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Tuesday, March 16, 2021

shashiprabha: नृत्य रचना -ताना बाना में स्व की तलाश-शशिप्रभा तिवारी

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नृत्य रचना -ताना बाना में स्व की तलाश-शशिप्रभा तिवारी

 

नृत्य रचना -ताना बाना में स्व की तलाश-शशिप्रभा तिवारी

अन्वेषणा सोसायटी फाॅर परफाॅर्मिंग आट्र्स की संस्थापिका, नृत्यांगना और कोरियोग्राफर संगीता शर्मा हैं। वह कहती हैं कि दरअसल, अन्वेषणा-नृत्य की भावनात्मक गतियों के जरिए यानि ‘स्व की खोज‘ की निरंतर यात्रा है। अन्वेषणा से जुड़े कलाकारों के लिए ‘नृत्य‘ रोजमर्रे की जिंदगी की गतिविधियों से जुड़ने का जरिया है। अपनी प्रस्तुतियों और पारखी नजरों के माध्यम से अन्वेषणा के कलाकार कला और साहित्य को नृत्य में पिरोकर, अनूठे अंदाज में पेश करते हैं।
संगीता शर्मा की नृत्य नाटिकाएं-अथिरथी, नमामि सरस्वती, छत्रपति शिवाजी, बहती गंगा काफी चर्चित रहे हैं। इन नृत्य रचनाओं में महाभारत के प्रसंग, सामाजिक मुद्दों, बालिका भ्रूण हत्या, पर्यावरण सुरक्षा जैसे विषयों का विवेचन किया है। उन्होंनं मीरा बाई और गुरू रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं पर भी नृत्य रचनाएं पेश की हैं। उन्हें आईसीसीआर, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संस्कृति मंत्रालय, साहित्य कला परिषद जैसी संस्थाओं के साथ काम करने के अवसर मिले हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से अपनी कोरियोग्राफी के जरिए नए-नए विषयों को नृत्य के जरिए पेश किया है।

पिछले दिनों कथक केंद्र के विवेकानंद सभागार में अन्वेषणा सोसायटी फाॅर परफाॅर्मिंग आट्र्स के कलाकार नृत्य नाटिका ‘ताना बाना-तलाश एक चरखे की‘ पेश किया। नृत्य नाटिका ‘ताना बाना-तलाश एक चरखे की‘ की कोरियोग्राफर और आर्टिस्टिक डायरेक्टर संगीता शर्मा थीं। इसके बारे में वह बताती हैं कि वास्तव में, यह नृत्य नाटिका महात्मा गांधी और संत कबीर के विचारों की यात्रा। हम समकालीन समाज को उनकी जड़ों और प्रकृति की ओर मोड़ने का प्रयास करते हैं। इस तलाश, इस खोज, इस यात्रा में बीते कल से आज को जोड़ने की कोशिश भी शामिल है।


संत कबीर के दोहों के बोल-‘झीनी-झीनी चदरिया‘ पर नृत्य आरंभ होता है। इसके जरिए कलाकार बताते हैं कि संत कबीर की नजर में हमारा यह शरीर बहुत कोमल और नाजुक ताने-बाने पर बुने गए चादर की तरह है। यह चादर रूपी तन सूत आठ कमल, पांच तत्वों और तीन गुणों के मेल से दस महीने की मेहनत से बुना गया है।

नृत्य रचना में कलाकारों ने दर्शाया कि संत कबीर की तरह गांधी जी भी चरखे के जरिए श्रम की महत्ता को रेखांकित करते हैं। वह सत्य को ही ईश्वर मानते थे। गांधी जी चरखा चलाते हुए, हर सूत में, हर धागे में, हर पूनी में, ईश्वर के दर्शन करते थे। गांधी जी के पास उनकी चार प्रिय चीजें-चश्मा, एक जोड़ी चप्पल, एक घड़ी, एक कटोरी व थाली और तीन बुद्धिमान बंदरों वाली मूर्ति होती थी। इन तीन बंदरों का जिक्र कन्फूशियस, ताओइज्म और शिंतोइज्म में भी हैं। जापानी संत शिंतो और गांधी जी के तीन बंदर में समानता है। शिंतो का पहला बंदर किकाजारू संदेश देता है-बुरा मत सुनो। दूसरा बंदर इवाजारू कहता है-बुरा मत बोलो। हमारी इच्छाएं, आकांक्षाएं, लालसाएं अनंत हैं। इंसान इन्हीं को पूरा करने में सारी जिंदगी खपा देता है। और वह जिंदगी के असल मकसद को कभी भूल जाता है तो कभी अपने मंजिल से दूर चला जाता है। वह प्रकृति के नियमों के विरूद्ध जाने से नहीं हिचकता। यही हमारी तलाश है, जिंदगी को नए सिरे से समझने की-कबीर और गांधी जी के चरखे के साथ, शिंजोेे और गांधी जी के बंदर के जरिए। इसे कई प्राप्स, सूत के रेशे और आधुनिक संचार साधनों के जरिए कलाकारों ने बहुत मार्मिक ढंग से निरूपित किया।

इस कोरियोग्राफी में कलाकारों ने गांधी जी के प्रिय रामधुन पर संदेश दिया कि इस कोविड-19 के संकट काल और पिछले लाॅकडाउन ने हमें जिंदगी को समझने का एक मौका दिया है। इसने हमें जिंदगी को न समझने की भूल और भटकाव को सुधारने का मौका दिया है। इसने हमें अवसर दिया है ताकि हम ब्रम्हाण्ड के पंाच तत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पवित्रता और महत्व को गहराई से समझने का। कोविड-19 संकट ने हमें पांच ज्ञानेंद्रियों को फिर से जागृत करने का अवसर दिया है। हमें अपने ताने-बाने खुद से गढ़ने होंगें। आधुनिक सुख-सुविधाओं और विकास के बावजूद हमें अपने जड़ों से जुड़ने के प्रयास खुद करने होंगें।

संगीता शर्मा के साथ नृत्य में सहयोग देने वाले साथी कलाकार हैं-सुभाशीष डे, अदिति चटर्जी, तान्या गोस्वामी, उमेश बिष्ट और तुषार यादव। संगीत शर्मा पिछले तीस सालों से आधुनिक व समकालीन नृत्य से जुड़ी हुई हैं। वह भारत में आधुनिक नृत्य शैली के जनक पंडित उदयशंकर के शिष्य और भूमिका डांस कंपनी के संस्थापक पंडित नरेंद्र शर्मा की शिष्या हैं। नृत्यांगना संगीता शर्मा आधुनिक नृत्य शैली और वेस्टर्न कन्टेम्पररी डांस में स्पेशलाइज्ड हैं। इसके अलावा, उन्होंने योग, लोक कला, थिएटर, मार्शल आर्ट, कलरीपयटु, छऊ भी सीखा है। उन्होंने रूस, पोलैंड, जर्मनी, पनामा, दक्षिण कोरिया, क्रोएशिया आदि देशों में नृत्य समारोह में शिरकत किया है। वहां उन्होंने कार्यशालाओं के दौरान कलाकारों को प्रशिक्षण भी दिया है।

Saturday, March 6, 2021

shashiprabha: दीक्षा समारोह का आयोजन

shashiprabha: दीक्षा समारोह का आयोजन:                                                             दीक्षा समारोह का आयोजन ...

दीक्षा समारोह का आयोजन

                                                          दीक्षा समारोह का आयोजन

शशिप्रभा तिवारी

इन दिनों राजधानी में सांस्कृतिक गतिविधयां धीरे-धीरे होनी शुरू हो गया है। इसी क्रम में संस्कृति मंत्रालय, संगीत नाटक अकादमी और कथक केंद्र की ओर से दीक्षा समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में जयपुर घराने की गुरू नंदिनी सिंह ने कथक नृत्य और परंपरा के बारे में बताया। जबकि, अन्य कलाकारों ने समारोह में अपनी-अपनी पेशकश से उपस्थिति दर्ज किया।

पांच दिवसीय समारोह का आरंभ श्रुति सांगीत सत्र से हुआ। बाईस फरवरी को समारोह की पहली पेशकश प्रदीप कुमार पाठक की थी। उन्होंने तीन ताल में बनारस और लखनऊ घराने का अंदाज पेश किया। सतीश शुक्ल ने कथक के ताल पक्ष पर चर्चा किया। वहीं, पंडित विश्वनाथ मिश्र ने कथक केंद्र के ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि के बारे में चर्चा किया। उन्होंने कथक नृत्य और तबले के बोलों के अंतर व उनके सामंजस्य के बारे में विस्तार से बताया। इसके अलावा, पंडित फतह सिंह गंगानी ने पखावज वादन पेश किया।

इस समारोह में गजल गायक जितेंद्र सिंह ने गायन पेश किया। उन्होंने गणेश वंदना ‘प्रथम सुमिर श्रीगणेश‘ से गायन का आगाज किया। इसके बाद, पंडित बिंदादीन महाराज रचित भजन ‘ऐसो राम हैं दुखहरण‘ को सुरों में पिरोया। पंडित बिरजू महाराज की रचना को उन्हांेने अपने सुरों में ढाला। फिर, शायर बिस्मिल की गजल ‘महफिल में बार-बार उसी पर नजर गई‘ और शायर कमर जलालाबादी की गजल ‘मेरा खामोश रहकर भी तुम्हें सब कुछ सुना देना‘ की पेशकश मोहक रही। गायक जितेंद्र ने होली ‘आज बृज में होरी रे रसिया‘ को गाया। उन्होंने बनारस घराने की खास होली ‘खेलें मसाने में होली दिगंबर‘ पेश की। पंडित छन्नू लाल मिश्र की गाई इस होली को जितेंद्र सिंह ने अपने अंदाज में गाया। अपनी गायकी का समापन राग भैरवी से किया। उनकी गायकी को तबला वादक राहुल विश्वकर्मा और बांसुरी वादक अतुल शंकर ने और रसमय बना दिया।

गायक जितेंद्र सिंह


वरिष्ठ गुरू और कथक नृत्यांगना नंदिनी सिंह


दीक्षा समारोह की खास आकर्षण वरिष्ठ गुरू और कथक नृत्यांगना नंदिनी सिंह थीं। उन्होंने जयपुर घराने की विरासत को बखूबी पेश किया। गुरू नंदिनी सिंह ने टुकड़े, तिहाई, परण, गत निकास, गत भाव आदि की बारीकियों को हस्तकों और मुद्राओं के जरिए दर्शाया। उन्होंने बताया कि कथक नृत्य सीखने के लिए देखना, परखना और सीखना जरूरी है। एक समय था कि जब हम घंटों रियाज करते थे तो पसीने-पसीने हो जाते थे। कथक में घराने के बजाय सुंदर और अतिसंुदर कथक कहना बेहतर है। कथक एक लंबी यात्रा है इसे लगातार साधना से सीखा और संवारा जा सकता है।
कथक नृत्यांगना नंदिनी सिंह के साथ संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-तबले पर शकील अहमद, सारंगी पर नासिर खां और गायन पर इमरान खां। उनकी शिष्याएं सौम्या, ख्याति, प्रियंका, श्रीवर्णा, शेफाली और डाॅ ़ऋचा दुआ ने नृत्य किया।