
बहुत-सा अनकहा कह गया!