Popular Posts

Thursday, April 11, 2024

अल्पना का आयोजन @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   अल्पना का आयोजन

                                                                   @शशिप्रभा तिवारी 

पिछले दिनों अल्पना की ओर से नृत्य समारोह नृत्यांजलि आयोजित किया गया। इस समारोह में ओडिशी नृत्यांगना अल्पना नायक, गुरु राजेंद्र गंगानी और गुरु गीता चंद्रन की शिष्याओं ने मोहक नृत्य पेश किया। समारोह का मुख्य आकर्षण वसुधैव कुटुंबकम नृत्य रचना की प्रस्तुति थी। इसकी परिकल्पना गुरु अल्पना नायक ने की थी। इसमें तीनों गुरुओं की शिष्याओं ने हिस्सा लिया। यह बी सदा शिवन और कुलदीप एम पाई की संगीत रचना पर आधारित थी। तीन शैलियों में नृत्यांगनाओं अच्छा समन्वय और संतुलन पेश किया। ओडिशी, भरतनाट्यम और कथक की शैलियों का यह संुदर संरचना बनता प्रतीत हुआ। यह गुरु अल्पना ने पहली बार पेश किया था। इसे आने वाले समय में और भी परिष्कृत रूप में वह पेश करेंगीं। ऐसी उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि अल्पना अक्सर नई रचनाएं करतीं हैं और इसे अपनी शिष्याओं के साथ प्रस्तुत करती हैं। 


नृत्यांजलि समारोह में 29 मार्च को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में गुरु अल्पना नायक की शिष्याआंे ने राम वंदना से नृत्य आरंभ किया। यह गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘भजमन रामचंद्र चरण सुखदाई‘ पर आधारित थी। ओडिशी संगीत में प्रस्तुत यह भक्तिरस से सराबोर थी। उनकी शिष्याओं ने आरभि पल्लवी पेश किया। यह राग आरभि और एक ताली में निबद्ध थी। यह प्रस्तुति प्रभावोत्पादक थी। जयदेव की गीत गोविंद की रचना ‘शीत कमल कुच‘ पर आधारित अगली प्रस्तुति थी। इस प्रस्तुति में शिष्याओं ने राधा और कृष्ण के भावों का संुदर चित्रण किया। यह गुरु केलुचरण महापात्र की नृत्य रचना थी। यह एक स्वस्थ पहल है कि गुरु अल्पना नायक अपने गुरु हरिचरण बेहरा के अलावा, माननीय गुरुओं की रचनाओं को अपनी शिष्याओं को सीखाती हैं। नई संभावनाओं को तलाशना अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। इससे गुरु के व्यापक दृष्टिकोण और खुलेपन का पता चलता है। 


कथक नृत्यांगना स्वाति सिन्हा और उनकी शिष्याओं ने कथक नृत्य पेश किया। गुरु राजेंद्र गंगानी की शिष्या स्वाति सिन्हा ने कथक नृत्य का आरंभ वंदना ‘राम रघुवीर धीर अयोध्या नगर‘ किया। यह राग बागेश्वरी और चैताल में निबद्ध था। उन्होंने राग कलावती और तीन ताल में निबद्ध तराने को नृत्य में पिरोया। कथक नृत्यांगना जयपुर घराने के परण, तिहाइयों और कवित्त को विशेष तौर पर अपने नृत्य में पेश किया। उनके नृत्य में गणेश परण और गज के चलन का प्रयोग संुदर था। 

वहीं भरतनाट्यम नृत्य गुरु गीता चंद्रन की शिष्याओं ने लयात्मक भरतनाट्यम नृत्य पेश कर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की। उन्होंने वरणम पेश किया। यह राग विहाग और आदि ताल में निबद्ध थी। यह प्रो टी आर सुब्रम्हण्यम की रचना ‘वनाक्ष नैनमिति स्वामि वेणूगोपलम पर आधारित थी। शिष्याओं ने वरणम में अभिनय और जतीस का लयात्मक प्रयोग किया। उन्होंने एक-एक भाव में कृष्ण और गोपिका के भाव को महीन अंदाज में रूपायित किया। नृत्यांगनाओं के आपसी तालमेल से यह सहज भान हो रहा था कि उनका रियाज नियमित और अनुशासित है। इसमें शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं-मधुरा भुसुंडी, सौम्या लक्ष्मी नारायण, आनंदिता नारायण एवं यादवी शाकधर मेनन। यह नृत्य रचना गुरु गीता चंद्रन की थी। 


No comments:

Post a Comment