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Wednesday, March 7, 2018

बहुत धीरे-धीरे बहती है

चैत की रसीली हवा
कुछ कहती है
धीरे से
तुमसे
सुनो न!
बहुत धीरे-धीरे बहती है
सरसराती हुई
अटखेलियां करती है
तुम्हारे केशों से
लहराती हुई
तुम्हारे गालों को
चूमती है
उसमें आम की मंजरी
सजा देना
उसकी खुशबु
मुझे भी
मदहोश कर देगी
तब शायद!
जिंदगी के सारी हैरानियाँ
उस पार हो जाएँगी
तब तुम
उस हवा के झोंको को
रोकना मत
कि तभी
कानो में मेरे भी गूंजती है
धीरे समीर यमुना तीरे

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