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Monday, December 16, 2013

यमुना के किनारे
मधुबन के पेड़ों की झुरमुट
रमन की रेती में मन रमाये

मन तुमको ही ढूंढ़ता है
तुम न जाने!
किस देश में रहते हो?

पता भी तो नहीं था
तुम्हारा हाल कभी
चाँद से पूछती थी
कभी नीले आसमान से

अपने मन की बातें
मन-मन में रखती थी,
धन्य उस पल हुई

 जब जार के वाण से घायल
तुमने मुझे अर्जुन से
 मुझे सन्देश पहुँचाने को कहा
लेकिन, इतनी हिम्मत कहाँ थी उनमें

मेरे प्रेम
मेरे विरह को
मेरे अनत समर्पण को उद्धव ने समझा था

और तुम्हारी अनंत प्रयाण की खबर वही ले कर आये
अपेक्षा दुःख देता है
मैंने सिर्फ इसे ही मान दिया
सोलह श्रृंगार कर लीन-विलीन हुई तुममे

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