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Wednesday, October 21, 2020

विरासत काव्यधारा




विरासत काव्यधारा

   शशिप्रभा तिवारी

कलाश्री फाॅर डांस एंड योग की ओर से दो दिवसीय विरासत-काव्यधारा समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर की फेसबुक पेज था। बीते अठारह और उन्नीस अक्तूबर को आयोजित समारोह का उद्घाटन नृत्य साम्राज्ञी व राज्य सभा सांसद डाॅ सोनल मानसिंह ने किया। इस समारोह को ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर और भरतनाट्यम की वरिष्ठ गुरू व नृत्यांगना सरोजा वैद्यनाथन ने शुभकामना संदेश दिया। प्रसिद्ध उद्घोषिका साधना श्रीवास्तव ने अपने सधे अंदाज में संचालन किया। 

कलाश्री और संस्कृति मंत्रालय के इस संयुक्त आयोजन में डाॅ कविता ठाकुर, कविता द्विवेदी, रागिनी चंद्रशेखर, पियाल भट्टाचार्य, कैरोलिना, जयप्रभा मेनन, पार्वती दत्ता और नवीना जफा ने शिरकत किया। समारोह का आरंभ कथक नृत्य से हुआ। इसे कथक नृत्यांगना कविता ठाकुर ने पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘वाही है कदंब जहां वेणू मृदंग बाजत है‘ को अपने नृत्य का आधार बनाया। नृत्य में राधा के विरह श्रृंगार का सम्मोहक चित्रण था। 
कविता ठाकुर ने एक रचना में पैर के काम के साथ हस्तकों से कृष्ण के रूप को दर्शाया। जबकि, रचना ‘तक थुंगा तत धित ता‘ पर राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ व भाव को चित्रित किया। नृत्य के क्रम में रचना ‘तक तक राधिका के नैन तक‘ में परमेलू का अंदाज मोहक था। वहीं राधा के विरह व बांसुरी के अंदाज को ‘बिन गोपाल बैरन भई‘ व ‘जब हरि मुरली अधर धरी‘ में चित्रित करना, बेहद मार्मिक था। साथ ही, नृत्य की पराकाष्ठा में राधा-कृष्ण को एकाकार करते हुए, निरूपित किया। इसके लिए ‘राधा माधव रंग भई‘ पंक्तियों का चयन बहुत लासानी था। नृत्य में, सादी गत, बांसुरी, घूंघट, नजर की गत का प्रयोग सुंदर था।




 इस समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना रागिनी चंद्रशेखर नृत्य अभिनय पेश किया। उन्होंने सूरदास की रचना ‘सुनो अनुज एहि बन जानकी प्रिया‘ का चयन किया। यह राग रागेश्वरी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसकी कोरियोग्राफी गुरू जमुना कृष्णन की थी। इसे गायिका सुधा रघुरामन ने बहुत मधुर सुर में गाया। उसी के अनुरूप नृत्यांगना रागिनी ने अभिनय प्रस्तुत किया। ओडिशी नृत्यांगना कविता द्विवेदी ने मीरा बाई की रचना पर भाव प्रस्तुत किया।  रचना ‘झुक आई री बदरिया सावन की‘ राग मियां की मल्हार और त्रिपुट ताल में निबद्ध थी। उनकी पेशकश काफी परिपक्व और मोहित थी। 





छऊ नृत्यांगना कैरोलीना ने नृत्य रचना अर्धनारीश्वर थी। उन्होंने रचना ‘झण कण कंकण नुपुरायं‘ को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में शिव और पार्वती के पुरूष और प्रकृति के रूप का विवेचन किया। उनके नृत्य में ताण्डव और लास्य का समावेश था। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने बुद्ध के जीवन चरित्र को नृत्य पिरोया। रचना ‘बुद्ध माधभावम मदाभागम‘ राग मुखारी और अयाडी ताल में निबद्ध थी। कथक व ओडिशी नृत्यांगना पार्वती दत्ता ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पद्माकर की रचना पर भाव अभिनय पेश किया। रचना ‘गोकुल में गोपिन गोविंदन फाग‘ को धु्रपद शैली में पिरोया गया था। गीत और कथक के कथा वाचन के जरिए पार्वती दत्ता ने बहुत सुंदर ढंग से नृत्य में समाहित किया। जो उनका अपना एक अलग अंदाज है। 
विरासत काव्यधारा समारोह में संवाद को भी शामिल किया गया था। कथक नृत्यांगना व स्काॅलर नवीना जफा ने चित्रकला, कविता और नृत्य विषय पर चर्चा की। उन्होंने राजस्थान की पिछवई चित्रकारी के बारे में बताया। उन्होंने विद्यापति की रचना ‘ए सखी देखली एक अपरूप सपन‘ पर अभिनय पेश किया। जबकि, पियाल भट्टाचार्य ने नाट्य और अभिनय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि रस, भाव और अभिनय भारतीय नाटक के स्तंभ हैं। नाट्यशास्त्र में इसकी विशद विवेचना है। 













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