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Thursday, April 2, 2020

बांसुरी ने जीवन की समझ दी-चेतन जोशी, बांसुरीवादक





                              बांसुरी ने जीवन की समझ दी-चेतन जोशी, बांसुरीवादक

पहाड़ों, घाटियों, नदियों, झरने, जंगल और हरी-भरी वादियों वाले झारखंड की प्राकृतिक सुष्मा आकर्षक है। यहां की हसीन वादियों में आदिवासी समुदाय के संगीत और मांदर के थाप गूंजते रहते हैं। इसके अलावा, अन्य समुदायों के लोग, लोक और शास्त्रीय कलाओं से भी जुड़े हुए हैं। हालांकि, इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि झारखंड में अब तक शास्त्रीय संगीत व नृत्य के लिए वह परिवेश तैयार नहीं हो पाया, जैसी अपेक्षा थी। फिर भी, कुछ कलाकारों ने अपनी मेहनत से अपनी पहचान कायम की है। ऐसे ही कलाकार हैं, बोकारो शहर के निवास-बांसुरीवादक चेतन जोशी। इस बार रूबरू में उनसे बातचीत पेश है-शशिप्रभा तिवारी


आप संगीत को अपना जीवन मानते हैं। ऐसे में आपके लिए गुरूओं का यह महत्व रहा है?

चेतन जोशी-हकिसी वजह या व्यस्तता के कारण अगर वह रियाज नहीं कर पाता हूं या बांसुरी एक दिन भी नहीं बजा पाता हूं तो मुझे लगता है कि आज मुझसे कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है। मेरा मन उदास हो जाता है। मैंने शुरू में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर के शिष्य आचार्य जगदीश से बांसुरी वादन सीखा। उसी दौरान इलाहाबाद में आयोजित अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने गया। वहां पंडित भोलानाथ प्रसन्ना से परिचय हुआ। तब मैंने पहली बार बड़े आकार का बांसुरी देखा था। उस परिचय के बाद मैंने पंडित भोलानाथ प्रसन्ना का शिष्यत्व ग्रहण किया। उनके न रहने पर मैं मुम्बई गया और पंडित रघुनाथ सेठ से मार्ग दर्शन लिया। इसके बाद, मैंने कुछ सालों तक पंडित अजय चक्रवर्ती से भी सीखा। मुझे लगता है कि कलाकार को अगर आगे बढ़ने की चाहत है तो सीखने का शौक बराबर बनाए रहना चाहिए।

एक कलाकार में किस तरह के गुणों का होना जरूरी है?

चेतन जोशी-दरअसल, मुझे लगता है कि अस्तित्व, अस्मिता और अहंकार कलाकार के लिए जरूरी है। कलाकार का अस्तित्व अथव ‘इजनेस‘ बना रहना चाहिए। यह जरूरी है। इसका रक्षण होना चाहिए। अगर, कलाकार ही नहीं रहेंगें तो बचेगा ही क्या? यह सबके लिए अच्छा है-कलाकार, परिवार, समाज, देश, विश्व सबके लिए। दूसरी है-अस्मिता। मैं इस विधा का या उस विधा का कलाकार हूं। मेरी अस्मिता है, तभी मैं रियाज करूंगा, तभी मैं देश या समाज के लिए कुछ सोच पाऊंगा या कर पऊंगा। मैं कुछ हूं। ‘आई एमनेस‘ यानि अस्मिता। यह कलाकार की इंडिविजुवलिटि एवं क्रिएटिविटी को एक नई दिशा मिलती है।

तीसरी चीज है-अहंकार। मामला यहां फंसता है। यह अहंकार भावनाओं के निर्माण का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह भागवत गीता में भी बताया गया है। हमारा जब अस्तित्व आता है, इस संसार में भावनाएं आकार लेती हैं। उन पंच तत्व के साथ अहंकार का तत्व होता है। तभी आपका यह रूप अस्मिता को जागृत करता है। यह हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी ज्यादा है। अहंकार नहीं होगा तो हम खाना नहीं खाएंगें। आप खुद को मिटा देंगें। अहंकार ज्यादा हो जाता है, तो खतरनाक है। हमारे ऋषि-मुनियों ने बताया है कि अहंकार ज्यादा बढ़ जाएगा तो क्या करें? अपने अहंकार को किसी बड़ी सत्ता में विलीन कर देंना होगा।





कला क्षेत्र में सहज प्रचलित है। इस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमसे कोई हमारे बारे में पूछता है तो हम अपने परिचय में अपना नाम व काम बताकर कहते हैं कि हम फलां गुरू के शिष्य है। जैसे मैं बांसुरी बजाता हूं। मैं पंडित रघुनाथ सेठ का शिष्य हूं। यह सुनकर सामने वाले के मन में सहज ही आपके प्रति एक श्रद्धा का भाव आ जाता है। साथ ही, मेरा मन भी गुरू के प्रति श्रद्धा-विनम्रता का भाव जाग जाता है। यानि मेरे से व्यक्तित्व से बड़ी सत्ता है मेरे गुरू की। यह बड़ी सामान्य-सी बात है। ऐसे में यह परंपरा अहंकार को विलीन कर के हमारी अस्मिता की रक्षा करता है। वह अहंकार सार्थक होता है और एक सकारात्मक दिशा में जाता है। जैसे ही अहंकार हमारे तक सीमित हो जाता है, वैसे ही हम कहते हैं कि हमारा तो कोई गुरू ही नहीं है। मैंने तो ऐसे ही सीख लिया। अपने ही दम पर किया है। इस स्थिति में अहंकार बहुत बढ़ जाता है। अहंकार जब बड़ा रूप लेता है, तब वह घातक है। यह सर्वविदित है कि जब रावण जैसे ज्ञानी का अहंकार नहीं रहा तो हम तुच्छ कलाकार क्या हैं? क्योंकि रावण और राम में अंतर अहंकार का ही तो था। राम समर्थवान थे। फिर भी, उन्होंने भगवान शिव की अराधना किया। ताकि अपने अहंकार को शिव और शक्ति में विलीन कर रहे हैं। अब मेरी जीत और हार की जिम्मेदारी उनकी है। लेकिन, रावण ने ऐसा नहीं किया। 


युवा कलाकारों को शास्त्रीय संगीत और नृत्य के प्रति रूझान पैदा करने के लिए क्या किया जा सकता है?

चेतन जोशी-युवाओं की दो श्रेणी है। एक जो परफाॅर्मर बनना चाहते हैं और दूसरे जो अच्छे श्रोता बन सकते हैं। मेरा मानना है कि अगर आप किसी कार्यक्रम में शास्त्रीय कलाओं को देखने या सुनने जाते हैं तब आप अपनी पांच हजार साल पुरानी परंपरा से जुड़ते हैं। हमारी परंपरा इतनी सशक्त है कि गांव या शहर कहीं भी बांसुरी वादन पेश करता हूं तब वाह! या क्या बात है! सहज ही सुनने को मिलता है। इसका मतलब तो यही है कि लोगों को शास्त्रीय संगीत पसंद आता है या अच्छा लगता है।

4 comments:

  1. Pandit chethan joshi ji a very great artist and a guru too,so down to earth person

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  2. Very nice article. Congrats Shashi ji and Chetan ji.

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  3. Beautiful words from a pretty lady on a fantastic person

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  4. Absolutely brilliant replies Shri Chetan Ji. Thanks also to the interviewer foe bringing out the best of Chetan ji. A nice friend, a great human being and a grand artiste. Good wishes chetan ji.

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