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Saturday, December 2, 2023

उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023 @शशिप्रभा तिवारी

                                             उड़ीसा का कोणार्क नृत्य समारोह 2023

                                                                @शशिप्रभा तिवारी


उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की पृष्ठभूमि में हर वर्ष कोणार्क नृत्य समारोह आयोजित होता है। इसका आयोजन उड़ीसा टूरिज्म डेवलपमंेट काॅपोरेशन, उड़ीसा संगीत नाटक अकादमी और ओडिसी रिसर्च सेंटर मिल कर करते हंै। करीब तीस वर्ष पुराने इस नृत्य उत्सव में देश के विभिन्न शास्त्रीय नृत्य को पेश किया जाता है। यह समारोह एक से पांच दिसंबर 2023 तक आयोजित किया जाता है। तयशुदा तारीख होने से स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटक भी बड़ी संख्या में इस समारोह को देखने कोणार्क पहुंचते हैं। जबकि, हर नर्तक या नर्तकी का सपना होता है कि वह कोणार्क नृत्य समारोह में एक बार जरूर शिरकत करे। 



ओडिशी नृत्यांगना ज्योत्सना रानी साहू और साथी कलाकारों की ओडिशी प्रस्तुति से कोणार्क नृत्य समारोह का आगाज हुआ। सूर मंदिर के इन कलाकारों ने नृत्य रचना नाद निनाद से नृत्य आरंभ किया। इसमें जगन्नाथ वंदना और सूर्य मंत्र-आदित्यअराधना थी। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। दूसरी पेशकश शरणम थी। अभिनय आधारित इस प्रस्तुति में भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को दर्शाया गया। इसे राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध किया गया। इस प्रस्तुति में गजेंद्र मोक्ष, गोवर्धन पर्वत और द्रौपदी वस्त्र हरण प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘मुक्ति पथ शरणागति ताहि‘, ‘मानउद्धारण शरणम्‘, ‘नंदसुत कान्हा कहे‘ और संकीर्तन ‘हे कृष्णो‘ के जरिए कलाकारों ने विभिन्न प्रसंगों को आंगिक अभिनय और संचारी भावों के माध्यम से दर्शाया। 

ओडिशी नृत्य की इस प्रस्तुति में संगत कलाकारों में शामिल थे-पखावज पर सच्चिदानंद दास, वायलिन पर अग्निमित्र बेहरा, गायन पर नाजिया आलम व सत्यब्रत कथा, बांसुरी पर श्रीनिवास सत्पथी और मंजरी पर बैद्यनाथ स्वाईं। इस प्रस्तुति में संगीत परिकल्पना स्वप्नेश्वर चक्रवर्ती और ताल संरचना सच्चिदानंद दास की थी। 

कोणार्क समारोह में बंगलौर के चित्रकला नृत्य विद्यालय के कलाकारों की दूसरी प्रस्तुति थी। प्रवीण कुमार और साथी कलाकारों ने जतीस्वरम से भरतनाट्यम नृत्य आरंभ किया। सूर्य की वंदना के साथ जतीस की लयात्मक गतियां मोहक थीं। उनकी दूसरी पेशकश शिवांजलि थी। यह राग नटकुरंजी और आदि ताल में निबद्ध थी। इसमें रचना ‘नटराज सच्चिदानंद‘ पर आधारित इस पेशकश में शिव से जुड़े प्रसंग का मोहक वर्णन पेश किया। उन्होंने तिल्लाना से प्रस्तुति का समापन किया। यह राग आभोगी और आदि ताल में निबद्ध था। इस तिल्लाना में कृष्ण और गोपिकाओं के श्रृंगारिक प्रसंगों का मनोहारी वर्णन पेश किया। उनके नृत्य में सुंदर सामंजस्य और तादाम्य नजर आया। प्रसंग के अनुरूप अभिनय में भी नवीनता, परिपक्वता और सामयिकता नजर आई। कलाकारों में भरतनाट्यम की लयात्मकता और गत्यात्मकता को बहुत सुघढ़ता और शालीनता के साथ पेश किया। 


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