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Thursday, January 2, 2014

चला जाता है
मन उड़ता हुआ
बार-बार तुम्हारे पास
कुछ नहीं चाहता
तुम्हें मुस्कुराता देख
लौट आता है
अपने डेरे में
तुम्हारे फेरों से
महसूस होता है
कितना बहाव है
जीवन में
बरस-बरस बीत जाते हैं
हम गेहूं, सरसों, पलास को
झूमते देख
मन के शिवालय में
गंगा जल से
अभिषिक्त करतें
उन पलों को
जब तुम्हारे सहारे
हम हुए थे ....

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