एरी जसोदा तोसे
शशिप्रभा तिवारी
कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख और नर्तक मौलिक शाह की जोड़ी का नृत्य देखना किसी रोमांच से कम नहीं रहा है। यह नृत्य युगल अपनी मोहक नृत्य के लिए मशहूर रही है। दोनों ही दूरदर्शन के टाॅप ग्रेड आर्टिस्ट हैं। वो लोग देश के सभी महत्वपूर्ण उत्सवों में नृत्य पेश कर चुके हैं। उन्हें सुर संसद और नवदीप सम्मान मिल चुके हैं। इसके अलावा, इशिरा और मौलिक माॅरीशस, कनाडा, ब्रिटेन, हाॅलैंड, मैक्सिको के विभिन्न आयोजनों में शिरकत कर चुके हैं। पिछले दिनों कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख ने नुपुर एकेडमी, एलए के आयोजन के दौरान नृत्य पेश किया।
नुपुर एकेडमी की ओर से यूट्यूब व फेसबुक पेज पर यह समारोह आयोजित किया गया था। चैदह फरवरी को आयोजित समारोह में इशिरा पारीख ने एकल नृत्य पेश किया। गुरू कुमुद लाखिया के सानिध्य में उन्हांेने नृत्य सीखा है। वह अपने गुरू के अंदाज को बखूबी निभा रही हैं। हालांकि, परंपरा के साथ नवीनता को अपनाना उनका स्वभाव रहा है, जो उनके नृत्य में नजर आता है। उनके नृत्य में रचनात्मकता का सौंदर्य आकर्षक है। यह उनके नृत्य को देखकर एक बार फिर से महसूस हुआ।
यह सच है कि सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शकों से रूबरू होना आसान नहीं है। पर वरिष्ठ नृत्यांगना इशिरा की उपस्थिति गरिमापूर्ण थी। उन्होंने बनारस घराने के पंडित राजन व पंडित साजन मिश्र की गाई देवी स्तुति को अपनी पेशकश का आधार बनाया। यह स्तुति राग दुर्गा और तीन ताल में निबद्ध थी। पंडित रामदास रचित स्तुति के बोल थे-‘जय-जय दुर्गे माता भवानी‘। उन्होंने देवी के रूप को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। एक तिहाई में पैर के साथ हस्तकों और मुख के भाव के जरिए देवी के श्रृंगार व रौद्र रूप को निरूपित करना प्रभावकारी था। वहीं, देवी के महिषासुरमर्दिनी, दयानी, शिवानी, भवानी रूपों को चित्रित करना लासानी था। इस स्तुति का समापन सोलह चक्कर से किया।
कथक नृत्यांगना इशिरा पारीख ने अपनी प्रस्तुति के क्रम में ठुमरी पर भाव पेश किया। ठुमरी ‘एरी जसोदा तोसे लरूंगी लराई‘ को अपनी गुरू कुमुदनी लाखिया से सीखा था। इसको पंडित अतुल देसाई ने संगीतबद्ध किया था। यह राग सोहनी में थी। इस प्रस्तुति में इशिरा ने माता यशोदा, गोपिका और कृष्ण के भावों को बहुत ही निपुणता के साथ पेश किया। एक-एक भाव को बारीक और महीन अंदाज में वर्णित किया। उन्होंने नृत्य में घूंघट, मटके, नजर की गतों का प्रयोग कई तरीके से किया। जिसमें परिपक्वता के साथ-साथ नजाकत भी दिखी।
चैदह मात्रा के धमार ताल में कथक नृत्यांगना इशिरा ने शुद्ध नृत्त को पिरोया। उन्होंने तिहाई में पंजे और एड़ी का काम पेश किया। थाट में नायिका के खड़े होने के अंदाज को दर्शाया। इसमें कलाई की घुमाव व पलटे का प्रयोग मोहक था। एक रचना ‘गत धा ता धा गिन ता धा‘ में उत्प्लावन का अंदाज काफी सधा हुआ था। उन्होंने गिनती की तिहाइयांे को अपने नृत्य में शामिल किया। आरोह और अवरोह का अंदाज ‘धा‘ के बोल पर पेश किया। परण ‘धा गिन कत धा‘ में पांच-पांच चक्करों का प्रयोग मार्मिक लगा। वहीं, चक्करदार तिहाई में इक्कीस चक्करों का प्रयोग और लयकारी में पैर का काम प्रभावकारी था।
कई वर्ष बाद, इशिरा को नृत्य करते देखना अच्छा लगा। उन्होंने पूरे प्रोफेशनल और पूरे गंभीर तरीके से प्रोग्राम को पेश किया। उनके नृत्य को देखकर ऐसा लगा कि सभागार में बैठकर देख रहे हैं। लाइव म्यूजिक में उनके साथ संगत किया-प्रहर वोरा, जाॅबी जाॅय, श्रेयश दवे और हृदय दे
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