Popular Posts

Monday, August 3, 2020

संकल्प-एक नई संभावना

संकल्प-एक नई संभावना
शशिप्रभा तिवारी

कथक नृत्यांगना विधा लाल लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। विधा लाल कथक नृत्य गुरू गीतांजलि लाल से सीखा है। इनदिनों वह अपने फेसबुक पेज-विधा लाल कथक एक्पोनेंट पर आॅन लाइन डांस फेस्टीवल सीरिज 2020 का आयोजन किया है। यह नृत्य उत्सव ‘संकल्प‘ 2अगस्त को शुरू हुआ।





संकल्प नृत्य उत्सव की शुरूआत गुरू अलकनंदा की शिष्या ऋतुपर्णा मुखर्जी के नृत्य से हुई। गुरू अलकनंदा नोएडा स्थित अलकनंदा इंस्ट्टीयूट फाॅर परफाॅर्मिंग आर्ट्स में नृत्य सिखाती हैं। यहीं ऋतुपर्णा उनसे कथक नृत्य सीखती हैं। वैसे तो ऋतुपर्णा ने भूगोल विषय को लेकर अपनी शैक्षणिक अध्ययन को पूरा किया है। पर वह कथक नृत्य के प्रति भी उतनी समर्पित हैं। उन्होंने संकल्प नृत्य उत्सव में अपनी नृत्य प्रस्तुति से अपनी प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया।

ऋतुपर्णा ने कथक प्रस्तुति का आरंभ बहुत संक्षिप्त रूप में किया पर वह सारगर्भित था। दरअसल, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर इन दिनों गतिविधियां कुछ ज्यादा चल रही हैं। ऐसे में दर्शक आधे घंटे से ज्यादा रूकते नहीं है। वैसे इतना समय नवोदित कलाकारों के लिए पर्याप्त है।

उन्होंने शिव स्तुति से नृत्य आरंभ किया। ‘ओम नमः शिवाय‘ के मंत्र पर शिव के रूप का निरूपण किया। हस्तकों और भंगिमाओं के जरिए ऋतुपर्णा ने शिव के रूप का सुंदर वर्णन किया। अगले अंश में नाट्य शास्त्र के श्लोक ‘आंगिकम् भुवनस्य वाचिकं सर्वांगमयम्‘ के जरिए नृत्य को विस्तार दिया। नृत्य के क्रम में उन्होंने तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत पेश किया। इसमें कुछ तिहाइयां, टुकड़े, परण वगैरह शामिल थे। उन्होंने एक तिहाई में आरोह और अवरोह का अंदाज दिखाया। वहीं एक अन्य रचना ‘तत्-तत्-दिगदा-तत्-थेई‘ में पंजे और एड़ी का बारीक काम पेश किया। गिनती की तिहाई में खड़े पैर का काम काफी संतुलित था। एक रचना में 24चक्करों का प्रयोग आकर्षक था।

गुरू अलकनंदा की शिष्या ऋतुपर्णा ने अगले अंश में भाव नृत्य पेश किया। इसके लिए उन्होंने होली का चयन किया था। रचना के बोल थे-‘मैं तो खेलूंगी उन्हीं से होली गुइयां‘। श्रृंगार रस प्रधान प्रस्तुति में राधा और कृष्ण की होली का अच्छा चित्रण था। नृत्य में सादी गत और घंूघट की गत का प्रयोग संुदर था। उन्होंने तराने को भी नृत्य में पिरोया। इसमें टुकड़े, तिहाइयों और गत का समावेश था। लयकारी के काम को पाद संचालन से पेश किया, जो लयात्मक और संतुलित था। कुल मिलाकर, युवा नृत्यांगना ऋतुपर्णा जैसे उत्साही और समर्पित कलाकारों से कला जगत को काफी आशा है। वह लगनशील हैं। मेहनती हैं। लेकिन, अपनी प्रस्तुति में कोई झूला या कजरी का भी चयन करती तो उनका नृत्य मौसम के और अनुकूल हो जाता।

No comments:

Post a Comment