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Monday, March 19, 2018

तुम्हारी प्रतीक्षा में

मोहन

बहुत देर तक 

खड़ी थी 

तुम्हारी प्रतीक्षा में 


मैं जानती हूँ 

कि तुम्हारी सूची के अंत में 

मेरा ही नाम लिखा है 


यह मानती रही 

कि तुम्हारी हूँ सिर्फ तुम्हारी 

मैं हूँ सौभाग्यवश !


यह जीवन गुजरती रही  

मिलन-विरह के बीच

जीवन में पाना ही सब कुछ नहीं होता 


बहुत खोने के बाद 

अपने मूल्य का पता चलता है 

उस शून्य भाव में एक हलचल के बाद 


सब शिथिल है 

आवेग, आवेश, अहम् 

मोहन, तुमने ही आते-आते देर कर दी 


वरना इस देहरी पर 

हमेशा दिया जलता था 

अँधेरा कौन चाहता है, अपनी जिंदगी में 

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