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Monday, December 4, 2023

नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                        नृत्य की भंगिमाओं में सुसज्जित कोणार्क समारोह 2023

                                      शशिप्रभा तिवारी


युवा ओडिशी नृत्यांगना रोजलीना महापात्र ने देबदासी नृत्य संस्था की स्थापना की है। वह गुरु बिचित्रनंद स्वाईं, गुरु मनोरंजन प्रधान और गुरु गंगाधर प्रधान से ओडिशी नृत्य सीखा। इनदिनों वह वरिष्ठ नृत्य गुरु अरूणा मोहंती के सानिध्य में नृत्य की साधना कर रही हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में सरस्वती वंदना को समाहित किया। 34वें कोणार्क समारोह में रोजलीना महापात्र की नृत्य रचनाओं की संगीत रचना डाॅ सच्चिकांत नायक और ताल संरचना रामप्रसाद बेहरा ने की थी। 

रोजलीना महापात्र की शिष्यओं की पहली पेशकश राग मध्यमावती और एक ताली में निबद्ध सरस्वती वंदना थी। यह रचना ‘जय भगवती वर दे‘ पर आधारित थी। वाग्देवी सरस्वती के नील हंसवाहिनीे रूप का विशेष विवेचन नृत्यांगनाओं ने किया। उनकी अगली पेशकश पल्लवी थी। यह राग जनसम्मोहिनी और एक ताली में निबद्ध थी। आचार्य सुकांत कुंडू की संगीत रचना थी। नृत्यांगनाओं ने पल्लवी में विशेष रूप से तिहाइयों में पैर का विशेषकाम पेश किया। इसमें कथक के अंदाज में पद संचालन आकर्षक था। यह नया कलेवर मोहक था। इसमें लय का विलंबित से द्रुत लय की ओर विस्तार बहुत सुचारू रूप से दिखा। 

                                        

युगे-युगे अगली प्रस्तुति थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। इसमें द्वापर युग के राम और त्रेता युग के कृष्ण के लीलाओं को बहुत संक्षिप्त रूप में दर्शाया गया। आरंभ में जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी के जरिए रथ में आरूढ़ जगन्नाथ स्वामी को निरूपित करना, रोचक था। वहीं ‘विष्णुपति विष्णुपद रघुनाथ पति‘ के माध्यम से राम केवट प्रसंग का चित्रण मोहक था। नौका की गति को नृत्यांगनाओं ने भावपूर्ण अंदाज में दर्शाया। इसके अलावा, द्रौपदी वस्त्र हरण में दुशासन-द्रौपदी में संचारी भाव और अभिनय का प्रयोग मार्मिक था। अंत में ‘दयाकर दीनबंधु शुभेचाइ आज कर जोड़ी‘ में कृष्ण के अनादि, अनंत, हरि, जगतहितकारी, दशावतारी, मधुसूदन रूपों को मोहक अंदाज में दर्शाया। इस प्रस्तुति में त्रिभंगी और चैक भंगी का प्रयोग ओडिशी नृत्य को विशुद्ध रूप से उभरकर दिखा। जो संतोषजनक था। वरना आजकल, चैक और त्रिभंगी भंगिमाएं ओडिशी नृत्य में बहुत कम देखने को मिलती हैं। 

तीन दिसंबर की तीसरी संध्या में कोणार्क समारोह में कल्पवृक्ष डांस अन्सेम्बल के कलाकारों ने सत्रीय नृत्य पेश किया। डाॅ अन्वेषा महंता ने बायनाचार्य घनकांत बोरा से सत्रीय नृत्य सीखा है। उनकी पहली पेशकश परम लीला थी। यह राग रेपोनी में पिरोई गई थी। इसमें पुरुष कलाकारों खोल और मंजीरे के ताल आवर्तन पर अंग और पद संचालन प्रस्तुत किया। वैष्णव चेतना का संचार आंगिक विन्यास, हस्त व पद संचालन और खोल वादन में आकर्षक तौर पर सत्रीय प्रस्तुति के लिए सहज जमीन तैयार कर दिया। 

दूसरी पेशकश चाली रामदानी थी। यह श्रीमंत शंकरदेव की रचना पर आधारित थी। यह भगवान जगन्नाथ की वंदना थी। इसके बोल थे ‘जय जगन्नाथ जगत आदिनाथ‘। शुद्ध नृत्त पर आधारित प्रस्तुति में स्पेस, आंतरिक और भौतिक ऊर्जा का संवरण थी। प्रकृति पुरुष उनकी अगली पेशकश थी। सत्रीय नृत्य का मूल भक्ति है। नृत्यांगना अन्वेषा और साथी नृत्यांगनाओं ने पुरुष-कृष्ण और प्रकृति-राधा का दिव्य रूपायन पेश किया। शुरूआत भगवत पुराण के श्लोक पर आधारित थी। शंकरदेव की केलिगोपाल नाट में प्रेम से दिव्य प्रेम और आत्मा से परमात्मा क दिव्य मिलन था। दिव्य प्रेम की अनुभूति तथा अहंकार और संसार से विरक्त भावों का समावेश इस पेशकश में था। यह प्रस्तुति भक्ति श्रृंगार रस प्रधान थी। कई रचनाओं के अंशों ‘दैवीय गुणविभुं‘, ‘रंगे रंगे दया कुरु परम‘, ‘कृष्ण जीवन मम प्राण हरि‘ के माध्यम से कृष्ण की लीलाओं के साथ गोपिकाओं के विरह भावों का चित्रण नृत्यांगनाओं ने पेश किया। नृत्य में मृग, पक्षी, गज, गौ, मयूर की चाली भेद को खास रूप से दर्शाया गया। 


इस वर्ष कोणार्क समारोह में महिला नृत्यांगनाओं की उपस्थिति ज्यादा है। मंच पर पुरुष नर्तक कम नजर आ रहे हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण का यह समारोह अच्छी उपस्थिति दर्ज कर रहा है। 



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