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Friday, March 15, 2024

खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल@शशिप्रभा तिवारी

                                                  खजुराहो नृत्य समारोह का स्वर्ण काल 

                                                     @शशिप्रभा तिवारी


वत्स, जेजाकभुक्ति अथवा खजुराहो अपने-आप में ऐतिहासिक महत्व का है। यहीं खजुराहो में सŸार के दशक में मध्यप्रदेश शासन ने मंदिर प्रांगण में खजुराहो नृत्य समारोह की शुरूआत की थी। विश्व धरोहर प्राचीन खजुराहो मंदिर समूह के कंदरिया महादेव और ज्वाला देवी के मंदिर की पृष्ठभूमि में यह नृत्य समारोह पिछले दो वर्ष यानी वर्ष-2022 से आयोजित हो रहा है। यह तीसरा वर्ष है। समारोह में कथक, ओडिशी, मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम, कुचिपुडी, सत्रीय, मणिपुरी एवं समकालीन नृत्यांे को पेश किया जाता है। संगीत नाटक अकादमी से मान्यता प्राप्त होने पर सबसे पहले इसी मंच पर सत्रीय नृत्य को पेश किया गया।

पचासवां खजुराहो नृत्य समारोह 20फरवरी से 26फरवरी तक विश्व धरोहर खजुराहो मंदिर प्रांगण में आयोजित था। इस दौरान कथक कंुभ आयोजित था। इसमें 1500 कलाकारों ने कथक नृत्य पेश किया। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के साझा प्रयासों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर के सहयोग से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में विश्वविख्यात 50वां खजुराहो नृत्य समारोह आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर निदेशक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।

50वें खजुराहो नृत्य महोत्सव का शुभारंभ बीस फरवरी को ओडिशी नृत्यांगना रंजना गौहर और उनके साथी कलाकारों की प्रस्तुति से हुई। उनकी पहली पेशकश शिव स्तुति थी। यह महाराजा स्वाति तिरूनाल की रचना-विश्वेश्वर दर्शन को चलो मन तुम काशी पर आधारित थी। यह राग आसावरी और ताल खेमता में निबद्ध थी। राग पहाड़ी और ताल जती में निबद्ध अष्टपदी-सखी हे केशी मथनमुदारम पर आधारित अभिनय अगली पेशकश थी। रासरंग की प्रस्तुति रचना-‘नारी राधे संग नटवर कुंजे‘ पर आधारित थी। यह राग मिश्र खमाज और ताल एकताली व खेमटा में निबद्ध थी। 

अगली प्रस्तुति सुधाना शंकर एवं साथी की भरतनाट्यम थी। उन्होंने सर्वप्रथम देवी स्तुति पेश किया। जिसमें स्त्री का सौंदर्य और सिद्धांत दर्शाए गए। उन्होंने नृत्य रचना द्रौपदी प्रस्तुत किया। फिर रचना-मुरली नाद सुनायो पर अभिनय पेश किया।

खजुराहो नृत्य समारोह की दूसरी संध्या यानी 21 फरवरी को कथक नर्तक शेंकी सिंह ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने अपने नृत्य का आरंभ गणेश वंदना से किया। तीन ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। उन्होंने गजल ‘उस शोख के चितवन को बहुत याद किया‘ पर भाव पेश किया। यह पंडित बिरजू महाराज की रचना थी। उन्होंने रचना ‘जटा शोभित चंद्र दमकत‘ में शिव के श्रृंगार को दर्शाया, वहीं गज की गत, सलामी की गत आदि को अपने नृत्य में प्रस्तुत किया। समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना सायली काणे ने राम पुष्पांजलि-हरिहर से अपने नृत्य की शुरूआत की। मुत्थुस्वामी दिक्षितर की रचना अर्धनारीश्वर में शिव-पार्वती के रूप को चित्रित किया। वहीं राम नवरस पेश किया। यह रचना ‘क्षितिनंदिनी विहरिणी श्रृगारम‘ पर आधारित थी। राग रेवती में निबद्ध तिल्लाना पर भरतनाट्यम के लयात्मक गतियों को संचारित किया। समारोह में ओडिसी नृत्यांगना अरूपा गायत्री ने ओडिशी नृत्य का आरंभ देवी स्तुति ‘ए गिरिनंदिनी‘ से किया। वल्लभाचार्य कृत मधुराष्टकम पर आधारित उनकी दूसरी प्रस्तुति थी। मनाली देव ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने गणेश स्तुति ‘नमामि गणपति श्रवण सुंदर‘ से नृत्य आरंभ किया। कालिका तांडव उनकी पेशकश में खास थी। राम के गुणो का गान उन्होंने रचना ‘राम का गुणगान करिए‘ में नृत्य के जरिए किया। 




खजुराहो नृत्य समारोह में प्रेरणा देशपांडे, पंडित राजेंद्र गंगानी, नव्या नटराजन, विधि नागर, राजश्री वारियर, यास्मीन सिंह, कृपा फड़के, अनुराधा सिंह ने अपनी नृत्य शैलियों में नृत्य पेश किया। समारोह की अंतिम संध्या में डाॅ सोनल मानसिंह ने भी शिरकत किया। 

मुख्य मंच पर 22 फरवरी को तीसरी संध्या की शुरुआत साक्षी शर्मा के कथक से हुई। उन्होंने शुरुआत आराध्य देव भगवान शिवस्तुति से की। इस शिवस्तुति रचना-रंगीला शंभू गौरा ले पधारो। उन्होंने तीन ताल विलंबित में नृत्त पक्ष की प्रस्तुति दी। नायिका के सौंदर्य का वर्णन एक रचना में दर्शाया। इसके बोल थे-लचक लचक चलत चाल इठलाती चतुर नार। अंतिम  में द्रुत तीन ताल की प्रस्तुति दी, जिसमें परण, तिहाई एवं गत निकास की प्रस्तुति देकर विराम दिया।

समारोह में ओडिसी नृत्य कस्तूरी पटनायक और साथी कलाकारों ने पेश किया। उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत मंगलाचरण से की। रामाष्टकम स्तोत्र पर आधारित मंगलाचरण थी। दूसरी प्रस्तुति चारुकेशी पल्लवी थी। पल्लवी राग चारुकेशी और ताल त्रिपुट में थी। तीसरी प्रस्तुति शिव पंचाक्षर स्तोत्र-नागेंद्र हरय त्रिलोचनाय था। जो आदि शंकराचार्य लिखित भगवान शिव को समर्पित है। इस स्तोत्रम का संगीत पंडित भुवनेश्वर मिश्रा ने तैयार किया था। उनकी चैथी प्रस्तुति महारी थी। महारी नृत्य गीत-‘वंशी त्यज हेला राधानाथ‘ पर आधारित थी। अंतिम प्रस्तुति अभिनय आधारित थी, मानी बिमाने गोविंद थी। इस प्रस्तुति में पुरी में होने वाले चंदन जात्रा को दिखाया।

केरल के मोहिनीअट्टम नृत्य का प्रदर्शन किया विद्या प्रदीप ने किया। उनकी प्रस्तुति चोलकेट्टू राग गंभीर नाटई और त्रिपुट ताल में थी। स्वाति तिरूनाल की रचना पर आधारित पदवरणम अगली पेशकश थी। यह पद्मनाभ को निवेदित थी। 



तीसरे संध्या की सभा की अंतिम प्रस्तुति कथक कलाकार पुरु दाधीच एवं हर्षिता शर्मा दाधीच एवं समूह की रही। इस प्रस्तुति का नाम ऋतु गीतम था, जिसे लिखा और कोरियोग्राफ किया गुरु पुरु दाधीच ने। इस प्रस्तुति में उन्होंने छह ऋतुओं का नृत्याभिनय से वर्णन किया। राग भूप कल्याण, सारंग से लेकर बसंत बहार, मल्हार और ध्रुपद, खयाल व ठुमरी को समाहित किया गया। इस प्रस्तुति में स्मिता विरारी ने गायन, अश्विनी ने वायलिन, बांसुरी पर अनुपम वानखेड़े और तबले पर कौशिक बसु ने साथ दिया। जबकि नृत्य में हर्षिता दाधीच, दमयंती भाटिया, आयुषी मिश्र, सरवैया जैसलिन, पूर्वा पांडे, मुस्कान, अक्षता पौराणिक, डॉ सुनील सुनकारा, अक्षोभ्य भारद्वाज और कैलाश ने साथ दिया। वेशभूषा क्षमा मालवीय की थी और सूत्रधार स्वयं डॉ. पुरु दाधिच थे।

समारोह की 23फरवरी को चैथी संध्या की शुरुआत मोमिता घोष वत्स के ओडिसी नृत्य से हुई। राग विभास और एक ताल में निबद्ध विष्णु ध्यान पहली पेशकश थी। इसकी संगीत रचना गायिका नाजिया आलम ने की थी। अगली पेशकश में उन्होंने समध्वनि की प्रस्तुति दी। यह राग गोरख कल्याण और एक ताल में निबद्ध था। उन्होंने विविध लयकारियों को प्रदर्शित किया। उन्होंने नृत्य का समापन जयदेव कृत गीत गोविंद की अष्टपदी-धीर समीरे यमुना तीरे से किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम को अपने नृत्य भावों से प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन पंडित भुवनेश्वर मिश्रा और नृत्य संरचना गुरु केलुचरण महापात्र की थी। 



दूसरी प्रस्तुति में नलिनी व कमलिनी की कथक प्रस्तुति थी। कथक के बनारस घराने की प्रतिनिधि कलाकार नलिनी व कमलिनी ने शिव स्तुति से नृत्य आरंभ की। राग मालकौंस और 12 मात्रा निबद्ध रचना चंद्रमणि ललाट भोला भस्म अंगार निबद्ध थी। दोनों बहनों ने नृत्य की प्रस्तुति से शिव को साकार की। तीन ताल में कलावती के लहरे पर उन्होंने शुद्ध नृत की प्रस्तुति थी। इसमें उन्होंने पैरों की तैयारी के साथ सवाल-जवाब और विविधतापूर्ण लयकारी का प्रदर्शन किया। उन्होंने होली की ठुमरी पर भाव नृत्य भी किया। पंडित जितेंद्र महाराज द्वारा लिखी गई ठुमरी मत मारो श्याम पिचकारी पर उन्होंने नृत्य प्रस्तुति दी। 

मध्यप्रदेश की कथक नृत्यांगना डॉ.सुचित्रा हरमलकर ने अपने समूह के साथ खजुराहो के समृद्ध मंच पर नृत्य किया। रायगढ़ घराने से ताल्लुक रखने वाली सुचित्रा हरमलकर ने अपने नृत्य का आगाज शिव आराधना से किया। तीनताल में दरबारी की बंदिश-हर हर भूतनाथ पशुपति पर नृत्य किया। दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने जटायु मोक्ष की कथा को नृत्य भावों में पेश किया। उन्होंने जयदेव कृत दशावतार पर नृत्य प्रस्तुति दी। समापन उन्होंने द्रुत तीनताल में तराने से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ योगिता गड़ीकर, निवेदिता पंड्या, साक्षी सोलंकी, उन्नति जैन, फागुनी जोशी, महक पांडे और श्वेता कुशवाह ने साथ दिया। साज संगत में तबले पर मृणाल नागर, गायन में वैशाली बकोरे, मयंक स्वर्णकार और सितार पर स्मिता वाजपाई ने साथ दिया।

मणिपुरी नृत्यांगना रोशली राजकुमारी और समूह ने खजुराहो नृत्य समारोह में शिरकत किया। इस समूह ने भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास की प्रस्तुत किया। जयदेव की कृतियों पर मणिपुरी नर्तकों ने नृत्य किया। अंतिम पेशकश केरल के प्रसिद्ध कोडिअट्टम नृत्य को कलाकार मार्गी मधु और उनके साथियों ने पेश किया। इस नृत्य के माध्यम से जटायु मोक्ष की लीला का प्रदर्शन किया। इसमें गुरु मार्गी मधु चक्यार ने रावण, इंदु ने सीता,  हरि चकयार ने जटायु का अभिनय किया। इस प्रस्तुति में सीता हरण से लेकर जटायु मोक्ष तक की लीला का वर्णन था। 


समारोह में नृत्य प्रस्तुतियों के तहत पांचवीं संध्या 24फरवरी को पंचानन भुयां की अराधना ओडिसी डांस फाउंडेशन ने छऊ-ओडिसी, अमीरा पाटनकर एवं साथी ने कथक, राजश्री होल्ला एवं रेखा सतीश ने कुचिपुड़ी और अनु सिन्हा एवं साथी ने कथक पेश किया।

पहली प्रस्तुति में गुरु पंचानन भुयां और उनके समूह का छऊ व ओडिसी नृत्य हुआ। पंचानन ने अपने नृत्य की शुरुआत मंगलाचरण से की। शांताकारं भुजगशयनम् श्लोक पर भगवान विष्णु का स्मरण किया गया। मरदल की ताल पर नर्तकों ने भाव प्रवण प्रस्तुति दी। अगली प्रस्तुति में उन्होंने नृत्य और ताल के अनूठे संगम को पेश किया। रावण नृत्य नाटिका के एक अंश को दर्शाया गया , जिसमें रावण शिव को प्रसन्न करने यज्ञ कर रहा है। इसमें ओडिसी के साथ मयूरभंज छऊ नृत्य शैली को समाहित किया गया था। इस प्रस्तुति में पंचानन के साथ सुमित मंडल, दीपक कांदारी, जय सिंह, रोहित लाल ने नृत्य पेश किया। गुरु रतिकांत महापात्र ने इस नृत्य रचना की परिकल्पना की थी। उन्होंने नृत्य का समापन लोकनाथ पटनायक द्वारा रचित उड़िया के भक्ति गीत सजा कंजा नयना कुंजे आ री से किया। यह राग आहिरी और ताल खेमटा में निबद्ध थी। नृत्य रचना गुरु पंचानन और प्रिय सामंत राय की थी। 

दूसरी प्रस्तुति अमीरा पाटनकर और उनके साथियों का कथक नृत्य था। उन्होंने राम वंदना से अपना नृत्य आरंभ किया। इसमें सीता स्वयंवर, सेतु लंघन, रावण दहन की लीला को अमीरा व साथियों ने नृत्य भावों को पेश किया। उनकी अगली प्रस्तुति चतुरंग की थी। राग देश में तराना सरगम, साहित्य, नृत्य के बोलों का समन्वय दिखा। अमीरा ने राग पीलू में निबद्ध ठुमरी-ऐसी मोरी रंगी है श्याम पर भाव पेश किया। इसके बाद त्रिविधा में शुद्ध नृत्त पक्ष को पेश किया। परमेलु और नटवरी बोलों की बंदिशें शामिल थी। इन नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरु शमा भाटे की थी। इस प्रस्तुति में अवनि, ईशा, श्रद्धा, श्रेया, परिचिति प्रमोद व नयन शामिल थे। 


अगले क्रम में राजश्री होल्ला और रेखा सतीश की जोड़ी ने कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने गणेश वंदना से नृत्य शुरू किया। उन्होंने राग मालिका और मिश्र चापू ताल में निबद्ध भक्त प्रहलाद पट्टाभिषेकम की कहानी को पेश किया। इसमें प्रहलाद की भक्ति हिरण्यकश्यपु के वध के प्रसंग को दर्शाया गया। राजश्री और रेखा ने दुर्गा तरंगम में महिषासुर मर्दिनी की कथा को पेश किया। राग शंमुखप्रिया और आदि ताल की इस रचना के अंत में नृत्यांगनाओं ने कांस्य थाली पर पाद व अंग संचालन किया। राजश्री और रेखा ने राग अहीर भैरव और आदि ताल की रचना पिबारे राम रसम-राम स्तुति कर नृत्य का समापन किया। यह रचना सदाशिव  की थी।

सभा का समापन दिल्ली से पधारीं डॉ. अनु सिन्हा और उनके साथियों के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने गणेश वंदना से नृत्य का आरंभ किया। राग देश पर आधारित वंदना-प्रथम सुमिरन श्री गणेश. के जरिए उन्होंने भगवान गणेश की बुद्धिमता शक्ति और समृद्धि को भावों में पिरोकर पेश किया। उन्होंने जय राम रमा पर भगवान राम की महिमा को दर्शाया। उनकी अगली पेशकश शिव आराधना थी। शंकर अति प्रचंड मालकौंस के सुरों में पिरोई गई थी। उन्होंने नृत्य का समापन ठुमरी-ऐसो हठीलो छैल पर भाव नृत्य से किया। राधा कृष्ण के प्रेम को इस ठुमरी में अनु भावों के जरिए पेश किया। 



















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