मैं जोड़ नहीं
घटाओ भी नहीं
गुणा बनना नहीं
विभाग क्यों बनूँ
मैं शून्य बन
अनंत में विलीन
होने को आतुर
किसके सानिध्य की
आकांक्षा में
मन तड़पता है
यह कोई नहीं जानता
एक अनहद
गूँजे चारों ओर
तुम भी सुनो
इसकी आवाज़
तुम्हें भी भर देगी
नाद से
फिर मौन की
मस्ती तुम्हे भी
भाया करेगी
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