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Wednesday, July 26, 2023

सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी

                                                           सत्रीय नृत्य की नई पौध

                                                               -शशिप्रभा तिवारी


सत्रीय नृत्य गुरू जतीन गोस्वामी ने कहा कि सत्रीय नृत्य को इक्कीसवीं सदी के आरंभ में बतौर शास्त्रीय नृत्य परंपरा मान्यता प्रदान की गई। यह श्रीमंत शंकर देव की एक महान देन है। माना जाता है कि इस नृत्य की शुरूआत 15वीं शताब्दी में वैष्णव संप्रदाय के संत श्रीमंत शंकर देव ने की थी। जबकि, अंकीय नाट की शुरूआत श्रीमंत शंकर देव के शिष्य श्रीमंत माधवदेव ने की। एक शरण धर्म यानि सत्र के प्रांगण में सत्रीय नृत्य को सत्र में रहने वाले ब्रम्हचारी शिष्य करते थे। वह सहज रूप में नाट्यशास्त्र, अभिनय दर्पण और संगीत रत्नाकर जैसे शास्त्रों के मार्ग का अनुसरण अपने नृत्य, नाट्य व नृत्त में करते थे। यह नवधा भक्ति का एक जीता-जागता स्वरूप है।

असम की युवा सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी इस नृत्य शैली को राजधानी दिल्ली और अन्य प्रदेशों में लोगों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं। मीनाक्षी मेधी ने अध्यापक जीवनजीत दत्ता और हरिचरण भइयां से सीखा है। उन्हें संस्कृति मंत्रालय का जूनियर फेलोशिप मिल चुका है। पिछले एक दशक से वह अपनी संस्था सत्कारा के जरिए युवाओं और किशोरों को सत्रीय नृत्य शैली सिखा रही हैं और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसी उद्देश्य नृत्य समारोह सुखानुभूति आयोजित की गई। 


सत्रीय नृत्य शैली में पिरोई गई प्रस्तुति सुखानुभूति में मनुष्य के अवतरण को पुरुष और प्रकृति के माध्यम से दर्शाया गया। पुरुष आदि निरंजन और प्रकृति महामाया के प्रतिरूप हैं। अपने दैवीय लीलाओं के जरिए सृष्टि, स्थिति, लय और पंचभूत के जरिए आदि निरंजन और महामाया नया सृजन करते हैं। अपने कर्तव्य के पालन के जरिए एक ओर जहां चित्त निर्मल होता है, वहीं दूसरी ओर स्वर्ग के सुख की अनुभूति होती है। इसी की झलकियां श्रवण कुमार, श्रीराम, सावित्री-सत्यवान आदि के प्रसंगों को पेश किया गया। 

नृत्य रचना के आरंभ में रचना ‘सर्वतीथमई माता सर्वदेवमयः पिता‘ के जरिए सूत्रधार का प्रवेश होता है। माता-पिता की भूमिका का चित्रण नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने पेश किया। अगले अंश में कलाकारों के दल ने मातृ-पितृ के सेवक पुत्र श्रवण कुमार के प्रसंग को चित्रित किया। इसके लिए रचना ‘नाम श्रवण अंध माता-पिता‘ का चयन किया गया था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास प्रसंग के माध्यम से राजा दशरथ के चरित्र को रूपायित किया गया। रचना ‘दशरथ राजा सूर्यवंश‘ पर आधारित इस अंश में सीता हरण से लेकर रावण वध के प्रसंग को बहुत संक्षिप्त रूप से पेश किया गया। अगले अंश में, ‘सत्यवान पतिव्रता सावित्री‘ के माध्यम से पतिव्रता सावित्री की कथा को निरूपित किया गया। वहीं, महापापी के माध्यम से कुपुत्र और व्यसनी संतान से पीड़ित और दुखी माता-पिता के भावों को दर्शाया गया। 

दरअसल, युवा प्रतिभाओं को सत्रीय नृत्य शैली से परिचित कराने का यह प्रयास अच्छा है। ऐसे की प्रयासों से कलाकार और प्रतिभा को मंच मिलता है, तो कला के विकास और संवर्द्धन में मदद मिलती है। इसी परिकल्पना सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने खुद की थी, इसलिए उनका उत्साहवर्द्धन जरूरी है। नृत्य परिकल्पना का आलेख श्रीराम कृष्ण महंत ने लिखा। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली प्रतिभाओं में शामिल थे-पार्थ प्रतीम, पापुल, रेखा, प्रेरीणे, एन एच राजेश, श्रेया, अनुराधा, कृष्णा, मानन्या, आद्रिति, देवनिता, नायरा, अदित्रि और रीयांशि। 






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