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Thursday, May 14, 2020

नृत्य ने मुझे मोहित किया-स्नेहा चक्रधर



नृत्य ने मुझे मोहित किया-स्नेहा चक्रधर

विख्यात कवि और लेखक डाॅअशोक चक्रधर जी और डाॅ बागेश्वरी जी की सुपुत्री हैं। कला और साहित्य के परिवेश में पली-बढ़ी स्नेहा चक्रधर बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न भरतनाट्यम नृत्यांगना है। उन्होंने गुरू गीता चंद्रन के सानिध्य में भरतनाट्यम सीखा है और अभी भी सीख रही हैं। उन्होंने जानकी देवी काॅलेज में बतौर लेक्चरर करियर शुरू किया। पर नृत्य के खातिर उन्होंने इसे छोड़ दिया। आज रूबरू में स्नेहा चक्रधर से बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं-शशिप्रभा तिवारी
शास्त्रीय नृत्य सीखना और प्रस्तुत करना दोनों चुनौतिपूर्ण है। क्या आप ऐसा मानती हैं?
स्नेहा चक्रधर- वास्तव में, नृत्य कठिन विधा है। इसमें फीजिकल वर्क के अलावा, बुद्धिजीवीता और शोध जरूरी है। कोरियोग्राफी के लिए साहित्य का ज्ञान भी जरूरी है। पूरी मेहनत और लगन से नृत्य करना और हर परफाॅर्मेंस के बाद खुद को आंकना। नौकर, नृत्य और अन्य चीजें करते हुए, एक समय के बाद मुझे लगने लगा कि मैं बंट-सी गई हूं। न तो मैं पूरी तरह नृत्य को अपना समय दे पा रही हूं और न ही अध्यापन को। लेकिन, नृत्य करना काफी खर्चीला है। आपको काॅस्ट्यूम, मेक-अप, ज्वेलरी, संगत कलाकारों सब पर अच्छे खासे पैसे खर्च करने पड़ते हैं। कई बार कार्यक्रम से मिलने वाला पैसा भी पर्याप्त नहीं होता है।
आपको आपके पेरेंट्स का सहयोग किस तरह मिला?
स्नेहा चक्रधर- मुझे हर पल लगता है कि मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं। मुझे बचपन से अच्छा साहित्य और संगीत पढ़ने और सुनने को मिला। नृत्य के प्रति रूचि बचपन से ही थी। मम्मी-पापा ने कभी रोका-टोका नहीं। वो मेरी जरूरतों को समझते हैं। सेलेब्रिटी की संतान होने से कभी-कभी आत्मविश्वास डगमगाता भी था कि पता नहीं कुछ कर पाऊंगी या नहीं। लेकिन, जब आप अपनी राह खुद चुनते हो और मेहनत का दामन थाम कर आगे बढ़ते ही है। हालांकि, आज भी कोई नई कोरियोग्राफी करती हूं, पापा और मम्मी दोनों से चर्चा करती हूं।


क्या आपके सपने साकार हो पाए हैं?
स्नेहा चक्रधर- दरअसल, मुझे जहां तक पहुंचना चाहिए था, वहां तक अभी नहीं पहुंच पाई हूं। शायद, मैंने खुद को कुछ ज्यादा फैला लिया। मैं पीएचडी कर रही थी। साथ ही, डांस सीख रही थी और काॅलेज में पढ़ा रही थी। इसके अलावा, पापा के फिल्म मेकिंग में हाथ बंटाती थी। उनके प्रोडक्शन को हैंडल करती थी। उनके साथ कवि सम्मेलनों में जाती और कैमरा संभालती। सिंगल माईंड होती तो शायद प्रोग्रेस ज्यादा हुई होती। पर इतनी सारी विधाओं में काम करने का अपना अलग मजा भी रहा। इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है।
मैं गीता अक्का के साथ लगभग बीस सालों से उनके प्रोडक्शन से जुड़ी हुई हूं। ग्रुप कोरियोग्राफी की अपनी मांग है। आइडिया, कंसेप्ट, शोध, कोरियोग्राफी, परफाॅर्मेंस इन सब में समय लगता है। उसकी प्रैक्टिस के लिए आपकी उपस्थिति सभी की सुविधानुसार करनी पड़ती है। वैसे ही सोलो की अपनी डिमांड्स हैं। पर मुझे खुशी है कि मैंने ग्रुप हो या सोलो पूरी निष्ठा से काम किया है।

आप गुरू को अपने भीतर कैसे महसूस करती हैं ?
स्नेहा चक्रधर-गुरूजी के सामने नृत्य करने में आज भी डर लगता है। गुरूजी स्टेज पर नटुवंगम कर रही हों या आॅडियंस में बैठी हों, उनके सामने खुद को साबित करना, हर शिष्य के लिए चुनौती होती है। उनकी उम्मीदें मुझसे ज्यादा रही हैं। अक्सर वह बोलती भी हैं कि तुम काबिल हो और मेहनती हो। मैं उसकी भरपाई नहीं कर पाई हूं। वह हमसे बेहतर से बेहतरीन की अपेक्षा रखती हैं। मेरी कोशिश है कि आने वाले समय में मैं उनकी नजरों में खरी उतर पाऊं।

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