हम कठिन समय से गुजर रहे हैं-भावना रेड्डी
शास्त्रीय नृत्य जगत में गुरू शिष्य परंपरा का अपना महत्व है। इसके जरिए वरिष्ठ पीढी अपनी विरासत शिष्य-शिष्याओं को सौंपते हैं। कुचिपुडी के वरिष्ठ गुरू-राजा राधा और कौशल्या रेड्डी ने राजधानी दिल्ली में इस नृत्य शैली को लोकप्रिय बनाया। साथ ही, उन्होंने यामिनी और भावना रेड्डी को अपनी समृद्ध विरासत को सौंपा है। युवा कुचिपुडी नृत्यांगना भावना रेड्डी ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के जरिए कला जगत में विशेष पहचान बनाई है। उन्हें संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह पिछले छह महीने से लाॅस एंजिल्स में है। लाॅकडाउन के समय इस बार रू-ब-रू मंे नृत्यांगना भावना रेड्डी से बातचीत के अंश पेश हैं-शशिप्रभा तिवारी
आप नृत्य से कैसे जुड़ीं?
भावना रेड्डी-इस वर्ष के शुरू में इंडिया हैबिटाट सेंटर में भावना मैंने नृत्य रचना ओम शिवाय पेश किया। मैंने बहुत छुटपन से अपने गुरू और माता व पिता कौशल्या व राजा रेड्डी के साथ अलग-अलग नृत्य रचनाओं में नृत्य करना शुरू कर दिया था। मैंने लगभग पांच साल की उम्र में ही बाल राम, कृष्ण व प्रहलाद की भूमिका में नृत्य करना शुरू कर दिया था। मुझे नृत्य करना अच्छा लगता था। आज नृत्य मेरी सांसों की तरह मेरे तन-मन का हिस्सा बन चुका है। मेरी हर सांस में लय-ताल समाए हुए हैं। मैं नृत्य के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती हूं। नृत्य ने मेरी जिंदगी को संपूर्णता प्रदान किया है।
लाॅक डाउन में आप कैसा महसूस कर रही हैं?
भावना रेड्डी-यह सच है कि वर्ष 2020 का स्वागत देश बहुत उत्साह से किया था। लेकिन, यह समय ऐसे बीतेगा कोई नहीं जानता था। मार्च में जब लाॅकडाउन शुरू हुआ था, तब भी लोगों को अंदाजा था कि एक-दो महीने में समय गुजर जाएगा। लोग फेसबुक, वाट्सएप, टीवी को देखने-सुनने में वक्त गुजारते हैं। इस क्रम में कई संस्थाएं और कलाकारों ने अपने लाइव प्रसारण शुरू किया। पर भारतीय प्रदर्श कलाएं ऐसी हैं कि इसमंे कलाकारों को दर्शकों की जरूरत महसूस होती है और दर्शकों को कलाकारों को करीब से देखना-सुनना आत्मसंतुष्टि देता है।
इनदिनों हम स्टेज पर प्रोग्राम नहीं कर पा रहे हैं। स्टेज का महत्व और दर्शकों का महत्व हमें बखूबी समझ आने लगा है। स्टेज पर परफाॅर्म करते समय एक-दूसरे से जुड़ा हुआ अनुभव हम करते हैं। सभी प्रोग्राम आॅन-लाइन हो रहे हैं। मार्च में मेरे कई बड़े प्रोग्राम नीदरलैंड और ब्रिटेन में थे। प्रोग्राम से दो दिन पहले वहां से काॅल आए कि कार्यक्रम पोस्टपांड कर दिया गया। पूरी जिंदगी बदल गई है। दो-तीन महीने एक साल कब तक यह स्थिति रहेगी। इसका कुछ पता नहीं। ऐसी अनिश्चितता में थोड़ी उदासी महसूस होती है। उस समय अपने पिता और पति से बातचीत करती हूं। मेरे पिता मेरे शक्ति का आधार हैं। यह चुनौतीपूर्ण है।
आप लोगों से कैसे जुड़ रही हैं?
भावना रेड्डी-दरअसल, हम लोगों के लिए घर में रहना मुश्किल नहीं है। हम लोग दिन में घर में ही ज्यादा रहते हैं। हमें अच्छा लगता है। एकांत में सृजनात्मक काम बेहतर होता है। इस दौरान मुझसे अलग-अलग उम्र के लड़कियां, महिलाएं और पुरूष नृत्य सीख रहे हैं। हम सभी क्लास के दौरान आॅन लाइन जुड़ते हैं। उस समय एक-दूसरे को देखकर, बात करके बहुत अच्छा लगता है।
कैमेरा के आगे परफाॅर्म करना जादुई अनुभव नहीं देता, जैसा कि स्टेज पर परफाॅर्म करते हुए होता है। शास्त्रीय नृत्य की मर्यादा है। इस समय फेसबुक लाइव पर कोई प्रोग्राम लेटकर देख रहा है या खाना खाते हुए देख रहा है। हमें पता नहीं। इससे कला के प्रति सम्मान की भावना का हमें पता नहीं चलता है। नृत्य को प्रासंगिक और जीवंत रखने की चुनौती भी हमारे सामने है। हम नृत्य साधना के जरिए अपने आप को दिशा देती हूं। यह मेरे लिए एक चिकित्सक की तरह है। इस समय खासतौर पर जब मैं अपसेट होती हूं तो नृत्य करती हूं या संगीत सुनती हूं।
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