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Monday, December 4, 2023

चंद्रभागा का तट और कोणार्क समारोह 2023@शशिप्रभा तिवारी

                                    

                                              चंद्रभागा का तट और कोणार्क समारोह 2023

                                                    @शशिप्रभा तिवारी

वैसे देश के कई हिस्सों में कई समारोह में शिरकत होने का अवसर मिलता है। पर कोणार्क में दर्शकों की सहभागिता अद्भुत है। हर शाम कोणार्क समारोह स्थल से लेकर चंद्रभागा समुद्र तट तक दर्शकों का मेला लगा हुआ है। यह समारोह एक दिसंबर को शुरू हुआ। कल शाम यानी चार दिसंबर समारोह की चैथी संध्या थी। समारोह स्थल पर जगमगाती लड़ियां और तोरण रोशन थे। वहीं मेला स्थल पर झूले और दुकानों पर लोगों का मेला था। जबकि, समुद्र तट पर बालूका राशि से बनी कलाकृतियों को देखने वालों का तांता लगा हुआ था। पूरे पांच-छह किलोमीटर तक फैला यह समारोह स्थल कला की अद्भुत संयोग और कला के साक्षी जनों का सैलाब भारत की कलाओं पर गर्व करने का एक अहसास देता है। 

कोणार्क समारोह की 4 संध्या मोहिनीअट्टम नृत्य लास्य अकादमी आॅफ मोहिनीअट्टम के कलाकारों ने पेश किया। जबकि ओडिशी नृत्य कैशिकी डांस अकादमी के कलाकारों ने पेश किया। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन गुरु कलामंडलम शंकरनारायणन की शिष्या रही हैं। उन्होंने शांतिनिकेतन में कथकली और मोहिनीअट्टम नृत्य सीखा। कालांतर में वह त्रिशूर में मोहिनीअट्टम सिखाने लगीं। बहरहाल, कोणार्क समारोह में उन्होंने अपनी शिष्याओं के साथ शिवतत्वम् नृत्य रचना पेश किया। शिव तत्वम कुमारनाशन की मलयालम कविता ‘शिव तत्वम परम तत्वम्‘ और आदि शंकराचार्य की शिव पंचाक्षरस्त्रोत पर आधारित थी। इसमें बीजाक्षर-न-वशिष्ट, म-अगस्त्य, शि-गौतम, वा-इंद्र और य-यज्ञ की व्याख्या की गई थी। यह राग रेवती और केदार गौड़ में निबद्ध था। इस रचना की संगीत रचना कवलम नारायण पण्णिक्कर ने की थी। 



उनकी दूसरी पेशकश करूणा थी। इसमें सुंदरी वासवदत्ता के जीवन की कथा को वर्णित किया गया था। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध था। इसमें मोहिनीअट्टम के मोहक भाव, संचारी भाव और अभिनय का सुंदर समावेश था। नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन ने नायिका वासवदत्ता और अन्य नृत्यांगना ने नायक उपगुप्त के भावों का मनोरम विवेचन कर समां बांध दिया। उनकी प्रस्तुति कोणार्क समारोह में सबसे अन्यतम थी। कलिंग बौद्ध मत का केंद्र रहा है। यह बुद्धं शरणम् गच्छामि का संदेश देकर नृत्यांगना पल्लवी कृष्णन ने अपनी उत्कृष्ट रचनात्मकता का बोध करवाया। सरस संगीत और प्रकाश प्रभाव ने नृत्य प्रस्तुति को और आकर्षक बना दिया। 

मोहिनीअट्टम नृत्यांगना ने जहां अपनी प्रस्तुति का समापन करूण रस के प्रवाह से किया। वहीं अगली ओडिशी नृत्य प्रस्तुति में कैशिकी नृत्य अकादमी के कलाकारों ने अंत में चक्षोपनिषद के अंश ‘असतो मा सद्गमय‘ में शांति की कामना कर अपने नृत्य को एक अलग ही ऊच्च स्तर पर लेकर चली गईं। भारतीय कला की उदात्त भावना में कला इसी तरह की उच्च भावना की कामना करती है, कला दर्शक के मन को प्रकाशित कर देती है। यही अनुभूति आज की प्रस्तुतियों को देखकर हुई। वाकई, परंपरा का उजास अनोखा है। 

सूर्य स्तुति के साथ दक्षा मशरूवाला की शिष्याओं ने ओडिशी नृत्य आरंभ किया। उनकी दूसरी पेशकश रागमाला थी। रागमाला शास्त्रीय गायिका मालिनी राजुरकर की रचना ‘जय जगवंदनी‘ थी। इसकी संगीत रचना गायक मनोज देसाई ने की थी। नृत्य परिकल्पना दक्षा मशरूवाला की थी। इसमें देवी के शक्ति, जननी, सौंदर्य व दिव्य रूप का वर्णन राग दुर्गा, भोपाली, ललिता और कल्याणी के आधार पर किया गया था। उनकी दूसरी पेशकश जोग पल्लवी थी। यह ताल मालिका में निबद्ध थी। इसकी संगीत परिकल्पना जतीन साहू और नृत्य परिकल्पना नम्रता मेहता ने किया था। यह पल्लवी सौम्य, सरस, संतुलित और रसमय प्रस्तुति थी। कैशिकी के कलाकारों की अगली प्रस्तुति गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य रचना थी। यह बनमाली दास की उड़िया गीत ‘प्राण संगिनी रे कालि मुकि लाजे‘ पर आधारित थी। नृत्यांगनाओं ने गुरु केलु जी की कृति को बहुत विशुद्ध अंदाज में पेश किया। आंगिक और मुख अभिनय बहुत सहज थी। 





 


नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                        नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023

                                      शशिप्रभा तिवारी


युवा ओडिशी नृत्यांगना रोजलीना महापात्र ने देबदासी नृत्य संस्था की स्थापना की है। वह गुरु बिचित्रनंद स्वाईं, गुरु मनोरंजन प्रधान और गुरु गंगाधर प्रधान से ओडिशी नृत्य सीखा। इनदिनों वह वरिष्ठ नृत्य गुरु अरूणा मोहंती के सानिध्य में नृत्य की साधना कर रही हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में सरस्वती वंदना को समाहित किया। 34वें कोणार्क समारोह में रोजलीना महापात्र की नृत्य रचनाओं की संगीत रचना डाॅ सच्चिकांत नायक और ताल संरचना रामप्रसाद बेहरा ने की थी। 

रोजलीना महापात्र की शिष्यओं की पहली पेशकश राग मध्यमावती और एक ताली में निबद्ध सरस्वती वंदना थी। यह रचना ‘जय भगवती वर दे‘ पर आधारित थी। वाग्देवी सरस्वती के नील हंसवाहिनीे रूप का विशेष विवेचन नृत्यांगनाओं ने किया। उनकी अगली पेशकश पल्लवी थी। यह राग जनसम्मोहिनी और एक ताली में निबद्ध थी। आचार्य सुकांत कुंडू की संगीत रचना थी। नृत्यांगनाओं ने पल्लवी में विशेष रूप से तिहाइयों में पैर का विशेषकाम पेश किया। इसमें कथक के अंदाज में पद संचालन आकर्षक था। यह नया कलेवर मोहक था। इसमें लय का विलंबित से द्रुत लय की ओर विस्तार बहुत सुचारू रूप से दिखा। 

                                        

युगे-युगे अगली प्रस्तुति थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। इसमें द्वापर युग के राम और त्रेता युग के कृष्ण के लीलाओं को बहुत संक्षिप्त रूप में दर्शाया गया। आरंभ में जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी के जरिए रथ में आरूढ़ जगन्नाथ स्वामी को निरूपित करना, रोचक था। वहीं ‘विष्णुपति विष्णुपद रघुनाथ पति‘ के माध्यम से राम केवट प्रसंग का चित्रण मोहक था। नौका की गति को नृत्यांगनाओं ने भावपूर्ण अंदाज में दर्शाया। इसके अलावा, द्रौपदी वस्त्र हरण में दुशासन-द्रौपदी में संचारी भाव और अभिनय का प्रयोग मार्मिक था। अंत में ‘दयाकर दीनबंधु शुभेचाइ आज कर जोड़ी‘ में कृष्ण के अनादि, अनंत, हरि, जगतहितकारी, दशावतारी, मधुसूदन रूपों को मोहक अंदाज में दर्शाया। इस प्रस्तुति में त्रिभंगी और चैक भंगी का प्रयोग ओडिशी नृत्य को विशुद्ध रूप से उभरकर दिखा। जो संतोषजनक था। वरना आजकल, चैक और त्रिभंगी भंगिमाएं ओडिशी नृत्य में बहुत कम देखने को मिलती हैं। 

तीन दिसंबर की तीसरी संध्या में कोणार्क समारोह में कल्पवृक्ष डांस अन्सेम्बल के कलाकारों ने सत्रीय नृत्य पेश किया। डाॅ अन्वेषा महंता ने बायनाचार्य घनकांत बोरा से सत्रीय नृत्य सीखा है। उनकी पहली पेशकश परम लीला थी। यह राग रेपोनी में पिरोई गई थी। इसमें पुरुष कलाकारों खोल और मंजीरे के ताल आवर्तन पर अंग और पद संचालन प्रस्तुत किया। वैष्णव चेतना का संचार आंगिक विन्यास, हस्त व पद संचालन और खोल वादन में आकर्षक तौर पर सत्रीय प्रस्तुति के लिए सहज जमीन तैयार कर दिया। 

दूसरी पेशकश चाली रामदानी थी। यह श्रीमंत शंकरदेव की रचना पर आधारित थी। यह भगवान जगन्नाथ की वंदना थी। इसके बोल थे ‘जय जगन्नाथ जगत आदिनाथ‘। शुद्ध नृत्त पर आधारित प्रस्तुति में स्पेस, आंतरिक और भौतिक ऊर्जा का संवरण थी। प्रकृति पुरुष उनकी अगली पेशकश थी। सत्रीय नृत्य का मूल भक्ति है। नृत्यांगना अन्वेषा और साथी नृत्यांगनाओं ने पुरुष-कृष्ण और प्रकृति-राधा का दिव्य रूपायन पेश किया। शुरूआत भगवत पुराण के श्लोक पर आधारित थी। शंकरदेव की केलिगोपाल नाट में प्रेम से दिव्य प्रेम और आत्मा से परमात्मा क दिव्य मिलन था। दिव्य प्रेम की अनुभूति तथा अहंकार और संसार से विरक्त भावों का समावेश इस पेशकश में था। यह प्रस्तुति भक्ति श्रृंगार रस प्रधान थी। कई रचनाओं के अंशों ‘दैवीय गुणविभुं‘, ‘रंगे रंगे दया कुरु परम‘, ‘कृष्ण जीवन मम प्राण हरि‘ के माध्यम से कृष्ण की लीलाओं के साथ गोपिकाओं के विरह भावों का चित्रण नृत्यांगनाओं ने पेश किया। नृत्य में मृग, पक्षी, गज, गौ, मयूर की चाली भेद को खास रूप से दर्शाया गया। 


इस वर्ष कोणार्क समारोह में महिला नृत्यांगनाओं की उपस्थिति ज्यादा है। मंच पर पुरुष नर्तक कम नजर आ रहे हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण का यह समारोह अच्छी उपस्थिति दर्ज कर रहा है। 



Sunday, December 3, 2023

shashiprabha: कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी:                                                                  कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या                                           ...

कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या #@शशिप्रभा तिवारी

                                                                कोणार्क समारोह की द्वितीय संध्या

                                                                      @शशिप्रभा तिवारी


उड़ीस स्थित कोणार्क मंदिर के पृष्ठभूमि में कोणार्क समारोह आयोजित है। इस वर्ष समारोह की दूसरी संध्या में कुचिपुडी और ओडिशी नृत्य शैली का प्रदर्शन कलाकारों ने किया। दूसरी संध्या में दिल्ली से पधारे कलाकार गुरु जयराम राव और गुरु रंजना गौहर के निर्देशन में उनके साथी कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुत किया। 34वे कोणार्क समारोह के दौरान उड़ीसा के पुलिस महानिदेशक सुनील कुमार बंसल और आयकर विभाग के निदेशक संजय बहादुर दर्शक दीर्घा की शोभा बढ़ा रहे थे।



कुचिपुडी डांस अकादमी के कलाकारों ने मोहक कुचिपुडी नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आरंभ ओमकार से किया। यह प्रस्तुति श्लोक ‘ओमकार विंदु संयुक्तम्‘ पर आधारित थी। इस नृत्य प्रस्तुति का आरंभ धीमी गति से हुआ, फिर धीरे-धीरे नृत्य का विस्तार जैसे-जैसे हुआ, इसकी परिणति शुद्ध नृत्त जतीस्वरम में हुई। जतीस्वरम् राग हिंदोलम और आदि ताल में निबद्ध था। गायक के वंेकटेश के मधुर गायन और संगत कलाकारों की संगति से जतीस्वरम में आगे नृत्य का विस्तार मनोरम बन पड़ा। उनकी अगली पेशकश दशावतार थी। महाकवि जयदेव की रचना ‘प्रलय पयोधि जले‘ राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। बहुत ही संक्षिप्त अंदाज में विष्णु के दस अवतारों को नृत्यांगनाओं ने दर्शाया। इसमें नृत्य को बेवजह विस्तार नहीं दिया गया था। यती नारायण तीर्थ रचित दुर्गा तरंगम कुचिपुडी नृत्य शैली में प्रस्तुत किया गया। इसके शुरूआत में दुर्गासप्तशती के श्लोक के अंश ‘प्रथम शैलपुत्री द्वितीयम् ब्रह्मचारिणी‘ के जरिए नृत्यांगनाओं ने देवी के नौ रूपों को दर्शाया। फिर, रचना ‘जय-जय दुर्गे‘ व ‘सरस नुपुर पादे‘ के माध्यम से देवी के महिषासुरमर्दिनी रूप का विवेचन विस्तार से किया। नृत्य की पराकाष्ठा तरंगम का विशेष अंदाज पीतल की थाली पर पदसंचालन में दिखा। विभिन्न ताल अवर्तनों में सौम्य, प्रभावशाली और ऊर्जा से पूर्ण नृत्य था। प्रस्तुति को प्रकाश प्रभाव और संगीत ने और भी प्रभावशाली बना दिया। इस प्रस्तुति का समापन तिल्लाना से किया। यह राग बसंत और आदि ताल में निबद्ध था। इसमें देवी के रूप का विवेचन था। रचना-वंदे दुर्गा कमला कमलदल विहारिणी थी। 



ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर की संस्था कुचिपुडी डांस अकादमी के कलाकारों ने नृत्य रचना साक्षात्कार से किया। यह नंदिकेश्वर के अभिनयदर्पण के श्लोक पर आधारित ‘आंगिकम भुवनम आहार्यम्‘ पर आधारित थी। यह राग दरबारी और एक, जती व खेम्टा ताल में निबद्ध था। दूसरी प्रस्तुति राधा-रानी के जीवन पर आधारित थी। इसके लिए उड़िया गीत ‘राधा रानी संगे नाचे मुरलीपाणी‘ का चयन किया गया था। यह राग पीलू और एक ताली में निबहद्ध था। अगली पेशकश पल्लवी थी। यह राग भैरव और एक ताली में थी। उनकी प्रस्तुति का समापन उड़िया गीत ‘राधा रानी रास रंग‘ से किया। इसमें कृष्ण, राधा और गोपिकाओं के विभिन्न भावों का विवेचन पेश किया गया। रास और होली के प्रसंगों के जरिए नृत्य को विस्तार दिया गया। इस प्रस्तुति की परिकल्पना ओड़िशी नृत्यांगना रंजना गौहर ने की थी। संगीत आचार्य बंकिम चंद्र सेठी और रामचंद्र साहू की थी। 





 


Saturday, December 2, 2023

shashiprabha: उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी:                                                                                                      उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023     ...

उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                             उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023

                                                                @शशिप्रभा तिवारी


उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की पृष्ठभूमि में हर वर्ष कोणार्क नृत्य समारोह आयोजित होता है। इसका आयोजन उड़ीसा टूरिज्म डेवलपमंेट काॅपोरेशन, उड़ीसा संगीत नाटक अकादमी और ओडिसी रिसर्च सेंटर मिल कर करते हंै। करीब तीस वर्ष पुराने इस नृत्य उत्सव में देश के विभिन्न शास्त्रीय नृत्य को पेश किया जाता है। यह समारोह एक से पांच दिसंबर 2023 तक आयोजित किया जाता है। तयशुदा तारीख होने से स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी बड़ी संख्या में इस समारोह को देखने कोणार्क पहुंचते हैं। जबकि, हर नर्तक या नर्तकी का सपना होता है कि वह कोणार्क नृत्य समारोह में एक बार जरूर शिरकत करे। 



ओडिशी नृत्यांगना ज्योत्सना रानी साहू और साथी कलाकारों की ओडिशी प्रस्तुति से कोणार्क नृत्य समारोह का आगाज हुआ। सूर मंदिर के इन कलाकारों ने नृत्य रचना नाद निनाद से नृत्य आरंभ किया। इसमें जगन्नाथ वंदना और सूर्य मंत्र-आदित्यअराधना थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। दूसरी पेशकश शरणम थी। अभिनय आधारित इस प्रस्तुति में भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को दर्शाया गया। इसे राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध किया गया। इस प्रस्तुति में गजेंद्र मोक्ष, गोवर्धन पर्वत और द्रौपदी वस्त्र हरण प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘मुक्ति पथ शरणागति ताहि‘, ‘मानउद्धारण शरणम्‘, ‘नंदसुत कान्हा कहे‘ और संकीर्तन ‘हे कृष्णो‘ के जरिए कलाकारों ने विभिन्न प्रसंगों को आंगिक अभिनय और संचारी भावों के माध्यम से दर्शाया। 

ओडिशी नृत्य की इस प्रस्तुति में संगत कलाकारों में शामिल थे-पखावज पर सच्चिदानंद दास, वायलिन पर अग्निमित्र बेहरा, गायन पर नाजिया आलम व सत्यब्रत कथा, बांसुरी पर श्रीनिवास सत्पथी और मंजरी पर बैद्यनाथ स्वाईं। इस प्रस्तुति में संगीत परिकल्पना स्वप्नेश्वर चक्रवर्ती और ताल संरचना सच्चिदानंद दास की थी। 

कोणार्क समारोह में बंगलौर के चित्रकला नृत्य विद्यालय के कलाकारों की दूसरी प्रस्तुति थी। प्रवीण कुमार और साथी कलाकारों ने जतीस्वरम से भरतनाट्यम नृत्य आरंभ किया। सूर्य की वंदना के साथ जतीस की लयात्मक गतियां मोहक थीं। उनकी दूसरी पेशकश शिवांजलि थी। यह राग नटकुरंजी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसमें रचना ‘नटराज सच्चिदानंद‘ पर आधारित इस पेशकश में शिव से जुड़े प्रसंग का मोहक वर्णन पेश किया। उन्होंने तिल्लाना से प्रस्तुति का समापन किया। यह राग आभोगी और आदि ताल में निबद्ध था। इस तिल्लाना में कृष्ण और गोपिकाओं के श्रृंगारिक प्रसंगों का मनोहारी वर्णन पेश किया। उनके नृत्य में सुंदर सामंजस्य और तादाम्य नजर आया। प्रसंग के अनुरूप अभिनय में भी नवीनता, परिपक्वता और सामयिकता नजर आई। कलाकारों में भरतनाट्यम की लयात्मकता और गत्यात्मकता को बहुत सुघढ़ता और शालीनता के साथ पेश किया। 


Wednesday, November 15, 2023

shashiprabha: पंडित बिरजू महाराज को नृत्य नमन @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: पंडित बिरजू महाराज को नृत्य नमन @शशिप्रभा तिवारी:                                                 पंडित बिरजू महाराज को नृत्य नमन                                                     @शशिप्रभ...

पंडित बिरजू महाराज को नृत्य नमन @शशिप्रभा तिवारी

                                                पंडित बिरजू महाराज को नृत्य नमन

                                                    @शशिप्रभा तिवारी

अनंत नृत्य डांस एकेडमी फाउंडेशन की स्थापना कथक नृत्य युगल रीतब्रत और शताब्दी ने किया है। वह राजधानी दिल्ली में पिछले कई सालों से अपने फाउंडेशन के माध्यम से कथक नृत्य सीखा रहे हैं। पिछले दिनों मयूर विहार फेज वन के कात्यायिनी सभागार में उन्होंने नृत्य समारोह नमन का आयोजन किया। फाउंडेशन की ओर से यह पहला सांस्कृतिक समारोह आयोजित किया गया था। इस आयोजन में फाउंडेशन की छात्राओं ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। इसके अलावा, गुरु मालती श्याम और उनकी शिष्याओं ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। 

नमन समारोह पंडित बिरजू महाराज की स्मृति में आयोजित किया गया। इस समारोह का आगाज रीतब्रत और शताब्दी की शिष्याओं की प्रस्तुति से हुआ। यह प्रस्तुति में तीन रचनाओं को शामिल किया गया था। ये रचनाएं थीं-श्याम मूरत मन भाए, तराना और श्रीकृष्ण निरतत थुंग-थुंग। इस प्रस्तुति को पेश करने वाली शिष्याएं थीं- अंजलि, अनुसा, रिया, भाव्या, अक्षिता, आशि, पदमाक्षी, काव्या, मीरा और राधिका। 



समारोह में गुरु मालती श्याम की शिष्याओं ने मोहक नृत्य पेश किया। उनकी प्रस्तुतियो में तराना, कवित्त और छंदों को शामिल की गई। रचना ‘घनघोर बादल घनन-घनन‘ पर कृष्ण जन्म प्रसंग को दर्शाना सुंदर था। वहीं एक छंद ‘अवतार लेकर प्रगटे भगवन‘ का विवेचन बेहतरीन था। पंडित बिरजू महाराज की इन रचनाओं का प्रस्तुतिकरण गुरु शिष्य परंपरा की एक अच्छी मिसाल थी। चैताल में कथक की तकनीकी पक्ष को खासतौर पर उभारा गया। इसमें लयकारी, थाट, तिहाई, गत निकास को पेश किया गया। रचना ‘जटा शोभित गंगा‘ को नृत्य में सुंदर अंदाज में दर्शाया गया। इस पेशकश में मालती शर्मा की शिष्याएं-अश्विनी सोनी, गौरी शर्मा, आंचल रावत, निकिता वत्स, शुभी मिश्र, संस्कृति पाठक और फाल्गुनी शामिल थीं। 


बिरजू महाराज की कथक परंपरा को गुरु मालती श्याम ने बखूबी संभाला है। वह पिछले चार दशक से अपनी नृत्य साधना से इस परंपरा को निरंतर समृद्ध करती रही हैं। यह सराहनीय है कि वह कथक केंद्र के अलावा, अपने निजी प्रयासों से कथक को नया फलक प्रदान किया है। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आगाज गणेश वंदना से किया। इसके बोल थे-गजमुख बदन लागे अतिसंुदर‘। उन्होंने तीन ताल में शुद्ध नृत पेश किया। उन्होंने विलंबित लय में उठान, आमद, परण-आमद, थाट पेश किया। मध्य लय में उन्होंने बंदिश की तिहाई को पेश किया। इसमें बादल और बिजली की गति को पेश किया। परमेलू में पक्षी के अंदाज को दर्शाया। वहीं गतों में सादी गत, रूख्सार की गत और घूंघट की गत को विशेष तौर पर प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन अभिनय से किया। इसके लिए उन्होंने दादरा ‘छोड़ दे मोरी गुइयां संवरिया‘ का चयन किया था। 

इस समारोह में गुरु मालती श्याम ने बहुत परिपक्व नृत्य प्रस्तुत किया। उनके हर अंदाज में एक अनूठी चमक और बहाव था। जो शायद वर्षों के रियाज के बाद ही कोई कलाकार हासिल कर पाता है। उनकी इस पेशकश में संगत कलाकारों में शामिल थे-तबले पर योगेश गंगानी, पखावज पर शशिकांत पाठक, गायन पर जय दधीच, सारंगी पर नासिर खान। 



गुरु मालती श्याम के शिष्य और शिष्या-रीतब्रत चक्रवर्ती और शताब्दी सेनगुप्ता ने एक अच्छी शुरुआत की है। उन्होंने बहुत मन से विशिष्ट अतिथियों को आमंत्रित किया था। इस आयोजन में गुरु गीतांजलि लाल, कथक नर्तक दीपक महाराज, कथक नृत्यांगना ममता महाराज, ओडिशी नृत्यांगना कविता द्विवेदी और तबला वादक पंडित गोविंद चक्रवर्ती शामिल होने से इस समारोह की रौनक और बढ़ गई। 


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Saturday, September 16, 2023

shashiprabha: त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह संगीत सम...

shashiprabha: त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह संगीत सम...:                                          त्रिवेणी सभागार में   पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह                                           @ ...

त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह @ शशिप्रभा तिवारी

                                        त्रिवेणी सभागार में   पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह 

                                         @ शशिप्रभा तिवारी

राजधानी दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से संगीत समारोह का आयोजन बीते 12 सितंबर को संपन्न हुआ। इस ट्रस्ट की स्थापना दिसंबर 2018 में हुई थी। इसकी स्थापना डाॅ गीतांजलि चंद्रा ने की है।वह विख्यात तबला वादक पंडित कपिल देव सिंह की पौत्री हैं। यह ट्रस्ट स्वर्गीय पंडित कपिल देव सिंह की स्मृति में स्थापित की गई। पंडित कपिल देव सिंह देश के जाने-माने तबला वादक थे। वह बिहार की राजधानी पटना में रहते थे। पंडित कपिल देव सिंह को ताल सम्राट पंडित किशन महाराज जी के पहले शिष्य होने का गौरव मिला। वह पंडित जी के सबसे वरिष्ठ शिष्य थे। उम्र में वह अपने गुरु से मात्र एक साल ही छोटे थे। उन्होंने पटना में सुरताल संस्था की स्थापना की थी, जिसके जरिए लगभग 40 वर्षों तक लगातार संगीत समारोह का आयोजन करते रहे। उन्होंने कई उभरते हुए कलाकारों को मंच प्रदान किया। साथ ही, कई शिष्यों को भी तैयार किया। 


डाॅ बिपुल ने संतूर वादन की शिक्षा सूफियाना घराने के मशहूर संतूर वादक पद्मश्री पंडित भजन सोपोरी से प्राप्त की है। डाॅ बिपुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स, एमफिल एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। वह आकाशवाणी के ए ग्रेड कलाकार हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के प्रतिष्ठित श्रेणी में है। वह साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार के सांस्कृतिक सलाहकार एवं केंद्रीय विद्यालय गवर्निंग बाॅडी के सदस्य के रूप में अपनी सेवा प्रदान करते रहे हैं। वह मिश्र, आॅस्ट्रिªया, स्वीटजरलैंड, जर्मनी, कतर, चीन, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में संतूर वादन की सफल प्रस्तुति कर चुके हैं। वह तानसेन समारोह, आकाशवाणी संगीत सम्मेलन, कला प्रकाश, संगीत नाटक अकादमी समारोह, सप्तक, संगीत विहान आदि समारोहों में शिरकत कर चुके हैं। उन्हें अभी हाल ही में संपन्न जी-20 के आयोजन में भी विदेशी मेहमानों के समक्ष संतूर वादन का अवसर मिला। 

उस्ताद अकरम खां का संबंध अजराड़ा घराने से है। तबला वादक उस्ताद अकरम खां को उनके परदादा उस्ताद मोहम्मद शैफी खां और उस्ताद नियाजू खां से विरासत में मिली। वह परिवार परंपरा के सातवें पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। उन्हें अपने पिता उस्ताद हशमत अली खां का भी मार्गदर्शन मिला। उन्होंने तबला एकेडमी आॅफ अजराड़ा घराने की स्थापना की है। उन्हें उस्ताद विलायत खां, पंडित रविशंकर, पंडित राजन एवं पंडित साजन मिश्र, उस्ताद अमजद अली खां जैसे वरिष्ठ कलाकारों के साथ संगत किया है। उन्हें दिल्ली रत्न सम्मान, तबला भूषण, ज्ञानपीठ सम्मान, ताल सम्राट आदि सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।



संतूर वादक डाॅ बिपुल राय ने राग चंद्रकौंस बजाया। उन्होंने आलाप और जोड़ के बाद, विलंबित और द्रुत लय की गतों को पेश किया। दोनों गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। उनके साथ इस समारोह में उस्ताद अकरम खां ने तबले पर संगत किया। बिपुल का संतूर सुरीला और रसमय था। उनके साथ तबला वादक अकरम खां ने लयकारी का संुदर समायोजन पेश किया। 

हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका डाॅ सरिता पाठक यजुर्वेदी जी ने पंडित शंकर नाथ पाटिल जी से संगीत सीखना शुरू किया। गुरू शिष्य परंपरा में आप विदुषी सुलोचना वृहस्पति जी की सानिध्य में रहीं। रामपुर सहसवान घराने की प्रतिनिधि कलाकार डाॅ सरिता पाठक जी आकाशवाणी और दूरदर्शन की मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। आपने आकाशवाणी के लिए ‘उत्तराखंड के पर्वतों का संगीत‘, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उत्कर्ष केंद्र‘ जैसे धारावाहिकों का लेखन और प्रस्तुतिकरण किया है। आपने आचार्य वृहस्पति की 124बंदिशों को 24रागों में पिरोया है। यह आरकाइवल वर्क उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के लिए किया। 

संगीत समारोह में हिंदुस्तानी शास्त्री गायिका डाॅ सरिता ने राग केदार पेश किया। उन्होंने राग केदार मंे आचार्य वृहस्पति की रचनाओं को सुरों में पिरोया। पहली विलंबित लय की बंदिश ‘लाज रखो महाराज‘ झप ताल में निबद्ध थी। जबकि, उन्होंने द्रुत एक ताल में दूसरी बंदिश को पेश किया। इसके बोल थे-‘पायल की धुन‘। उन्होंने राग देश में कजरी ‘बरखा ऋतु बीत गए‘ को प्रस्तुत किया। उनके साथ तबले पर पंडित सुधीर पांडे और सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया थे। उनके अलावा, डाॅ सरिता के शिष्य उमेश साहू और शिष्या विधि सिंह ने तानपुरे पर संगत किया। 



पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह में अगली प्रस्तुति कथक नृत्य थी। इसे कथक नृत्यांकना सुश्री श्रुति सिन्हा जी पेश किया। वह लखनऊ घराने के पंडित मुन्ना शुक्ला जी की शिष्या रही हैं। इन दिनों वह श्रुति इंस्टीट्यूट आॅफ परफाॅर्मिंग आटर््स के जरिए कथक नृत्य के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं। श्रुति को महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान, मार्ग दर्शक सम्मान आदि सम्मान मिल चुके हैं। वह देश-विदेश के अनेक शहरों में कथक नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं। 


कथक नृत्यांगना श्रुति सिन्हा ने अपनी प्रस्तुति का आगार गणेश वंदना से किया। उन्होंने अपनी नृत्य का समापन अभिनय से किया। यह दादरा ‘छोड़ो छोड़ो बिहारी देखे सारी नगरी‘ पर आधारित थी। उनकी शिष्याओं ने गुरु नमन पेश किया। यह रचना ‘गुरु चरण में शीश नवाऊं‘ पर आधारित थी। इन शिष्याओं ने तराने पर कथक के तकनीकी पक्ष को उजागर किया। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं-नंदिनी, वान्या, निधि और श्वेता। 













Saturday, September 2, 2023

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...:                                                  भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा                                             ...

Wednesday, August 30, 2023

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...

shashiprabha: भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शश...:                                                  भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा                                             ...

भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा @ शशिप्रभा तिवारी

                                                 भूमि प्रणाम उत्सव में उपेक्षिता नायिका की कथा

                                                  @ शशिप्रभा तिवारी


इनदिनों ओडिशी नृत्य शैली में कई नई रचनाओं को कलाकार प्रस्तुत कर रहे हैं। आमतौर पर कृष्ण और उनसे जुड़े प्रसंगों को ओडिशी नृत्य में विशेषकर पेश किया जाता है। लेकिन, आजकल राम और उनसे जुड़े प्रसंगों व आख्याान को ओडिशी में प्रस्तुत करना आकर्षक है। रामचरित्र के विभिन्न प्रसंगों को ओडिशी के वरिष्ठ कलाकार रामली इब्राहिम पेश कर रहे हैं, जबकि, इस दृष्टि से जटायु मोक्ष गुरु केलुचरण महापात्र की अविस्मरणीय अभिनय की प्रस्तुति है। उनकी वह प्रस्तुति आज भी लोग याद करते हैं। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए, ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक ने उपेक्षिता नायिकाओं की परिकल्पना नृत्य में पेश किया। 


इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अल्पना की ओर से भूमि प्रणाम उत्सव का आयोजन किया गया। इस वार्षिक में ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक की शिष्याओं ने ओडिशी नृत्य पेश किया। नृत्य रचना उपेक्षिता की परिकल्पना अल्पना नायक ने की थी। यह बाल्मिकी रामायण, श्रीरामचरितमानस और अन्य रचनाओं पर आधारित थी। इस प्रस्तुति में अल्पना नायक ने उर्मिला और सूर्पणखा को नायिका के तौर पर दर्शाया गया। 

गुरु अल्पना नायक की शिष्या ने नायिका उर्मिला के भावों को बखूबी उकेरा। संवाद ‘मैं उर्मिला दशरथ की तृतीय पुत्रवधू‘ व ‘आज्ञा देते तो मैं संग जाती‘ और दोहा-‘जानकी लघु भगिनी सकल सुंदर शिरोमणि‘ के माध्यम से पीहू श्रीवास्तव ने उर्मिला के अभिनय और भाव को बारीकियों के साथ उकेरा। वहीं, दूसरी शिष्या ने सूर्पणखा के रौद्र भावों को अपने दमदार संचारी व आंगिक अभिनय के जरिए चित्रित किया। पंचवटी प्रसंग के साथ-साथ सूर्पणखा-रावण संवाद और सूर्पणखा-लक्ष्मण संवाद के जरिए कुछ नए भावों को भी अल्पना और उनकी शिष्याओं ने निरूपित किया। सूर्पणखा के बदले की अंतहीन भावना को व्याख्यायित किया। रावण और राम के युद्ध के दृश्य को छऊ नृत्य शैली में पिरोया गया। 


भूमि प्रणाम उत्सव के दौरान अल्पना के कलाकारों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामी, सरस्वती वंदना और गीत आइले मां सरस्वती निर्मल बाजे के जरिए यह नृत्य पिरोया गया था। दूसरी पेशकश चारूकेशी पल्लवी थी। इसमें पूर्णिमा की रात्री में नायिकाओं के उमंग और खुशी के भावों को शिष्याओं ने दर्शाया। शिष्याओं के भाव और भंगिमाओं में कोमलता और सौम्यता दिखी। वहीं, लय और ताल की आवृतियों में छंदात्मक गतियां मनोरम थीं। खासतौर नायिकाओं के भंगिमाओं को बैठकी मुद्रा और भंगिमाओं में दर्शाना चित्ताकर्षक थी। अगली प्रस्तुति अष्टपदी थी। जयदेव रचित गीत गोविंद की अष्टपदी ‘चंदन चर्चित नीलकलेवर‘ पर आधारित नृत्य में कृष्ण और गोपिकाआकें के भावों को चित्रण सहज और संुदर था। 

इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-गुरु अल्पना नायक, संतोष स्वाईं, सुदर्शन साहू, वैशाली सैनी, देविका सेठ, पीहू श्रीवास्तव, दिशा, यस्तिका, श्रेयषा, लविशा, नेरिशा, ईशिता, हंसिक, समीक्षा और नीमिशा। संगत करने वाले कलाकारों में प्रशात बेहरा, प्रफुल्ल मंगराज, प्रदीप्त महाराणा, धीरज पांडे, रविशंकर प्रधान, विभु प्रसाद त्रिपाठी, रमेश दास, श्रीनिवास सत्पथी आदि शामिल थे। इनके अलावा, गायिका विदुषी संगीता गोस्वामी और नाजिया आलम ने गीतों को सुरों में पिरोया था। यह एक अच्छी प्रस्तुति मानी जा सकती है। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में गुरु रतीकांत महापात्र और गुरु जयप्रभा मेनन की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। 


Tuesday, August 29, 2023

प्रीतिशा---ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी

                                                       प्रीतिशा---- ओडिशी नृत्य की चमक 

                                       @शशिप्रभा तिवारी


बीते 19 अगस्त को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सरोहा उत्सव का आयोजन किया गया। इसका आयोजन संचारी फाउंडेशन की ओर से किया गया। इस उत्सव के बारे में संचारी फाउंडेशन की संस्थापक कविता द्विवेदी ने बताया कि सरोहा उत्सव का आयोजन मैंने अपने गुरु हरिकृष्ण बेहरा की स्मृति में किया। इसका उद्देश्य युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना है। ताकि उनमें उमंग, उत्साह और आत्मविश्वास पैदा हो। 

                                          

सरोहा उत्सव में युवा ओडिशी नृत्यांगना प्रीतिशा महापात्र ने मोहक नृत्य पेश किया। नृत्यांगना प्रीतिशा, गुरु रतीकांत महापात्र और सुजाता महापात्र की शिष्या हैं। वह महान गुरु केलुचरण महापात्र की प्रपौत्री हैं। प्रीतिशा ने अपने परिवार परंपरा को बखूबी अपनाया है। उनका ओडिशी नृत्य के तकनीकी पक्ष के साथ अभिनय पक्ष काफी परिपक्व और सुदृढ़ है। जो उनकी लगन, मेहनत और प्रतिभा से संभव हुआ है। समारोह में उनकी प्रतिभा को गुरु हरिकृष्ण बेहरा सम्मान से सम्मानित किया गया। 



बहरहाल, सरोहा उत्सव 2023 में ओडिशी नृत्यांगना प्रीतिशा ने चंद्रकौंस पल्लवी पेश किया। यह राग चंद्रकौंस और पंचम सवारी ताल में निबद्ध थी। इसमें ताल के विभिन्न लय और अवर्तनों पर संतुलित गति और भंगिमाओं को पेश किया। तकनीकी पक्ष की यह लयात्मक प्रस्तुति आकर्षक थी। उनकी दूसरी पेशकश अभिनय थी। यह पेशकश भजन ‘श्रीरामचंद्र कृपालु भजुमन‘ और श्रीरामचरितमानस के दोहे-‘राम जब आए नर नारी सब मनाए‘ पर आधारित थी। 

यह राग मालिका और जती ताल में निबद्ध था। उन्होंने एकल संचारी में पूरे विस्तार से सीता स्वयंवर के विभिन्न पात्रों के भावों को बहुत चपलता और निपुणता से दर्शाया। क्षण-क्षण हर पात्र के भावों को मुख व आंखों के भावों के साथ-साथ आंगिक अभिनय का बहुत मनोहारी रूप प्रीतिशा ने पेश किया। उन्होंने अपने नृत्य से समारोह की प्रतिष्ठा को काफी बढ़ा दिया। 



सरोहा उत्सव में गुरु कविता द्विवेदी की शिष्याओं ने शिव स्तुति पेश किया। इस प्रस्तुति की नृत्य परिकल्पना गुरु कविता द्विवेदी और संगीत रचना पंडित सुरेश सेठी की थी। जबकि, गुरु संतोष नायर के शिष्य सुधीर कुमार और हिमेश पर्चा ने छऊ नृत्य शैली में नृत्य रचना योद्धा प्रस्तुत किया। वहीं तबला वादक मिहिर नट्टा ने तीन ताल में अपना वादन पेश किया। उन्होंने तीन ताल में उठान, तिहाइयां, कायदे, चक्रदार तिहाइयां आदि पेश किया। उनके साथ हारमोनियम पर पंडित सुरेश सेठी ने संगत किया।  



shashiprabha: प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक @ शशिप्रभा तिवारी:                                                        प्रीतिशा का ओडिशी नृत्य की चमक                                         @शशिप्रभा तिवा...

Wednesday, August 16, 2023

shashiprabha: खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी:                                                                                                                               खुद में कबीर, ...

खुद में कबीर, कबीर में हम @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   

                                                          खुद में कबीर, कबीर में हम         

                                                          @शशिप्रभा तिवारी


ओडिशी नृत्य की जानी-मानी नृत्यांगना हैं-रंजना गौहर। उन्होंने ओडिशी नृत्य के साथ-साथ कथक, छऊ और मणिपुरी नृत्य को भी जानने की कोशिश की है। नृत्यांगना रंजना गौहर ने कई गुरूओं से नृत्य सीखा। इनमें प्रमुख रहे हैं-गुरू मयाधर राऊत, आलोका पाणिकर और गुरू श्रीनाथ राउत। उन्होंने नलदमयंती, वसंुधरा, उदयास्थ, गीत-गोविंद, होली की कहानी, श्रवण कुमार, एकलव्य, अलीबाबा चालीस चोर जैसी नृत्य रचनाएं की हैं। जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा है। उन्हंे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्मश्री, इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवार्ड आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है। फिलहाल, रंजना गौहर ‘उत्सव डंास एकेडमी‘ के जरिए ओडिशी नृत्य की शिक्षा देती हैं और देश-विदेश में परफाॅर्मेंस देने में व्यस्त रही हैं। उनके शिष्य केविन बचन को पिछले दिनों संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा सम्मान प्रदान किया गया। 

पिछले दिनों नौ से दस अगस्त तक उत्सव की ओर से सारे जहां से अच्छा समारोह आयोजित किया गया। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में पहली शाम नृत्य रचना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ पेश की गई। समारोह के दूसरी संध्या में ओडिशी नर्तक और गुरु रंजना गौहर के शिष्य केविन बचन ने सीता के जीवन प्रसंग को पेश किया। जबकि मोहिनीअट्टम नृत्यांगना व गुरु जयप्रभा मेनन ने गंगावतरण के दृश्य का रूपायित किया। ओडिशी नृत्य युगल अशोक व बंदिता घोषाल ने अपने नृत्य में मानव जीवन में अहंकार की भूमिका को दर्शाया।


रंजना गौहर की नृत्य परिकल्पना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ की स्क्रिप्ट भीष्म साहनी की कृति कबीरा खड़ा बाजार पर आधारित थी। लेकिन, इस विषय को ओडिशी और समकालीन नृत्य शैली व अभिनय के साथ प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसे उन्होंने सूत्रधार के तौर पर बखूबी निभाया। नृत्य रचना का आरंभ संवाद ‘काशी के पास एक तालाब था लहरतारा तलाब‘ से होता है। यह संवाद ही, दर्शकों को बांध लेता है। साथ ही, संगीत और संवाद अदायगी रिकाॅर्डेड होते हुए भी प्रभावकारी थे। वहीं, कबीर की भूमिका में ओडिशी नर्तक केविन बचन ने अच्छे भाव को प्रकट किया। रचना ‘संत छाड़ि संत कोटिक मिले संता‘, ‘कबीरा जब हम पैदा हुए‘, ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘, ‘तूने रात गवाई खाए के‘, ‘आदि देव नमस्तुभ्यं‘, ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ‘, ‘नैया पड़ी मझधार‘, ‘करमगति टारी नाहीं टरे‘, ‘भजो रे मैया राम गोविंद हरि‘, ‘झीनी झीनी चदरिया‘ आदि को नृत्य रचना में पिरोया गया था। कबीर के जीवन चरित्र का यह चित्रण मार्मिक था। लोई की भूमिका में नृत्यांगना वृंदा ने मोहक नृत्य पेश किया। सामूहिक नृत्य में भी सभी नृत्यांगनाओं का आपसी संयोजन और तालमेल सुंदर और संतुलित था। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी। 

सारे जहां से अच्छा समारोह का आयोजन ओडिशी नृत्यांगना व गुरु रंजना गौहर पिछले अठारह सालों से राजधानी में आयोजित कर रही हैं। इस संदर्भ में वह कहती हैं कि विश्व में भारत एक ऐसा देश है, जहां की सांस्कृतिक विरासत अनूठी है। हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार ही हमारी पहचान है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखना देश के हर नागरिक और हर देशवासी का दायित्व है। हजारों साल की संस्कृति को संभाले रखना आज हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। हमारी संस्कृति में स्वतंत्रता को खास महत्व दिया गया है। हमारे यहंा पशु-पक्षी, पेड़-पौधों हर किसी के अस्तित्व को सम्मान और आदर दिया गया है। ऐसे में हमारे लिए हर नागरिक, हर इंसान, हर रिश्ता, हर चीज आदरणीय है। उसके अस्मिता को कायम रखने में मदद करना और उसे उन्मुक्त धरती और गगन में विचरण करने और जीवन जीने का अधिकार है। 

समारोह के दौरान ध्रुपद गायक उस्ताद वसीफुद्दीन डागर और बांसुरी वादक अजय प्रसन्ना को सम्मानित किया गया। इस समारोह में अतिथि के तौर पर कई वरिष्ठ नृत्यांगना और कलाकार उपस्थित थे। इनमें गुरु मंजुश्री चटर्जी, गुरु गीता चंद्रन, गुरु शोवना नारायण, गुरु प्रतिभा प्रहलाद, गुरु गीतांजलि लाल, गुरु कौशल्या रेड्डी, गुरु संतोष नायर की उपस्थिति ने समारोह की रौनक बढ़ा दिया।  





Wednesday, July 26, 2023

shashiprabha: सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी:                                                            सत्रीय नृत्य की नई पौध                                                           ...

shashiprabha: सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी:                                                            सत्रीय नृत्य की नई पौध                                                           ...

सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी

                                                           सत्रीय नृत्य की नई पौध

                                                               -शशिप्रभा तिवारी


सत्रीय नृत्य गुरू जतीन गोस्वामी ने कहा कि सत्रीय नृत्य को इक्कीसवीं सदी के आरंभ में बतौर शास्त्रीय नृत्य परंपरा मान्यता प्रदान की गई। यह श्रीमंत शंकर देव की एक महान देन है। माना जाता है कि इस नृत्य की शुरूआत 15वीं शताब्दी में वैष्णव संप्रदाय के संत श्रीमंत शंकर देव ने की थी। जबकि, अंकीय नाट की शुरूआत श्रीमंत शंकर देव के शिष्य श्रीमंत माधवदेव ने की। एक शरण धर्म यानि सत्र के प्रांगण में सत्रीय नृत्य को सत्र में रहने वाले ब्रम्हचारी शिष्य करते थे। वह सहज रूप में नाट्यशास्त्र, अभिनय दर्पण और संगीत रत्नाकर जैसे शास्त्रों के मार्ग का अनुसरण अपने नृत्य, नाट्य व नृत्त में करते थे। यह नवधा भक्ति का एक जीता-जागता स्वरूप है।

असम की युवा सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी इस नृत्य शैली को राजधानी दिल्ली और अन्य प्रदेशों में लोगों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं। मीनाक्षी मेधी ने अध्यापक जीवनजीत दत्ता और हरिचरण भइयां से सीखा है। उन्हें संस्कृति मंत्रालय का जूनियर फेलोशिप मिल चुका है। पिछले एक दशक से वह अपनी संस्था सत्कारा के जरिए युवाओं और किशोरों को सत्रीय नृत्य शैली सिखा रही हैं और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसी उद्देश्य नृत्य समारोह सुखानुभूति आयोजित की गई। 


सत्रीय नृत्य शैली में पिरोई गई प्रस्तुति सुखानुभूति में मनुष्य के अवतरण को पुरुष और प्रकृति के माध्यम से दर्शाया गया। पुरुष आदि निरंजन और प्रकृति महामाया के प्रतिरूप हैं। अपने दैवीय लीलाओं के जरिए सृष्टि, स्थिति, लय और पंचभूत के जरिए आदि निरंजन और महामाया नया सृजन करते हैं। अपने कर्तव्य के पालन के जरिए एक ओर जहां चित्त निर्मल होता है, वहीं दूसरी ओर स्वर्ग के सुख की अनुभूति होती है। इसी की झलकियां श्रवण कुमार, श्रीराम, सावित्री-सत्यवान आदि के प्रसंगों को पेश किया गया। 

नृत्य रचना के आरंभ में रचना ‘सर्वतीथमई माता सर्वदेवमयः पिता‘ के जरिए सूत्रधार का प्रवेश होता है। माता-पिता की भूमिका का चित्रण नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने पेश किया। अगले अंश में कलाकारों के दल ने मातृ-पितृ के सेवक पुत्र श्रवण कुमार के प्रसंग को चित्रित किया। इसके लिए रचना ‘नाम श्रवण अंध माता-पिता‘ का चयन किया गया था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास प्रसंग के माध्यम से राजा दशरथ के चरित्र को रूपायित किया गया। रचना ‘दशरथ राजा सूर्यवंश‘ पर आधारित इस अंश में सीता हरण से लेकर रावण वध के प्रसंग को बहुत संक्षिप्त रूप से पेश किया गया। अगले अंश में, ‘सत्यवान पतिव्रता सावित्री‘ के माध्यम से पतिव्रता सावित्री की कथा को निरूपित किया गया। वहीं, महापापी के माध्यम से कुपुत्र और व्यसनी संतान से पीड़ित और दुखी माता-पिता के भावों को दर्शाया गया। 

दरअसल, युवा प्रतिभाओं को सत्रीय नृत्य शैली से परिचित कराने का यह प्रयास अच्छा है। ऐसे की प्रयासों से कलाकार और प्रतिभा को मंच मिलता है, तो कला के विकास और संवर्द्धन में मदद मिलती है। इसी परिकल्पना सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने खुद की थी, इसलिए उनका उत्साहवर्द्धन जरूरी है। नृत्य परिकल्पना का आलेख श्रीराम कृष्ण महंत ने लिखा। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली प्रतिभाओं में शामिल थे-पार्थ प्रतीम, पापुल, रेखा, प्रेरीणे, एन एच राजेश, श्रेया, अनुराधा, कृष्णा, मानन्या, आद्रिति, देवनिता, नायरा, अदित्रि और रीयांशि। 






shashiprabha: रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण -शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण -शशिप्रभा तिवारी:                                                            रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण                                               ...

रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण -शशिप्रभा तिवारी

                                                           रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण  

                                                            -शशिप्रभा तिवारी

ऊषा आरके का नाम कला जगत में काफी लोकप्रिय है। इनदिनों ऊषा जी माॅस्को में भारतीय दूतावास के जवाहरलाल नेहरू संस्कृति केंद्र में बतौर निदेशक कार्यरत हैं। वह संस्कृति मंत्रालय में भी दायित्व निभा चुकी हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यूनेस्को से योग, कुंभ मेला, वाराणसी व चेन्नैई को सृजनात्मक नगर आदि परियोजना को मान्यता दिलाने में सफल रहीं। उन्हें शास्त्रीय संगीत और नृत्य जगत के अनेक कलाकारों के साथ कार्य करने के अवसर मिले हैं। इनदिनों वह देहरादून में रहकर सांस्कृतिक और कला परिदृश्य को नए आयाम से जोड़ने का प्रयास कर रही हैं। 


वैसे तो देखा जाए तो भरतनाट्यम और सुलेख या कैलिग्राफी में कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन, भारतीय परिदृश्य में मान्यता है कि सोलह कलाएं आपस में किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं। इस जुड़ाव का अहसास पिछले दिनों कार्यक्रम रामचित्र कथा में देखने को मिला। इसका आयोजन संस्कार भारती, संस्कृतिकर्मी ऊषा आर के और ओलंपस स्कूल ने किया। इस समारोह का आयोजन प्रांगण में दो सभाओं में किया गया। पहली सभा में सुलेख कलाकार परमेश्वर राजू ने कैलीग्राफी के जरिए मर्यादा पुरूषोत्तम राम की कथा का चित्रण पेश किया। वहीं सायंकालीन सभा में सत्यनारायण राजू ने भरतनाट्यम राम कथा नृत्य पेश किया। 


भरतनाट्यम नर्तक सत्यनारायण राजू ने नृत्य की शिक्षा कई गुरुओं से प्राप्त की है। इनमें गुरू नर्मदा, गुरु सुभद्रा प्रभु, डाॅ माया राव और चित्रा वेणूगोपाल हैं। उनके नृत्य में गजब की परिपक्वता और ठहराव है, जो उनकी नृत्य साधना को इंगित करती है। इस समारोह में उन्होंने अपने आंगिक भाव-भंगिमा और अभिनय के जरिए राम के चरित्र को प्रभावकारी और आकर्षक अंदाज में पेश किया। उनकी प्रस्तुति में भक्ति, करूण, वात्सल्य, रौद्र रस का सुंदर समागम था। उन्होंने अपने नृत्य में प्रत्येक प्रसंग के पात्रों को बहुत ही संजीदगी, चपलता और परिपक्वता से निरूपित किया। शुरूआत में राम स्तुति ‘मेलि को रामा सीता‘ में राम के राजराजेश्वर रूप का निरूपण था। वहीं, तुलसीदास रचित भजन ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया‘ के जरिए सत्यनारायण राजू ने कौशल्य के वात्सल्य भावों को दर्शाया। जबकि, अगले अंश में नर्तक सत्यनारायण राजू ने अहिल्या उद्धार, सीता स्वयंबर, राम वनगमन, कैकेई दशरथ संवाद आदि प्रसंगों को चित्रित किया। उन्होंने रचना ‘पट्टाभिषेक वेललो सीताराम‘ के जरिए अलग-अलग पात्रों का त्वरित निरूपण बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से किया। एक ओर मंथरा के भावों को अभिनीत किया वहीं, दूसरी ओर दशरथ के मनोभावों को आंखों के जरिए दर्शाना लासानी था। 



उन्होंने केवट प्रसंग के चित्रण को पेश किया। इसके लिए रचना ‘भजुमन रामचरण सुखदाई‘ का चयन किया गया। अगले अंश में सीता हरण और जटायु प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘महावीरा संपाती सोधरा दशरथ मित्राः‘ के जरिए इस प्रसंग को दर्शाया। इस प्रस्तुति में संगीत बहुत प्रभावकारी था। राम भक्त शबरी के भावों का प्रदर्शन बहुत प्रभावकारी था। रचना ‘शबरी दांतुल वरकांतुल जगमंत्र‘ के जरिए शबरी और राम के भावों को प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में प्रकाश प्रभाव का प्रयोग बहुत संुदर था और नर्तक सत्यनारायण का अभिनय भी बहुत मार्मिक था। उन्होंने रचना ‘हनुमंत देव नमो‘ में हनुमान के भावों को प्रदर्शित किया। इसके बाद लंका विजय के दृश्यों को दर्शाया। सत्यनारायण राजू ने अपनी प्रस्तुति का समापन तिल्लाना से किया। 

इस आयोजन के दौरान  उत्तराख्ंड  के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक सविता कपूर, चित्रकार कोइली, बलदेव पराशर, कुलदीप कुमार, सुबोध कुमार, ललित अकादमी के पूर्व सचिव सुधाकर शर्मा, सामाजिक  कार्यकर्ता अनुराग चैहान, संस्कार भारती के महानगर अध्यक्ष तनवीर सिंह और कोषाध्यक्ष् प्रेरणा गोयलकी उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। 




  


Monday, July 24, 2023

shashiprabha: आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं -शशिप्रभा ...

shashiprabha: आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं -शशिप्रभा ...:                                         आंध्रप्रदेश की  कलमकारी का कमाल दिखातीं                                               -शशिप्रभा तिव...

आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं -शशिप्रभा तिवारी

                                        आंध्रप्रदेश की  कलमकारी का कमाल दिखातीं 

                                             -शशिप्रभा तिवारी

कुचिपुडी नृत्यांगना और गुरु वनश्री राव ने आंध्रप्रदेश की नृत्य शैली कुचिपुडी को तो अपनाया ही है। उन्होंने वहां की चित्रकला शैली कलमकारी को नया रूपाकार देकर, एक नई पहल की है। उन्होंने अपने प्रयासों न सिर्फ सैकड़ों कलमकारी के चित्रकारों को बल्कि सैकड़ों दर्जियों को भी इस काम से जोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के स्वरोजगार और महिला सशक्तिकरण के संदेश को दिल से अपनाया है। उन्होंने कलमकारी के कलाकारों की कूची और चित्रकारी को परंपरागत साड़ी के अलावा उसे आधुनिक डिजाइन्स, पैटर्न और परिधानों से जोड़कर एक नई शुरूआत की है। उन्होंने कलमकारी के नए अवतार को आंगिकम नाम दिया है। उनके ब्रांड का नाम आंगिकम है। 


अक्सर, कलाकार अपनी कला को विस्तार देकर, उसे नया आयाम देते हैं। युवा कलाकारों को अपने साथ शामिल कर कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं। वहीं दूसरी ओर वह विभिन्न शैलियों की दूरियों को खत्मकर उन्हें जुड़ने का भी अवसर प्रदान करते हैं। कुचिपुडी नृत्य की वरिष्ठ नृत्यांगना व गुरु वनश्री राव ने अपने साथ भरतनाट्यम, कुचिपुडी और छऊ के कलाकारों को जोड़कर रसा यूनाइटेड की स्थापना की है। इसके जरिए उन्होंने कई नृत्य रचनाओें को पेश कर शास्त्रीय नृत्य जगत में एक नई पहल की है।  


आंध्रप्रदेश के मछलीपत्तनम और कलहस्ती जैसे शहर कलमकारी के मुख्य केंद्र हैं। इसके बारे में वनश्री राव बताती हैं कि कलमकारी पहले चित्र और मंदिर की दीवारों पर की जाती थी। लेकिन, अब इसके डिजाइन कपड़ों पर भी नजर आने लगी है। मैंने अपने डिजाइनर्स साड़ी और वीयर्स के लिए कलमकारी को ही चुना।



डिजाइनर वनश्री राव बताती हैं कि कलमकारी के कलाकार विश्वनाथ रेड्डी का मुझे खास सहयोग मिला है। वह हुनरमंद चित्रकार हैं। वह कलम के जरिए चित्रों को बनाते हैं और नेचुरल कलर के इंक का इस्तेमाल डिजाइन बनाने में करते हैं। कलमकारी के लिए वह 

बांस के टुकड़े या खजूर के पत्ते से कलम तैयारी करते हैं। डिजाइन की पैटर्न की आउटलाइन के लिए इमली की डाल को जला कर काली स्याही बनाई जाती है, उससे की जाती हैं। साथ ही, जिस कपड़े पर चित्रकारी की जाती है, उसे कई दिनों तक भैंस के दूध में भिंगोकर रखा जाता है, इससे चित्रकारी करना आसान हो जाता है। पर इसे सूखने में काफी समय लगता है। एक साड़ी को डिजाइन करने में तकरीबन छह महीने का समय लगता है।


वैसे तो कलमकारी के लिए चित्रकार अपनी कला मेें महाभारत, रामायण के साथ-साथ शिव पुराण और अन्य आध्यात्मिक और पौराणिक कथा को आधार बनाया जाता है। इस संबंध में फशन डिजाइनर वनश्री राव बताती हैं कि मैंने अपनी परिकल्पना से शिव विवाह, लोटस लेक व्यू जैसे नए कंसेप्ट को अपने साड़ी की डिजाइन के तौर पर इस्तेमाल किया है। इसे लोगों ने बहुत पसंद किया। 

आप संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित कुचिपुडी नृत्यांगना हैं। फिर, आप फैशन जगत में कैसे आईं? इस सवाल के जवाब में हंसते हुए, वनश्री राव बताती हैं कि शुरू-शुरू में मैं अपने लिए ब्लाउज और जैकेट्स वगैर डिजाइन करवा कर अपने टेलर से सिलवाती थी। उन्हें पहनकर मैं जब कभी किसी समारोह में जाती, तब लोग मुझसे पूछते कि आपने किस डिजाइनर से खरीदा है। उस समय मैं हंस कर टाल जाती थी। उसी दौरान, मेरे पति गुरु जयराम राव जी ने मुझसे कहा कि तुम अपना काम शुरू करो और इस उपक्रम के लिए उन्होंने मुझे करीब पच्चीस हजार रूपए भी दिए। यह बात वर्ष 2009 की है। इसके बाद, यह सिलसिला चल पड़ा। 

इस संदर्भ में वह आगे कहती हैं कि मैंने उन पैसों से दस डिजाइनर्स ब्लाउज तैयार किए। संयोग है कि उसी समय हमलोगों का सैन फैंसिस्को जाना हुआ। वहां मैं हर रोज साड़ी पहनती और तरह-तरह के अपनी डिजाइन की हुई तरह-तरह के ब्लाउज पहनती। हमारी आयोजिका जो खुद डांसर थी, मेरे ब्लाउज की डिजाइन से बहुत प्रभावित हुई। उसने मुझसे पूरे ब्लाउज ही खरीद लिया, इससे मेरा मनोबल और ऊंचा हो गया और आत्मविश्वास भी बढ़ गया। साड़ी और ब्लाउज के अलावा, जैकेट्स, कुर्ता, शाॅल, स्टाॅल, स्कर्ट आदि भी कलमकारी में लेकर आई। यह चुनौतीपूर्ण था। लेकिन, लोगों ने इस नए प्रयोग को पसंद किया। 

अमेरिका से लौटने के बाद, मैंने फिर से सात मंगलगिरि साड़ी खरीदकर, उसमें अपने स्केच को चित्रकार विश्वनाथ रेड्डी से बनवाया। सौभाग्यवश, उन डिजाइनर्स साड़ी पर कस्तूरी मेनन जी की नजर पड़ गई। वह उन दिनों कमला क्राफ्ट कौंसिल की अध्यक्ष थीं। उन्हें मेरी साड़ियां पसंद आ गईं, उन साड़ियों को उन्होंने कोलकाता के एक प्रदर्शनी में भेजा। उसके उद्घाटन के लिए मशहूर गायिका ऊषा उत्थुप आईं थीं। वह मुझसे मिलकर और मेरी डिजाइंस से बहुत खुश हुईं। इस तरह कोलाकाता में मेरे डिजाइन की बहुत मांग थी। इसी क्रम में जयपुर डाॅट काॅम वालों ने भी मेरी साड़ियांे को डिस्प्ले किया। उनके आॅन-लाइन शाॅपिंग में एक दिन में ही मेरी साड़ियां बिक जाती हैं। मेरे कस्टमर दुबई, लंदन, अमेरिका, आॅस्टेलिया आदि देशों में हैं। मुझे खुशी है कि तसलीमा नसरीन, रितु कुमार, सत्यपाॅल, नसरीन जैसे लोग मेरी डिजाइंस किए वीयर्स को पहनते हैं और उसे पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, मैं अपनी डांस कोरियोग्राफी में भी खुद के डिजाइन किए परिधान ही कलाकारों को पहनाती हूं। मेरे क्लाइंट्स में डाॅक्टर, प्रोफेसर, सांसद, आईएएस अधिकारी सभी शामिल हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। 

एक बिजनेस वीमेन के तौर पर वनश्री मानती हैं कि कोई भी व्यवसाय आपसी विश्वास पर चलता है। कोविड के समय जब काम लगभग बंद थे, तब भी मैंने अपने मास्टर टेलर अकरम और चित्रकार विश्वनाथ रेड्डी को उनके वेतन देती रही। हालांकि, वह मेरे लिए भी कठिन दौर था। कोविड के पहले मेरा हर महीने का छह से सात लाख का बिजनेस था। वह लगभग बंद हो गया था। इसके बावजूद मैं उनको हर महीने उनकी सैलरी देती रही ताकि उनको घर-गृहस्थी को चलाने में परेशानी नहीं आए।

गौरतलब है कि कुचिपुडी नृत्यांगना वनश्री राव ने गुरू जयराम राव और गुरू वेम्पति चिन्ना सत्यम से नृत्य सीखा है। वह नृत्य को अपना जीवन मानती हैं। कुछ साल पहले वह भूटान में नृत्य प्रस्तुत करने गईं थी। उसका जिक्र करते हुए, वह कहती हैं कि यात्रा के दौरान मुझे अहसास हुआ कि मेरी ऊर्जा और सक्रिया का एकमात्र स्त्रोत नृत्य है। इसलिए जब तक सांसे चलती रहेंगीं मैं युवा कलाकारों के साथ नृत्य करती रहूंगी। मेरी युवावस्था काफी संघर्षपूर्ण रहा। मुझे याद नहीं आता कि मैंने खुद को कभी सोलह या अठारह के उम्र की कोई रूमानियत पल में जीया हो। कभी यह लगा हो कि मैं बहुत खूबसूरत हूं या कभी खुद को संवारने की कोशिश की हो। उस समय तो सिर्फ एक ही सपना था, खुद को कामयाब बनाना है। मैं उस उम्र में भी अपनी जिम्मेदारी समझती थी, यह जानती थी कि मेरा एक फैसला मेरी जिंदगी के रूख को पूरी तरह बदल देगा। बहुत समझदारी और जिम्मेदारी से अपने कदम बढ़ाया करती थी। हां, मैंने जो भी करना चाहा, वो काम किया। क्योंकि, आज कल लोगों को उदास या अवसाद में देखती हूं कि वह अपने जीवन में करना कुछ और चाहते थे पर कुछ और ही करते रहे।

कुचिपुडी नृत्यांगना और डिजाइनर वनश्री राव कहती हैं कि दरअसल, बचपन में तो हमें समझ नहीं आता कि जिंदगी क्या है? पर किशोरावस्था आते-आते इतना समझ तो आने ही लगा कि जो जन्म लेगा, उसका मरना निश्चित है। यानी जीवन नश्वर है। इसलिए, यह जीवन मूल्यवान है। वैसे भी मानव जीवन एक बार ही मिलता है। मैं पुर्नजन्म में भी विश्वास करती हूं। हालांकि, यह पता नहीं कि अगला जन्म कब और किस रूप में होगा। क्यांेकि, मुझे लगता है कि एक जीवन में हम सब कुछ नहीं कर पाते, इसलिए हमारा पुर्नजन्म होता है। फिर, जीवन के इस मुकाम पर मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि बचपन और युवा अवस्था में बहुत संघर्ष की हूं। इस संघर्ष में मुझे अपने परिवार, भाई-बहन और पति का पूरा-पूरा साथ मिला। और मैंने जो भी चाहा वो काम किया और उसमें मुझे सफलता भी मिली।


Thursday, June 29, 2023

shashiprabha: गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौत...

shashiprabha: गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौत...:   गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां ----शशिप्रभा तिवारी जीवन में संगीत के सुर हैं और यह सुर ही जीवन है। यही भारतीय जीवन...

गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां -- शशिप्रभा तिवारी

 गुरू शिष्य परंपरा और वर्तमान परिस्थितियों की चुनौतियां

----शशिप्रभा तिवारी


जीवन में संगीत के सुर हैं और यह सुर ही जीवन है। यही भारतीय जीवन दर्शन है। जहां सुबह दिनचर्या की शुरूआत संगीत से होती है। हर काम को करते हुए, लोग गाते हैं। आमतौर पर यहां गाने-बजाने के लिए लोग किसी मंच या उत्सव या पर्व का इंतजार नहीं करते। ग्रामीण अंचल में गृहणी सुबह की शुरू अगर चक्की चलाने से करे या घर बुहारने से या अपने बच्चे को सुलाने के लिए भी वह गाती थी और गाती है। ये संगीत ही है, ये कला ही है और कलाकार मन ही है, जो हर हाल में जिंदगी को जीने का जज्बा देता है। लेकिन, पिछले वर्ष यानि 2020के मार्च महीने से ही जिंदगी ऐसा लगता है कि रूक गई है। इस दौर में, देश के कलाकार भी गहन पीड़ा से गुजर रहे हैं। और तो और गुरु-शिष्य परंपरा के सामने की चुनौतीपूर्ण स्थिति है। इस संदर्भ में,  पंडित बिरजू महाराज के विचार पेश है-



हम कलाकारों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। जो कलाकार अपने संगीत और नृत्य के जरिए लोगों को कुछ देर के लिए ही सही सांसारिक परेशानियों से हटाकर दो-तीन घंटे के लिए अलग कर देते थे। उनको मानसिक शांति मिलता था। लोग एक जगह बैठकर हम कलाकारों को देख-सुन रहे हैं। उन्हें आनंद की प्राप्ति हो रही है। अब हम ऐसे क्षण का इंतजार कर रहे हैं। वो समय अच्छा आएगा है। सबको ताजगी देगा।

हम लोग तो बेताब हो रहे हैं कि हमें स्टेज पर और दर्शकों के सामने नृत्य प्रस्तुत करने का अवसर कब मिलेगा। कोलकाता, मलेशिया, मुम्बई की वर्कशाॅप मेरी कैंसिल हो गए हैं। मेरे शागिर्द कोलकाता में बहुत ज्यादा है। मेरे शिष्य-शिष्याओं का फोन आता है, सब मुझसे मिलने को बेचैन है। पर हालात ऐसे हैं कि सब मजबूर है। 

एक गुरु के रूप में मैं युवा कलाकारों को तसल्ली को बनाए रखने और अपना ध्यान रखने की सलाह देता हूं। मैं खुद सुबह उठकर, ध्यान में चुपचाप बैठता हूं। अपने-आपको सोचता हूं मैंने क्या-क्या किया है? क्या करना है? कितना बाकी है। उसको पूरा करना और धैर्य का दामन पकड़े रहना है। शास्त्रीय संगीत और नृत्य को रियाज करना है। यहां तो हालत ऐसे ही हैं-जौन गत तोरी, वही गत मोरी।

एक उम्मीद का दीया मन में जलाए रखता हूं कि समय जरूर बदलेगा। खालीपन तो हमें भी महसूस होता है। मैं कविता-ठुमरी लिखता हूं। मेरी जिंदगी में रोज नया सृजन होता है। नहीं तो जिंदगी नीरस बन जाती है। आप हर पल कुछ नया तलाश पाते हैं, तो उसका आनंद ही अनूठा है। आप व्यस्त हों, आपके पास उदासी का समय कहां हैं? एक रोज की बात बताता हूं। हाल ही में, अचानक रात को तीन बजे नींद खुली। उस वक्त ध्यान में एक नई तिहाई बन गई। सो, अपने एक शागिर्द को फोन कर कहा कि एक नई तिहाई बनी है। इसे जल्दी से रिकार्ड कर लो। शायद, सुबह भूल जाऊं। 

क्रिकेट के खेल में दो खिलाड़ी खेलते हैं, कई खिलाड़ी बैठे रहते हैं। कई बार तो दूसरे खिलाड़ियों को खेलने का मौका भी नहीं मिलता है। लेकिन, उनको तो ईनाम में ही बहुत मिल जाता है। क्रिकेट खिलाड़ी सब करोड़पति बन जाते हैं। हमारे फिल्म वाले भी सम्पन्न हैं। लेकिन, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और लोक कलाओं से जुड़े कलाकारों की स्थिति डगमगाई हुई है। उन्हें रोजी-रोटी की भी किल्लत हो गई है। वह निराश हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे जीवन संघर्ष को जीतें। इस समय तो गुरूदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के शांति-निकेतन की बहुत याद आती है। उनकी एक कविता की पंक्ति भी मन दोहराता है-‘पर, हमें बराबर लगता यह, भागा जाता है समय कहीं, रग-रग में भरी हुई है जल्दी, हो जाए कहीं कुछ देर नहीं’। 

दरअसल, हम लोगों के जीवन में बाहर के आनंद नहीं भीतर के आनंद की बात कही जाती है। अगर, हमारे अंतस में, हमारे रियाज में आनंद का स्त्रोत मिल जाए, भीतर का झरना फूट पड़े तो हर स्थिति को हम सहन कर लेते हैं। यह तभी संभव है, जब हम खुद का तटस्थ निरीक्षण करते हैं। यह भारतीय कला हमारे अंतस का दीपक जलाती है। इस अंतस प्रकाश से हम सत्य को भली-भांति जान पाते हैं। फिर, हम जीवन की चैतन्यता, विराटता, विस्तार, अस्तित्व को जान पाते हैं। इस कठिन दौर में मैं युवा कलाकारों से यही कह रहा हूं, बार-बार कि समय कभी एक-सा नहीं होता है। हमें संघर्ष से जिंदगी के इस जंग को जीतना है, धैर्य रखना है। क्योंकि, सब दिन होत ना एक समाना। 


Friday, June 23, 2023

shashiprabha: गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी

shashiprabha: गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी:                                                               गुरु से बढ़कर कोई नहीं!                                                        ...

गुरु से बढ़कर कोई नहीं! -शशिप्रभा तिवारी

                                                             गुरु से बढ़कर कोई नहीं!

                                                              -शशिप्रभा तिवारी

भारतीय संस्कृति में गुरुओं का बड़ा महत्व रहा है। गुरु मानव रूप में नारायण ही हैं। गुरु अपने शिष्यों के जीवन से अंधकार मिटाकर उनके मार्ग को प्रकाशित करतें हैं। इस क्रम में शिष्य नर से नारायण के मार्ग पर अग्रसर होता है। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र दोनों को श्रीराम के गुरु के रूप में जाना जाता है। संदीपनी ऋषि के पास दीक्षा प्राप्त कर ही श्रीकृष्ण भगवान बने। आज भी शास्त्रीय नृत्य-संगीत के क्षेत्र में गुरु का मार्ग-दर्शन और शिक्षण का महत्व है। क्योंकि यह गुरुमुखी विद्या है। इसे गुरु के सानिध्य में  ही रहकर बेहतर तरीके से सीखा जा सकता है। इसकी झलक सुमधुर हंसध्वनि ट्रस्ट के आयोजन स्वर लहर में नजर आया। 





दरअसल, यह अवसर गुरु और शिष्य दोनों के लिए खास अवसर था। शास्त्रीय गायिका और गुरु विदुषी सुमित्रा गुहा को संगीत नाटक अकादमी सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया था। इसे ही उत्सव का रूप उनकी शिष्य-शिष्याओं ने दिया था। स्वर लहर समारोह का आयोजन सूरजकुंड में किया गया था। इसमें उनके शिष्य-शिष्याओं ने अपने गुरु को सुरों के जरिए आदरांजलि दिया। उनकी सामूहिक प्रस्तुति की शुरुआत गुरु वंदना से हुई। इसके बोल थे-‘गुरू चरणन में नमन करो‘। 

समारोह की मुख्य आकर्षण युवा शिष्या वसुधारा राॅय मुंशी थी। उन्होंने राग वृंदावनी सारंग में द्रुत एक ताल में बंदिश ‘आए मन रसिया मंदिरा बाजो‘ गाया। इसके बाद, उन्होंने राग यमन का आधार लेकर मीरा भजन प्रस्तुत किया। उनके साथ हारमोनियम पर अंकित कौल और तबले पर सोम चटर्जी ने संगत किया। गुरु सुमित्रा गुहा के एक अन्य शिष्य हेतार्थ चटर्जी ने अपनी कला को लोगों के सामने पेश किया। उन्होंने आरंभ में भजन ‘सुनी मैं हरि आवन की‘ गाया। इसके बाद, राग चारूकेशी में विलंबित लय की बंदिश ‘बाजे झनक मोरी पायलिया‘ पेश किया। फिर, द्रुत लय और एक ताल में निबद्ध रचना को पेश किया। इस राग में उन्होंने रचना ‘मंदरवा बाजो, संुदर गोपाल आयो‘ को सुरों में पिरोया।




समारोह में वरिष्ठ शिष्या अरूंधती ने राग बैरागी भैरवी में बंदिशों को पेश किया। उनकी प्रस्तुत रचनाओं के बोल थे-‘सांची सुरन सो गावो‘, ‘सुर से सुर साध ले‘ और साधो मान त्यागो‘। समारोह में पंडित अजय झा की शिष्या मल्लिका ने मोहनवीणा वादन पेश किया। मल्लिका ने राग शुद्ध सारंग को मोहनवीणा पर बजाया। इस कार्यक्रम का संचालन रूबी चटर्जी ने किया। समारोह में तबलावदक पंडित अनूप घोष और गौतम विश्वास की उपस्थित आकर्षक थी। उन्होंने अपने संगत के अंदाज से श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया। 


वास्तव में, विदुषी सुमित्रा गुहा की विद्वता और अपने शिष्यों के प्रति प्रेम भाव देखकर यही अहसास होता है कि भारतीय संस्कृति में स्थाई सामाजिक व सांस्कृतिक स्थिति का एक लंबा युग रहा है। यहां लोग स्वाभाविक रूप से सांसारिक सुख से परे जाकर अंदरूनी आनंद की ओर देखते रहे हैं। यही आध्यात्मिक चेतना और आत्मिक शक्ति हमारी विशिष्ट उर्जा का केंद्र है। हमारे चार पुरूषार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण पक्ष रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋषियों, गुरुओं, संतांे की प्रधानता रही है। ऋषि परंपरा का ही परिणाम है कि यहां गुरुओं का महत्व और सम्मान है। 


Tuesday, March 28, 2023

shashiprabha: रागांजलि और अनुनाद का आयोजन-महानाद महोत्सव -शशिप्र...

shashiprabha: रागांजलि और अनुनाद का आयोजन-महानाद महोत्सव -शशिप्र...:   रागांजलि और अनुनाद का आयोजन-महानाद महोत्सव शशिप्रभा तिवारी पिछले दिनों त्रिवेणी सभागार में महानाद महोत्सव का आयोजन किया गया। रागांजलि और अ...

रागांजलि और अनुनाद का आयोजन-महानाद महोत्सव -शशिप्रभा तिवारी

 रागांजलि और अनुनाद का आयोजन-महानाद महोत्सव

शशिप्रभा तिवारी



पिछले दिनों त्रिवेणी सभागार में महानाद महोत्सव का आयोजन किया गया। रागांजलि और अनुनाद अकदमी आॅफ परफाॅर्मिंग आट्र्स के संयुक्त तत्वावधान में इस महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव में युवा कलाकारों ने शिरकत किया।  

सितार वादक अंकुश एन नायक पेशे से इंजीनियर हैं। उन्होंने मेटलर्जी एवं मीटीरीयल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की है। वह मंगलौर निवासी अंकुश जी शोधार्थी एवं संगीतज्ञ है। उन्होंने 9 वर्ष की बाल्य अवस्था से सितार वादन धारवाड़ के उस्ताद रफीक खां से सीखना शुरू किया। बाद के समय में उन्होंने आईटीसी संगीत रीसर्च अकादमी, कोलकाता में सरोद वादक पंडित बुद्ध देव दासगुप्ता से वादन सीखा है। इसके अलावा अंकुश ने घटम वादन की शिक्षा विद्वान त्रिची के आर कुमार से सीखा। वह आकाशवाणी और दूरदर्शन के बी हाई ग्रेड के कलाकार हैं । अंकुश को अविनाश हेब्बार मेमोरियल युवा पुरस्कार, दक्षिणा कन्नड़ राज्योत्सव सम्मान, कला अर्पण जी सम्मान मिल चुके हैं। वह देश-विदेश में आयोजित होने वाले कई समारोहों में अपना सितार वादन पेश कर चुके हैं। 

महानाद महोत्सव में सितार वादक अंकुश नायक ने राग पटदीप बजाया। उन्होंने आलाप, जोड़ और झाले को पेश किया। इसके बाद, उन्होंने ग्यारह मात्रा और सोलह मात्रा में गतों को पेश किया। उनके साथ तबले पर जुहैब अहमद खान संगत किया। दोनों अच्छी सहचर की भूमिका में अपने वादन को पेश किया। अंत में सवाल-जवाब का अंदाज दर्शाया। 

      

समारोह के अगले कलाकार विजय कुमार पाटिल का शास्त्रीय गायन पेश किया।  विजय कुमार पाटिल किराना घराने के जाने-माने हस्ताक्षर कलाकार हैं। उन्होंने पंडित कैवल्य कुमार और पंडित संगमेश्वर गुरव से मार्गदर्शन प्राप्त किया है। खुली दमदार आवाज के गायक विजय कुमार हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अलावा मराठी नाट्य संगीत, कन्नड़ रंग गीत , अभंग, दसरा पड़ , भागवत गीत और वाचन के भी गुणी कलाकार हैं। वह हरवल्लभ संगीत समारोह, संकट मोचन संगीत समारोह, स्वर विलास संगीत सभा, सवाई गंधर्व महोत्सव, दसहरा उत्सव, आंध्र महोत्सव जैसे समारोह में शिरकत कर चुके हैं। 

गायक विजय कुमार पाटिल ने राग श्याम कल्याण प्रस्तुत किया। उन्होंने पहली बंदिश-मेरो लाल पेश किया। दूसरी बंदिश के बोल थे-आज श्याम मिलन भयो और ऐसा गुणी को मैं जानत हूं। उन्होंने दो अन्य रचनाओं को पेश किया। इनके बोल थे-जावो सैंया तुम हमसे न बोलो और रंग रंगीला छैल छबीला। गायक विजय कुमार ने भजन ‘जगत में जीना सीख ले भाई‘ से गायन का समापन किया। उनके साथ तबले पर केशव जोशी संगत कर रहे हैं। केशव जी पंडित आर एच मोरे और पंडित ईश्वर लाल मिश्र के शिष्य रहें हैं। उनको पंडित सूरज पुरंदरे का भी मार्गदर्शन मिला है। विजय कुमार के साथ हारमोनियम पर क्षितिज सिंह ने संगत किया। 

समारोह की अगली पेशकश बांसुरी जुगलबंदी थी। इसे मयंक रैना और रवींद्र राजपूत ने पेश किया। मयंक रैना युवा बांसुरी और सितार वादक हैं। उन्हें संगीत अपने दादा और पिता से विरासत में मिली है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दादा-पंडित ओमकार नाथ रैना और पिता-पंडित सुनील रैना से मिली। उन्हें प्रतिष्ठित सितार वादक पंडित देबू चैधरी से भी मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ है। वह आकाशवाणी से ए श्रेणी में मान्यता प्राप्त है। दूसरे बांसुरी वादक रवींद्र राजपूत गंधर्व महाविद्यालय से जुड़े हुए हैं। दोनों कलाकारों मयंक रैना और रवींद्र राजपूत ने राग दुर्गा में जुगलबंदी पेश की। उनके साथ तबले पर बिवाकर चैधरी और मृदंगम पर मनोहर बालाचंद्रन ने संगत किया। 

इस समारोह की मुख्य अतिथि प्रो अलका नागपाल और विशिष्ट अतिथि बनारस घराने के प्रतिष्ठित तबला वादक पंडित राम कुमार मिश्र थे। उनके अलावा, समारोह में कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह, संगीत नाटक अकादमी के डिप्टी सेक्रेटरी सुमन कुमार, सितार वादक उमा शंकर, शहनाई वादक लोकेश आनंद आदि की उपस्थिति ने समारोह की रौनक बढ़ा दी।

रागांजलि एकेडमी आॅफ परफाॅर्मिंग आटर््स राजधानी दिल्ली में कार्यरत है। यह संस्था युवा कलाकारों को गायन, वादन और नृत्य प्रस्तुति के लिए प्रोत्साहित करती है। और उन्हें मंच भी उपलब्ध कराती है। रागांजलि अपने प्रयासों से भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन में जुटी हुई है। रागांजलि कुछ पश्चिमी वाद्य यंत्रों और नृत्य के लिए ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाती है। इसके संस्थापक संतूर वादक डाॅ बिपुल कुमार राय हैं।