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Wednesday, January 1, 2014

आओ एक
मिलन का दीप जलाएं
हम-तुम दोनों
मिल कर एक सपना देखें
नहीं!
स्वप्न में जीना
कितना सम्मोहन देता है
तुम्हारे कंधे पर
लहराते मेरे केश
क्या!
तुम्हारी भी
यथार्थ में
ऐसी ख्वाहिश होती है
सीने पर हाथ रख
सच बोलना!
मेरी तमन्ना की नदी
हर बार
तुम्हारे मन के
सागर में मिल जाती है
तब, सपने-सच कहाँ!
उन पलों में
सिर्फ,हम और तुम होते हैं
चांदनी रात और चाँद की तरह

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