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Monday, August 24, 2020

संकल्प की नई संकल्पना

                                                         

                                                      संकल्प की नई संकल्पना

                                                      शशिप्रभा तिवारी


बीते शाम तेईस अगस्त 2020 को संकल्प में कथक नृत्यांगना करिश्मा देसाई ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। 

                                                         


नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। कथक नृत्यांगना करिश्मा देसाई की गुरू प्राची दीक्षित हैं। प्राची दीक्षित लाॅसएंजिल्स में कथक नृत्य सिखाती हैं। वह मानती हैं कि गुरू हमारे मार्ग दर्शक होते हैं। हमारे कर्मों से हमारी किस्मत बनती है। मेरे पास करिश्मा तबला सीखने आईं। छह वर्ष की उम्र से वह सीख रही हैं। करिश्मा को कथक नृत्य अच्छा लगा और वह उससे जुड़ते चली गईं। लगभग बारह वर्ष से वह कथक नृत्य की साधना कर रही हैं।

गौरतलब है कि करिश्मा ने पिछले वर्ष यानि 2019 में मंच प्र्रवेश किया है। वह जीव विज्ञान की छात्रा हैं। अमेरिका में पली-बढ़ी करिश्मा देसाई भारतीय संस्कृति से बखूबी परिचित हैं। संकल्प के इस आयोजन में करिश्मा ने गुरू वंदना से आरंभ किया। यह पंडित बिरजू महाराज की रचना थी। श्लोक-‘गुरू ब्रम्हा गुरू विष्णु‘ पर आधारित इस वंदना में उन्होंने गुरू के विभिन्न रूपों को दर्शाया। इसमें गुरू के निराकार, निरंजन, चिदानंद रूपों का विवेचन था। करिश्मा के नृत्य में हस्तकों और मुद्राओं में अच्छा ठहराव दिखा।

उन्होंने नृत्य का समापन भाव पक्ष की प्रस्तुति से किया। रचना ‘काहे न आयो मोरे श्याम‘ पर नृत्य अभिनय पेश किया। कवित्त ‘नवसत साज श्रृंगार ठाढ़ी बाट निहारूं‘ में एक पूर्व रंग में नृत्यांगना करिश्मा ने प्रसंग की पृष्ठभूमि बनाई। इसके अगले अंश में राधा और कृष्ण के भावों को निरूपित किया। उन्होंने मयूर, बांसुरी, मटकी, बिजली की चमक की गतों को संक्षिप्त रूप में नृत्य में प्रयोग किया। उन्होंने परंपरागत अंदाज में पनहारिन, नायिका के श्रृंगार और होली खेलने के अंदाज को बखूबी पेश किया। उनके नृत्य को प्रवाहमान बनाने में गायक ने भी अच्छा योगदान किया। उम्र के अनुरूप करिश्मा का अभिनय सहज था।

उन्होंने लखनऊ घराने की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नृत्यांगना करिश्मा ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘ता-ता-ता-धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा थी। वहीं ‘ता-थेई-आ-तत्-थेई‘ के बोल को बड़ी सफाई के साथ पेश किया। उन्होंने गिनती की तिहाइयों एक से पांच और एक से नौ अंकों की तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। आरोह और अवरोह का यह अंदाज दुरूस्त था। एक अन्य रचना में ‘ना-ना-ना-थिर-किट‘ का अंदाज मोहक था। उन्होंने लयकारी का सुंदर समायोजन ‘ना-धिंन्ना‘ के बोलों पर किया। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। करिश्मा के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है। वह भारतीय संस्कृति की सांस्कृतिक दूत हैं। 



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