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Monday, December 4, 2023

चंद्रभागा का तट और कोणार्क समारोह 2023@शशिप्रभा तिवारी

                                    

                                              चंद्रभागा का तट और कोणार्क समारोह 2023

                                                    @शशिप्रभा तिवारी

वैसे देश के कई हिस्सों में कई समारोह में शिरकत होने का अवसर मिलता है। पर कोणार्क में दर्शकों की सहभागिता अद्भुत है। हर शाम कोणार्क समारोह स्थल से लेकर चंद्रभागा समुद्र तट तक दर्शकों का मेला लगा हुआ है। यह समारोह एक दिसंबर को शुरू हुआ। कल शाम यानी चार दिसंबर समारोह की चैथी संध्या थी। समारोह स्थल पर जगमगाती लड़ियां और तोरण रोशन थे। वहीं मेला स्थल पर झूले और दुकानों पर लोगों का मेला था। जबकि, समुद्र तट पर बालूका राशि से बनी कलाकृतियों को देखने वालों का तांता लगा हुआ था। पूरे पांच-छह किलोमीटर तक फैला यह समारोह स्थल कला की अद्भुत संयोग और कला के साक्षी जनों का सैलाब भारत की कलाओं पर गर्व करने का एक अहसास देता है। 

कोणार्क समारोह की 4 संध्या मोहिनीअट्टम नृत्य लास्य अकादमी आॅफ मोहिनीअट्टम के कलाकारों ने पेश किया। जबकि ओडिशी नृत्य कैशिकी डांस अकादमी के कलाकारों ने पेश किया। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन गुरु कलामंडलम शंकरनारायणन की शिष्या रही हैं। उन्होंने शांतिनिकेतन में कथकली और मोहिनीअट्टम नृत्य सीखा। कालांतर में वह त्रिशूर में मोहिनीअट्टम सिखाने लगीं। बहरहाल, कोणार्क समारोह में उन्होंने अपनी शिष्याओं के साथ शिवतत्वम् नृत्य रचना पेश किया। शिव तत्वम कुमारनाशन की मलयालम कविता ‘शिव तत्वम परम तत्वम्‘ और आदि शंकराचार्य की शिव पंचाक्षरस्त्रोत पर आधारित थी। इसमें बीजाक्षर-न-वशिष्ट, म-अगस्त्य, शि-गौतम, वा-इंद्र और य-यज्ञ की व्याख्या की गई थी। यह राग रेवती और केदार गौड़ में निबद्ध था। इस रचना की संगीत रचना कवलम नारायण पण्णिक्कर ने की थी। 



उनकी दूसरी पेशकश करूणा थी। इसमें सुंदरी वासवदत्ता के जीवन की कथा को वर्णित किया गया था। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध था। इसमें मोहिनीअट्टम के मोहक भाव, संचारी भाव और अभिनय का सुंदर समावेश था। नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन ने नायिका वासवदत्ता और अन्य नृत्यांगना ने नायक उपगुप्त के भावों का मनोरम विवेचन कर समां बांध दिया। उनकी प्रस्तुति कोणार्क समारोह में सबसे अन्यतम थी। कलिंग बौद्ध मत का केंद्र रहा है। यह बुद्धं शरणम् गच्छामि का संदेश देकर नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन ने अपनी उत्कृष्ट रचनात्मकता का बोध करवाया। सरस संगीत और प्रकाश प्रभाव ने नृत्य प्रस्तुति को और आकर्षक बना दिया। 

मोहिनीअट्टम नृत्यांगना ने जहां अपनी प्रस्तुति का समापन करूण रस के प्रवाह से किया। वहीं अगली ओडिशी नृत्य प्रस्तुति में कैशिकी नृत्य अकादमी के कलाकारों ने अंत में चक्षोपनिषद के अंश ‘असतो मा सद्गमय‘ में शांति की कामना कर अपने नृत्य को एक अलग ही ऊच्च स्तर पर लेकर चली गईं। भारतीय कला की उदात्त भावना में कला इसी तरह की उच्च भावना की कामना करती है, कला दर्शक के मन को प्रकाशित कर देती है। यही अनुभूति आज की प्रस्तुतियों को देखकर हुई। वाकई, परंपरा का उजास अनोखा है। 

सूर्य स्तुति के साथ दक्षा मशरूवाला की शिष्याओं ने ओडिशी नृत्य आरंभ किया। उनकी दूसरी पेशकश रागमाला थी। रागमाला शास्त्रीय गायिका मालिनी राजुरकर की रचना ‘जय जगवंदनी‘ थी। इसकी संगीत रचना गायक मनोज देसाई ने की थी। नृत्य परिकल्पना दक्षा मशरूवाला की थी। इसमें देवी के शक्ति, जननी, सौंदर्य व दिव्य रूप का वर्णन राग दुर्गा, भोपाली, ललिता और कल्याणी के आधार पर किया गया था। उनकी दूसरी पेशकश जोग पल्लवी थी। यह ताल मालिका में निबद्ध थी। इसकी संगीत परिकल्पना जतीन साहू और नृत्य परिकल्पना नम्रता मेहता ने किया था। यह पल्लवी सौम्य, सरस, संतुलित और रसमय प्रस्तुति थी। कैशिकी के कलाकारों की अगली प्रस्तुति गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य रचना थी। यह बनमाली दास की उड़िया गीत ‘प्राण संगिनी रे कालि मुकि लाजे‘ पर आधारित थी। नृत्यांगनाओं ने गुरु केलु जी की कृति को बहुत विशुद्ध अंदाज में पेश किया। आंगिक और मुख अभिनय बहुत सहज थी। 





 


नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                        नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023

                                      शशिप्रभा तिवारी


युवा ओडिशी नृत्यांगना रोजलीना महापात्र ने देबदासी नृत्य संस्था की स्थापना की है। वह गुरु बिचित्रनंद स्वाईं, गुरु मनोरंजन प्रधान और गुरु गंगाधर प्रधान से ओडिशी नृत्य सीखा। इनदिनों वह वरिष्ठ नृत्य गुरु अरूणा मोहंती के सानिध्य में नृत्य की साधना कर रही हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में सरस्वती वंदना को समाहित किया। 34वें कोणार्क समारोह में रोजलीना महापात्र की नृत्य रचनाओं की संगीत रचना डाॅ सच्चिकांत नायक और ताल संरचना रामप्रसाद बेहरा ने की थी। 

रोजलीना महापात्र की शिष्यओं की पहली पेशकश राग मध्यमावती और एक ताली में निबद्ध सरस्वती वंदना थी। यह रचना ‘जय भगवती वर दे‘ पर आधारित थी। वाग्देवी सरस्वती के नील हंसवाहिनीे रूप का विशेष विवेचन नृत्यांगनाओं ने किया। उनकी अगली पेशकश पल्लवी थी। यह राग जनसम्मोहिनी और एक ताली में निबद्ध थी। आचार्य सुकांत कुंडू की संगीत रचना थी। नृत्यांगनाओं ने पल्लवी में विशेष रूप से तिहाइयों में पैर का विशेषकाम पेश किया। इसमें कथक के अंदाज में पद संचालन आकर्षक था। यह नया कलेवर मोहक था। इसमें लय का विलंबित से द्रुत लय की ओर विस्तार बहुत सुचारू रूप से दिखा। 

                                        

युगे-युगे अगली प्रस्तुति थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। इसमें द्वापर युग के राम और त्रेता युग के कृष्ण के लीलाओं को बहुत संक्षिप्त रूप में दर्शाया गया। आरंभ में जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी के जरिए रथ में आरूढ़ जगन्नाथ स्वामी को निरूपित करना, रोचक था। वहीं ‘विष्णुपति विष्णुपद रघुनाथ पति‘ के माध्यम से राम केवट प्रसंग का चित्रण मोहक था। नौका की गति को नृत्यांगनाओं ने भावपूर्ण अंदाज में दर्शाया। इसके अलावा, द्रौपदी वस्त्र हरण में दुशासन-द्रौपदी में संचारी भाव और अभिनय का प्रयोग मार्मिक था। अंत में ‘दयाकर दीनबंधु शुभेचाइ आज कर जोड़ी‘ में कृष्ण के अनादि, अनंत, हरि, जगतहितकारी, दशावतारी, मधुसूदन रूपों को मोहक अंदाज में दर्शाया। इस प्रस्तुति में त्रिभंगी और चैक भंगी का प्रयोग ओडिशी नृत्य को विशुद्ध रूप से उभरकर दिखा। जो संतोषजनक था। वरना आजकल, चैक और त्रिभंगी भंगिमाएं ओडिशी नृत्य में बहुत कम देखने को मिलती हैं। 

तीन दिसंबर की तीसरी संध्या में कोणार्क समारोह में कल्पवृक्ष डांस अन्सेम्बल के कलाकारों ने सत्रीय नृत्य पेश किया। डाॅ अन्वेषा महंता ने बायनाचार्य घनकांत बोरा से सत्रीय नृत्य सीखा है। उनकी पहली पेशकश परम लीला थी। यह राग रेपोनी में पिरोई गई थी। इसमें पुरुष कलाकारों खोल और मंजीरे के ताल आवर्तन पर अंग और पद संचालन प्रस्तुत किया। वैष्णव चेतना का संचार आंगिक विन्यास, हस्त व पद संचालन और खोल वादन में आकर्षक तौर पर सत्रीय प्रस्तुति के लिए सहज जमीन तैयार कर दिया। 

दूसरी पेशकश चाली रामदानी थी। यह श्रीमंत शंकरदेव की रचना पर आधारित थी। यह भगवान जगन्नाथ की वंदना थी। इसके बोल थे ‘जय जगन्नाथ जगत आदिनाथ‘। शुद्ध नृत्त पर आधारित प्रस्तुति में स्पेस, आंतरिक और भौतिक ऊर्जा का संवरण थी। प्रकृति पुरुष उनकी अगली पेशकश थी। सत्रीय नृत्य का मूल भक्ति है। नृत्यांगना अन्वेषा और साथी नृत्यांगनाओं ने पुरुष-कृष्ण और प्रकृति-राधा का दिव्य रूपायन पेश किया। शुरूआत भगवत पुराण के श्लोक पर आधारित थी। शंकरदेव की केलिगोपाल नाट में प्रेम से दिव्य प्रेम और आत्मा से परमात्मा क दिव्य मिलन था। दिव्य प्रेम की अनुभूति तथा अहंकार और संसार से विरक्त भावों का समावेश इस पेशकश में था। यह प्रस्तुति भक्ति श्रृंगार रस प्रधान थी। कई रचनाओं के अंशों ‘दैवीय गुणविभुं‘, ‘रंगे रंगे दया कुरु परम‘, ‘कृष्ण जीवन मम प्राण हरि‘ के माध्यम से कृष्ण की लीलाओं के साथ गोपिकाओं के विरह भावों का चित्रण नृत्यांगनाओं ने पेश किया। नृत्य में मृग, पक्षी, गज, गौ, मयूर की चाली भेद को खास रूप से दर्शाया गया। 


इस वर्ष कोणार्क समारोह में महिला नृत्यांगनाओं की उपस्थिति ज्यादा है। मंच पर पुरुष नर्तक कम नजर आ रहे हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण का यह समारोह अच्छी उपस्थिति दर्ज कर रहा है। 



Sunday, December 3, 2023

shashiprabha: कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी:                                                                  कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या                                           ...

कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी

                                                                कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या

                                                                      @शशिप्रभा तिवारी


उड़ीस स्थित कोणार्क मंदिर के पृष्ठभूमि में कोणार्क समारोह आयोजित है। इस वर्ष समारोह की दूसरी संध्या में कुचिपुडी और ओडिशी नृत्य शैली का प्रदर्शन कलाकारों ने किया। दूसरी संध्या में दिल्ली से पधारे कलाकार गुरु जयराम राव और गुरु रंजना गौहर के निर्देशन में उनके साथी कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुत किया। 34वे कोणार्क समारोह के दौरान उड़ीसा के पुलिस महानिदेशक सुनील कुमार बंसल और आयकर विभाग के निदेशक संजय बहादुर दर्शक दीर्घा की शोभा बढ़ा रहे थे।



कुचिपुडी डांस अकादमी के कलाकारों ने मोहक कुचिपुडी नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आरंभ ओमकार से किया। यह प्रस्तुति श्लोक ‘ओमकार विंदु संयुक्तम्‘ पर आधारित थी। इस नृत्य प्रस्तुति का आरंभ धीमी गति से हुआ, फिर धीरे-धीरे नृत्य का विस्तार जैसे-जैसे हुआ, इसकी परिणति शुद्ध नृत्त जतीस्वरम में हुई। जतीस्वरम् राग हिंदोलम और आदि ताल में निबद्ध था। गायक के वंेकटेश के मधुर गायन और संगत कलाकारों की संगति से जतीस्वरम में आगे नृत्य का विस्तार मनोरम बन पड़ा। उनकी अगली पेशकश दशावतार थी। महाकवि जयदेव की रचना ‘प्रलय पयोधि जले‘ राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। बहुत ही संक्षिप्त अंदाज में विष्णु के दस अवतारों को नृत्यांगनाओं ने दर्शाया। इसमें नृत्य को बेवजह विस्तार नहीं दिया गया था। यती नारायण तीर्थ रचित दुर्गा तरंगम कुचिपुडी नृत्य शैली में प्रस्तुत किया गया। इसके शुरूआत में दुर्गासप्तशती के श्लोक के अंश ‘प्रथम शैलपुत्री द्वितीयम् ब्रह्मचारिणी‘ के जरिए नृत्यांगनाओं ने देवी के नौ रूपों को दर्शाया। फिर, रचना ‘जय-जय दुर्गे‘ व ‘सरस नुपुर पादे‘ के माध्यम से देवी के महिषासुरमर्दिनी रूप का विवेचन विस्तार से किया। नृत्य की पराकाष्ठा तरंगम का विशेष अंदाज पीतल की थाली पर पदसंचालन में दिखा। विभिन्न ताल अवर्तनों में सौम्य, प्रभावशाली और ऊर्जा से पूर्ण नृत्य था। प्रस्तुति को प्रकाश प्रभाव और संगीत ने और भी प्रभावशाली बना दिया। इस प्रस्तुति का समापन तिल्लाना से किया। यह राग बसंत और आदि ताल में निबद्ध था। इसमें देवी के रूप का विवेचन था। रचना-वंदे दुर्गा कमला कमलदल विहारिणी थी। 



ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर की संस्था कुचिपुडी डांस अकादमी के कलाकारों ने नृत्य रचना साक्षात्कार से किया। यह नंदिकेश्वर के अभिनयदर्पण के श्लोक पर आधारित ‘आंगिकम भुवनम आहार्यम्‘ पर आधारित थी। यह राग दरबारी और एक, जती व खेम्टा ताल में निबद्ध था। दूसरी प्रस्तुति राधा-रानी के जीवन पर आधारित थी। इसके लिए उड़िया गीत ‘राधा रानी संगे नाचे मुरलीपाणी‘ का चयन किया गया था। यह राग पीलू और एक ताली में निबहद्ध था। अगली पेशकश पल्लवी थी। यह राग भैरव और एक ताली में थी। उनकी प्रस्तुति का समापन उड़िया गीत ‘राधा रानी रास रंग‘ से किया। इसमें कृष्ण, राधा और गोपिकाओं के विभिन्न भावों का विवेचन पेश किया गया। रास और होली के प्रसंगों के जरिए नृत्य को विस्तार दिया गया। इस प्रस्तुति की परिकल्पना ओड़िशी नृत्यांगना रंजना गौहर ने की थी। संगीत आचार्य बंकिम चंद्र सेठी और रामचंद्र साहू की थी। 





 


Saturday, December 2, 2023

shashiprabha: उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी:                                                                                                      उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023     ...

उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                             उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023

                                                                @शशिप्रभा तिवारी


उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की पृष्ठभूमि में हर वर्ष कोणार्क नृत्य समारोह आयोजित होता है। इसका आयोजन उड़ीसा टूरिज्म डेवलपमंेट काॅपोरेशन, उड़ीसा संगीत नाटक अकादमी और ओडिसी रिसर्च सेंटर मिल कर करते हंै। करीब तीस वर्ष पुराने इस नृत्य उत्सव में देश के विभिन्न शास्त्रीय नृत्य को पेश किया जाता है। यह समारोह एक से पांच दिसंबर 2023 तक आयोजित किया जाता है। तयशुदा तारीख होने से स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी बड़ी संख्या में इस समारोह को देखने कोणार्क पहुंचते हैं। जबकि, हर नर्तक या नर्तकी का सपना होता है कि वह कोणार्क नृत्य समारोह में एक बार जरूर शिरकत करे। 



ओडिशी नृत्यांगना ज्योत्सना रानी साहू और साथी कलाकारों की ओडिशी प्रस्तुति से कोणार्क नृत्य समारोह का आगाज हुआ। सूर मंदिर के इन कलाकारों ने नृत्य रचना नाद निनाद से नृत्य आरंभ किया। इसमें जगन्नाथ वंदना और सूर्य मंत्र-आदित्यअराधना थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। दूसरी पेशकश शरणम थी। अभिनय आधारित इस प्रस्तुति में भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को दर्शाया गया। इसे राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध किया गया। इस प्रस्तुति में गजेंद्र मोक्ष, गोवर्धन पर्वत और द्रौपदी वस्त्र हरण प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘मुक्ति पथ शरणागति ताहि‘, ‘मानउद्धारण शरणम्‘, ‘नंदसुत कान्हा कहे‘ और संकीर्तन ‘हे कृष्णो‘ के जरिए कलाकारों ने विभिन्न प्रसंगों को आंगिक अभिनय और संचारी भावों के माध्यम से दर्शाया। 

ओडिशी नृत्य की इस प्रस्तुति में संगत कलाकारों में शामिल थे-पखावज पर सच्चिदानंद दास, वायलिन पर अग्निमित्र बेहरा, गायन पर नाजिया आलम व सत्यब्रत कथा, बांसुरी पर श्रीनिवास सत्पथी और मंजरी पर बैद्यनाथ स्वाईं। इस प्रस्तुति में संगीत परिकल्पना स्वप्नेश्वर चक्रवर्ती और ताल संरचना सच्चिदानंद दास की थी। 

कोणार्क समारोह में बंगलौर के चित्रकला नृत्य विद्यालय के कलाकारों की दूसरी प्रस्तुति थी। प्रवीण कुमार और साथी कलाकारों ने जतीस्वरम से भरतनाट्यम नृत्य आरंभ किया। सूर्य की वंदना के साथ जतीस की लयात्मक गतियां मोहक थीं। उनकी दूसरी पेशकश शिवांजलि थी। यह राग नटकुरंजी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसमें रचना ‘नटराज सच्चिदानंद‘ पर आधारित इस पेशकश में शिव से जुड़े प्रसंग का मोहक वर्णन पेश किया। उन्होंने तिल्लाना से प्रस्तुति का समापन किया। यह राग आभोगी और आदि ताल में निबद्ध था। इस तिल्लाना में कृष्ण और गोपिकाओं के श्रृंगारिक प्रसंगों का मनोहारी वर्णन पेश किया। उनके नृत्य में सुंदर सामंजस्य और तादाम्य नजर आया। प्रसंग के अनुरूप अभिनय में भी नवीनता, परिपक्वता और सामयिकता नजर आई। कलाकारों में भरतनाट्यम की लयात्मकता और गत्यात्मकता को बहुत सुघढ़ता और शालीनता के साथ पेश किया।