Popular Posts

Wednesday, March 13, 2024

पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन @शशिप्रभा तिवारी

                                          पुणे में 36वें कथक महोत्सव में अनेक घरानों का मिलन

                                       @शशिप्रभा तिवारी 


पिछले दिनों पुणे में 36वां कथक महोत्सव संपन्न हुआ। दो दिवसीय समारोह दो चरणों मंे संपन्न हुआ। महोत्सव की प्रातःकालीन सभा ज्योत्स्ना भोले सभागृह में आयोजित थी। शाम की प्रस्तुतियां अन्ना भाऊ साठे सभागार में संपन्न हुआ। इस समारोह का आयोजन कथक केंद्र की ओर से किया गया। कथक केंद्र की निदेशक प्रणामी भगवती ने सभी कलाकारों, गुरुओं और रसिक जनों का स्वागत किया। 

 26 फरवरी को महोत्सव का आरंभ कथक केंद्र की अध्यक्ष उमा डोगरा के उद्घाटन भाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि गुरु रोहिणी भाटे ने अपनी एक मंच प्रस्तुति के बाद मैं ग्रीन रूम में उनसे मिली तब उन्होंने मुझसे पूछा कि नृत्य अच्छा हुआ? प्रातःकालीन सभा का पहला सत्र कथक नृत्यांगना व गुरु रोहिणी भाटे के शताब्दी वर्ष को समर्पित था। पहले सत्र में वार्ता में उनकी शिष्याएं नीलिमा आध्ये और अमला शेखर ने गुरु रोहिणी भाटे की स्मृतियों को साझा किया। अपनी गुरु के बारे में बोलते हुए, नीलिमा आध्ये ने कहा कि गुरु जी बहुत परिश्रमी और समय की कद्रदान थी। उनकी शास्त्रीय संगीत के साथ मराठी, हिंदी, ब्रज, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इस संदर्भ में अमला शेखर ने कहा कि उनकी कला निधि की तरह है और उनकी सकारात्मक सृजनात्मकता झरने की तरह है। अगले परिचर्चा सत्र में साहित्य अनुभूति विषय पर कलाविदों ने चर्चा की। इसमें पार्वती दत्ता और शमा भाटे ने अपने विचार व्यक्त किया। इन सत्रों का संचालन सुनील सुनकारा ने किया। 

ज्योत्स्ना भोले सभागृह में आयोजित प्रातः कालीन की दूसरे दिन का आयोजन गुरु सितारा देवी को समर्पित था। इस आयोजन के दौरान वार्ता में जयंतीमाला मिश्रा और डाॅ नंदकिशोर कपोते ने अपनी गुरु सितारा देवी की स्मृतियों का वर्णन किया। डाॅ नंदकिशोर कपोते ने कहा कि 2002 में विदुषी सितारा देवी पुणे में एक कार्यक्रम में लगातार दो घंटे तक नाचतीं रहीं। वह सौंदर्यप्रेमी थीं। हर वक्त खुद को सजा-संवारकर रखना पसंद करती थीं। वहीं दृश्यावलोकन-कथक में नाट्य के रंग पर परिचर्चा के दौरान राजश्री शिरके और मनीषा साठे ने अपने विचारों को अभिव्यक्त किया। इस सत्र का संचालन डाॅ पीयूष राज ने किया। 

कथक महोत्सव की सायंकालीन सभा में कलाकारों ने मोहक कथक नृत्य प्रस्तुत किया। समारोह का आरंभ ऋजुता सोमन के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने गुरु रोहिणी भाटे रचित कृष्ण वंदना से नृत्य आरंभ किया। यह रचना ‘वंृदावन मत्त वंृद कूजें‘ पर आधारित थी। उन्होंने चित्र रूपक ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। वर्तमान गुप्त नायिका का चित्रण अभिनय में पेश किया। इसके लिए रचना ‘सुरूप निरूप तोसे ननदी‘ का चयन किया गया था। 

 


दूसरी पेशकश वरिष्ठ गुरु पंडित कृष्ण मोहन महाराज और राम मोहन महाराज की युगल पेशकश थी। साई भजन ‘अरज सुनो मोरे साईं नाथ जी‘ से पंडित कृष्ण मोहन महाराज ने शुरु किया। उन्होंने तीन ताल में लयकारी को विशेष तौर पर पेश किया। उन्होंने सिर्फ भौं संचालन के माध्यम से तत्कार को पेश कर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। पंडित शंभू महाराज, पंडित अच्छन महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पुराने अंदाज को दोनों बंधुओं ने पेश किया। गजल ‘आंख आंख से मिली रात-दिन मैं तुझे प्यार किया‘ के जरिए कृष्ण मोहन ने नायिका सीता के भावों को अभिव्यक्त किया। ठुमरी ‘डगर चलत देखो श्याम‘ पर राम मोहन ने भावों को दर्शाया। अगली पेशकश कथक नर्तक अभय शंकर की थी। उन्होंने रूद्राष्टकम से आरंभ किया। उन्होंने शुद्ध नृत्त तीन ताल में पेश किया। उन्होंने पंडित दुर्गा लाल की रचना प्रस्तुत किया। उनकी पेशकश में लंका विजय परण खास थी। कथक गुरु शमा भाटे की शिष्याओं ने कथक नृत्य रचना परिणति पेश किया। इसकी शुरूआत राम वंदना से की गई। राग अडाना और तीन ताल में चतुरंग प्रस्तुत किया। इसमें तराना, सरगम और सूरदास के दोहे को पिरोया गया। राग देस में हरिवंश राय बच्चन की कविता और सिम्फनी पर आधारित उनकी अंतिम नृत्य प्रस्तुति थी। इस नृत्य में कलाकारों का भाव प्रदर्शन और आपसी संतुलन मोहक था। 


27 फरवरी को कथक महोत्सव की दूसरी सायंकालीन सभा में जयपुर घराने की कथक नृत्यांगन विधा लाल ने नृत्य पेश किया। कथक नृत्यांगना विधा ने अपने नृत्य का आरंभ हरिहर वंदना से किया। बैजू बावरा की रचना ‘वंशीधर पिनाकधर गिरिवरधर‘ राग बैरागी और नौ मात्रा के ताल में निबद्ध थी। उन्होंने तीन ताल में शुद्ध नृत्त में जयपुर घराने की बारीकियों को दमदार अंदाज में पेश किया। मीराबाई की रचना ‘सुणो रे तुम दयाल म्हारी अरजी‘ पर भावों को परिपक्वता के साथ दर्शाया। कथक नृत्यांगना प्रेरणा और ईश्वरी देशपांडे ने युगल नृत्य पेश किया। उन्होंने शिव वंदना, शुद्ध नृत्त और ठुमरी ‘जमुना किनारे मोरा गांव रे‘ को नृत्य में पिरोया। रायगढ़ घराने की डाॅ सुचित्रा हरमलकर ने एकल नृत्य पेश किया। उन्होंने देवी स्तुति ‘जयति जयति दुर्गे भवानी‘ से नृत्य आरंभ किया। उन्होंने राजा चक्रधर महाराज की चार लयों की आमद, तिहाइयां- पुरंदर,  मत्स्य रंगोली, नवरस व दल-बदल परण को पेश किया। सूरदास के पद ‘मैया मोरी दाउ बहुत खिजायो‘ में यशोदा के वात्सल्य भाव को बखूबी उकेरा। जबकि, डाॅ कुमकुम धर के शिष्य-शिष्याओं ने उनकी नृत्य रचना को पेश किया। उन्होंने पंचतत्व, राग कलावती में तराना और नज्म ‘आ कि इन भागते लम्हों को पकड़ कर रख लें‘ को नृत्य में पिराकर एक सुखद समापन किया। 


No comments:

Post a Comment